Home Blog Page 29

फिर भी, मैं रोया नहीं…

1
Dr. Suresh Awasthi

उस दिन अचानक
हाथों से
छूट गया कांच का बर्तन
उफ एक झटके में
कितने परिवर्तन
फर्स पर बिखरी कांच को
समेटने में लहूलुहान हो गईं
उंगलियां
फिर भी मैं रोया नहीं
देर तक उंगलियों पर जमे
लहू को भी भी धोया नहीं
और उस दिन
सीख लिया कांच की
चीजों को संभाल कर रखना
और संभालने
में कभी न थकना।

फिर अनुभवों ने बताया
जिंदगी
रिश्ते
दिल
प्यार
अभ्यस्त नहीं हैं
उपेक्षा की आंच के
ये सभी बने हैं कांच के
इनको लेकर इतना रखना ध्यान
थोड़ा सा चूके तो
हो जाओगे लहुलुहान
इसीलिए हमने
इन्हें बेवजह धोया नहीं
उसने
कांच कांच कर दिए रिश्ते
फिर भी मैं रोया नहीं।

उस दिन
मेरे एक खास मित्र
आ धमके मेरी जिंदगी भर की
मेहनत की कमाई को
धूर्त्तता के
हाथियारों के बल पर लूटने
पर मैने खुद को
नहीं दिया टूटने
उस तथाकथित मित्र को
यानी कि
छल, फरेब, झूठ और जहरीले मगर चाकलेटी चरित्र को
विश्वास के
टूटे आईने का एक छोटा सा
टुकड़ा थमाया
उसे उस टुकडे में अपना
असली चेहरा नज़र आया
वो खुद से ही डर गया
रिश्तों की चिता पर
उसका किरदार
अपनी ही आग में जल कर
मर गया।
बाद इसके भी मैं
चैन से सोया नहीं
फिर भी, मैं रोया नहीं।

Palm touch: ancient system of diagnosis and treatment revived

2
Prachi Dwivedi

In an age of highly advanced medical knowledge one would not easily believe that the palm could be used for diagnosing and treating the diseases.

“But it is true,” claims a noted healer doctor Pradeep Bhagwat. According to him, “The palm is the mirror of one’s health, nature, behavior and future. It has been used as a vital tool in ancient Indian medicinal system for diagnosing and treating the diseases. Just by touching the palm and its lateral part the healer can diagnose the disease and its main causes.”

“Through PTT we diagnose the disease and its causes and suggest the required exercises and the dietary plan (Ahar) instead of prescribing any medicine. We conduct pathological tests through Indian system which did not require high tech equipment.

The NWM system rests upon the management of five Tatvas (elements) which include Akash (Space),Vayu (Air), Agni (Fire), Jal (Water) and Prithvi (Earth) in regulating our body and health,” he said.

Bhagwat is a Naturopath with Post Graduation degree in Wellness Management from Apollo Hospital Hyderabad. He also holds M S degree in Yoga. “But I inherited the knowledge of ancient Indian medicine system and Palm Touch Therapy (PTT) from my family and I have been using this knowledge and therapy since 1994 to treat the patients,” he said.

“In the year 2002, I set up NWM to train the medical students in the ancient science of healing and to treat the patients. The Naturomatic Wellness Management (NWM) is a new affordable and effective method to diagnose, treat, rehabilitate, rejuvenate and relax the patient easily. The NWM method was discovered by him” he claimed.

“It is helpful in achieving all eight types of wellness which including physical, mental, emotional, educational, environmental, occupational, social and spiritual”, Dr Pradeep claimed.

The method has been included in new alternative, complementary, non-evasive, drug less therapy by the Health Research Wing of the union ministry for health and family welfare. It has now been included to psycho-therapy at Chaudhary Charan Singh University, Meerut and is gaining popularity in US, Canada, South Africa, Australia, Malaysia and in New Zealand, Dr pradeep claimed.

According to him NWM has ten principles and eight golden rules.
Principles:-
1. NWM is for all 8 Well beings (Physical, Mental, Emotional, Educational, Occupational, Environmental, Social and Spiritual).
2. The system holds that all diseases and problems are the results of Energy Imbalance.
3. The “Balance in Energy” can treat all the diseases and problems.
4. The food items can replace most of the medicines.
5. It is only Nature and Natural Energies that can heal.
6. The cause of problems and diseases lie in mind and soul.
7. NWM can complement every system of medicine and healing.
8. NWM can Diagnose, Treat, Rehabilitate, Rejuvenate and Relax easily.
9. Five established Elements (Space, Air, Fire, Water, and Earth) work better with optimum use of 5 Micro Elements (Darkness, Mind, Soul, Direction, and Time).
10. NWM can treat Persons, Places, and Things.

Golden Rules:-
1. Be natural, be yourself.
2. Avoid Processed Food
3. Empty yourself, nobody can pour a filled cup.
4. Everything is Energy, Everything can heal or harm.
5. You are responsible for your health and happiness.
6. Things you don’t repair can repeat.
7. Add everything Positive, Promoting and Productive
8. Self belief that “I can change”.

मैं आदमखोर नहीं बनना चाहता था-एक बाघ की सत्य आपबीती

15
Dr. Rakesh Kumar Singh
एक हल्की सी आवाज़ और बेहोशी की दवा से भरी पांच एम एल की डार्ट मेरे कंधे में अंदर तक धँसती चली गयी। अब तो ये मेरे गुस्से की पराकाष्ठा थी,  मैंने आवाज़ की दिशा में देखते हुए उस शख़्स की ओर देखा जो अब भी हाथ में गन लिए मेरी ओर देख रहा था। मैंने ईश्वर से क्षमा मांगते हुए एक बार फिर अपने नौवें मानव शिकार की ओर कदम बढ़ाने चाहे। लेकिन ये क्या, चाह के भी मैं आगे नहीं बढ़ सका। मैंने पुनः प्रयास किया पर धीरे धीरे मेरी आँखें बोझल होने लगीं। जब होश आया तो मैंने अपने आप को लोहे के एक मज़बूत पिंजरे में पाया। ये सब मेरे लिए नया था,  मैंने पिंजरे से बाहर निकलने की भरपूर असफल कोशिश की। मुझे समझ आ गया अब मेरा यही भविष्य है, मैं दुखी था और मेरे अंतर्मन की आवाज मुझे कचोट रही थी कि मैंने ऐसा क्यों किया? धीरे धीरे मेरे सामने समस्त घटनाएं एक चलचित्र की भांति घूमने लगीं।
वर्ष 2005 की वो शानदार सुबह जब अपने जन्म के लगभग 10 दिन बाद मैंने आंखें खोली तो जंगल का उन्मुक्त वातावरण व अपनी प्यारी मां और भाई बहनों को देख मैं अत्यंत प्रसन्न था। मेरी माँ एक शानदार शिकारी एवम बच्चों के प्रति समर्पित बाघिन थी। हम सब भाई बहन मां को शिकार करते देखते पर प्रतिदिन शिकार मिलना कठिन था। जंगल के नियम अत्यंत कठोर होते हैं। कभी कभी हमें भूखे पेट भी सोना पड़ता था। शिकार छोटा होने पर हम बच्चे कभी कभी झगड़ा भी करते थे पर माँ की फटकार हमें शांत कर देती थी। एक दिन हम बच्चोँ ने भी शिकार करने का प्रयास किया, लेकिन हिरन की एक जोरदार लात ने मुझे बता दिया कि हमको अभी और चपलता की आवश्यकता है।
मैं भी एक शानदार शिकारी बनने के साथ एक दिन उस जंगल पर राज करना चाहता था। मुझे याद है किस प्रकार हम सब एक विशाल बाघ के डर से मांद या घास में छुप जाते थे। इन्ही उधेड़ बुन में मेरी जिन्दगी आगे बढ़ रही थी। मेरी कल्पनायें उड़ान भरना चाहती थीं। इतने के बाद भी मुझे जंगल मे आने वाले दो पैर के मनुष्यों से डर लगता था। उनके हाव भाव मुझे पसंद नहीं थे। मैं उनसे दूर ही रहता था। कभी कभी कुछ लोग चोरी छुपे हमारे घर को उजाड़ने आ जाते थे। वो पेड़ जिनकी छांव में मेरा बचपन बीता था, कुछ क्रूर हाथों की भेंट चढ़ गया था। मुझे धीरे धीरे लगने लगा कि हमारे सबसे बड़े दुश्मन यही हैं। इस कारण गर्मियों में खाने की कमी होने पर मैंने भी जंगल के बाहर का रुख़ किया। कई प्रयास के बाद मुझे एक दिन आसान शिकार मिला। पर चरवाहे के शोर मचाने से मुझे एक दिन फिर भूखे जंगल में लौटना पड़ा।
भूख से व्याकुल मैं जंगल में भटकते हुए दूसरे क्षेत्र में पहुंच गया। बस यही एक भयानक गलती मुझसे हो गयी। वहाँ के युवा बाघ की ललकार को मैंने स्वीकार कर लिया औऱ उस दिन लड़ाई में मेरा एक दाँत जाता रहा। मेरे सपने धाराशायी हो चुके थे, भूख से मैं निढाल था, मेरा लहूलुहान शरीर थक चुके था। मेरी माँ अब मेरे साथ नहीं थी। एक दिन जंगल से लगे गन्ने के खेत, जिनमे हम सपरिवार आराम करते थे, काटने वालों ने हमें चारों तरफ से इस कदर दौड़ाया था कि उस अफरा तफरी में मैं अपने परिवार से ही बिछड़ गया।
अपने परिवार व भाई बहनों को याद कर मैं बहुत दुःखी था। उस दिन के बाद वो मुझसे सदा के लिए बिछड़ गए। इस बीच दूर जंगल के नज़दीक से आती जानवरों की आवाज़ ने मेरा ध्यान बरबस उस ओर खींचा। हिम्मत करके मैं एक बार फिर जंगल के बाहर निकला, और शिकार की खोज में छुपके बैठ गया। सुबह एक शिकार खेतों में हिलता देख मैं उसपे टूट पड़ा। मुझे याद है कई दिनों बाद मैंने भरपेट खाया। लेकिन यह कैसा शिकार था जो ज्यादा विरोध भी न कर सका, शायद गलती से खेत में बैठे एक आदमी को मैं हिरन समझ बैठा था।
मैं कुछ दिनों बाद फिर टूटे दांत व शिकार की कमी के कारण आसान शिकार ढूंढने जंगल से बाहर आया। इससे पहले कि मैं उस बकरी पर हमला करता मैंने पाया कि मैं चारों तरफ से घिर गया हूँ। लोग अनेक हथियार लेकर मेरी ओर बढ़ रहे थे। इस दिन मैंने न चाहते हुए भी अपने बचाव में उनपे हमला कर दिया और गुस्से में एक को अपने साथ ले आया। इसके बाद मानव के प्रति मेरी नफरत चरम पर पहुंच गई। मेरी दहशत से पूरा तराई क्षेत्र थर्राने लगा। लोगों ने घर से निकलना बंद कर दिया। दिन प्रतिदिन लोग गन लेकर मुझे ढूंढने लगे, मैं एक अपराधी की तरह इधर उधर पनाह लेने लगा। वो प्यारा सा मेरा घर परिवार सब मुझसे दूर हो गया। मनुष्य, जिन्होंने मुझे मजबूर किया था अपना घर परिवार छोड़ने को, अब उनके कारण मुझे जंगलों से भाग कर दर दर की ठोकर खानी पड़ रही थी।
न चाहते हुए भी अब मैं आदमखोर बन चुका था। मेरा सब कुछ छीन चुका था, मेरे सपने बिखर चुके थे। मेरे और मनुष्यों के बीच की आंख मिचौली आज समाप्त हो चुकी थी औऱ अब मुझे फर्रूखाबाद के पास एक गांव से कुछ अराजक तत्वों से बचाकर मेरे नए घर ‘चिड़ियाघर’, जिसे मैं सुधार गृह भी कह सकता हूँ, ले जाया जा रहा था। हालांकि मैं जानता हूँ, मेरी कोई गलती नहीं थी। मुझे परिस्थितियों ने आदमखोर बनाया था। लेकिन क्यों मैंने भी प्रकृति का नियम तोड़ते हुए जंगल से बाहर कदम रखा था औऱ उस प्रजाति पर हमला किया जो आज के संदर्भ में मेरा भोजन नहीं है? मैं जानता हूँ कि अब मेरी दहाड़ से जंगल कभी नहीं थर्राएगा। मेरी जगह कोई और जंगल को अपनी आवाज़ से गुंजायमान करेगा। लेकिन मेरी तरह कोई दूसरा प्रशांत तब तक उस क्षेत्र को आतंकित करता रहेगा, जब तक इस वर्षों की लड़ाई का अंत नहीं हो जाता। जी हाँ, मैं प्रशांत टाइगर हूँ। हालांकि आज मेरे पास सब कुछ है जो एक जंगल के राजा के पास होता है। पर मैं आज भी इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ रहा हूँ कि मैं आदमखोर क्यों बना?

Effective real time de-hazing system developed

1
G.P Varma

The scientists at the Indian Institute of Technology Kanpur (IIT-K) have developed a real-time de-hazing method. This would solve a major problem faced by the Indian Railways in ensuring timely and accident-free running of trains during dense fogs.

The new de-hazing system would increase visibility in hazy and foggy weather conditions.

The new method can be critical in vision-assisted vehicle navigation in hazy and foggy weather, surveillance in bad weather conditions and can play an important role in aviation, biomedical processes like MRI and CT scan, and computer vision applications according to the developers Saumik Bhattacharya and Himanshu Kumar, former PhD students under the guidance of Dr. K. S. Venkatesh and Dr. Sumana Gupta, at the Department of Electrical Engineering at the Institute.

The system allows “better visibility from a single view without using any prior knowledge about the outdoor scene” claimed the young scientists.

Though other de-hazing methods existed, but the one developed by IITK researchers is more effective and less time-consuming. The existing methods increase the contrast of an image but remove many details of structural information after processing. Those methods also introduce severe color range suppression in the processed image and show a drop in performance in conditions of dense fog.

The IITK research team claims that their method outperforms the existing methods in most of the cases.

For online, real-time processing of flawed images, processing time plays a key factor. The proposed de-hazing model gives a low time complexity compared to other state of the art methods.

The team observed after comparing the time lapse with other methods that the proposed method provides a speed approximately 6 times faster than existing methods in commodity hardware. Besides, unlike certain multi spectral solutions available in the market that are enormously expensive, this will be available at a very low cost said Saumik Bhattacharya.

एक जीवन एक सृष्टि

0
Dr. Kamal Musaddi
जब जब जिंदगी के प्रति हताशा ,निराशा और बैराग्य उत्पन्न होता है।तब-तब कुछ चेहरे,कुछ आवाजें,कुछ घटनाएं मन पर दस्तक तो देती ही हैं,दिमाग पर भी हथौड़े सी चोट करती हैं कि जब हम नही हारे तब तुम क्यों ? इस क्यों के साथ ही जीवन की एलबम के पन्ने फड़फड़ाने लगते हैं और एक पन्ना खुल कर रुक जाता है। दिखने लगती है तस्वीरे।
हिन्द महासागर के तट पर बसे मॉरीशस द्वीप की की एक रात जहां भारत से गये हम कुछ सैलानी खजूर ,नारियल के पत्तों से बनी झोपड़ी नुमा छप्पर के नीचे बैठे थे। हमारी संख्या बारह थी।सभी अपने -अपने जीवन के किस्से सुना रहे थे।चांदनी रात थी समुद्र किनारे बनें होटल के अहाते से निकलकर हम लोग तट पर पर्यटकों के लिए बनाए गए शेड्स में बैठ जीवन के अनुभव को बाट रहे थे। बड़ा ही मनोरम माहौल था। अनुभवों की श्रंखला जब कपूर दंपति पर रुकी तो सब शांत और स्तब्ध थे कि देखे तो क्या अनुभव बताते है।मैं उनसे पूर्व परिचित नही थी ,सो मचल गयी प्लीज  कुछ बताइए अपना सुख-दुःख ।पूरे ग्रुप में सर्वाधिक हँसने मुस्कुराने, खूबसूरत ड्रेसेज पहने पहनने वाले कपूर दंपत्ति से मुझे किसी मजेदार वाकया सुनाने की उम्मीद थी,किंतु वो दोनों शांत थे। तभी मेरे बगल में बैठी किरण ने मेरी हथेली पर दवाव डाल कर शांत रहने को कहा।
मैं शांत तो हो गयी मगर जिज्ञासा की लहरें हिन्द महासागर से भी तेज हिलोरे लेने लगी। मेरे शांत होते ही मिसेज कपूर तेजी से हसीं और बोली अच्छा मैं एक गीत सुनाती हु और उन्होंने खामोशी फ़िल्म का गीत ‘हमने देखी है, उन आखों की महकती खुशबू ‘ गाना सुरु किया तो माहौल में जैसे चाश्नी घुल गयी। तरासे हुए बदन की स्वामिनी मिसेज कपूर फ़िल्म की नायिका सी एक सम्मोहन बिखेर रही थी और गीत समाप्त होने तक वातावरण फिर सामान्य हो गया।
सब सामान्य हो गया था मगर मेरी जिज्ञाशा सामान्य नही हुई थी। आधी रात से ज्यादा समय मस्ती करने के बाद जब हम अपने- अपने कमरे में गए तो मैं खुद को रोक नही सकी और अपनी रूम पार्टनर किरण से पूछ बैठी कि बताओ न तुमने मुझे क्यो रोका था।
किरण ने कुछ क्षण मेरे चेहरे को घूरा ।शायद वो थाह ले रही थी मेरी सहन शक्ति की कि मै सुन कर क्या रिएक्ट करूंगी।और जब उसने बताया कि कपूर दंपत्ति का इकलौता बत्तीस साल का बेटा ,बहू, एक पांच साल का पोता और तीन साल की पोती अभी दो साल पहले एक कार एक्सीडेंट में एक साथ चले गए तो मुझे लगा मेरे पैरों के नीचे धरती कांप रही है।उन लोगों की मौत पर नही कपूर दंम्पत्ति के जीवन जीने के हौशले से। मैं स्तब्ध थी कि क्या इतनी हिम्मत भी किसी में हो सकती है। मुझे कपूर दंम्पत्ति में इंसान नही साक्षात ईश्वर नज़र आया ये कहता हूं।
एक जीवन एक सृष्टि । जिंदगी जीना मनुष्यता की पहचान है, मृत्यु तो शाश्वत है।

हौसलों से मिली सफलता की उड़ान

0
Pankaj Bajpai
शारीरिक अपंगता किसी के लिए भी जीवन की सबसे बड़ी चुनौती होती है।यदि उसका सामना धैर्य ,साहस और आगे बढ़ने के हौसले से किया जाए तो न वह चुनौती रह जाती है और न सफलता के मार्ग में बाधा बनती है। अन्यथा ज़िंदगी अर्थहीन और दिशाहीन हो जाती है।
देवांग अग्रवाल ने जीवन के इस सफलता मंत्र को सही सिद्ध कर दिया है।आज उनके लिए जीवन का सर्वाधिक सुखद दिन है।वह चार्टेड अकॉउंटेन्ट (सी.ए.) की परीक्षा में अनेक शारीरिक बाधाओं के बाद भी सफल हुए।अब वह एक सी.ए. हो गए हैं।उनकी व उनके माता पिता की आखों में खुशी के आसूं हैं ,उनकी गहराई स्वयं वह तीन ही समझ सकते हैं।वह जन्म से ही एक ऐसी बीमारी से पीड़ित है जिससे उनकी शारीरिक श्रम करने की क्षमता समाप्त हो गयी।
जब वह चार वर्ष के हुए ( मस्कुलर डिस्ट्रॉफी) नामक लाइलाज बीमारी के शिकार हो गए।माता पिता दोनों का चिकित्सा जगत में नाम है किंतु वह अपने ही पुत्र की बीमारी से उसे मुक्त नही कर पाए।इस बीमारी के चलते देवांग का चलना फिरना बन्द हो गया । खेलकूद से उसका नाता टूट गया। बस व्हीलचेयर ही उसका एक सहारा रह गया। किंतु उन्होंने हिम्मत नही हारी । माता पिता और उसका अपना हौसला ही उसके जीवन का संबल बना ,जिसके चलते उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की। इंटरमीडिएट की परीक्षा में उन्होंने शहर के छात्रों में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर अपनी क्षेणी में प्रथम व प्रदेश में तीसरे स्थान प्राप्त किया।
अपनी सफलता के सम्बन्ध में देवांग कहते हैं कि मंज़िल उन्ही को मिलती है,जिनके सपनों में जान होती है।देवांग के हौसले बुलंद हैं।वह प्रोफेशनल सी.ए. बनेगा।उनका विस्वास है कि वह अपने भावी सपनों को और भी साकार करेंगे।
देवांग अपने अन्य साथियों की भांति दौड़ भाग नही सकते क्रिकेट, फुटबॉल या ऐसे ही अन्य बाहर खेले जाने वाले खेलों में भाग नही ले सकते । इसीलिए उन्होंने शतरंज को अपना प्रिय खेल बनाया ।वह बचपन से उसमें खो गए। पढ़ने के बाद जो समय मिलता वह शतरंज खेलते । आज उनकी गिनती शतरंज के अच्छे खिलाड़ियों में होती है। अपने मन की बात कहने के लिए बड़ी कठिनाई से वह स्वयं या किसी की सहायता से अपना ब्लॉग लेखन द्वारा करते हैं। उनके मित्रों का विश्वास है कि जिस प्रकार उन्होंने सी.ए. परीक्षा के फाइनल ग्रुप वन और टू सभी एक प्रयास में पास कर लिये ,वह भविष्य में एक सफल प्रोफेशनल भी सिद्ध होंगे।

अर्ध चक्रासन (सेतुबंध आसन)

0

बिधि ,लाभ एवं सावधानियाँ

अर्ध चक्रासन – चक्रासन की आधी पोजीशन बनने के कारण इसे अर्ध चक्रासन कहा जाता है चूँकि देखने में सेतु (पुल/Bridge) जैसा दिखाई देता है इसलिए इसे सेतुबंध आसन के नाम से भी जाना जाता है। अर्ध चक्रासन महिलाओ का मित्र आसन कहा जाता है। इसके इतने फायदे है कि,महिलाओ को सिर्फ 1 आसन के लिए समय हो तो यही आसन करना चाहिए।

अर्ध चक्रासन की बिधि – सबसे पहले समतल जमीन पर किसी योग मैट को बिछाकर पीठ के बल लेट जाना चाहिए फिर दोनों पैरों में 1 से 1.5  फिट का अंतर करके दोनों घुटनो को 90अंश पर मोड़कर दोनों पैर की एड़ियों को हिप्स के पास लाकर जमीन पर रख लेना चाहिए। दोनों हाथ की हथेलियाँ पैरोँ के पीछे जमींन पर रख लें। अब धीरे-धीरे कमर को ऊपर की तरफ अधिकतम चित्रानुसार इतना उठायें कि,कमर घुटनो से भी ऊपर चली जाय। जितनी देर (2-3 मिनट) आसानी से रोक सकें उतनी देर रोकते है संभव हो तो जो टाइम दिया जाय उतनी देर रोककर धीरे से वापस आ जाते हैं। ठोड़ी (चिन) को सीने से लगाने का प्रयास करते हैं। सांसे सामान्य रखते है। इसे दो बार कर सकते हैं।वैसे एक बार में जादा देर तक रोकना जादा लाभप्रद होता है।

 

 

अर्ध चक्रासन के लाभ –

  • थायराइड एवं पैरा थायरायड ग्रन्थि को सामान्य बनाता है।
  • इससे हाइपर एवं हाइपो दोनों तरह की थायराइड में लाभ मिलता है।
  • यह आसन ओवरी (अंडाशय ) के विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है।
  • कमर एवं पीठ की मांसपेसियों को मजबूत बनाकर कमर एवं पीठ दर्द को ठीक करता है।
  • रक्त संचार को चेहरे की तरफ बढ़ाने से सुंदरता को बढ़ाने में मदत मिलती है।
  • महिलाओ की अनियमित माहवारी (पीरियड ) को नियमित करता है।
  • हार्मोन्स की गड़बड़ी को दूर कर प्रजनन अंगो  के रोगों को भी दूर करती है।
  • मानसिक तनाव दूर कर मानसिक शान्ति प्रदान करके गुस्से को दूर करता है।
  • सीने की मांसपेशियों को खिचाव देकर सीने में (Breast) उभार लाता है।
  • मासिक धर्म में होने वाला अत्यधिक दर्द को दूर करता है।
  • पैरों एवं घुटनो को मांसपेसियों को खिचाव देकर उन्हें मजबूत बनाता है।
  • इसमें जालंधर बंध लगता है जिससे गले के रोग टॉन्सिल एवं गला बार-बार ख़राब नहीं होता।
  • आवाज मधुर एवं सुरीली हो जाती है जो संगीत प्रेमियों को मदत करती है।
  • कुण्डलिनी जागरण में मदत करती है।

अर्ध चक्रासन में सावधानियाँ  –  कमर उठाने से गले पर दबाव उत्पन्न होता है जिससे साँस रुकने लगती है। साँस को सामान्य बनाने का प्रयास करें। हृदय,अस्थमा रोगियों एवं गर्दन दर्द वाले रोगियों को इसका अभ्यास चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए।

खिलौने वह भी किराये पर

0
Alka Dixit

खिलौने, वह भी किराए पर। कभी किसी ने सोचा नहीं होगा। लेकिन एक प्रतिश्ठित एफ.एम.रेडियो की पूर्व किन्तु युवा रेडियो जॉकी (आर.जे.) गरिमा पाठक ने इस दिशा में नया जोखिम उठाया है। उन्होंने गरीब व अमीर सभी परिवार के बच्चों के लिए किराए पर खिलौने उपलब्ध कराने की न केवल योजना बनाई, अपितु उसे कार्यान्वित भी कर दिया।

आज उनकी इस योजना से अनेक परिवार और बच्चे लाभ उठा रहे हैं। जहां बच्चों को अपनी चाहत के मुताबिक एक से एक नये खिलौने खेलने का अवसर मिलता है, वहीं माता-पिता को महंगे खिलौने खरीदने, उनके जल्दी टूट जाने, व उनको संभाल कर रखने की जहमत से छुट्टी मिल जाती है।

गरिमा बताती है कि उनके पास खिलौनों का अपरिमित भंडार है। प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए भिन्न-भिन्न रंग-बिरंगे खिलौने उपलब्ध हैं। झूले, कार, मोटर साइकिल, साइकिल और न जाने कितने ही ऐसे सस्ते व महंगे खिलौने उनके भंडार में हैं।

वह बताती हैं कि यह खिलौने बच्चों की बर्थ डे पार्टी अथवा उनकी छुट्टियों को बिताने के लिए दीर्घ काल तक के लिए किराए पर दिए जाते हैं। हर चौदह दिन पर खिलौनों को बदल दिया जाता है। इसके लिए उनका प्रतिष्ठान स्वयं अपने संसाधनों से खिलौनों को बच्चों तक पहुंचाते हैं। विवाह के अवसरों पर भी मेहमान बच्चों को व्यस्त रखने के लिए वह खिलौने उपलब्ध कराती हैं। खिलौनों की टूटफूट नहीं होती है क्यों कि वह काफी मजबूत होते हैं। फिर भी यदि वह टूट जाते हैं तो हर्जाने के रूप में बहुत कम चार्ज लिया जाता है। खिलौने एक वर्ष से बारह वर्ष तक के बच्चों के लिए उपलब्ध हैं। खिलौने पूरी तरह से सेनीटाइज करके दूसरे बच्चों को दिए जाते हैं ताकि किसी प्रकार के संक्रमण की संभावना न रह जाए।

किराए पर मिलने वाले खिलौने बच्चों में समयबद्धता की भावना पैदा करते हैं। माता-पिता भी उनको नए खेल सिखाने में रुचि लेते हैं।

वह कहती हैं,‘खिलौने वाले’ से ली गई इस फ्रेंचाइजी ने हमें व्यवसाय तो दिया ही है किन्तु सैकड़ों बच्चों को खुशियों का तोहफा भी दिया है। इस फ्रेंचाइजी के माध्यम से इस व्यवसाय में आने का मेरा उद्देश्य था कि बच्चों के मनोवैज्ञानिक धरातल पर टीकी उनकी उन कल्पनाओं को पल्लवित करना जो केवल और केवल उनके खिलौनौ मात्र से ही अभिव्यक्त हो सकती है। खिलौने बच्चों में जाने-अनजाने अभिनव (इनोवेटिव) भाव और कल्पनाओं को जन्म देते हैं जो कालांतर में उनके व्यक्तित्व के निखार में सहायक होते हैं।

खिलौनों के चयन के पीछे बच्चों की वह मनोभावनाएं सक्रिय होती है ंजिसे सिवाय उनके कोई नहीं समझ सकता। खिलौने बच्चों की दुनिया होते हैं। खिलौने में ही बच्चों की दुनिया हैं। इसी दुनिया में रहकर वह अपने कोमल भाव-भावनाओं और सम्बनधों के अंकुर को पल्लवित करते हैं।

अक्सर मां-बाप या परिवार के अन्य सदस्य बच्चों की खिलौनों की मांग को यह कहकर अनसुना कर देते हैं कि वह महंगे हैं। एक बार खेलने के बाद वह खिलौना छोड़ देंगे या उसे तोड़ देंगे। यदि वह सुरक्षित रह गया तो घर में उसे रखेंगे कहां। इसी पशोपेश में पड़कर वह खिलौने खरीदने में अलसा जाते हैं।

गरिमा बताती हैं कि किराए पर खिलौनों को उपलब्ध कराकर हमने माता-पिता को उनकी चिंताओं से मुक्त करने की दिशा में छोटा सा प्रयास किया है और यह प्रयास नित्यप्रति नूतन ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा है।

टुकड़े टुकड़े गांधी

0
Dr. Suresh Awasthi

कुछ लोग गांधी पर बहस कर रहे थे
एक बोला गांधी महान थे
राजनीतिक उठा पटक से दूर
सच्चे इंसान धे
उन्होंने चलाया आन्दोलन
सत्याग्रह स्वदेशी
इसी लिये गाधी थे पक्के कांग्रेसी।
दूसरा बोला
गांधी जी ने दलितों को गले लगाकर
उन्हे हरिजन की पदवी दिलवाई
इससे साबित होता है
कि वो थे पक्के बसपाई

तीसरे ने दोनो को डाटा और बोला
आदमी जिन्दगी भर झूठ सच मे
डालता है
पर मरते समय बिल्कुल सच बोलता है
गांधी ने मरते समय राम राम की आवाज़ लगाई
इस लिये मेरा दावा है
कि गांधी जी थे पक्के भाजपाई

चौथा बोला
दलों के दलदल मे पडकर
देह को तो काट ही चुके हो
आत्मा को तो मत काटो
आंगन का बंटवारा क्या कम है
कम से कम बापू को तो मत बाटो।

बेटियों ने बचाया डूबता परिवार

0
Roshni Bajpai

जवान बेटियाँ मर्दो के दाढ़ी बाल बनाएं, वह भी एक छोटे से गाँव में। कभी न किसी ने सोचा होगा न ही इसकी कल्पना ही कि होगी। किंतु कभी न की जा सकने वाली यह कल्पना आज वास्तविकता की दहलीज पर साकार खड़ी है।

बात गोरखपुर के एक छोटे से गाँव बनवारी टोला की है,जहां 18 वर्षीय ज्योति और 16 वर्षीय उसकी बहन नेहा ने अपने पारिवारिक खर्च को चलाने के लिए अपने पिता की बन्द पड़ी छोटी सी बाल काटने की दुकान को एक छोटे से सलून की शक्ल दे दी!” दोनों बहनें लड़कों के वेश में जीन्स और टीशर्ट पहने सुबह से शाम तक युवा और प्रौढ़ व्यक्तियों की दाढ़ी बनाती है और उनके सिर के बाल काटती हैं।दिन भर की आमदनी से अपने परिवार का खर्च चलाती हैं।

उनकी इस मेहनत को देखते हुए गाँव के SDM (कुशीनगर) अभिषेक पांडे और स्थानीय विधायक उनकी दुकान पर पहुँचे और उनकी हौसला आफजाई के लिए क्रमशः रुपये 1600 ,रुपये 1000 की आर्थिक सहायता दी। SDM ने उन्हें  आस्वाशन दिया कि वह शीघ्र ही सरकार से सिफारिश करेंगे कि वह उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करे ताकि वो इस दुकान को एक अच्छे सलून के रूप में स्थापित कर सके।

आज से 5 वर्ष पूर्व दोनों बहनें स्कूल में पढ़ती थी ।पिता ध्रुव नारायण की बाल काटने की छोटी सी दुकान थी ।जिससे वह घर का खर्च चलाते थे।इसी दुकान की कमाई से उन्होंने ने चार बेटियों की शादी की थी। दुर्भाग्य से वर्ष 2014 में उनके पैरों को लकवा मार गया।वह चलने फिरने और खड़े होकर काम करने से मजबूर हो गए।गुमटीनुमा दुकान बंद हो गयी ।धीरे- धीरे घर खर्च की भी दिक्कत पैदा होने लगी।

परिवार की इस कठिनाई को देखते हुए ज्योती ने काफी सोच विचार के बाद गुमटीनुमा दुकान को खोला।अस्त -व्यस्त चीजों को यथास्थान रखा ।घर वाले और पड़ोसी इस परिवर्तन को देखकर परेशान होने लगे । उन्होंने ज्योति से पूछा भी तो उसने कुछ नही बताया कि उसे क्या करना है।

गुमटी को सुव्यवस्थित करने के बाद वह हजामत और बाल काटने का सामान ले आयी। इसके बाद उन्होंने दुकान के पट खोल दिये। दोनों बहनों को लड़कों के वेश में देखकर गाँव वाले हैरत में थे। दोनों बहनों के बाल लड़को की भांति कटे थे और वो पैंट शर्ट में थीं।

“शुरुवात में काम कठिन लगा क्योंकि हमारे समाज में यह काम पुरुष करते हैं।मेरे दादा परदादा भी यही काम करते थे पिता जी भी इसी काम को आगे बढ़ा रहे थे।लेकिन उनकी अस्वस्थता के कारण दुकान बंद हो गयी। पुरुषों के काम करने के लिए मैंने लड़को की तरह बाल किये,पैंट टीशर्ट पहनी और शेविंग व कटिंग करने के लिए तैयार हो गयी।

मुझे मालूम था कि काम कठिन है। रोज़ाना 8-10 घंटे खड़े होकर काम करना आसान नही है। परिवार चलाने के लिए कोई दूसरा विकल्प भी नही था । इसलिए मैं इस काम में लग गयी।धीरे-धीरे सफलता भी मिलने लगी। आज प्रतिदिन लगभग 400-500 रुपये की आमदनी हो जाती है।पिता जी दुकान के बाहर आ कर बैठ जाते हैं।इससे हमें हिम्मत और सुरक्षा मिलती है।

“अब मैं चाहती हूँ एक ब्यूटी पार्लर खोल लूं। जिससे गांव की लड़कियों को सहूलियत हो जायेगी और मेरे व्यवसाय में सम्मान की वृद्धि हो जाएगी।”

माँ लीलावती और पिता ध्रुव नारायण अपनी बेटियों की हिम्मत के कायल हैं। वो कहते हैं दोनों बेटियों ने परिवार की डूबती नॉव को बचा लिया है।गाँव वाले भी इन बेटियों को सलाम करते हैं।उनको गाँव की दूसरी बेटियों के लिए एक मिसाल बताते हैं।

Recent Posts