बेटियों ने बचाया डूबता परिवार

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Roshni Bajpai

जवान बेटियाँ मर्दो के दाढ़ी बाल बनाएं, वह भी एक छोटे से गाँव में। कभी न किसी ने सोचा होगा न ही इसकी कल्पना ही कि होगी। किंतु कभी न की जा सकने वाली यह कल्पना आज वास्तविकता की दहलीज पर साकार खड़ी है।

बात गोरखपुर के एक छोटे से गाँव बनवारी टोला की है,जहां 18 वर्षीय ज्योति और 16 वर्षीय उसकी बहन नेहा ने अपने पारिवारिक खर्च को चलाने के लिए अपने पिता की बन्द पड़ी छोटी सी बाल काटने की दुकान को एक छोटे से सलून की शक्ल दे दी!” दोनों बहनें लड़कों के वेश में जीन्स और टीशर्ट पहने सुबह से शाम तक युवा और प्रौढ़ व्यक्तियों की दाढ़ी बनाती है और उनके सिर के बाल काटती हैं।दिन भर की आमदनी से अपने परिवार का खर्च चलाती हैं।

उनकी इस मेहनत को देखते हुए गाँव के SDM (कुशीनगर) अभिषेक पांडे और स्थानीय विधायक उनकी दुकान पर पहुँचे और उनकी हौसला आफजाई के लिए क्रमशः रुपये 1600 ,रुपये 1000 की आर्थिक सहायता दी। SDM ने उन्हें  आस्वाशन दिया कि वह शीघ्र ही सरकार से सिफारिश करेंगे कि वह उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करे ताकि वो इस दुकान को एक अच्छे सलून के रूप में स्थापित कर सके।

आज से 5 वर्ष पूर्व दोनों बहनें स्कूल में पढ़ती थी ।पिता ध्रुव नारायण की बाल काटने की छोटी सी दुकान थी ।जिससे वह घर का खर्च चलाते थे।इसी दुकान की कमाई से उन्होंने ने चार बेटियों की शादी की थी। दुर्भाग्य से वर्ष 2014 में उनके पैरों को लकवा मार गया।वह चलने फिरने और खड़े होकर काम करने से मजबूर हो गए।गुमटीनुमा दुकान बंद हो गयी ।धीरे- धीरे घर खर्च की भी दिक्कत पैदा होने लगी।

परिवार की इस कठिनाई को देखते हुए ज्योती ने काफी सोच विचार के बाद गुमटीनुमा दुकान को खोला।अस्त -व्यस्त चीजों को यथास्थान रखा ।घर वाले और पड़ोसी इस परिवर्तन को देखकर परेशान होने लगे । उन्होंने ज्योति से पूछा भी तो उसने कुछ नही बताया कि उसे क्या करना है।

गुमटी को सुव्यवस्थित करने के बाद वह हजामत और बाल काटने का सामान ले आयी। इसके बाद उन्होंने दुकान के पट खोल दिये। दोनों बहनों को लड़कों के वेश में देखकर गाँव वाले हैरत में थे। दोनों बहनों के बाल लड़को की भांति कटे थे और वो पैंट शर्ट में थीं।

“शुरुवात में काम कठिन लगा क्योंकि हमारे समाज में यह काम पुरुष करते हैं।मेरे दादा परदादा भी यही काम करते थे पिता जी भी इसी काम को आगे बढ़ा रहे थे।लेकिन उनकी अस्वस्थता के कारण दुकान बंद हो गयी। पुरुषों के काम करने के लिए मैंने लड़को की तरह बाल किये,पैंट टीशर्ट पहनी और शेविंग व कटिंग करने के लिए तैयार हो गयी।

मुझे मालूम था कि काम कठिन है। रोज़ाना 8-10 घंटे खड़े होकर काम करना आसान नही है। परिवार चलाने के लिए कोई दूसरा विकल्प भी नही था । इसलिए मैं इस काम में लग गयी।धीरे-धीरे सफलता भी मिलने लगी। आज प्रतिदिन लगभग 400-500 रुपये की आमदनी हो जाती है।पिता जी दुकान के बाहर आ कर बैठ जाते हैं।इससे हमें हिम्मत और सुरक्षा मिलती है।

“अब मैं चाहती हूँ एक ब्यूटी पार्लर खोल लूं। जिससे गांव की लड़कियों को सहूलियत हो जायेगी और मेरे व्यवसाय में सम्मान की वृद्धि हो जाएगी।”

माँ लीलावती और पिता ध्रुव नारायण अपनी बेटियों की हिम्मत के कायल हैं। वो कहते हैं दोनों बेटियों ने परिवार की डूबती नॉव को बचा लिया है।गाँव वाले भी इन बेटियों को सलाम करते हैं।उनको गाँव की दूसरी बेटियों के लिए एक मिसाल बताते हैं।

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