लौट के बुद्धू घर को आए

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मेरी शादी को बीते तीन साल
मैंने किया पति से नेक सवाल
क्यों न मैं करके पीएचडी प्रोफेसर बन जाऊँ ?
दोनों कुलों का मान बढा़ऊँ
पति को बात कुछ समझ न आई
बोले- अब तुम हो दो बच्चों की मांई
कुछ और अधिक कर न पाओगी
व्यर्थ ही अपना भेजा पकाओगी
घर की सब जिम्मेदारियाँ हैं तुम्हारे माथे
मैं बोली- आधी आप क्यों नहीं उठाते ?
शादी की गाड़ी के हम दो सवारी
एक पहिया हल्का और एक है भारी !
पति का माथा ठनक़ा
कहा अपने मन का –
प्रिये, गर देना है रिश्ते को नया आयाम
मन में बसा लो सारे काम
पहियों की इतनी न चिंता करो
दौड़ेगी गाड़ी तुम धीरज धरो
करो वही जो मेरे मन को भाए
जैसे लौट के बुद्धू घर को आए ।