एक अबूझ पहेली है ज़िंदगी

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Dr. Kamal Musaddi

मुझे आज तक एक प्रश्न का उत्तर नही मिला कि ज़िंदगी जब पीछे मुड़कर देखती है तो सब कुछ इतना सुंदर सुखद और अच्छा क्यों दिखता है क्यों हमें वर्तमान रुलाता है और भविष्य डराता है। आज का डरावना वर्तमान कल जब अतीत बनेगा तब क्या ये भी सुखद हो जाएगा ? । जब ये सोच मेरे मन में आती है तो मैं वर्तमान में सुख और खुशी तलाशने लगती हूँ।

ये सब कुछ मन में आया जब मौसम से डर कर मैं रजाई में दुबक गयी।फरवरी का महीना l पहाड़ो पर बर्फ की बारिश l हाड़ तोड़ कंपकपी वाले हवा के झोंके जिस पर तेज़ बादल गर्जना और कड़कड़ाती बिजली के साथ मूसलाधार बारिश।एक अजीब सा भय और आशंका मन में उत्पन्न कर रहे थे। फिर याद करती हूं अतीत को तब बादल डराते नही थे, रिझाते थे।मां की डांट के बावजूद भीगना अच्छा लगता था।गीली सड़क पर दौड़ना टोली बनाकर और अगर सड़क भर जाती थी तो सरकार को कोसते नही थे l खुशियों की लॉटरी खुल जाती थी, क्योंकि धड़ाधड़ फटते कॉपी के पन्ने उनसे बनती नाव फिर नाव दौड़ाने की प्रतियोगिता । उस प्रतियोगिता में पुरस्कार भी बस आत्मसुख का होता था कि मेरी नाव सबसे आगे निकल गयी और पूरी टोली में मैं जैसे एक प्रतिष्टित स्थान पा गयी।

छोटे -छोटे सुख ज़िंदगी को आनंद से भर देते थे।मगर अब वो कोहरा डराता है जिस कोहरे के इन्तेजार हम सब किया करते थे।सामान्य दिनों में स्कूल जाए न जाएं मगर कोहरे में तो जाना ही था l कारण उस दिन टीचर पढ़ाते नही थे ।अब समझ ये आता है वो भी हमारे आज की तरह डरते बिलखते स्कूल आ तो जाते थे मगर मुँह को कपड़े या मफलर से कस कर रखना चाहते थे ताकि कोहरा उनके फेफड़ों को सुन्न न कर दे।टीचर का मौन विद्यार्थियों की मौज बन जाता था। मगर अब……….? बात इसकी नहीं कि हम बड़े हो गए ,बात इसकी है कि क्या हम अपने छोटों को ये सब करने की छूट दे पाते हैं।

कोहरे में स्कूल बंद हो जाते हैं l एक से एक गतिशील वाहनों ने कोहरे से डराकर जिंदगी की सामान्य गति भी छीन ली।सड़कों पर भरे पानी , खुले मैनहोल का डर बच्चों को आँख से दूर करने में भयभीत रहता है।विज्ञान ने हमारे ज्ञान चक्षु इतने अधिक खोल दिये कि हमें सहज रहने के लिए पुतलियों को सिकोड़ कर थोड़ा अंधेरा समेटना पड़ता है ता कि हम जीवन के कुछ क्षण सहजता से जी लें।

जिंदगी का हर लम्हा नया होता है जो अपने साथ लाता है नई अनुभूति नई सोच नया विचार।
बढ़ती उम्र में मन में अनुभवों का जखीरा इकठ्ठा होता है वहा व्यवहार उन अनुभवों से प्रभावित होने लगता है।बहूत चिंतन मनन करती हूँ तो लगता है हम अपने वो अनुभव जिनमें सुख था आनंद था जोखिम नही था वो तो आने वाली पीढ़ी को देना चाहते हैं, किंतु जिनसे हमारा जीवन जटिल हुआ उन्हें भुला देना चाहते हैं।उनकी ना ही बात करना चाहते हैं ना उसकी परछाई पड़ने देना चाहते हैं सामने खड़ी पीढ़ी पर।तभी तो हम सारा दिन डोन्ट और डू , नाट टू डू से घिरे रहते हैं।
दरअसल अतीत में सब सुखद नहीं था मगर हमने सुखद को सीने से चिपका रखा है। बन्दरिया के बच्चे की मानिंद और जो तकलीफ देह था उससे आँखें चुरा कर बच निकलते हैं।इसलिए शायद बीता हुआ कल सुखद लगता है।
अजीब पहेली है ये जिंदगी हर सोच उलझता है मगर हल ……. ना मिले है ना मिलेंगे क्यों कि ये उलझाव ही तो जिंदगी की सतत धारा है।

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