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एक अबूझ पहेली है ज़िंदगी

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Dr. Kamal Musaddi

मुझे आज तक एक प्रश्न का उत्तर नही मिला कि ज़िंदगी जब पीछे मुड़कर देखती है तो सब कुछ इतना सुंदर सुखद और अच्छा क्यों दिखता है क्यों हमें वर्तमान रुलाता है और भविष्य डराता है। आज का डरावना वर्तमान कल जब अतीत बनेगा तब क्या ये भी सुखद हो जाएगा ? । जब ये सोच मेरे मन में आती है तो मैं वर्तमान में सुख और खुशी तलाशने लगती हूँ।

ये सब कुछ मन में आया जब मौसम से डर कर मैं रजाई में दुबक गयी।फरवरी का महीना l पहाड़ो पर बर्फ की बारिश l हाड़ तोड़ कंपकपी वाले हवा के झोंके जिस पर तेज़ बादल गर्जना और कड़कड़ाती बिजली के साथ मूसलाधार बारिश।एक अजीब सा भय और आशंका मन में उत्पन्न कर रहे थे। फिर याद करती हूं अतीत को तब बादल डराते नही थे, रिझाते थे।मां की डांट के बावजूद भीगना अच्छा लगता था।गीली सड़क पर दौड़ना टोली बनाकर और अगर सड़क भर जाती थी तो सरकार को कोसते नही थे l खुशियों की लॉटरी खुल जाती थी, क्योंकि धड़ाधड़ फटते कॉपी के पन्ने उनसे बनती नाव फिर नाव दौड़ाने की प्रतियोगिता । उस प्रतियोगिता में पुरस्कार भी बस आत्मसुख का होता था कि मेरी नाव सबसे आगे निकल गयी और पूरी टोली में मैं जैसे एक प्रतिष्टित स्थान पा गयी।

छोटे -छोटे सुख ज़िंदगी को आनंद से भर देते थे।मगर अब वो कोहरा डराता है जिस कोहरे के इन्तेजार हम सब किया करते थे।सामान्य दिनों में स्कूल जाए न जाएं मगर कोहरे में तो जाना ही था l कारण उस दिन टीचर पढ़ाते नही थे ।अब समझ ये आता है वो भी हमारे आज की तरह डरते बिलखते स्कूल आ तो जाते थे मगर मुँह को कपड़े या मफलर से कस कर रखना चाहते थे ताकि कोहरा उनके फेफड़ों को सुन्न न कर दे।टीचर का मौन विद्यार्थियों की मौज बन जाता था। मगर अब……….? बात इसकी नहीं कि हम बड़े हो गए ,बात इसकी है कि क्या हम अपने छोटों को ये सब करने की छूट दे पाते हैं।

कोहरे में स्कूल बंद हो जाते हैं l एक से एक गतिशील वाहनों ने कोहरे से डराकर जिंदगी की सामान्य गति भी छीन ली।सड़कों पर भरे पानी , खुले मैनहोल का डर बच्चों को आँख से दूर करने में भयभीत रहता है।विज्ञान ने हमारे ज्ञान चक्षु इतने अधिक खोल दिये कि हमें सहज रहने के लिए पुतलियों को सिकोड़ कर थोड़ा अंधेरा समेटना पड़ता है ता कि हम जीवन के कुछ क्षण सहजता से जी लें।

जिंदगी का हर लम्हा नया होता है जो अपने साथ लाता है नई अनुभूति नई सोच नया विचार।
बढ़ती उम्र में मन में अनुभवों का जखीरा इकठ्ठा होता है वहा व्यवहार उन अनुभवों से प्रभावित होने लगता है।बहूत चिंतन मनन करती हूँ तो लगता है हम अपने वो अनुभव जिनमें सुख था आनंद था जोखिम नही था वो तो आने वाली पीढ़ी को देना चाहते हैं, किंतु जिनसे हमारा जीवन जटिल हुआ उन्हें भुला देना चाहते हैं।उनकी ना ही बात करना चाहते हैं ना उसकी परछाई पड़ने देना चाहते हैं सामने खड़ी पीढ़ी पर।तभी तो हम सारा दिन डोन्ट और डू , नाट टू डू से घिरे रहते हैं।
दरअसल अतीत में सब सुखद नहीं था मगर हमने सुखद को सीने से चिपका रखा है। बन्दरिया के बच्चे की मानिंद और जो तकलीफ देह था उससे आँखें चुरा कर बच निकलते हैं।इसलिए शायद बीता हुआ कल सुखद लगता है।
अजीब पहेली है ये जिंदगी हर सोच उलझता है मगर हल ……. ना मिले है ना मिलेंगे क्यों कि ये उलझाव ही तो जिंदगी की सतत धारा है।

धनुरासन (Bow Shape)

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Dr. S.L.Yadav

बिधि,लाभ एवं सावधानियाँ –

इस आसन में रीढ़ की हड्डी का आकार “धनुष” जैसा बनता है इसलिए इसे धनुरासन कहते हैं। रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाकर उसे मजबूत बनाने का सबसे अच्छा आसन हैं। टली हुई नाभि को अपनी जगह पर वापस लाना एवं उसे मजबूत बनाने का भी काम धनुरासन करता है। सुंदरता बढ़ाने वाले आसन के रूप में भी जाना जाता है।

धनुरासन की बिधि –

सबसे पहले किसी समतल जमींन पर योग मैट (चटाई ) बिछाकर पेट के बल लेटते हैं। फिर दोनों पैरों में 1 से 1 .5 फिट का अन्तर करके दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर दोनों हाथों से दोनों टखनों (चित्रानुसार )को पकड़ते हैं। अब साँस भरते हुए आगे से सिर,कंधे एवं सीना (चेस्ट ) और पीछे से दोनों पैरों को हवा में अधिकतम ऊचाई पर उठाते हैं फिर साँस को सामान्य रखते हुए यथासंभव या २ मिनट रोकते है,फिर धीरे से वापस आकर शरीर को ढीला छोड़ देते हैं।इसे 2 बार कर सकतें हैं। नजरे माथे की तरफ या आसमान की तरफ रखे।

धनुरासन के लाभ –

  • यह आसन नाभि संस्थान को मजबूत बनाकर नाभि के बार बार टलने की समस्या को दूर करता है।
  • चेहरे की तरफ रक्त संचार बढ़ाकर चेहरे के दाग धब्बो को दूर करके चेहरे पर निखार लाता है।
  • मानसिक समस्याओ को दूर कर मानसिक शांति प्रदान करता है।
  • टली हुई नाभि को अपने स्थान पर वापस लेने का सबसे अच्छा आसन है।
  • कमर एवं पीठ दर्द को होने से धनुरासन बचता हैं एवं कम दर्द हो तो उसे दूर भी करता है।
  • सीने में खिचाव देकर ब्रेस्ट (स्तन ) को सुडौल बनता है।
  • पाचन सस्थान को मजबूत बनाकर कब्ज,गैस,एसिडिटी ,अपच जैसी समस्याओं को दूर करता है।
  • यह आसन फेफड़ो को साफ करके उन्हें स्वस्थ बनाता है तथा श्वांस रोगों से बचाता है।
  • हाथ एवं पैरों की मांसपेसियों को मजबूत बनाता है जिससे साइटिका जैसी समस्यायें दूर होती हैं।
  • महिलाओं की मासिक धर्म से जुडी (माहवारी/पीरियड ) समस्यायें निश्चित रूप से ठीक करता हैं।
  • पेट एवं कमर की चर्वी को कम करके उसे सही आकार प्रदान करता है।

सावधानियाँ –

  • पेट का कोई बड़ा आपरेशन 6 माह से कम का हो तो नहीं करते हैं।
  • एपेंडिक्स,अल्सर एवं हार्निया हो तो नहीं करना चाहिए।
  • हार्ट एवं उच्च रक्तचाप की समस्या में योग चिकित्सक की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
  • गर्भावस्था,मासिक धर्म एवं क्षय रोग (टी.बी.) में नहीं करना चाहिए।
  • जादा कमर दर्द हो तो भी नहीं करना चाहिए।
  • आसनो को झटके से नहीं करना चाहिए।
  • विशेष – किसी योग्य योग विशेषज्ञ की देखरेख में ही आसनो का अभ्यास करना चाहिए।

Barbers to earn from waste cut hair

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Now, barbers would have additional source of income by selling the cut hair of their customers. On the other hand the problem of disposing the hair safely would also be solved.

This would be possible under an ambitious project of The Bhartiya Harit Khadi Gramodyog Sansthan (BHKGS) a unit of Board for Khadi and Gramodyog . The BHKGS has proposed to set up cut hair collection centers in ten districts of the state of Uttar Pradesh. These centers would purchase one kilogram of cut hair for rupees forty.

The centers are expected to be set up by March 2019 according to the minister for Khadi Gramodyog Satyadeo Pachauri. An memorandum of Understanding (MoU) has already been signed with a company for installing the plant for producing amino acid from hair, cow urine and cow dung he informed.

The amino acid is required organic manure, pesticides and insecticides.

“After two years hectic research on the project we have been able to produce the amino acid with human hair, cow dung and cow urine,” says Controller of the Training Program at the BHKGS Vijay Raj.

“We are imparting training to the people in running the collection centers and producing amino acid. In the first phase the centers would be set up in Kanpur City, Kanpur Dehat, Lucknow, Banda, Sitapur, Hardoi, and Faizabad. Later more such centers would be opened in other districts of the state,” Rai says.

“There is no dearth of orders. We have started getting orders for the amino acid. Recently a company in has asked to supply about 50000 liters,” Rai says.

A survey has revealed that over eight hundred kilogram of hair is thrown as waste in the big cities daily. This could prove to be potential raw material for producing amino acid which has several uses, Rai says.

==>G.P.Varma

‘घुमंतू जीवन’ संरक्षण की उम्मीद…..

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Pooja Prashar

कभी बांसुरी की मधुर धुन, कभी ढपली की थाप, कभी भोपे के सारंगी का सुर जिस पर थिरकते उनके पांव, कभी रस्सी की आकृतियां बनाकर उनसे गुजरना तो आग के गोले से दूसरी और कूदना, कभी दो बांसों के बीच बंधी रस्सी पर चलना तो लंबे बांसों को पैरों के रूप में प्रयोग कर यूं आगे बढ़ना….. न सिर्फ आश्चर्य दिलाता था अपितु कभी-कभी भयभीत भी कर देता था कि यदि  गिर गए, तो क्या होगा…!

लोहे को पीटकर चिमटा और तवा बनाना तो कभी घर-घर जाकर श्रृंगार और अन्य उपयोगी वस्तुओं का आदान – प्रदान कर जीविकोपार्जन करना, यहां – वहां घूमते, मनोरंजन कराते, अद्भुत कलाओं का दर्शन कराते, अलग-अलग परंपरा व जीवनशैली से परिचित कराते ये घुमंतू बंजारे, नट आजकल दिखाई नहीं देते। मन स्वयं से कभी-कभी प्रश्न करने लगता है कि आखिर ये लोग हैं कौन? इनकी धरोहर क्या है?

‘जागा’ भी जो कई पीढ़ियों का लेखा-जोखा अपने पास रख, नई पीढ़ियों को जोड़ते हुए ना सिर्फ उन्हें अपने पूर्वजों के बारे में बताता, अपितु उनकी स्मृतियों से जोड़कर अपनी परंपरा का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता। जिससे हमारा संबंध हमारी समृद्ध संस्कृति से स्थापित हो पाता। ‘कृषि संकट’ के साथ कृषि पर आधारित आज इन सभी की जीवन शैली भी संकट में पड़ गई है।

ऐसा अनमोल ‘पेशा’ जो हर परंपरा – संस्कृति के साथ जोड़ते हुए कला के सौंदर्य को बिखेर हमारे देश को अद्भुत और समृद्ध बनाता है, आज दिशा – विहीन होने के साथ विलुप्त होने के कगार पर है।

ये घुमंतू बंजारे उम्मीद लिए इस प्रतीक्षा में हैं कि कोई उनका हाथ पकड़ एक सही राह दिखाए। जिससे उनका घुमंतू जीवन और उनका ज्ञान, परंपरा – संस्कृति में रंग भरते हुए जीवन को ना सिर्फ रसपान कराए अपितु देश अपनी प्राचीन कलाओं का संरक्षण रख विश्व में शीर्षस्थ स्थान पर होने का गौरव प्राप्त करे। आज ‘घुमंतू जीवन’ अपने संरक्षण की उम्मीद लगाए बैठा है।

 

कुम्भ : एक परिचय

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Pankaj Bajpai
कुम्भ भारतीय संस्कृति का महापर्व कहा गया है।इस पर्व पर स्नान,दान,ज्ञान मंथन के साथ ही अमृत प्राप्ति की बात भी कही जाती है।कुम्भ का बौद्धिक,पौराणिक,ज्योतिषीय के साथ साथ वैज्ञानिक आधार भी है।वेद भारतीय संस्कृति के आदि ग्रंथ हैं।कुम्भ का वर्णन वेदों में भी मिलता है।कुम्भ का महत्व न केवल भारत में वरन विश्व के अनेक देशों में भी है।इस तरह कुम्भ को वैश्विक संस्कृति का महापर्व कहा जाय ,तो गलत न होगा।चूंकि इस दौरान दुनिया के अनेक देशों से लोग आते हैं और हमारी संस्कृति में रचने -बसने की कोशिश करते हैं, इसलिए कुम्भ का महत्व और बढ़ जाता है।कुम्भ पर्व प्रत्येक 12 वर्ष पर आता है।प्रत्येक 12 वर्ष पर आने वाले कुम्भ पर्व को अब शासन स्तर से महाकुम्भ और इसके बीच 6 वर्ष पर आने वाले पर्व को कुम्भ की संज्ञा दी गयी है। पुराणों में कुम्भ की अनेक कथाएं मिलती हैं।भारतीय जनमानस में तीन कथाओं का विशेष महत्व है।
कुम्भ पर्व के संदर्भ में पुराणों में तीन अलग अलग कथाएं मिलती है।प्रथम कथा के अनुसार कश्यप ऋषि का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्रियों दिति और अदिति के साथ हुआ था।अदिति से देवो की उत्पत्ति हुई तथा डिटिवसे दैत्य पैदा हुए।एक ही पिता की संतान होने के कारण दोनों ने एक बार संकल्प लिया कि वे समुद्र में छिपी हुई बहुत सी विभूतियों एवं संपत्तियों को प्राप्त कर उसका उपभोग करें।इस प्रकार समुद्र -मंथन एक मात्र उपाय था।समुद्र मंथनोपरांत चौदह रत्न प्राप्त हुए जिनमें से एक अमृत कलश भी था।इस अमृतकलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच युद्ध छिड़ गया,क्योंकि उसे पीकर दोनों अमरत्व की प्राप्ति करना चाह रहे थे।स्थिति बिगड़ती देख देवराज इंद्र ने अपने पुत्र जयंत को संकेत किया और जयंत कलश लेकर भाग चला।इस पर दैत्यों ने उसका पीछा किया।पीछा करने पर देवताओं और दैत्यों के बीच बारह दिन तक भयंकर संघर्ष हुआ।संघर्ष के दौरान अमृत कुम्भ के सुरक्षित रखने में बृहस्पति ,सूर्य,और चंद्रमा ने बड़ी सहायता की।बृहस्पति ने दैत्यों के हाथों में जाने से कुम्भ को बचाया।सूर्य ने कुम्भ के फूटने से रक्षा की और चंद्रमा ने अमृत छलकने नही दिया।फिर भी,संग्राम के  दौरान मची उथल -पुथल से अमृत कुम्भ से चार बूँदें छलक ही गईं।ये अलग-अलग चार स्थानों पर गिरीं।इनमें से एक गंगातट हरिद्वार में,दूसरी त्रिवेणी संगम प्रयागराज में,तीसरी शिप्रा तट उज्जैन में और चौथी गोदावरी तट नाशिक में।इस प्रकार इन चारों स्थानों पर अमृत -प्राप्ति की कामना से कुम्भ पर्व मनाया जाने लगा।
दूसरी कथा के अनुसार आने क्रोध के लिए विख्यात महर्षि दुर्वासा ने किसी बात पे प्रसन्न होकर देवराज इंद्र को एक दिव्य माला प्रदान की,किंतु अपने घमंड में चूर होकर इंद्र ने उस माला को ऐरावत के मस्तक पर रख दिया।ऐरावत ने माला लेकर किसे पैरों तले रौंद डाला।यह देख कर महर्षि दुर्वासा ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर इंद्र को शाप दे दिया।दुर्वाशा के शाप से सारे संसार मे हाहाकार मच गया।रक्षा के लिए  देवताओं  और दैत्यों ने मिलकर  समुद्र मंथन किया।जिसमें  से अमृत  कुम्भ निकला,किंतु यह नागलोक में था।अतःइसे लेने के लिए पक्षीराज गरुड़ को जाना पड़ा।नागलोक से अमृत घट लेकर गरुड़ को वापस आते समय हरिद्वार प्रयागराज,उज्जैन और नाशिक और इस चार स्थानों पर कुम्भ को रखना पड़ा और इसी कारण  ये चार स्थान हरिद्वार ,प्रयागराज,उज्जैन,नाशिक कुम्भ के नाम से विख्यात हो गए।
तीसरी कहानी यह मिलती है कि एक बार प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों  विनता और को कद्रू के बीच इस बात पर विवाह हो गया कि  सूर्य के साथ के अश्व काले  हैं या सफेद।विवाद बढ़ने पर दिनों के बीच शर्त तय हुई कि जो हार जाएगी वो दासी बनेगी।रानी कद्रू ने अपबे पुत्र ने अपने पुत्र नागराज वासुकी की सहायता से  अश्वो के श्वेत रंग को काला कर दिया,जिससे विनता की हार हुयो।अन्तत: विनता ने कुद्र से प्राथना की कि वह उसे दायित्वों से मुक्ति कर दें।कद्रू ने पुनः शर्त रखी कि यदि वे नागलोक में रखे अमृतघट को उसे लेकर दे दे तो दायित्वों से मुक्ति हो सकती हैं।विनता ने अपने  पुत्र गरुड़ को इस कार्य मे लगा दिया।गरुड़ जब अमृत घट लेकर आ रहे थे तो रास्ते में इंद्र में उन ने उन पर आक्रमण कर दिया।संघर्ष के कारण घट से अमृत की कुछ बूंदे चार बूंदे छलक कर चार अलग – अलग स्थान पर कुम्भ पर्व होने लगा।
कुम्भ की कथाओं के अनुसार देव दैत्यों में बारह दिनों तक जो संघर्ष चला था, उस दौरान अमृत कुम्भ से अमृत की जो बूंदे छलकी थीं और जिन स्थानों पर गिरीं थीं वही- वहीं पर कुम्भ मेला लगता है। क्योंकि देवोँ के इन बारह दिनो को बारह मानवीय वर्षों  के बराबर माना गया है, इसलिए कुम्भ पर्व का आयोजन बारह वर्षों पर होता है।जिस दिन अमृत कुम्भ गिरने वाली राषि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग हो उस समय उस पर कुम्भ होता है।तातपर्य यह है कि राशि विशेष में सूर्य और चंद्रमा के स्तिथि होने पर उक्त चारों स्थानो पर शुभ प्रभाव के रूप में अमृत वर्षा होती है और यही वर्षा श्राद्धालुवों के लिए पुण्यदायिन मान लिया है।इस प्रकार से वृष के गुरु में प्रयागराज कुम्भ के गुरु में हरिद्वार तुला के गुरु में उज्जैन और कर्क के गुरु में नाशिक का कुम्भ होता है।सूर्य की स्थिति के अनुसार कुम्भ पर्व की तिथियां निश्चित होती हैं।मकर के सूर्य में प्रयागराज,मेष के सूर्य में हरिद्वार ,तुला के सुर्य में उज्जैन और कर्क सूर्य में नाशिक का कुम्भ पर्व पडता है।

फेयरवेल

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Dr. Kamal Musaddi
मुदित रोज दिन में एक दो बार माँ से लिपट कर कहता मम्मा स्कूल छूट जाएगा।माँ प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर कर पूछती कोई बात नही जहां कॉलेज पढ़ने जाओगे वहां नए दोस्त मिल जाएंगे।लेकिन मम्मा स्कूल की बात और थी ना।मुदित लाड जता कर कहता है।माँ मुस्कुराई और रहस्यमय ढंग से पूछा ये बताओ तुम्हे सबसे ज्यादा किसे छोड़ने का दुख हो रहा है,मुदित ने मां की आँख में आँख गड़ाई और उसकी गोद मे मुँह छिपा लिया।मां ने फिर से उसका सिर सहलाते हुए दोस्तों का नाम लेना शुरू किया ,जिसमें लड़के भी थे और लड़कियां भी।एक लड़की का नाम लेकर माँ मुस्कुराते हुए रिक गयी मुदित ने फिर माँ का चेहरा ध्यान से देखा और उठ कर अपने कमरे में चल गया।
माँ जानती थी इस वर्ष मुदित का बारहवीं के बोर्ड का एग्जाम है और आज स्कूल का आखिरी दिन।इसके बाद सब बच्चे अपनी-अपनी चुनी हुई दिशा में चले जायेंगे।लोअर केजी से लेकर बारहवीं तक साथ पढ़ने वाले इन बच्चों का चौदह वर्षों का साथ है।इन बच्चों ने बचपन में एक दूसरे के पेंसिल इरेज़र छीने हैं।टिफिन छीन कर खाया है,गुस्सा आने पर एक दूसरे को नोचा खासोटा है,बाल खींचें हैं,धक्का दिया है,मुँह भी चिढ़ाया है।
इन बच्चों ने अपने -अपने दल बना कर एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा की है।खेल के मैदान में साथ दौड़े हैं।लड़कियों ने लड़कों की दाढ़ी मूछें उगती देखी हैं और आवाज का भारी पन भी।वहीं लड़कों ने भी लड़कियों में सजने संवारने की आदत को नोटिश किया है।
कुल मिलाकर मां जानती है बचपन से किशोरावस्था तक कि यात्रा में इन बच्चों के पास हजारों यादें हैं,एक दूसरे की।सच तो यह है कि बच्चों के जन्मदिन की पार्टी देते-देते कइयों के तो माता पिता भी आपस मे मित्र बन गए।अब एक दम से अलगाव बच्चों के लिए एक कठिन भावनात्मक दौर होता है।माँ जानती है कि इस समय बच्चों को माँ बाप के विशेष ध्यान साथ और सहयोग की जरूरत है
वो अपनी जिंदगी में पीछे लौटती हैं तो पाती है कि लड़के का नाम तक लेना भी पाप था।दोस्त शब्द की जिंदगी में कोई जगह नही थी,अगर किसी लड़के -लड़की की दोस्ती होती भी थी तो लड़कियों वाला नाम रख दिया जाता था।जैसे किशन है तो किरन, सुरेश है तो सुरभि ।तब जाकर वो घर के या छत के कोने में बैठ कर सहेली से उसके क्षदम नाम के साथ बात करती थी ना कि कानों कान किसी को पता न चले वो जानती थी कि दीवारों के भी कान होते हैं और वो उन दोस्त का नाम दीवारों तक के सामने नही लेनेे का साहस कर पाती थी।मगर अब।
माँ सोच रही थी कि बचपन वही था,बचपन की चाहते भी वही थी मगर परवरिश के तरीके कितने तानाशाही थे।बावजूद इसके वो समझ नहो पा रही थी कि जिंदगी तब सरल थी या अब…………?

Five points suggestion for breathing clean air

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G.P Varma

The environmentalists feel that there are five ways to keep air unpolluted and fit for breathing.

The facts came to light during a extensive study of air pollution in Delhi.

The Union Government  had asked an environmental scientist at the Indian Institute of Technology (IIT-K) Dr Mukesh Sharma to conduct a study of air pollution in Delhi.

The study was aimed at diagnosing the causes of air pollution and understanding its relationship between emitting sources and the impact they caused on breathing air quality.

The study took a year to know the various polluting sources and to apply the most effective pollution control methods.

It was found during the study that that the gases emitted through coal based power plants like Sulphur dioxide and Nitrogen dioxide were the precursor gases for air pollution as it converted into particles in the air and caused breathing hazards.

Consequently, besides controlling fly-ash the emitted gases should also be controlled to keep the environment clean and the air fit for healthy breathing.

Higher quantity of sulphur in diesel was another cause of air pollution. The quantity of sulphur in the diesel needed to be reduced from even fifty part per million (PPM) to ensure clean air.

Burning of the municipal waste to destroy the crude garbage was a normal practice but the burning process polluted the air. The burning of garbage for its destruction should be stopped. Besides, the burning of any kind of biomass for any purpose should also be discouraged, if the environment was to be kept clean.

More so there was also the need of using Euro-6 vehicles for checking the environmental air pollution in the environment, observed Dr Mukesh Sharma in his report.

सपनों को मिला आकाश…..

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Pooja Parashar

वह छोटी सी नन्ही परी, पर्यावरण प्रेमी, उसका सपना था कि वह अधिक से अधिक पौधे लगाए और प्रकृति को खुशहाल करें। उसका सपना पूरा हुआ। अपने बाल मित्रों व परिवार के सदस्यों के सहयोग से उसने एक दिन में एक हज़ार पौधे रोप
दिये।  लोग आश्चर्यचकित थे। यह आश्चर्य चरमोत्कर्ष पर तब पहुंचा, जब उस नन्ही परी का नाम “इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड” व “यू॰पी॰ बुक ऑफ रिकॉर्ड” में दर्ज हुआ। भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा उसे “प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार – 2019” से नवाजा गया और “वर्ल्ड रिकॉर्ड यूनियन” ने भी उसको सम्मानित किया। यह नन्ही परी कोई और नहीं मेरठ की रहने वाली, छः वर्षीय ‘ईहा दीक्षित’ है। खेलने -कूदने और हंसने -ठिठोली करने की उम्र में पर्यावरण संरक्षण जैसे विषय पर उसका लगाव और समर्पण कब आ गया, उसे सही से नहीं पता। वह इतना जानती है कि जब वह किसी वृक्ष की ‘मौत’ देखती तो वह भाव -विह्वल हो जाया करती थी। ‘मौत’ का कारण प्राकृतिक आपदाएं रहीं हो या फिर हरियाली के भूचल पर कंक्रीट संपदा का प्रसार, उसे अच्छा नहीं लगता था।

उसने संकल्प लिया कि वह वृक्ष -संरक्षण के प्रति समर्पण भाव से कार्य करेगी। तब वह मात्र साढ़े पाँच वर्ष की थी। लेकिन उसने एक बड़ा सपना देख डाला। सपने को ‘पर’ देने के लिए उसने ‘ईहा स्माइल क्लब’ गठित किया। क्लब के सदस्य हम उम्र के बच्चे ही थे। क्लब के सदस्य बच्चे, प्रत्येक रविवार को पौधा रोपण करते और रोपित पौधों की देखभाल भी करते । अब तक ईहा ने अपने नेतृत्व में क्लब सदस्यों के सहयोग द्वारा साढ़े नौ हजार पौधे लगा चुकी है। आज भी वह अपने सपनों को और ऊंची उड़ान देने के लिए प्रयासरत है। नन्ही परी ईहा, दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी है।

 

धनौल्टी-हिमालय की गोद में सुकून के दो पल

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Dr. Asha Singh

आसमान को चूमती विराट पर्वत श्रंखलाऐं, विशाल देवदार के दरख़्त, सर्पिलाकार बल खाती हुई पगडंडियां और शांत वातावरण। यही पहचान है, शहरी कोलाहल से दूर और मात्र लगभग 1000 जनसंख्या के हिल स्टेशन, धनौल्टी की। समुद्र तल से 7500 फ़ीट ऊंचाई पर असीम प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर हिमालय की गोद में बसा धनौल्टी भारत के उन हिल स्टेशनों में से है, जिन्होंने विकास की इस दौड़ में अब भी अपनी सुंदरता को अनछुआ रखा है।

गत वर्ष अप्रेल में हमने जब किसी हिल स्टेशन घूमने की योजना बनाई तो किसी ऐसे स्थान का चयन कठिन हो गया जहाँ जाने-माने पर्वतीय स्थलों जैसी भीड़ भाड़ न हो, व प्रकृति की गोद में कुछ दिन सुकून से बिताए जा सकें। तय हुआ कि इस बार शांति से 3-4 दिन ऐसे स्थल पर बिता के आने हैं, जहाँ पर्यटकों की गहमा गहमी न हो। एक मित्र के सुझाव पर उत्तराखंड में मसूरी के पास धनोल्टी जाने का प्लान बना। धनोल्टी जाने हेतु देहरादून एयरपोर्ट से महज 80 किलोमीटर की दूरी ढाई घण्टे में पूर्ण की जा सकती है। दिल्ली से लगभग 350 किलोमीटर का रास्ता लगभग आठ घण्टे में तय होता है।

देहरादून एयरपोर्ट पर उतरने के बाद भी हम असमंजस में थे कि कहीं ऐसा न हो कि धनौल्टी जाना एक जुआ सिद्ध हो। टैक्सी से देहरादून के मानसी जू घूमते हुए हम जब शाम को धनोल्टी पहुंचे तो ढलते सूरज की रोशनी में नहाए देवदार के विशाल वृक्षों को गोद में उठाये धनोल्टी मानो हमारे स्वागत में बाहें फैलाये खड़ा था। पहाड़ के रास्ते में ठंडी ठंडी हवाओं का झोंका औऱ कलरव करते बेहिसाब पक्षी मन को उद्वेलित कर रहे थे। यहाँ अन्य किसी पर्यटक स्थल की तुलना में घूमने के कम स्पॉट हैं। पर किसी भी दिशा में निकल जाएं आपको सुंदर-सुंदर प्राकृतिक दृश्य मिल जाएंगे। हर तरफ हरियाली होने से आप कहीं भी बैठकर प्रकृति को निहार सकते हैं। बम्बू हट्स रुकने के लिए उत्तम जगह है और साथ ही अपने आप में अत्यंत दर्शनीय हैं। इकोपार्क से हिमालय की गोद में डूबता सूरज मन को मोह लेता है।

सुबह घूमते हुए पास ही में स्थित सेबों के बगीचों की सैर का आनन्द मंत्रमुग्ध कर देता है। पास में ही चोटी पर स्थित सरकुंडा देवी एक शक्ति पीठ है। यहाँ से हिमालय की लंबी श्रंखला को भरपूर निहारना अत्यन्त सुखद अनुभव है। धनोल्टी से प्रसिद्ध मसूरी व चम्बा दोनों की दूरी लगभग 28 किलोमीटर है। यहाँ से टिहरी बांध सुबह जाकर शाम तक आसानी से लौटा जा सकता है। विशाल टिहरी बांध में डूबे शहर के ऊपर नौका विहार करना रोमांचित कर देता है। धनोल्टी में नाममात्र को ही होटल हैं औऱ आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। खाने के लिए यहाँ छोटे-छोटे रेस्टोरेंट हैं, लेकिन किसी गढवाली घर में घर का बना गर्म-गर्म भोजन करना एक यादगार लम्हा बन जाता है। जनवरी माह में बर्फ से नहाया धनोल्टी एक अलग ही नजारा प्रस्तुत करता है।

धनोल्टी वह स्थान है जहाँ मानव ने अभी प्रकृति का दोहन नाममात्र को ही किया है। हिल स्टाशनो व शहरों की भीड़ भरी जिंदगी से दूर सब कुछ भुला के प्रकृति की गोद में यहां बिताए अविस्मरणीय पलों की याद लेकर लौटना सचमुच एक अद्वितीय अनुभव है।

गोमुखासन (Cow Face Pose)

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Dr. S.L. Yadav

बिधि,लाभ एवं सावधानियाँ –
इस आसन की बहुत सारी खूबियाँ (समानता ) गाय से मिलती जुलती है इस लिए इसे”गोमुखासन” के नाम से जाना जाता हैं।

गोमुखासन की विधि- सबसे पहले किसी समतल जमीन पर योग मैट या चटाई बिछाकर अर्ध-वज्रासन (चित्रानुसर ) में बैठते हैं। दोनों घुटनों को एक दूसरों के ऊपर ले आते हैं। अब जो पैर ऊपर है वही हाथ कंधे के ऊपर से ले जायें और दूसरे हाथ को नीचे से ले जाकर पीठ की तरफ दोनों हाथ की उंगुलियों को आपस में फ़साने (ग्रिप) का प्रयास करते हैं। पकड़ना मुश्किल लगे तो रस्सी या रुमाल के सहारे भी पकड़ सकते हैं। ऊपर वाले हाथ की कोहनी आसमान को तरफ हो एवं हाथ कान से लगे हों। फिर पैर एवं हाथ को बदलकर दूसरी तरफ भी करते हैं। रीढ़ की हड्डी का दबाव सीने की तरफ हो सामने देखते रहें एवं सांसे सामान्य रखें। एक तरफ 1 से 2 मिनट रोकते हैं। फिर दूसरी तरफ
भी यही समय देतें हैं। इसे 2 बार कर सकते हैं।

गोमुखासन के लाभ –

    • इस आसान के अभ्यास से फेफड़े मजबूत हो जाते हैं जिससे साँसो से सम्बन्धित समस्याएँ (एलर्जी,कफ)दूर हो जाती हैं।
    • अस्थमा (दमा ) जैसी समस्याओ को दूर करता हैं।किडनी को मजबूत बनाने में मदत करता हैं।
    • कन्धों को मजबूत बनाकर जाम होने से बचाता है।
    • रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाकर रीढ़ की हड्डी को सीधा रखती हैं।
    • गर्दन दर्द एवं सर्वाइकल दर्द से छुटकारा दिलाता है।
    • यह आसन नेतृत्व क्षमता (लीडर शिप ) बढाता है।
    • घुटनों की माँसपेशियों को लचीला बनाकर पैरों को मजबूत बनता है।
    • हृदय की माँसपेशियों को मजबूत बनाने में मदत करता है।
    • गोमुखासन का अभ्यास सीने को उभार प्रदान करता है।
    • पेन्क्रियाज में खिचाव देकर रक्त शर्करा को सामान्य करके मधुमेह (डायबिटीज ) जैसी विकराल समस्याओ को होने से बचाता हैं।

सावधानियॉं –

  • कंधे में जादा दर्द हो तो इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • बवासीर के रोगियों को नहीं करना चाहिए।
  • घुटनों में जादा तकलीफ हो तो नहीं करना चाहिए।

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