खिलौने, वह भी किराए पर। कभी किसी ने सोचा नहीं होगा। लेकिन एक प्रतिश्ठित एफ.एम.रेडियो की पूर्व किन्तु युवा रेडियो जॉकी (आर.जे.) गरिमा पाठक ने इस दिशा में नया जोखिम उठाया है। उन्होंने गरीब व अमीर सभी परिवार के बच्चों के लिए किराए पर खिलौने उपलब्ध कराने की न केवल योजना बनाई, अपितु उसे कार्यान्वित भी कर दिया।
आज उनकी इस योजना से अनेक परिवार और बच्चे लाभ उठा रहे हैं। जहां बच्चों को अपनी चाहत के मुताबिक एक से एक नये खिलौने खेलने का अवसर मिलता है, वहीं माता-पिता को महंगे खिलौने खरीदने, उनके जल्दी टूट जाने, व उनको संभाल कर रखने की जहमत से छुट्टी मिल जाती है।
गरिमा बताती है कि उनके पास खिलौनों का अपरिमित भंडार है। प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए भिन्न-भिन्न रंग-बिरंगे खिलौने उपलब्ध हैं। झूले, कार, मोटर साइकिल, साइकिल और न जाने कितने ही ऐसे सस्ते व महंगे खिलौने उनके भंडार में हैं।
वह बताती हैं कि यह खिलौने बच्चों की बर्थ डे पार्टी अथवा उनकी छुट्टियों को बिताने के लिए दीर्घ काल तक के लिए किराए पर दिए जाते हैं। हर चौदह दिन पर खिलौनों को बदल दिया जाता है। इसके लिए उनका प्रतिष्ठान स्वयं अपने संसाधनों से खिलौनों को बच्चों तक पहुंचाते हैं। विवाह के अवसरों पर भी मेहमान बच्चों को व्यस्त रखने के लिए वह खिलौने उपलब्ध कराती हैं। खिलौनों की टूटफूट नहीं होती है क्यों कि वह काफी मजबूत होते हैं। फिर भी यदि वह टूट जाते हैं तो हर्जाने के रूप में बहुत कम चार्ज लिया जाता है। खिलौने एक वर्ष से बारह वर्ष तक के बच्चों के लिए उपलब्ध हैं। खिलौने पूरी तरह से सेनीटाइज करके दूसरे बच्चों को दिए जाते हैं ताकि किसी प्रकार के संक्रमण की संभावना न रह जाए।
किराए पर मिलने वाले खिलौने बच्चों में समयबद्धता की भावना पैदा करते हैं। माता-पिता भी उनको नए खेल सिखाने में रुचि लेते हैं।
वह कहती हैं,‘खिलौने वाले’ से ली गई इस फ्रेंचाइजी ने हमें व्यवसाय तो दिया ही है किन्तु सैकड़ों बच्चों को खुशियों का तोहफा भी दिया है। इस फ्रेंचाइजी के माध्यम से इस व्यवसाय में आने का मेरा उद्देश्य था कि बच्चों के मनोवैज्ञानिक धरातल पर टीकी उनकी उन कल्पनाओं को पल्लवित करना जो केवल और केवल उनके खिलौनौ मात्र से ही अभिव्यक्त हो सकती है। खिलौने बच्चों में जाने-अनजाने अभिनव (इनोवेटिव) भाव और कल्पनाओं को जन्म देते हैं जो कालांतर में उनके व्यक्तित्व के निखार में सहायक होते हैं।
खिलौनों के चयन के पीछे बच्चों की वह मनोभावनाएं सक्रिय होती है ंजिसे सिवाय उनके कोई नहीं समझ सकता। खिलौने बच्चों की दुनिया होते हैं। खिलौने में ही बच्चों की दुनिया हैं। इसी दुनिया में रहकर वह अपने कोमल भाव-भावनाओं और सम्बनधों के अंकुर को पल्लवित करते हैं।
अक्सर मां-बाप या परिवार के अन्य सदस्य बच्चों की खिलौनों की मांग को यह कहकर अनसुना कर देते हैं कि वह महंगे हैं। एक बार खेलने के बाद वह खिलौना छोड़ देंगे या उसे तोड़ देंगे। यदि वह सुरक्षित रह गया तो घर में उसे रखेंगे कहां। इसी पशोपेश में पड़कर वह खिलौने खरीदने में अलसा जाते हैं।
गरिमा बताती हैं कि किराए पर खिलौनों को उपलब्ध कराकर हमने माता-पिता को उनकी चिंताओं से मुक्त करने की दिशा में छोटा सा प्रयास किया है और यह प्रयास नित्यप्रति नूतन ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा है।