माजुली-संसार का सबसे बड़ा नद द्वीप

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Maya das
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यदि पर्वत-देवता की कल्पनाओं पर आज भी विश्वास किया जाए तो यह कहना अतिसयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि वह पर्वत -देवता बड़ा रूमानी और हरफन मौला रहा होगा,जिसने घनी ,हरियाली,सागर सी विशाल ब्रह्मपुत्र नदी,मलजयी सुबहों और रेशमी शामों से घिरे असम और माजुली नद -द्वीप को अपने अंक में सजाया।

किसी भी पर्यटक की असम-यात्रा वहाँ की प्राकृतिक छटा के दर्पण माजुली नद-द्वीप के बिना अधूरी ही रहेगी। मुझे जब भी असम जाने का अवसर मिलता है मैं अपने मित्र उज्ज्वल राजकुँवर के घर मेलंग टी इस्टेट जोरहट जरूर जाती हूँ।

इस बार मुझे अपने पुत्र तनव के साथ पंद्रह दिन के लिए असम जाने का अवसर मिला।चेन्नई से असम हम वाया कोलकाता हवाई यात्रा कर पहुँचे।गुवाहाटी में एक दिन विश्राम करने के पश्चात जोरहट अपने मित्र उज्जवल के चाय बागान टी-इस्टेट पहुँचे।वहाँ भी दो दिन रुकने के पश्चात हमने माजुली नद-द्वीप जाने का विचार किया।क्योंकि हमें मालूम था माजुली तक पहुचने का रास्ता बहुत आरामदायक नही है।इस द्वीप तक पहुचने के लिए परिवहन व्यवस्था पूरी तरह विकसित नही है। सम्पूर्ण सड़क टूटी – फूटी और कच्ची-पक्की है।संभवतः प्रति वर्ष यहाँ आने वाली बाढ़ और भीषण वर्षा सड़कों को भला चंगा नहीं रहने देती।सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर बाढ़ के बाद सड़कों का पुनर्निर्माण किया जाता है लेकिन अगली बाढ़ आते वह अपनी कुरूपता की कहानी कहने लगती है।

हम लोग ड्राइवर के साथ सुबह नौ बजे माजुली द्वीप जाने के लिए निमाति घाट पहुँच गए।जो मेलंग टी-इस्टेट से लगभग 23 km की दूरी पर है। माजुली नद-द्वीप तक पहुँचने के लिए पर्यटकों को नियमित घाट से बड़ी नावों (फेरी) का सहारा लेना पड़ता है। हमने भी बड़ी नाव किराए पर प्राप्त की ।खुद उसमें बैठने के साथ अपनी कार को भी उसमें लाद लिया।क्योंकि माजुली में भी समुचित परिवहन का आभाव है।

फैरी बढ़ रही थी। एक ओर दूर – दूर तक फैली पर्वत श्रृंखलाएं ,दूसरी ओर ‘पुरुषत्व’ का प्रतिनिधि करती ब्रह्मपुत्र नदी।इसे पुरुषत्व का प्रतिनिधि इसलिए माना जाता है क्योंकि सम्पूर्ण देश में यह इकलौती नदी है जो पुर्लिंग है। अन्य सभी नदियाँ स्त्रीलिंग की श्रेणी में आती हैं।

विस्तृत मौदानी और पहाड़ी इलाकों में बनी झोपड़ी जो लगभग उजड़ी सी लगती हैं,मनमोह लेती हैं।लोग बताते हैं कि वर्ष 1950 के विनाशकारी भूकंप के बाद इस द्वीप के किनारों पर लगातार कटाव के कारण अनेक गाँव जलमग्न हो गए थे और वहाँ के बाशिंदे अपने घरों को छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।तब से अब तक यह द्वीप आबाद नहीं हो सका।

नाव से उतर कर हम नद-द्वीप के अंदर दाखिल हुए।सड़क के दोनों ओर सरसों के खेतों के पीले -पीले फूल मन को लुभा रहे थे।ऐसा लग रहा था कि धरती पर बसंत लहरा रहा हो। हम अब गाड़ी में घूम रहे थे हमारी गाड़ी 30 से 40 km की रफ्तार से चल रही थी। हमारे दाहिने ओर लोइत नदी थी जिसके किनारे स्वछंद रूप से सुंदर पक्षियों का झुंड विचरण कर रहा था।यहाँ अनेक प्रजातियों के दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रवासी पक्षियों का डेरा होता है।यहां विभिन्न जनजाति के लोग निवास करते हैं जैसे-देवरी,सोनोवाल,कचरी और मिलिंग जो बहुत ही मिलनसार होते हैं।इन्हें टूटी-फूटी अंग्रेजी और थोड़ी बहुत हिंदी आती है।कोई भी उनकी सहायता से पूरा नद-द्वीप बड़ी आसानी से घूम सकता है यहाँ किसी भी गाइड की आवश्यकता नहीं होती।

प्रकृति के अद्भुत अद्वितीय और मनोहारी दृश्य के अलावा 21 सत्रों (वैष्णव नामघर ) है जो वैष्णव संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। साथ ही साथ यह भारतीय संस्कृति की भी पहचान है।इसमें पारंपरिक कला और संस्कृति आज तक सुरक्षित है।यहाँ हर उम्र के भक्तों को देख सकते हैं जिन्होंने इस सत्र की मान- मर्यादा ,कला,संस्कृति,साहित्य,और शास्त्रीय अध्ययन के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया ,लेकिन हम केवल श्री श्री उत्तर कमलाबाड़ी जिसकी स्थापना से वर्ष 1673 में हुई थी,ही देख सके।

वापसी के लिए दोपहर तीन बजे की फैरी से निमाति घात की ओर चल पड़े।ऊंचे -नीचे ,छोटे-बड़े रेत के टीलों को छोड़ती हुई फेरी आगे बढ़ रही थी।मेरा मन पीछे छूट रहा था सारी सुनहरी यादों को समेटते हुये मैं माजुली से विदा हो रही थी।प्रकृति की गोद से लौटते समय मन भारी था लेकिन विवशता थी वहां रुक तो नही सकते थे।