फेयरवेल

1
1251
Dr. Kamal Musaddi
मुदित रोज दिन में एक दो बार माँ से लिपट कर कहता मम्मा स्कूल छूट जाएगा।माँ प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर कर पूछती कोई बात नही जहां कॉलेज पढ़ने जाओगे वहां नए दोस्त मिल जाएंगे।लेकिन मम्मा स्कूल की बात और थी ना।मुदित लाड जता कर कहता है।माँ मुस्कुराई और रहस्यमय ढंग से पूछा ये बताओ तुम्हे सबसे ज्यादा किसे छोड़ने का दुख हो रहा है,मुदित ने मां की आँख में आँख गड़ाई और उसकी गोद मे मुँह छिपा लिया।मां ने फिर से उसका सिर सहलाते हुए दोस्तों का नाम लेना शुरू किया ,जिसमें लड़के भी थे और लड़कियां भी।एक लड़की का नाम लेकर माँ मुस्कुराते हुए रिक गयी मुदित ने फिर माँ का चेहरा ध्यान से देखा और उठ कर अपने कमरे में चल गया।
माँ जानती थी इस वर्ष मुदित का बारहवीं के बोर्ड का एग्जाम है और आज स्कूल का आखिरी दिन।इसके बाद सब बच्चे अपनी-अपनी चुनी हुई दिशा में चले जायेंगे।लोअर केजी से लेकर बारहवीं तक साथ पढ़ने वाले इन बच्चों का चौदह वर्षों का साथ है।इन बच्चों ने बचपन में एक दूसरे के पेंसिल इरेज़र छीने हैं।टिफिन छीन कर खाया है,गुस्सा आने पर एक दूसरे को नोचा खासोटा है,बाल खींचें हैं,धक्का दिया है,मुँह भी चिढ़ाया है।
इन बच्चों ने अपने -अपने दल बना कर एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा की है।खेल के मैदान में साथ दौड़े हैं।लड़कियों ने लड़कों की दाढ़ी मूछें उगती देखी हैं और आवाज का भारी पन भी।वहीं लड़कों ने भी लड़कियों में सजने संवारने की आदत को नोटिश किया है।
कुल मिलाकर मां जानती है बचपन से किशोरावस्था तक कि यात्रा में इन बच्चों के पास हजारों यादें हैं,एक दूसरे की।सच तो यह है कि बच्चों के जन्मदिन की पार्टी देते-देते कइयों के तो माता पिता भी आपस मे मित्र बन गए।अब एक दम से अलगाव बच्चों के लिए एक कठिन भावनात्मक दौर होता है।माँ जानती है कि इस समय बच्चों को माँ बाप के विशेष ध्यान साथ और सहयोग की जरूरत है
वो अपनी जिंदगी में पीछे लौटती हैं तो पाती है कि लड़के का नाम तक लेना भी पाप था।दोस्त शब्द की जिंदगी में कोई जगह नही थी,अगर किसी लड़के -लड़की की दोस्ती होती भी थी तो लड़कियों वाला नाम रख दिया जाता था।जैसे किशन है तो किरन, सुरेश है तो सुरभि ।तब जाकर वो घर के या छत के कोने में बैठ कर सहेली से उसके क्षदम नाम के साथ बात करती थी ना कि कानों कान किसी को पता न चले वो जानती थी कि दीवारों के भी कान होते हैं और वो उन दोस्त का नाम दीवारों तक के सामने नही लेनेे का साहस कर पाती थी।मगर अब।
माँ सोच रही थी कि बचपन वही था,बचपन की चाहते भी वही थी मगर परवरिश के तरीके कितने तानाशाही थे।बावजूद इसके वो समझ नहो पा रही थी कि जिंदगी तब सरल थी या अब…………?

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here