अर्ध चक्रासन (सेतुबंध आसन)

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बिधि ,लाभ एवं सावधानियाँ

अर्ध चक्रासन – चक्रासन की आधी पोजीशन बनने के कारण इसे अर्ध चक्रासन कहा जाता है चूँकि देखने में सेतु (पुल/Bridge) जैसा दिखाई देता है इसलिए इसे सेतुबंध आसन के नाम से भी जाना जाता है। अर्ध चक्रासन महिलाओ का मित्र आसन कहा जाता है। इसके इतने फायदे है कि,महिलाओ को सिर्फ 1 आसन के लिए समय हो तो यही आसन करना चाहिए।

अर्ध चक्रासन की बिधि – सबसे पहले समतल जमीन पर किसी योग मैट को बिछाकर पीठ के बल लेट जाना चाहिए फिर दोनों पैरों में 1 से 1.5  फिट का अंतर करके दोनों घुटनो को 90अंश पर मोड़कर दोनों पैर की एड़ियों को हिप्स के पास लाकर जमीन पर रख लेना चाहिए। दोनों हाथ की हथेलियाँ पैरोँ के पीछे जमींन पर रख लें। अब धीरे-धीरे कमर को ऊपर की तरफ अधिकतम चित्रानुसार इतना उठायें कि,कमर घुटनो से भी ऊपर चली जाय। जितनी देर (2-3 मिनट) आसानी से रोक सकें उतनी देर रोकते है संभव हो तो जो टाइम दिया जाय उतनी देर रोककर धीरे से वापस आ जाते हैं। ठोड़ी (चिन) को सीने से लगाने का प्रयास करते हैं। सांसे सामान्य रखते है। इसे दो बार कर सकते हैं।वैसे एक बार में जादा देर तक रोकना जादा लाभप्रद होता है।

 

 

अर्ध चक्रासन के लाभ –

  • थायराइड एवं पैरा थायरायड ग्रन्थि को सामान्य बनाता है।
  • इससे हाइपर एवं हाइपो दोनों तरह की थायराइड में लाभ मिलता है।
  • यह आसन ओवरी (अंडाशय ) के विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है।
  • कमर एवं पीठ की मांसपेसियों को मजबूत बनाकर कमर एवं पीठ दर्द को ठीक करता है।
  • रक्त संचार को चेहरे की तरफ बढ़ाने से सुंदरता को बढ़ाने में मदत मिलती है।
  • महिलाओ की अनियमित माहवारी (पीरियड ) को नियमित करता है।
  • हार्मोन्स की गड़बड़ी को दूर कर प्रजनन अंगो  के रोगों को भी दूर करती है।
  • मानसिक तनाव दूर कर मानसिक शान्ति प्रदान करके गुस्से को दूर करता है।
  • सीने की मांसपेशियों को खिचाव देकर सीने में (Breast) उभार लाता है।
  • मासिक धर्म में होने वाला अत्यधिक दर्द को दूर करता है।
  • पैरों एवं घुटनो को मांसपेसियों को खिचाव देकर उन्हें मजबूत बनाता है।
  • इसमें जालंधर बंध लगता है जिससे गले के रोग टॉन्सिल एवं गला बार-बार ख़राब नहीं होता।
  • आवाज मधुर एवं सुरीली हो जाती है जो संगीत प्रेमियों को मदत करती है।
  • कुण्डलिनी जागरण में मदत करती है।

अर्ध चक्रासन में सावधानियाँ  –  कमर उठाने से गले पर दबाव उत्पन्न होता है जिससे साँस रुकने लगती है। साँस को सामान्य बनाने का प्रयास करें। हृदय,अस्थमा रोगियों एवं गर्दन दर्द वाले रोगियों को इसका अभ्यास चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए।