पूज्यनीय माँ

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Dr. Rakesh Kumar Singh
चरण स्पर्श सादर प्रणाम,

सर्वप्रथम “क्षमा माँ” कि मैं लगभग बीस बरस बाद आपको चिट्ठी लिख रहा हूँ। पता नहीं यह चिट्ठी आप तक पहुंच पाएगी कि नहीं। पर कभी कभी आपकी बहुत याद आती है। मन करता है आपसे वैसे ही बातें करूं जैसे बचपन में करता था, लेकिन कैसे? आज बचपन की एक कहानी याद आई जिसमें “एक छः साल का छोटा सा बच्चा माँ के अकस्मात स्वर्गवासी हो जाने पर भगवान को पत्र लिखता है कि मेरी माँ मेरे पास कब लौटकर आएगी और डाकिया भगवान का पता देख कर उस पत्र को खोलकर पढ़ता है। यह बात वह अपनी पत्नी को बताता है और वह दोनों उस बच्चे को सदा के लिए अपना लेते हैं।”
हालांकि आपके जाने के बाद देवतुल्य पिताजी आज भी हम सबको कोई कमी नहीं महसूस होने देते हैं। आपके न रहने के बाद से उन्होंने पूर्ण प्रयास किया कि हम सबको आपकी कोई कमी न खले। लेकिन कभी कभी आपसे बहुत बातें करने का मन करता है। सो मैं भी आपको ही चिट्ठी लिखने बैठ गया।
इस दौरान आपको हम सबने हर पल याद किया, आपकी बातें, आपका डांटना और हाँ, तत्काल प्यार से सिर पर हाथ फेरना। सब कुछ आपस में हम सब भाई-बहन अक्सर साझा करते हैं।

आपके आशीर्वाद से हम चारों भाई-बहन कुशलता से हैं। पिताजी भी पूर्णतः स्वस्थ हैं। शाम को अभी भी पैदल घूमने निकल जाते हैं। लेकिन अब ज्यादातर समय अपने कमरे में ही व्यतीत करते हैं। पूजा-अर्चना में अधिक समय व्यतीत करने लगे हैं। हम सब विशेषकर भैया उनका पूरा ख्याल रखते हैं। उन्हें हमने कठिन से भी कठिन परिस्थितियों में कभी दुःखी नहीं देखा था। लेकिन, माँ उस सुबह हम बच्चों ने उनकी आँखों में आंसू देखे थे। बड़ी अम्मा ने जब उन्हें आपको कन्धा देने के लिए बुलाया था तो वे फफक कर रो पड़े थे। वह क्षण हम सबके लिए बड़े ही दुःखदायी थे।

फ़िलहाल, हम चारों अब भी स्वस्थ हैं और खुशी से हैं। छोटे की भी शादी हो गई है। वह अब एक बड़ा अफ़सर बन गया है और उसके एक बहुत ही प्यारा सा बेटा भी है। दीदी का बेटा अब अच्छी सरकारी नौकरी में है। आपके अन्य सभी पोते अब बड़े हो गए हैं और कॉलेज जाने लगे हैं।

आपके कमरे में अब आपके पोते पढ़ते हैं। आपकी कुर्सी ड्राइंग रूम में रखी हुई है। आपकी अलमारी अब भी वहीं रखी हुई है और प्रतिदिन आपकी याद दिलाती है। माँ, सब कुछ तो है आपके बच्चों के पास बस आप नहीं हैं। बचपन के दिनों में जब आप बुलाती थीं, तो मन करता था और खेल आएं। फिर समय आया हम सब पढ़ने होस्टल चले गए। आप पिताजी से चिट्ठी लिखवाती थीं कि होस्टल में फल खाते रहना और दूध भी रोज पीना और छुट्टियों में तुरंत आना। तब दोस्तों में अधिक मन लगता था।

कॉलेज से निकलते ही नौकरी करने चले गए, तब तक मोबाइल का ज़माना आ चुका था। आप फोन पर पोते व बहु का हाल अवश्य लेती थीं। “स्वास्थ्य का ध्यान रखना” यह कहना कभी नहीं भूलीं आप। अंत में फोन रखने से पहले हर बार पूछती थीं “बेटा कब आओगे”। तब सरकारी कार्यों से फुर्सत नहीं मिलती थी।

लेकिन अब आप नहीं हैं तो मन करता है कि बस एक बार आपसे जी भरकर बातें कर लूं। मुझे पता है यह चिट्ठी आप तक नहीं पहुंचेगी लेकिन इस चिट्ठी को लिखते समय मैं कई बार यादों में उस समय को जी लिया जो आपके स्नेहाशीष में बिताए थे, उन अनमोल पलों की कीमत कोई नहीं है माँ। हमें पता है कि अब आगे जिंदगी बस आपकी यादों में ही बितानी होगी। लेकिन हम जानते हैं कि आपके आशीर्वाद और शिक्षा हमें सदा राह दिखाते रहेंगे।

सादर प्रणाम
आपका बेटा

1 COMMENT

  1. सर,आपकी पीड़ा कोई भी कम नही कर सकताहै। आपने माँ के न होने का अहसास बहुत अच्छा शब्दो मे पिरो के स्टोरी का रूप दिया है। जो सीधे दिल को छू गयी है। आंसू भी आ गए। हमारी माँ अभी हयात है और हम उनकी लम्बी उम्र की दुआ भी करते है। साथ ही हम ये भी दुआ करते है ऊपर वाला आपको और आपके पूरे परिवार सब्र दे और वही आपकी हिम्मत बने।

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