डॉ राकेश कुमार सिंह और डॉ एम सेम्मारन
31 दिसम्बर 2023/01 जनवरी 2024 नए वर्ष की मध्य रात्रि
स्थान: सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग की बरहावा रेंज का गांव बेलवा
कई हेक्टेयर में सागौन के रोपित सघन पेड़ों पर से टपकती ओस की बूंदों की टिप-टिप के बीच पच्चीस फीट ऊंची मचान पर मुझे सहसा अहसास हुआ कि शायद नया साल अब तक दस्तक दे चुका होगा। लेकिन मोबाइल में समय देखने का मतलब था कि घुप्प अंधेरे में मचान पर रोशनी होना और अपने मेहमान यानी तेंदुए को अपनी उपस्थिति का अहसास करा देना। इसलिए मैंने मोबाइल को कम्बल के अंदर डाल कर टाइम देखा तो नये साल को आए हुए बारह मिनट हो चुके थे। कई रातों से मचान पर बैठने से मेरी आंखें नींद से बोझल हो रही थीं। शाम को ली पैरासिटामोल टैबलेट का असर भी अब कम होने से शरीर में हरारत के कारण कुछ थकावट का एहसास भी हो रहा था। भयानक ठंड के कारण मैंने कम्बल को और कसकर इस तरह लपेट लिया कि सिर्फ आंखें ही खुली रहें लेकिन शीत का आलम यह था कि मुंशी प्रेमचन्द की कहानी पूस की रात के नायक हल्कू की तरह मेरी भी नसों में लहू की जगह बर्फ ने ले ली थी। मैंने बगल में सो रहे अपने सहायक, जिसे मैंने मचान पर चढ़ते ही शाम छः बजे सोने को कह दिया था, को हौले से हिला कर उठाया ताकि मैं भी थोड़ी देर के लिए कमर सीधी कर सकूं।
यही कोई रात्रि का डेढ़ बजा रहा होगा कि मेरे सहायक ने मुझे झकझोरा “साहब बघवा बकरे के लई गवा”। मैं सहसा समझ नहीं पाया, लेकिन मुझे लगा कि मचान के नीचे कुछ हलचल है। अपनी डार्ट गन की दूरबीन से मैंने देखने की कोशिश की पर घुप्प अंधेरे में कुछ समझ नहीं आया। हां, एक दैत्याकार काला साया जरूर झाड़ियों में समाता सा लगा। मैंने देखा बकरा अभी भी सहमा सा झाड़ियों की तरफ देख रहा था। सुबह के हल्के अंधेरे में दिख रहे मचान के नीचे छपे तेंदुए के पंजे के निशान रात की कहानी स्वतः बयां कर रहे थे। मेरा मन एक बार फिर तेंदुए को इमोबिलाइज ना कर पाने से बैठ गया। आज नए वर्ष की रात भी मचान पर बिताने के बाद और तेंदुए से आंख मिचौली के छयालिस दिन व्यतीत हो जाने के बावजूद भी एक बार फिर शातिर तेंदुआ हमें चकमा देने में सफल रहा था।
17 नवंबर 2023
स्थान: आईजीआई एयरपोर्ट, नई दिल्ली
मेरे मोबाइल पर एक बार फिर चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन का तेंदुए को इमोबिलाइज या प्रचलित भाषा में ट्रांक्विलाइज़ करने का अनुमति पत्र अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। रात में ही प्रभागीय वनाधिकारी, सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग द्वारा दूरभाष पर बहुत दुखी होकर बताया गया था कि “तेंदुए द्वारा एक और…….”। चूंकि बलरामपुर में स्वयं वन विभाग के कई उच्चाधिकारी स्थिति की समीक्षा और रेस्क्यू ऑपरेशन की योजना हेतु बैठक कर रहे थे। अतः मैं सुबह सुबह ही बिजनौर से नई दिल्ली एयरपोर्ट पहुंच गया था।
नवंबर-दिसंबर 2023
स्थान: ग्राम बेलवा, बलरामपुर
कुल मिलाकर स्थिति यह थी कि बलरामपुर जिले के तुलसीपुर से कुछ किलोमीटर आगे बरहवा रेंज के दो गांवों लालनगर और बेलवा में तथाकथित मानव वन्य जीव संघर्ष की तीन घटनाएं लगभग ग्यारह दिनों के भीतर घटित हुई थी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सर्वप्रथम हमारी टीम द्वारा सभी उपलब्ध फोटो और उन जगहों को देखा गया जहां घटना घटित हुई थीं। दोनों गांव एक दूसरे से लगभग चार से पांच किलोमीटर दूर थे। दोनों गांवों में कई छोटे-छोटे बरसाती नाले थे जो कि एक दूसरे से मिलते हुए एक बड़े नाले भादीनवा में मिल जाते थे। मेरा अनुमान है कि इस नाले में भादों मास में सर्वाधिक पानी बहता होगा इसीलिए यह भादीनवा नाला कहलाता होगा। भादीनवा नाले के अंदर और दोनों तरफ घनी ऊंची झाड़ियों में बेहिसाब खरहे, नीलगाय और सियारों ने आशियाना बना रखा था और यदा-कदा जंगली बिल्ली और लकड़बग्घों के भी पगमार्क वहां मिल जाते थे। इन्हीं नालों और झाड़ियों के किनारे सागौन और नीलगिरी यानी यूकेलिप्टस की भी खेती बड़े पैमाने पर हो रही थी। जिससे कि यह पूरा वन क्षेत्र बन गया था। इन सबके बाद विस्तृत क्षेत्र में गन्ने और सरसों के खेत थे। इस प्रकार तेंदुए के लिए यह एक बहुत ही मुफीद जगह थी।
हमारी टीम ने इन्हीं नालों के किनारे अपने अभियान को केंद्रित किया। धीरे-धीरे हमने पाया कि अधिकतर बेलवा गांव के चारों ओर ही तेंदुओं के पंजे के निशान मिल रहे थे। इसलिए इसी गांव में एक खाली मैदान में एक पेड़ के नीचे ही टेंट लगा कर टीम ने अपना मुख्यालय बना लिया। इतने बड़े क्षेत्र में ट्रेकिंग के लिए एक अन्य वन्य जीव विशेषज्ञ की भी आवश्यकता को देखते हुए हमने अपनी टीम में डॉ दया शंकर और बंगाल के एक बाबू मोशाय जोकि थर्मल ड्रोन चलाने में माहिर थे, को भी शामिल कर लिया। तेंदुआ रेस्क्यू के लिए सिर्फ बेलवा गांव में ही छः पिंजड़े लगाए गए। लेकिन शातिर तेंदुआ प्रत्येक पिंजड़े के सामने आता रहा लेकिन किसी भी रात वह पिंजड़ों में नहीं घुसा। यहां तक कि एक रात थर्मल ड्रोन से देखने पर वह बाइस मिनट तक एक पिंजड़े के चारों ओर चक्कर लगाता रहा पर सुबह परिणाम वही ढाक के तीन पात।
हमारे किसी भी यत्न से वह पिंजड़े में बंद नहीं हुआ। इसलिए प्रभागीय वनाधिकारी डॉ एम सेम्मारन जोकि स्वयं भी वन्य जीव विशेषज्ञ हैं वहीं कैंप करने लगे। अब दिसंबर शुरू हो चुका था और दिन छोटे होने लगे थे। कभी-कभी तो पूरे दिन कोहरे की चादर हटने का नाम ही नहीं लेती थी। इसलिए रेस्क्यू ऑपरेशन में और कठिनाई आने लगी थी। ऐसे में टीम का हौसला बनाए रखना भी एक चुनौती होता है। लेकिन इसी बीच इतनी सतर्कता और गांव-गांव अवेयरनेस अभियान चलाने के बाद भी नजदीक ही तीसरे गांव में एक और अनहोनी घटित हो गई। हमारी टीम कई-कई रात भर तेंदुए के मूवमेंट के स्थान पर पुआल या झाड़ियों में छुपकर, अथवा कहीं खस के टाट के पीछे बैठकर तेंदुए को इमोबिलाइज, जिसे अधिकतर लोग ट्रांक्विलाइज़ कहते हैं, करने के लिए बैठी रही। यहां तक कि एक जिप्सी और एक कार को भी स्थानीय वनस्पति से ढककर उसमें बैठकर टीम तेंदुए को ट्रांक्विलाइज़ करने का इंतजार करती रही। लेकिन हर बार संभवतः तेंदुए को हमारी उपस्थिति का एहसास हो जाता था, क्योंकि प्रत्येक बार सुबह तेंदुए के पगमार्क हमारे छुपकर बैठने के स्थान से बस थोड़ा ही दूरी पर मिल जाते थे। हमें अब कुछ ऐसा करना था कि मानव शरीर की गंध और एक्टिविटीज का तेंदुए को पता न चले। इसीलिए हमारे द्वारा दो अन्य स्थान चिन्हित किए गए। पहला, वह मचान जिसपर हम कई रात से बैठ रहे थे; तथा दूसरा पास ही गन्ने का एक छोटा सा खेत।
2/3 जनवरी 2024 की रात
स्थान: बेलवा गांव का एक छोटा सा गन्ने का खेत
यह नाले से दो सौ मीटर दूर लगभग एक हेक्टेयर का खेत था। जिसके एक तरफ चकरोड थी और तीन तरफ से खाली खेत थे, जिन्हें कुछ दिन पूर्व ही ट्रैक्टर से जोता गया था। इस चकरोड पर भी हर पांच-छः दिन के एक निश्चित अंतराल पर तेंदुए के पगमार्क मिलते थे। योजना के अनुसार खेत को चारों दिशाओं से जाल से बांध कर घेर दिया गया और चकरोड की तरफ से केवल एक कोना खाली छोड़ दिया गया। क्योंकि आसपास के खेत खाली थे, अतः टीम को विश्वास था कि तेंदुआ शिकार को इसी कोने से खेत में छुपाने के लिए ले जायेगा। तेंदुए को देखने के लिए सीसीटीवी भी इसी कोने के सामने पेड़ पर लगा दिए गए थे। योजना को सफल बनाने के लिए भविष्य की प्रत्येक घट सकने वाली काल्पनिक स्थिति के अनुसार टीम के प्रत्येक सदस्य को स्पष्ट निर्देश था और तदनुसार रिहर्सल भी कर ली गई थी। तेंदुआ प्रत्येक पांचवे या छठे दिन इस चक रोड पर पेट्रोलिंग करता था। अतः टीम को विश्वास था कि आज रात वह मचान या इस खेत के पास अवश्य आएगा। इसलिए एक टीम मचान पर और एक खेत से उचित दूरी पर सरसों के खेत में कैमोफ्लेज किए ट्रैक्टर पर बैठी थी। और आज रात दोनों संभावित स्थिति में तुरंत मौके पर पहुंचने के लिए हम वन्य जीव विशेषज्ञ निकट ही टेंट में बैठे थे। सुबह का यही कोई पांच बज रहा था। मैंने टेंट से बाहर देखा चारों ओर जबरदस्त कोहरा छाया था और अंधेरे ने धरती को अभी भी आगोश में ले रखा था। मैं एक बार फिर कम्बल में पैर डालकर निराशा से सोचने लगा कि शायद आज रात फिर तेंदुआ चकमा दे गया। तभी मेरे फोन की घंटी घनघना उठी। “सर तेंदुआ शिकार को खेत में ले गया” उधर से एक फॉरेस्ट गार्ड की आवाज सुनाई दी।
योजना के अनुसार सभी लोगों ने वहां पहुंचकर चुपचाप खेत को उसी कोने से घेर लिया जहां जाल नहीं होने से तेंदुआ शिकार के साथ अंदर गया था। हमारी डार्टिंग टीम विपरीत कोने पर डार्ट गन लेकर तैयार थी। प्लान ये था कि मशाल जलाकर और टीन के कनस्तर बजाते हुए हांका टीम आगे बढ़ेगी। और डार्टिंग टीम विपरीत कोने में, घबराकर भागते तेंदुए के जाल से टकराते ही, उसे डार्ट फायर कर इमोबीलाइज कर देगी। लेकिन एक गड़बड़ हो गई जबरदस्त ओस के कारण हमारी मशालें भीग गई थीं और वे नहीं जली। बिना मशाल लिए खेत में हांका लगाकर तेंदुए को एक ही कोने तक पहुंचाना असंभव और बहुत जोखिम भरा था। अतः लोहे के जाल से ढके एक ट्रैक्टर को लेकर एक टीम खेत में हांका लगाने घुसी। और डार्ट टीम एक बार फिर तेंदुए के भागकर खेत से निकलने वाले संभावित विपरीत दो कोनों पर मुस्तैद पोजिशन में थी। तेंदुए ने पहला प्रयास जिस कोने से किया वहां का जाल नहीं गिरा और पलक झपकते ही वह ओझल हो गया। एक बार फिर हांका टीम आगे बढ़ी, इस बार तेंदुए ने दूसरे कोने से प्रयास किया और जाल का कुछ हिस्सा ही उसपर गिर सका। वहां स्थित टीम ने उसे डार्ट करना चाहा पर अंधेरे में दौड़-भाग कर रहे तेंदुए पर वह डार्ट सिरिंज नहीं लगी। अब हमारे पास दूसरी गन में एक डार्ट ही बची थी। इसलिए हमें इस प्रकार डार्ट करना था कि चूक ना हो। अन्यथा अगले प्रयास में तेंदुआ जंप मारकर खेत से बाहर निकल सकता था।
क्योंकि तेंदुए के टकराने से जाल ढीला पड़ रहा था और डार्ट के लगते ही तेंदुआ स्वाभाविक प्रवृत्ति से डार्ट करने वाले पर जरूर चार्ज करता है। अतः डार्ट गन लेकर मैने टीम के साथ स्वयं को लगभग दस मीटर दूर पोजिशन किया जिससे कि लूज जाल में जब तेंदुआ चार्ज करे तो हम बच सकें। पूर्व के हमारे कई रेस्क्यू अनुभवों के अनुसार इस बार तेंदुआ जाल से निकलने के लिए अवश्य ऊपर उर्धवाधर यानी वर्टिकल जंप करने वाला था। और यह ऐसा समय होता है जब उसका पूरा शरीर बिना किसी अवरोध के हवा में आपके सामने होता है। और हमें उसी समय गन्नों और कुछ झाड़ियों से बचाते हुए डार्ट सिरिंज को तेंदुए की जांघों पर पहुंचाना होता है। सटीक अनुमान के मुताबिक इस बार तेंदुए ने बाहर निकलने के लिए वर्टिकल जंप लिया और पहले से ही पोजिशन लिए होने के कारण ट्रिगर दबाते ही दवा से भरी डार्ट सिरिंज तेंदुए की जांघों में समा गई। एक दिल को दहला देने वाली गर्जना के साथ ही तेंदुए ने चार्ज कर दिया। ताजे जुते हुए खेतों के कारण मैं ठीक से पिछड़ नहीं सका और पीठ के बल नीचे गिर गया। पर उचित दूरी होने के कारण हम सब सुरक्षित थे।
इस बीच गांव के भी लोग वहां इकट्ठे हो गए थे लेकिन उनके जबरदस्त शोर के कारण तेंदुए पर दवा का असर धीरे-धीरे हो पा रहा था। इसलिए तेंदुए पर किसी तरह दूर से जाल फेंक कर डाला गया और उसके नजदीक जाकर एक बार फिर दवा की हल्की डोज सामान्य सिरिंज से देनी पड़ी। तेंदुए को पिंजड़े में रखकर भीड़ से बचाते हुए किसी तरह हम प्रभागीय वनाधिकारी के नेतृत्व में गांव से बाहर निकले। कुछ ही देर में तुलसीपुर में प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां पाटेश्वरी मंदिर के सामने से गुजरते हुए मुझे याद आया कि इस रेस्क्यू ऑपरेशन को शुरू करते समय उच्चाधिकारियों के साथ समस्त टीम ने अभियान की सफलता के लिए प्रार्थना की थी। मैंने शीश झुकाकर मन ही मन इस सफल रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए देवी मां को धन्यवाद दिया। पिंजड़े में होश में आ रहा तेंदुआ अब अपलक मुझे देख रहा था। दूर क्षितिज पर सूरज की किरणें कोहरे को चीरने का प्रयास करते हुए एक नए सबेरे का संदेश दे रही थीं। प्रभागीय वनाधिकारी और मैं अपने मोबाइल फोन पर उच्चाधिकारियों को टेक्स्ट मैसेज कर रहे थे, “गुड मॉर्निंग सर, लेपर्ड ट्रांक्विलाइज़ड…..”
डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्य जीव विशेषज्ञ