बूढ़ा बचपन

0
2353

Dr. Kamal Musaddi
बचपन  से रामचरितमानस के महानायक भगवान राम के चरित्र का गुड़गान सुनती आयी हुँ । सुनती ही नही आई वरन उनके ईश्वरी स्वरूप का उनसे जुड़ी बातों पर असर भी सुनती आयी हु। विद्वान कहते हैं कि हमारे किसी भी धर्म ग्रंथ में अथवा ईस्ट अवतार की आराधना पूजा ,विस्वास अथवा श्रद्धा भी रखते है।क्योंकि इन ग्रंथों में मानव जीवन की जटिलताओं और समस्याओं का समाधान लिखित रहता है।ये ग्रंथ वेद ,पुराण, श्रीमदभागवत ,रामायण ,कुरान,या बाइबल या ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब हो। ये समस्त ग्रंथ मानव जीवन को सुंदर और कल्याण कारी बनाने के संदेश हैं। इन्ही ग्रंथों के पात्रों के जीवन चरित्र का अनुकरण है हमारी जिंदगी। इसलिए मेरा ध्यान विस्वास राम चरितमानस के उन पन्नो पर जाता है जहाँ भगवान राम के जन्म का प्रकरण है और जन्म के बाद जब जन्मदात्री जननी को भगवान ने अपने विराट रूप के दर्शन कराए तो माँ कौसल्या फूट-फूट कर रो उठी। उन्होंने उनसे प्रार्थना की कि मुझे तुम्हारा ये स्वरूप स्वीकार नही मुझे तो अपना शिशु चाहिए।

ये मातृत्व में वात्सल्य का प्रकरण माँ और बच्चे के क्रमिक विकास व्यवहारिक मृदुलता और प्रकृति के अनुकूल है,किंतु उम्र से पहले बड़े से हो गए बच्चे की जीवन गति असंतुलित हो जाती है। प्रकृति भी चाहती है कि देह और मन का तारतम्य जुड़ा रहे ,लेकिन आधुनिक समाज न जाने क्यों इस तारतम्य को तोड़ने में लगा है।
आज छोटे से छोटे बच्चों को घर हो या विद्यालय सभी जगह इतनी तीव्रता से बड़ा करने के प्रयास चल रहे है की बचपन जैसे बड़ों के सपनो में खो गया है। बड़ी – बड़ी बातें , बड़े – बड़े जटिल काम करवा कर लोग उनकी प्रशंशा ही नहीं करते बल्कि स्वाभाविक रूप से बढ़ाने वाले बच्चों में हीनता भी भर देते हैं।कुछ बच्चे विशेष उपलब्धि पाकर, विशेष सहयोग पाकर जल्दी बड़े हो जाते है। तो कुछ न पाने के दर्द में बड़प्पन और गंभीरता तनाव और कुंठा ओढ़ लेते हैं। और ऐसे वातावरण में बच्चों की किलकारी सहज हँसी और सामान्य चपलता जिसे हम बचपना कहते हैं खोता जा रहा है। निदा फाजली का एक शेर मेरे दिल के बहुत करीब है।
 “पीठ पर बोझ पा गए बच्चे, पालने में बूढ़ा गए बच्चे”
इसलिए  हम सब का यह कर्तव्य बन जाता है कि बचपन को बूढ़ा होने से बचाएं। हो सकता है कि ये बूढ़ा बचपन हमारी कई जिम्मेदारियों को अपने कंधों पर ढोने लायक बन जाये ।मगर सृष्टि और सृजन की सुंदरता नष्ट होती चली जायेगी। और फिर जिन बच्चों में हम साक्षात ईस्वर की स्वरूप की मान्यता को मानते थे।वह ईस्वर हमसे दूर होता चला जायेगा। इसलिए बचानी है हमें किलकारियां ,चपलता चंचलता ,किल्लोर और मासूमियत । तभी हम जी पाएंगे एक सामान्य जिंदगी।