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कुम्भक प्राणायाम ( दीर्घायुदायक एवं ठंड नाशक प्राणायाम )

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Dr. S.L YADAV

विधि,लाभ एवं सावधानियाँ

कुम्भक प्राणायाम

सर्दियों के लिए कुम्भक प्राणायाम किसी वरदान से कम नही है। ऋषियों मुनियों द्वारा इस प्राणायाम का उपयोग ठण्ड को दूर करने के लिए किया करते थे।कुम्भ का मतलब घड़ा (मटका) होता है।जो आकर घड़े का होता है ठीक उसी तरह से फेफड़े में हवा भरकर उसे घड़े के आकर का बनाने का प्रयास किया जाता है।इसलिए इसे कुम्भक प्राणायाम के नाम से जाना जाता है। कुम्भक प्राणायाम दो तरह का होता है-अंतः कुम्भक एवं वाह्य कुम्भक। जब साँस फेफ़ड़े में भरकर रोकतें हैं तो अंतः कुम्भक और जब साँस बाहर छोडकर रोकते हैं तो वाह्य कुम्भक कहा जाता है। कुम्भक को प्राणायाम का दिल कहा जाता है।यह मन की चंचलता को कम करके मन को एकाग्र करने का सबसे अच्छा साधन है।वैसे आप ने सुना ही होगा ‘दमा'(अस्थमा )दम के साथ जाता है,लेकिन कुम्भक प्राणायाम का अभ्यास अस्थमा जैसी कठिन बीमारी को भी ठीक करता है।

कुम्भक प्राणायाम करने की विधि-
सबसे पहले सुखासन या पदमासन में किसी समतल जमीन पर स्वच्छ हवादार जगह पर चटाई (योग मैट) बिछाकर बैठते हैं। उसके बाद दोनों हाथ की सारी उगुलियों को आपस में मिलाकर दोनों अँगूठे नाक को पकड़ने के लिए खाली रखते हैं। 
अब मुँह को बंद रखते हुए दोनों नासारंध्रों (नाक) से साँस को बाहर निकाल कर दोनों हाथ के अँगूठे से नाक को बंद करके मुँह को चोंच के आकर का बनाकर साँस को मुँह से खींचकर फेफड़े में यथासम्भव भर लेते हैं।  अब गर्दन को आगे झुकाकर ठुड्ढी (चिन) को सीने के ऊपरी भाग से लगाने का प्रयास करते हैं और दोनों हाथ की सबसे छोटी उंगुलियों को भी सीने से लगा लेते हैं। दोनों गाल को भी फुलाकर रखते हैं जितनी देर साँस को केफ़डे में रोक पाएं उतनी देर रोकतें हैं जब न रोक सके तब गर्दन को सीधा करके नाक से साँस को छोड़ देते हैं।
 
कुम्भक प्राणायाम की समय सीमा-
कुम्भक प्राणायाम का समयानुपात 1:4:2 (1 भरना, 4 रोकना, 2 छोड़ना) का होना चाहिए । वैसे तो सारे प्राणायाम की समयानुपात यही होती है लेकिन इसे अपनी क्षमतानुसार कम कर सकते हैं। इसे 5 से शुरु करके 10 बार तक कर सकतें हैं। इस प्राणायाम में पूरा ध्यान साँस को जादा से जादा क्षमतानुसार रोकनें पर होना चाहिए। सुबह,दोपहर,शाम खाली पेट किया जा सकता है।  
 
कुम्भक प्राणायाम के लाभ- 
1-उम्र को लम्बा बनाने का सबसे अच्छा प्राणायाम माना जाता है।
2 -कुम्भक प्राणायाम शरीर को गर्मी प्रदान करके सर्दी से बचाता है।
3-अस्थमा (दमा) जैसी समस्याएं होने से बचता है एवं दमा की शुरूआत
को कुम्भक प्राणायाम ठीक भी करता है।
4-एकाग्रता को बढ़ाता है एवं मानसिक समस्याओं को दूर करता है।
5-फेफड़े को मजबूत बनाता है एवं बंद छिद्रों को खोलता भी है।
6-आक्सीजन के लेने (सोखने ) की क्षमता बढ़ जाती है जिससे रक्त को शुद्ध करने में मदत मिलती है।
7-संयम एवं संकल्पशक्ति को विकसित करता है।
8-भय,चिंता एवं नकारात्मक विचारो को दूर करता है।
9-याददास्त को बढ़ाता है। बच्चों के फेफड़ों को विकसित करने का सबसे अच्छा प्राणायाम है।
10-चेहरे की चमक को बढ़ाता है एवं चेहरे की झुर्रियों को दूर करता है। 
11-दाँतों में गरम ठंडा पानी लगने जैसी समस्या को ठीक करता है। 
12 – पायरिया की समस्या को दूर करता है।  
कुम्भक प्राणायाम में सावधानियाँ 
  • उच्च रक्तचाप एवं ह्रदय रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। 
  • जिनके कान के पर्दे फ़टे हों उन्हें नहीं करना चाहिए।
  • क्षय रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • पुराने दमा के रोगी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।
  • जींर्ण-क्षींण (कमजोर ) रोगी को कुम्भक नहीं करना चाहिए।
विशेष- कुम्भक में ध्यान रुकी हुई  साँसो पर रखना चाहिए। संभव हो तो बंधों (मूलबंध ,उड्डयन बंध,जालंधर बंध ) का भी प्रयोग करना चाहिए,कुम्भक का लाभ बढ़ जायेगा। रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए। गर्दन दर्द में गर्दन सीधा रखना चाहिए।

Breathe unpolluted air with newly developed nasal filter

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G.P Varma

The scientists at the Indian Institute of Technology (IIT-K) have developed a nasal filter to check the smallest pollutants in the air during breathing process.

The filter aimed at combating the menace of growing pollution and the respiratory diseases caused by pollutants in the air, claims the developer of the nasal filter Ravi Pandey and Santosh Pramanik.

The nasal filter developed at IIT-Kanpur stands apart from all because it is the only one of its kind which works on both micro as well as nano scale for filtering pollutants from entering our respiratory system.

 The filter consisted of several micro-pillars as a primary defense that trap the larger pollutants at 10-6 scale including the PM 2.5 particles. The filter also consisted of several nano-mats as a second filter to trap smaller particles which are of 10-9size.

 “Unlike existing filters, this device does not require any face strap and or insertion of the filter into the nostrils. Instead it is kept in place by a strip of silicon which adheres, without any irritation or difficulty, to the mask wearer’s skin.”

“The filter also has the advantage of being antibacterial – the internal grooving and cavity of the device has been designed to hold 70% ethyl alcohol gel for the continuous sensitization of internal housing of nasal filter from growing bacteria,” Pandey and Santosh claimed.

The developers have now filed an Indian patent application titled “Antibacterial Nanotechnology Based Nasal Air Filter for Breathing” and they are also in touch with investors to bring this technology to the market soon.

सुन्दरी की कृतज्ञता-शेरनी के निष्छल प्रेम की सत्य कथा

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Dr. R.K Singh
आज से दो वर्ष पूर्व सुन्दरी एक अनाथ शावक थी।पैदा होने के साथ उसकी माँ द्वारा उसे त्यागने के पश्चात उसका लालन पालन मैंने किया। युवा होते ही उसको प्राणी उद्यान के बाड़े में छोड़ दिया गया। वहां वो अपने छोटे भाई शंकर व बहन उमा के साथ रहती है और नित्य प्रति दर्शकों को मोहित करती है
दो वर्ष की सुन्दरी अब परिपक्व शेरनी है। वो एक पल में ही अपने किसी विरोधी को मौत की नीन्द सुला सकती है। इसी लिए उसे लोहे की मजबूत जाली से घिरे सुंदर व आरामदायक बाड़े में रखा गया है। ये जाली उसके और मेरे बीच एक दीवार है और हम अब वैसे उन्मुक्त भाव से एक दूसरे से नहीं मिल सकते जैसे आज से डेढ़ वर्ष पहले मिलते थे और मैं उसे गोद में लेकर बोतल से दूध पिलाया करता था।
लेकिन इस दीवार के बाद भी न मेरे दिल में उसके प्रति स्नेह में कोई कमी हुई है और न ही वो अपने बचपन की यादें भुला पाई है। आज भी वो मेरे पदचापों को पहचानती है। मेरी आवाज को पहचानती है। जब भी मैं उसके बाड़े के पास निरीक्षण के लिए पहुचता हूँ वो मेरी पदचापों और आवाज को सुनकर चौकन्नी हो जाती है। बाड़े के बाहर जिस जगह खड़ा होकर उसे देखता हूं वो दौड़ कर वहां आ जाती है।एकटक मुझे देखती रहती है। मानों कह रही हो “अब क्या मुझसे डरते हो ? मुझे दुलराते क्यों नहीं हो ” ?
मैं उसकी निश्छल भावनाओं को उसकी अपलक आखों में झांकता हूँ। कुछ पल वहां रुकने के बाद मैं दूसरे बाड़ों की ओर बढ़ जाता हूं। लेकिन वो बाड़े पर दो पैर रख कर खड़े खड़े मुझे तब तक देखती है जब तक मैं उसके आखों से ओझल नही हो जाता। मेरे जाने के बाद वो पुनः अपने बाड़े में रम जाती है। ऐसा प्रतिदिन होता है।
मैं भला उसे ये कैसे ये समझाऊँ कि अब उसके और मेरे दरमियान प्रकृति के नियम आते है।फलस्वरूप मैं उससे उस उन्मुक्त भाव से नही मिल सकता।
सुन्दरी के हावभाव देखकर बरबस उस शेर और गुलाम एंड्रॉकलेज की प्रेम गाथा जीवित होती है, जो एक जंगल में शुरू हुई और भविष्य में एक मोड़ पर आकर प्रेम सद्द्भाव व समर्पण की ज्योति जलाकर सदा सदा के लिए समस्त विश्व को एक संदेश दे गई, कि खूंखार जंगली पशुओं में भी कोमल हृदय बसता है। वो एहसान की कीमत जानते हैं। मौका आने पर एहसान को चुकाने में नही चूकते।
कहानी के अनुसार रोम के शासक के अत्याचारों से छुटकारा पाने के लिए एंड्रॉकलेज  राज्य से भाग निकला। वो अभी एक जंगल में पहुँचा तो उसका खून सूख गया । वहां शेर की दहाड़ सुनकर उसने जीवन की आशा छोड़ दी। चलते चलते जब वो शेर के पास पहुँचा तो उसने देखा कि शेर के पंजे में कांटा लगा था। और वो पीड़ा से कराह रहा था। एंड्रॉकलेज ने बिना कुछ सोचे शेर के पंजे से काटा निकाल दिया और चला गया। कुछ दिन बाद जब वो पकड़ा गया तो वहां के शासक ने वहां की सजा के अनुसार उसको मौत की सजा दी, और भारी जनसमूह के बीच उसको एक भूखे शेर के पिंजरे में डाल दिया गया । भूखे शेर की दहाड़ सुनकर उसको रूह कांप गयी। किंतु दहाड़ता हुआ शेर जैसे ही उसके पास आया ,वो दुम हिलाते उसके पैरों  लोटने लगा। एंड्रॉकलेज ने भी उसको गले लगा लिया।
राजा ने दोनों की प्रेम गाथा सुनकर दोनों को मुक्त कर प्रेम और कृतज्ञता के परचम का वंदन किया। सुन्दरी की आखों में भी इसी कृतज्ञता का परचम लहराता है और शायद जीवन पर्यन्त लहराता रहेगा।उसके लिए मेरा स्नेह भी नित नई परिकाष्ठा को प्राप्त करता रहेगा।

साहित्य के फर्जी डॉक्टरों की जय हो !!!

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Dr. Suresh Awasthi

गुरुदेव जब दो दिनों तक गुरुकुल नहीं आए तो दो शिष्य उनकी कुटी में पहुंचे। वहां उन्हें जो दिखा व जोर का झटका धीरे से लगाने वाला था। गुरुदेव तख्त पर पालथी मारे ध्यानमुद्रा में बैठे थे। उन्होंने गले में एक तख्ती लटका रखी थी। तख्ती पर मोटे मोटे अक्षरों में ‘पीएचडी बिकती है, खरीदोगे लिखा हुआ था। उनके सामने चौकी पर उनकी पीएचडी की 600 पेज का मोटा सा शोधग्रंथ और उसी के पास में कफन में प्रयोग होने वाले सफेद वस्त्र का एक टुकड़ा रखा था जिस पर कुछ फूल, चंदन की लकड़ी का एक टुकड़ा व रोली चावल पड़े थे। शिष्यगण काफी देर तक हतप्रभ खड़े रहे। अचानक गुरुदेव ने आंखें खोलीं। शिष्यों ने उन्हें तुरंत प्रणाम किया और पूछा, ‘गुरुदेव यह क्या? गुरुदेव ने उन्हें बैठने का संकेत किया।

शिष्यगण वहीं पड़े चौकिया (स्टूल) पर बैठ गए। गुरुदेव बोले, ये मैंं शोध ग्रन्थ का अंतिम संस्कार करने जा रहा हूँ। इसे मैंंनेे पूरे पांच साल की मेहनत के बाद शोध करके तैयार किया। जिस पर एक पांच सदस्यीय विद्वानों की समिति ने तीन घण्टे तक मेरी परीक्षा ली। शोध पर अपनी अटूट मेंहनत की कमाई का हज़ारों रूपया।खर्च किया। तब कहीं जाकर नाम के आगे डॉक्टर लिखने का अधिकार मिला। देख रहा हूँ एक तथाकथित विश्वविद्यालय हर साल हाई स्कूल, इंटर या स्नातक पास दो ढाई सौ लोगों को ‘ विद्या वाचस्पति ‘ डेढ़ हजार में बेंच देता है और वे सब डॉक्टर साहेब हो जाते हैं। मेरे कालेज के एक स्नातक थर्ड डिवीजन पास चपरासी ने जब से ये विद्या वाचस्पति ख़रीदी है, वो भी डॉक्टर साहब हो गया। उसके कुलीग उसे सार्वजनिक रूप से डॉक्टर साहब तो कहते ही हैं, वो भी नाम के आगे डॉक्टर लिखने लगा है। लग रहा है कि शोध की असली विद्या तो बांझ हो गयी है और उसे स्पति अर्थात कुष्ठ रोग हो गया है।ऐसे फर्जी विद्यावचस्पतिओं को भरी महफ़िल में डॉक्टर साहब कह कर संबोधित करने से तो अच्छा है कि इस शोध ग्रन्थ और इससे मिली अपनी पीएचडी की डिग्री की ही अंत्येष्टि कर दूँ।

शिष्यगण महसूस कर रहे थे कि शार्टकट से खुद को विद्वान और हाइली क्वालिफाइड दिखाने की ललक वाले क्षद्मवेशियों की घटिया हरकत से दुखी गुरुदेव खुद पर गुस्सा उतार रहे हैं। एक शिष्य ने साहस करके कहा, पर गुरुदेव वे जो खरीद कर ले रहे हैं वो विद्या वाचस्पति ‘ ‘उपाधि ‘ नही ‘सम्मान’ है, और सम्मान में किसी को नाम के आगे डॉक्टर लिखने की अनुमति नहीं होती। इस सम्मान को खरीदने वालों का ईमान ही मर गया और फर्जी सम्मान पाने के घटियापन पर उतर आए हैं तो आप इन नकली और फसली लोगों के लिए अपनी असली डिग्री क्यों फूंक रहे हैं गुरुदेव?

गुरुदेव ने झल्लाये स्वर में कहा कि लोग समझेंगे कि मैं भी इसी सम्मान को खरीद कर डॉक्टर बना हूं।दूसरे शिष्य ने आग्रहपूर्वक गुरुदेव को इस अपमानजनक स्थिति से बाहर निकलने का उपाय सुझाया तो गुरुदेव का चेहरा चमक उठा। उन्होंने धैर्यपूर्वक वही किया। एक साल की प्रतीक्षा के बाद एक दिन गुरुदेव ने ऐसे सभी ‘बाजारू विद्यावचस्पतिओं’ को घर पर चाय पर आमंत्रित किया। विद्यावचस्पतियों ने उनके घर के मुख्यद्वार एक बोर्ड लगा देखा तो चौंक गए। बोर्ड पर मुख्य गृह सेवकों, भोजन बनाने वाली बाई, झाड़ू पोछा लगाने वाली बाई, ड्राइवर और अनपढ़ सफाई कर्मचारी के नामों की सूची लिखी हुई थी। हर नाम के आगे ‘डॉक्टर’ लिखा था। किसी ने पूछ दिया, ‘सब के सब डॉक्टर?’ गुरुदेव मुस्कराए , बोले, ‘ जी हां, सभी डॉक्टर हैं क्यों कि मैंने इन सभी को विद्यावचस्पति खरीदवा दी है। इससे मुझे पढ़े लिखे विद्वान लोगों के बीच रहने वाला हैवी क्वालिटी का फीलगुड होता है।’
आमंत्रित विद्यावचस्पतिओं को गुरुदेव की चाय का स्वाद मीठे की बजाय कसैला लग रहा रहा था।

नया सवेरा, नयी ज़िन्दगी

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Dr. Kamal Musaddi
बचपन से लेकर अब तक समझ में नहीं आया कि नया वर्ष आने पर इतनी ख़ुशी, इतना आनंद, इतना उत्साह क्यों होता है लोगों के मन में? होता भी है या सिर्फ दिखावा होता है या फिर रिश्तों के नवीनीकरण का एक बहाना।
31 दिसम्बर की रात 12 बजे से जो फ़ोन ने टुकटुकाना शुरू किया तो अब तक टुकटुका रहा है। व्हाट्स ऍप पर हरी बिंदिया और फेसबुक पर शुभकामना संदेशों ने:; फ़ोन पर इतना लोड बढ़ा दिया कि बेचारा गर्म होने लगा। मैंने भी “आपको भी, सेम टू यू” या ‘आभार’ और ‘धन्यवाद’ जैसे लोडेड वाक्यों से अपने सामाजिक दायित्व यूँ कहूँ कि लोकाचार को निभाया। मगर फिर वही प्रश्न मन में उभरता कि एक तारीख बदलने के अलावा क्या बदला है ज़िन्दगी में? मगर लोगों के उत्साह भी बेबुनियाद तो नहीं होते सो अपने मन को टटोलने लगी कि मेरा मन इस नए वर्ष को कैसे अनुभव कर रहा है।
दरअसल जब तारीखों की पुनरावृत्ति होती है तो उनसे जुड़ जाती हैं स्मृतियाँ; जो सुखद भी होती है और दुखद भी। मसलन अपनी जन्म तारीख़, बच्चों के जन्म, विवाह, माता पिता की स्मृति शेष तारीखें या फिर मुलाकातों की स्मृतियाँ कब किस रिश्ते से कहाँ मिले या फिर यात्राओं की स्मृतियाँ। कुल मिलाकर अगर गंभीरता से सोचे तो हमारी सोच का प्रतिशत भविष्य के विषय में सोचता है, उनसे अस्सी गुना अधिक अतीत में जीता है। एक बार व्यक्ति भविष्य की चिंताओं से मुँह चुरा ले मगर अतीत की छाप कभी उसकी आँखें गीली करती है तो कभी होंठों पर मुस्कान बिखेर देती है।
नया कैलेंडर फिर ताजा करने लगता है बीते कल को और गति देने लगता है जीवन को। हम बीते कल की विशेष तारीखों को उँगलियों की पोरों पर रखकर बढ़ते रहते हैं नए कैलेंडर के साथ। स्मृतियों की पुनरावृत्ति की इस बेला पर स्वागत ही नए वर्ष का स्वागत है जहाँ हम कोशिश करते हैं कि पिछ्ला जो अच्छा था वो और अच्छा हो जाए। जो बिगड़ा था, वो सुधर जाए। जो थमा था, वो गति पाए। जो गया था, वो लौट आए। नयी आशाएं, नयी उमंगें, नयी कामनाएं, नयी चेष्टाएं यही तो लाती हैं नयी तारीखे।
नव वर्ष; नयी उपलब्धियां, नयी सोच, नयी परिकल्पनाएं और नए उत्साह लाए सभी की ज़िंदगी में।

IIT-Kanpur-Innovative study on Superconductivity in silver-gold alloys

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For the first time, a Professor of the Department of Chemistry at the Indian Institute of Technology Kanpur (IIT-K) and his two research scholars have calculated superconductivity in the crystals of silver-gold alloys.
The calculated superconducting transition temperatures of the silver-gold alloys resulted in Tc (critical temperature) as low as one mK (milli Kelvin). The computational results do not support the experimental observations of  room temperature superconductivity as claimed by Dev Kumar Thapa and Anshu Pandey in their popular preprint repository, arXiv:1807.08572 titled Evidence for Superconductivity at Ambient Temperature and Pressure in Nano structures. The nano structures are of silver particles embedded into a gold matrix.
Anshu Pandey is a professor at the Indian Institute of Sciences Bangalore (IISc) and  Dev Kumar Thapais a research scholar. “We do not find signature of room temperature superconductivity in our calculations”, said Professor Dasari LVK Prasad.
Professor DLVK Prasad has worked on this project with his two doctoral students Surendra Singh and Subhamoy Char. Prasad’s team findings are also posted on the preprint arXiv:1812.09308, titled Ag-Au alloys BCS-like Superconductors?
Prompted by the Noble Prize–worthy claim (arXiv:1807.08572) by Thapa and
Pandey “on the evidence for superconductivity at ambient temperature and pressure  in nano structures of silver particles embedded into a gold matrix” Professor Prasad and his two doctoral students Surender Singh and Subhamoy Char calculated superconducting transition temperatures in the silver-gold alloys. They did not find results that supporting Pandey’s observations. In fact, the results of Professor Prasad’s team rather complement with the observations of Ogale’s team (arXiv:1808.10699 titled Absence of superconductivity in pulsed laser deposited Au/Ag modulated nano structured thin films), where they did not observe any superconductivity in silver-gold modulated nano structured thin-films grown on Si Quartz substrates by pulsed laser deposition.
Satish chandra Ogale is a professor at the Indian Institute of Science Education and Research (IISER) Pune.
In the absence of well-defined crystal structures of silver-gold nanoalloys, Prasad’s team have meticulously predicted possible silver-gold alloys’ crystal structures, for which superconductivity has been investigated within the Bardeen–Cooper–Schrieffer (BCS) theory using the state-of-the-art supercomputing facility at IIT-Kanpur and their own in-house-house High-Performance Computing facility. To predict plausible stable and metastable crystal geometries, they have developed a somewhat quicker knowledge based approach (data-mining) coupled to evolutionary algorithms and first principles quantum mechanical calculations. Prasad indicated that the detailed results of the calculations will be presented in the upcoming American Physical Society (APS) March Meeting (2019), Boston, MA, USA.
Professor Prasad says, “At least in computations, within the BCS formalism, the silver-gold alloy systems are found to be very low Tc materials. Theoretical studies basedbased on non-BCS mechanisms are therefore extremely important in searching for the emergent superconducting state (if any) in these materials. Of course, further experimental works needs to be done.”
“Superconductors are materials that offer no resistance to electrical current. Prominent examples of superconductors include aluminium, niobium, magnesium diboride, cuprates such as yttrium barium copper oxide and ironpnictides. These materials only become superconducting at temperatures below a certain value, known as the critical temperature.”
“The technologies based on superconductors will translate into significant benefits to our life, our societies and economies across a broad range of endeavors. Superconductors offer the promise of important major advances in efficiency and performance in electric power generation, transmission and storage; medical instrumentation; wireless communications; computing; transportation and scientific instruments that will result in new paradigms and in societal advances that are cost effective and environmentally friendly.”(European Commission’s Priorities).

 

ज़िन्दगी में कल्पना- सवाल या जवाब

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Prachi Dwivedi
ज़िन्दगी वह नहीं जिसे हम जीते हैं। ज़िन्दगी तो वह है, जिसे हम जी नही पाते। जो नेपथ्य में रहकर हमारी उस ज़िन्दगी को, ऊर्जा देती है। उसे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करती है। यदि वह न हो तो यह दौड़ती-भागती ज़िन्दगी ठिठक कर रह जाए।
हमारे हृदय और मानस पटल पर कुलाँचे लगाती हमारी कल्पनाएँ और उम्र को साकार करने के प्रयास हमारी इस ज़िन्दगी की गाड़ी को गतिमान रखते हैं। किंतु यह ज़िन्दगी हमारी आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं के अनुकूल नहीं होती। फिर भी उसे जीना पड़ता है, अपनी दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए।
कल्पनाओं के अनुरूप संवरी ज़िन्दगी बहुत ही कम लोगों के हिस्से आती है, लेकिन वह भी उसे जी नहीं पाते। क्योंकि उनकी नई महत्वाकांक्षाएं उन्हें सामने आ जाती है और वह पुनः नेपथ्य में बिखरी आनंददायक और कल्पनात्मक ज़िन्दगी में खो जाते हैं। ज़िन्दगी को भोग नहीं पाते हैं।
ज़िन्दगी का सवाल है मुझे कब जिया जायेगा? मैं तो अपने उस स्वरुप को देखना चाहती हूँ जहाँ संतुष्टि हो, सद्भावना हो, आपा- धापी न हो, आत्मिक आह्लाद हो और कटुता और वैमनस्य के घने कुहासे का साया न हो। किन्तु तुम्हारी आकांक्षाओं व महत्वकांक्षाओं के न विराम हैं न उनकी उड़ान का अंत। इसीलिए तुम्हें उसी रूप में खुश रहना होगा, जिस रूप में दुनिया का प्रत्येक जीव तुम्हें जीता है। हंसते-रोते अपने जीवन सफर को पूरा कर लेता है और एकदिन अनंत व्योम में समा जाता है। इतना सा ही है तुम्हारा वर्तमान और भविष्य। मान लो इसे तुम ज़िन्दगी। मान लो

Great Drunken uncles of Indian weddings

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Dr. Rakesh Kumar Singh
“Indian weddings and festivals”, that is the answer of any tourist in India, if asked, “What do you like in India”? And what they like in Indian marriages? He will simply answer “street dance by baratis (people in marriage procession)”. Now question arises “Why dance only and why not decoration, culture and recipes of Indian marriages?’
The most watched and awaited moment of Indian marriages is when marriage procession is taken to bride’s home. The funny moment begins right from here. The band singer who happens to be father of all musics begins with a hymn “data ek Ram bhikhari sari duniya” and will immediately switch over to “De depyar de, pyar de, pyar de re”, and here the entry of great Indian dancers begins. They know the art of Indian great classical dances, western and even ganganam styles. A ganganam style dancer accepted that ganganam is modified presentation of the dance by great drunken uncles of Indian marriages. These dancers are so much talented that even Hrithik Roshan and erstwhile dancing star Mithun will take retirement if any competition is held between them. Sometimes the band singer will abruptly discontinue and begins with “one, two, three-ye deshhai veer javanonka, albelonkamastanonka”. I wonder why a patriotic song is sung in all marriages; definitely it shows courage shown by a young lad to marry a lioness. As soon as the procession advances the evergreen song “aaj mere yaar ki shadi hai” will be the choice. Such uncles are usually not present at the beginning. These uncles are omnipresent after a certain period of marriage procession. But question arises where from they appear at once. Studies reveal that they gather at one place in a car somewhere roadside.
Namkeen, omelets, salad and of course the red colored cutwork glasses with one common word “cheers” makes the ground ready for the coming funny moment.  And once they enter in procession every person greets them. Drunken uncles discover new dancing steps in every procession. Their leg movements with bhangara style hands and chewing lips makes picture perfect. Their irregularly dancing tummy makes atmosphere more funny. Some of them will dance vigorously and some in slow motion and of course some will bring aunties who are not drunken but will steal the show. The famous Shashi-Mumtaz song “Le jayenge le jayenge dilwale dulhaniya le jayenge” seems to be made for these uncles who easily outclass Shashi–mumtaz. With handkerchiefs in mouth and frog sitting posture looking towards aunties reminds us that they both are made for seven births.
The vehicles are stopped for these Michael Jacksons. Finally when the procession reaches bride’s door the only demand is “aaye ham baratibaratleke” with garlands in necks final stroke is played by this ubiquitous species with groom on their shoulders. Without these uncles one cannot imagine the Indian weddings and really they are integral part of it and have brought Indian weddings on tourist map.

मेरा संघर्ष- एक गैंडे की आत्मकथा

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Dr. Asha Singh
मैं अब एक इतिहास हूँ। मैं अब मौजूद हूँ । वाइल्डलाइफ की किताबों में, मेरी यादें आज भी कानपुर प्राणिउद्यान के रोम रोम में बसी हैं। मैं आज भी अपने आपको अपने उसी बाड़े में पाता हूँ। हांलाकि मैं अब दिखता नहीं । मैं आज भी मौजूद हूँ,प्राणी उद्यान के एक-एक पत्ते, ज़र्रे और एक एक मेरे साथियों के दिलो दिमाग में।
जी हाँ, मैं रोहित हूँ। मैंने सन 1989  में पहली बार अपनी आंखें खोलीं तो मेरी माँ मयंग कुमारी और पिता लछित मेरे सामने थी। आने- जाने वाले दर्शक मुझे छोटा गैंडा कहते थे तो मैं उनके पास जाने की कोशिश करता और मेरे पास जाते ही छोटे बच्चे तालियां बजाते। मैं खुश हो जाता था। मुझे अपना बाड़ा बहुत पसंद था । उसमे मैं कूदता, भागता था।
वक़्त कैसे और कब बीत गया मुझे पता ही नहीं चला और अब मेरा अपना अलग बाड़ा था। मैं अपने जीवन से खुश था ।प्राणी उद्यान के कर्मचारी मेरा पूरा ध्यान रखते थे। डॉ उमेश चन्द्र श्रीवास्तव तो विशेष रूप से मेरे स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते थे।
अब मेरा युवा मन मुझे बरबस मेरे बगल के बाड़े में रहने वाली मेरी प्रेयसी छुटकी से मिलने का करता था। मैं बीच बीच में उस ओर जाता था । वो भी मेरे नज़दीक आने का प्रयास करती थी। ये कई दिन चलता रहा । एक दिन हमारी प्रेम कहानी सबको पता चल गई। हमारे दाम्पत्य जीवन की शरुआत हुई। मेरी जीवन संगिनी ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।  इसी बीच डॉ यू सी श्रीवास्तव के साथ एक और डॉक्टर आने लगे और धीरे धीरे उनसे भी मैं घुल मिल गया। यह वही डॉ आर के सिंह थे जिन्होंने मेरी जान बचाने के लिए डॉ यू सी श्रीवास्तव के साथ अपनी जान भी दांव पर लगा दी थी। मैंने उन दोनों से एक अज़ीब सा रिश्ता बना लिया था।
सब कुछ ठीक चल रहा था पर एक दिन वर्ष 2008 में, मुझे याद है उस दिन होली थी। मेरी संगिनी छुटकी मुझे छोड़ के इस दुनिया से रुख़सत हो गयी। मैं अब बरबस अपनी संगिनी छुटकी को याद कर उदास हो जाता था। मुझे अब भी लगता था कि वो बगल के बाड़े में खड़ी है।
इसी तरह चार साल निकल गए और मेरे अकेलेपन को दूर करने के लिए मेरी नई जीवन संगिनी मानु आयी। हमने नए सिरे से जीवन प्रारंभ किया और मैं दो पुत्रों पवन व कृष्णा का पिता बना। मैं एक बार फिर अपने जीवन और परिवार के साथ खुश था। पर नियति को कुछ और मंज़ूर था ।
एक दिन मुझे पेट में हल्का दर्द महसूस हुआ । दो दिन पश्चात मेरी पीड़ा बढ़ने लगी ।  मैं  निढाल होकर लेट गया । तभी प्राणी उद्यान के डॉ.आर .के. सिंह व डॉ. यू. सी. श्रीवास्तव की दृष्टि मुझपर पढ़ी । वे रुक गए। मैं उन्हें परेशान तो नहीं करना चाहता था । पर अपनी पीड़ा छुपा पाना अब मुश्किल था। उनके इंजेक्शन से मुझे बड़ा डर लगता था।  एक तो इतना बड़ा इंजेक्शन उसपर बन्दूक से निशाना साधकर इंजेक्शन मारना। मैं भरसक प्रयास करता था पर उनके अचूक निशाने से मैं शायद ही कभी नही बच पाया।
मैं समझ गया आज फिर मुझपे निशाना लगने वाला है, पर आश्चर्य जब वो वापस आये तो ख़ाली हाथ थे। उन्होंने कुछ गोलियां कीपर को दीं । गोलियां कड़वी ज़रूर थीं पर मैंने केले के साथ खा लीं। मेरा दर्द बढ़ता जा रहा था । मैं चाह कर भी कुछ नहीं खा पाता था। अब गोलियां खाना भी दूभर हो गया था। मेरा स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था। डॉ.आर.के.सिंह अब रात को भी दो बार मुझे देखने आते थे । मुझे पास बुलाकर चुपचाप धोखे से मेरे मुंह में दवा की पूरी शीशी उड़ेल देते थे। वह प्रतिदिन हमारे कम देखने की क्षमता का लाभ उठाकर कुछ ना कुछ दवा मेरे मुंह में रात के अंधेरे में डाल देते थे। चिकित्सक व स्टाफ मेरी सेवा में लगे थे, बाहर के चिकित्सक भी मुझे देखने को बुलाये गए।
उस रात डॉ.आर.के.सिंह व एक कर्मचारी ने मेरे चिड़चिड़ेपन व गुस्से के बावजूद अभूतपूर्व कदम उठाते हुए रात के अंधेरे में एनीमा दिया। अगले दिन मैं स्वस्थ महसूस कर रहा था । मेरा पेट अब हल्का था । मेरा हाज़मा अब ठीक था। लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही दर्द । इस बार मैं दर्द से अधिक गुस्सेल हो गया मैंने कुछ नहीं खाया। किसी के पास नहीं आने दिया। लेकिन प्राणी उद्यान के चिकित्सकों, जिनमें अब डॉ. नासिर भी जुड़ गए थे, को चाह कर भी मैं रोक ना सका। उन्होंने मेरे गुस्सेल स्वभाव की परवाह किये बिना मुझे पास आकर ना केवल इंजेक्शन लगाए बल्कि एनीमा भी दिया। मैं एक बार पुनः स्वस्थ हुआ। मगर कुछ माह बाद फिर वही दर्द, अब तो दर्द और मेरा पल- पल का रिश्ता हो गया था।
मुझे लगने लगा था अब शायद पूरी ज़िंदगी ऐसे ही जीना पढ़ेगा । मेरा विशालकाय शरीर अब निर्बल और कमज़ोर हो रहा था। मेरे बीमार पड़ने की आवृत्ति बढ़ती जा रही थी। एक दिन मैंने अपने चिकित्सकों से सुना कि मेरी आंतों में या तो कोई पाउच बन गया है या वे उलझ रही हैं या फिर मुझे कैंसर है। अभी मैं जीना चाहता था । लेकिन शायद भाग्य ने मेरे लिए कुछ और ही लिख रखा था। जिंदगी धीरे धीरे मेरे हाथ से रेत की तरह फिसल रही थी। मैं अब प्राणी उद्यान स्टाफ ओर चिकित्सकों को उदास नहीं देख सकता था। मैं एक दिन पूरी कोशिश कर उठ खड़ा हुआ । उस दिन खाने की कोशिश भी की। मैंने अपने चिकित्सकों को पूर्ण स्वतंत्रता दी कि अब मैं उनके हर इंजेक्शन, हर दवा , हर प्रयास का समर्थन करूंगा।
 मुझे याद है उस पूरी रात डॉ आर के सिंह मेरे पास ही बैठे रहे । मेरा मन हुआ कह दूं अब विदा होने का समय आ गया है । परंतु उनके दिल को दुःखी ना करने के लिए उनके कहते ही मैं अंतिम बार उठ खड़ा हुआ। लेकिन मेरी शक्ति जल्द ही जवाब दे गई । मैंने घूम कर अपनी जीवन संगिनी मानु को देखा और आंखों ही आंखों में क्षमा मांगी कि “मैं जीवन भर तुम्हारा साथ ना दे सका”।
मेरी आंखें बोझिल थीं। वह बाड़ा, प्राणी उद्यान की यादें सब मेरी आंखों के सामने घूमने लगीं। मैं थक चुका था अनायास ही मैं बैठ गया। सब मेरी ओर देख रहे थे। डॉ आर के सिंह का हाथ मेरे सिर पर था । मैं सबकी आंखों का दर्द महसूस कर रहा था । नया वर्ष 2015 आने में 2 दिन बाकी थे । मगर मेरी किताब के पन्ने भर चुके थे। मेरा निढाल शरीर जैसे कह रहा था, रोहित तू कभी नहीं समाप्त होगा । तेरी आत्मा सदा इस प्राणिउद्यान में युग युग तक सन्देश देगी कि असाध्य रोग से भी अंतिम सांस तक हँस के और हिम्मत से लड़ा जाता है। दूर क्षितिज पर सुबह का अंतिम तारा अभी भी चमक रहा था। अलविदा दोस्तों, “मैं रोहित हूँ”।

स्वस्थ जीवन के लिए परीक्षित प्रयोग

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डॉ उर्मिला यादव
हमारी स्वस्थता की बुनियाद हमारे दैनिक जीवन के छोटे छोटे दैनिक कार्यों पर आधारित होती है। हम आप को यहाँ पर कुछ,बहुत ही कारगर परीक्षित प्रयोग के तरीके बता रहें हैं  जिसका प्रयोग करके आप अपने दैनिक जीवन में आने वाली
समस्यायों से तो बचेगें ही एवं समस्याओं को दूर करने में भी मदद मिलेगी।

👉ताँबे के बर्तन में रखा पानी-

ताँबे के बर्तन में रखा पानी सुबह उठते बिना कुल्ला किये ही पिए,निरंतर ऐसा करने से आप कई रोगों से बचे रहेंगे।ताम्बे के बर्तन में रखा जल गंगा जल से भी अधिक शक्तिशाली माना गया हैं।

👉शौंच-
ऐसी आदत डाले कि नित्य शौंच क्रिया करते समय दाँतों को आपस में भींच कर (दबाकर ) रखे। इस से दाँत मज़बूत रहेंगे,पेट आसनी से साफ होगा तथा लकवा (पैरालाइसिस) नहीं होगा।

👉सुबह की सैर-
सुबह सूर्य निकलने से पहले पार्क या हरियाली वाली जगह पर सैर करना सम्पूर्ण स्वस्थ्य के लिए बहुत लाभदायक हैं। इस समय हवा में प्राणवायु (आक्सीजन ) का बहुत  संचार रहता हैं। जिसके सेवन से हमारा पूरा शरीर रोगमुक्त रहता हैं और हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती हैं।
👉मालिश-
स्नान करने से आधा घंटा पहले सर के ऊपरी हिस्से में सरसों के तेल से मालिश करें। इस से सर हल्का रहेगा,मस्तिष्क ताज़ा रहेगा।रात को सोने से पहले पैर के तलवो, नाभि,कान के पीछे और गर्दन पर सरसों के तेल की मालिश कर के सोयें । निद्रा अच्छी आएगी, मानसिक तनाव दूर होगा। त्वचा मुलायम रहेगी।सप्ताह में एक दिन पूरे शरीर
में मालिश ज़रूर करें ।
👉योगासन और प्राणायाम-
नित्य कम से कम 10 से 20 मिनट योगासन और प्राणायाम का अभ्यास ज़रूर करें। तन और मन स्वस्थ रहेगा। युवा जैसा महसूस करेंगें।
👉ध्यान-
हर रोज़ कम से कम 10 से 15 मिनट ध्यान ज़रूर करें,जीवन भर तनाव नहीं होगा।
👉आँवला –
किसी भी रूप में थोड़ा सा आँवला हर रोज़ खाते रहे,जीवन भर उच्च रक्तचाप और हार्ट फेल नहीं होगा।
👉मेथी-
मेथीदाना पीसकर रख ले।एक चम्मच एक गिलास पानी में उबाल कर नित्य पिए। मीठा, नमक कुछ भी ना डाले। इस से आँव नहीं बनेगी, शुगर कंट्रोल रहेगी और जोड़ो के दर्द नहीं होंगे एवं पेट ठीक रहेगा।
👉छाँछ  –
तेज और ओज बढ़ने के लिए छाँछ का निरंतर सेवन बहुत हितकर हैं। सुबह और दोपहर के भोजन में नित्य छाँछ का सेवन करें। भोजन में पानी के स्थान पर छाँछ का उपयोग बहुत हितकर हैं।
👉नेत्र स्नान-
मुँह में पानी भर कर नेत्र धोयें । ऐसा दिन में तीन बार करें।जब भी पानी के पास जाए मुँह में पानी का कुल्ला भर लें और नेत्रों पर पानी के छींटे मारें। मुँह का पानी एक मिनट बाद निकाल कर पुन: कुल्ला भर ले। मुंह का पानी गर्म ना हो,
इसलिए बार बार कुल्ला नया भरते रहे।भोजन करने के बाद गीले हाथ तौलिये से नहीं पोंछे। आपस में दोनों हाथो को रगड़ कर चेहरा व कानो तक मलें। इससे आरोग्य शक्ति बढ़ती हैं। नेत्र ज्योति ठीक रहती हैं।
👉सरसों तेल-
सर्दियों में हल्का गर्म सरसों के तेल और गर्मियों में ठंडा सरसों तेल तीन बूँद दोनों कान में कभी कभी डालते रहें इससे कान स्वस्थ रहेंगे एवं श्रवण शक्ति जीवनभर  बनी रहेगी।
👉निद्रा-
दिन में जब भी विश्राम करें तो दाहिनी करवट लेकर सोयें । और रात में बायीं करवट लेकर सोयें । दाहिनी करवट लेने से बायां स्वर अर्थात चन्द्र नाड़ी चलेगी, और बायीं करवट लेने से दाहिना स्वर अर्थात सूर्य स्वर चलेगा। भोजन आसानी से पचेगा और ठंड से बचे रहेंगें । उच्च रक्तचाप वालों को दाहिनी करवट नहीं सोना चाहिए।
👉सौंठ-
सामान्य बुखार, फ्लू, जुकाम और कफ से बचने के लिए पिसी हुयी आधा चम्मच सौंठ और ज़रा सा गुड एक गिलास पानी में इतना उबाले के आधा पानी रह जाए। रात को सोने से पहले यह पिए।बदलते मौसम,सर्दी व वर्षा के आरम्भ में यह पीना रोगों से बचाता हैं। सौंठ नहीं हो तो अदरक का भी इस्तेमाल कीजिये।
👉टाइफाइड-
चुटकी भर दालचीनी की फंकी अकेले या शहद के साथ दिन में दो बार लेने से टाइफाइड नहीं होता।
👉 नाक-
रात को सोते समय नित्य सरसों का तेल या देसी गाय का घी नाक में डालें । हर तीसरे दिन दो कली लहसुन रात को भोजन के साथ ले। प्रात: दस तुलसी के पत्ते और पांच काली मिर्च नित्य चबाये। सर्दी, बुखार, श्वांस रोग नहीं होगा। नाक स्वस्थ रहेगी।
👉हरड़-
हर रोज़ एक छोटी हरड़ भोजन के बाद दाँतो तले रखें और इसका रस धीरे धीरे पेट में जाने दे। जब काफी देर बाद ये हरड़ बिलकुल नरम पड़ जाए तो चबा चबा कर निगल लें । इससे आपके बाल कभी सफ़ेद नहीं होंगें, दांत 100 वर्ष तक निरोगी रहेंगें और पेट के रोग नहीं होंगे।
  👉चर्वाक कहते हैं – या जीवेत सुखी जीवेत,ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत। इसका अर्थ यह हुआ,जब तक जियो सुख पूर्बक (खुशी से ) जियो,चाहे ऋण (कर्ज,उधार ) ही क्यों न लेना पड़े लेकिन घी (देसी गाय का ) जरूर खाओ। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता हमेशा बनी रहेगी। बीमारियाँ आपके जीवन से दूर रहेंगी। अंत में आपने तो ये तो जरूर सुना होंगा –
👉घी खाये मांस बढ़े,अलसी खाये खोपड़ी। दूध पिये शक्ति बढ़े,भुला दे सबकी हेकड़ी।।
👉 तेल तड़का छोड़ कर,नित घूमन को जाय। मधुमेह का नाश हो जो जन अलसी खायें।।
(लेखिका; योग एवं प्राकृतिक चिकित्सिका ,योग केन्द्र ,आईआईटी, कानपुर की सदस्या हैैं)

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