चिल्ला जाड़ा, चिडिय़ाघर दहाड़ा

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Dr. Suresh Awasthi

गुरुकुल में शिष्यों ने गुरुदेव के सामने चिडिय़ाघर में जाड़े की पिकनिक मनाने का प्रस्ताव रखा तो गुरुदेव नाराज हो गए। बोले,’क्या देखने जाओगे चिडिय़ाघर में? बंदर देखने हैं तो शहर के जिस मोहल्ले में निकलों खों खों
करते मिल जाएंगे। छोड़ा सा चूक जाओ तो नोच खाएं। सड़कों टहलते छोटे बड़े कुत्तों की फौज, आवारा जानवर क्या शहर किसी चिडिय़ाघर से कम है जो वहां पिकनिक मनाने जाएं ? ‘पर गुरुदेव, चिडिय़ाघर में तो शेर व भालू भी देखने को मिलेंगे ? एक शिष्य ने कहा तो गुरुदेव ने उसे घूर कर देखा। बोले,’शेर देखना है तो उन लोगों को खोज कर देख लो जो अकेले रह रहे बुजुर्गों की हत्या करके लूटपाट कर रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि शेर उनसे ज्यादा खूँखार होते हैं। फिर पालतू शेर देखने हो उन खाकी बर्दी वालों से मिलो जो किसी नेता की चमचागीरी में उसके पांव पर अपनी टोपी रख देते हैं। गुरुदेव की बात सुन कर शिष्य मुस्करा उठे परंतु उन्होंने बात जारी रखी। दूसरे शिष्य ने कहा,’गुरुदेव चिडिय़ाघर में भालू भी तो है ? गुरुदेव जैसे पूरे मूड में थे। बोले, ‘भालू देखने का इतना ही शौक है तो उन जमाखोरों से मिलो जिनका देश के सभी मधुमक्खियों के छत्तों (गोदामों) पर कब्जा है। जो मंहगाई बढ़ाने के लिए कालाबाजारी के पेड़ पर चढ़ते हैं। उलटी तरफ से चढ़ते हैं। शिष्यों को गुरुदेव की बातों में मजा आने लगा था। तीसरा शिष्य बोला, ‘परंतु गुरुदेव सांप व अजगर तो वहीं देखने को मिलेंगे ? गुरुदेव जोर से हंसे और बोले, ‘बेवकूफो वहां तो नकली अजगर और सांप हैं। असली अजगर देखने हैं तो उनसे मिलो जो भ्रष्टाचार के रास्ते पूरे शहर का विकास निगलने को मुंह फैलाए बैठे हैं। जो मिलें, कोठियां व सड़कें निगल जाते और सांस तक नहीं लेते। सांपों से मिलना है तो केवल अपने आसपास ध्यान से देख कर अपनी आस्तीनें टटोलो बस। सांप ही सांप मिल जाएंगे। इसके बावजूद शिष्य पीछे नहीं हटे। एक अन्य शिष्य ने कहा,’गुरुदेव, सुना है कि जाड़े में चिडिय़ाघर में दुर्लभ पक्षी जैसे गौरैया के भी दर्शन हो जाते है ? अब गुरुदेव गंभीर हो गए। थोड़ी देर खामोश रहे फिर बोले, ‘सच है कि अब शहर से मीठे व सच्चे रिश्तों की गौरैया उड़ चुकी है। हो सकता है कि चिडिय़ाघर के घने जंगल अथवा पिंजड़ों में कैद कर ली गयी हो. परंतु मुझे लगता है कि रिश्तों की गौरैया को बचाने के लिए उसे कहीं जाकर देखने की नहीं बल्कि उसे बचाने व वापस आंगन तक लाने की जरुरत है। आंगन तक लाने भर से भी काम नहीं चलेगा, उसे अपने प्रेम का दाना, सुरक्षा का पानी व विश्वास की धूप भी देने की जरूरत है। उसे आंगन में ही नहीं दिलों में पालने की जरूरत है। काश यह गौरैया फिर से हमारे जेहनों में लौट सके?

काश… काश…ऐसा हो। पर यहां तो जैसे हर घर में एक चिडिय़ाघर बनता जा रहा है। गुरुदेव क्या कहना चाह रहे हैं शिष्य अच्छी तरह से समझ रहे थे। गुरुदेव भी चाहते थे कि शिष्य इस सच को समझें। एक शिष्य ने माहौल को थोड़ा हल्का करने के उद्देश्य से कहा, ‘पर जाड़े में पिकनिक तो बनती ही है। गुरुदेव थोड़ा संयत हुए बोले, ‘जरूर बनती है। आइए हम लोग बाहर चबूतरे पर खड़े होकर आते जाते लोगों को देखते हैं कि लोग जाड़े से बचने के लिए लोग कैसे
लदेफदे, ढकेमुंदे, सिकुड़े सिमटे, अकड़े जकड़े आ जा रहे हैं। तैयारी कर लेते हैं, उन्हें गरमागरम चाय बांटते हैं। इससे जाड़े की मार की सही तस्वीर दिखेगी। इतना कह कर गुरुदेव शिष्यों के साथ बाहर आ गए। दिन के दो
बजने वाले थे परंतु सूर्यदेव कोहरे से बाहर नहीं आ पाए थे।

कुहरे से सूरज कहे,
खुद को जरा समेट।
हफ्ता पूरा हो गया
किये धरा से भेंट ।।

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