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छिं:…,मुंह खोलें मिर्ची झरे….

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Dr. Suresh Awasthi

गुरुदेव जब गुरुकुल पहुंचे बहुत गुस्से में थे। किसी ने उन्हें सूचना दी थी कि एक शिष्य ने दूसरे शिष्य के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग करके गुरुकुल की आचार संहिता तार तार कर दी है। गुरुदेव को लगा कि जैसे गुरुकुल, गुरुकुल नहीं रहा चुनावी मैदान हो गया है और शिष्य शिष्ट,विशिष्ट विद्यार्थी न होकर अप्रशिक्षित, अंहकारी, संवेदनहीन राजनीति के व्यापारी हो गए हैं। उन्होंने गुरुकुल पहुंचते ही सभी शिष्यों को उसी प्रकार तलब किया जैसे चुनाव के दौरान आचार संहिता का पालन न करने पर चुनाव आयोग किसी अधिकारी अथवा प्रत्याशी को तलब करता है। गुरुदेव थोड़ी देर धीर,गंभीर मुद्रा में बैठे रहे। शिष्य समुदाय बाहर से शांत और अंदर से अशांत था। अचानक गुरुदेव ने मौन तोड़ा, वह महान शिष्य कौन है जो चुनावी सभाओं के कतिपय बेलगाम-बदजुबान नेताओं से अप्रत्यक्ष दीक्षा ले रहा है? गुरुदेव के क्रोध से डरे शिष्यों में एक उठ कर खड़ा हुआ और खड़े होते ही बोला, गुरुदेव क्षमा करें गलती हो गयी। गुरुदेव बोले, चलो अच्छा हुआ कि तूने स्मृति यानी मेमोरी लॉस वाली गलती की परंतु उससे अलग आचरण करते हुये तुरंत स्वीकार कर लिया। तुम्हें माफी मिल सकती है परंतु जिसने तुम्हें अति विशिष्ट असांस्कृतिक अपशब्दों द्वारा सार्वजनिकरूप से असम्मानित किया वह मुगल-ए-आजम कौन है? गुरुदेव के व्यंग्यवाण चलते ही एक अन्य शिष्य उठ खड़ा हुआ। उसने क्षमा याचना करने के बजाय अपनी अपसंस्कृति से मढ़ी, अनाचार से जुड़ी अलगाववादी भाषा के प्रति अफसोस जताने के बजाय उचित ठहराने की कोशिश की तो गुरुदेव भड़क कर बोले, आप अहंकारी समुदाय के ïस्वयंभू अध्यक्ष कब से बन गए? ध्यान रहे जैसे मुंह से उगला थूक वापस मुंह में नहीं आता, वैसे ही मुंह से निकले अपशब्द कभी वापस नहीं आते। जहर उगलोगे जो जहरीली हवा में ही सांस लेनी होगी।

यह गुरुकुल है कोई ऐसा कोई सदन नहीं है जो भाषाई -मिर्च का पाउडर उड़ाने का शर्मनाक आचरण करके भी सम्मान पाते रहो। ये गुरुकुल की कक्षाएं हैं, कोई चुनावी सभाएं नहीं जो मनुष्यता व राष्ट्रीयता के विरुद्ध सभी मर्यादाएं तोड़ कर गुरुकुल को धर्म व जाति की दीवारों से बांटने वाली भाषा के जहरबुझे तीर शान से चलाओ फिर भी माला पहन कर निकल जाओ।

गुरुदेव का गुस्सा आसमान पर था। शिष्य को (सु) बोध हुआ तो उसने पैर पकड़ लिए और वादा किया कि भविष्य में सांस्कारिक भाषा का ही प्रयोग करेगा। गुरुदेव ने उसे क्षमा कर दिया और पूरी कक्षा को दीक्षा दी भाषा सीखना है
तो अच्छी पुस्तकों से सीखो। खबरिया चैनलों पर बोस रहे नेताओं अथवा कतिपय एकंरों से मत सीखिये।

ध्यान रहे :

शब्द जब जब बोलते हैं
भेद मन का खोलते हैं
शब्द हारा, शब्द जीता
शब्द रावण, शब्द सीता
शब्द मरहम, शब्द घाव
शब्द सागर, शब्द नाव
बोलो सदा तमीज की भाषा
बोलिए मत ,खीज की भाषा

चुनावी होली हुल्लड़

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Pankaj Bajpai
मार्च माह में मौसम ने अपना मिज़ाज तो बदला ही,मगर माहौल तब गर्म हो गया जब चुनाव आयोग ने लोक सभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी। देश के राजनैतिक दल अपनी पुरानी परंपरा को कैसे भूल सकते थे। सभी दलों ने जैसे एक दूसरे को नीचा दिखाने की परंपरा को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाने का बीड़ा ही उठा लिया।
सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी पार्टी के उन चुनिंदा नेताओं को मोर्चे पर लगा दिया जो अपने दामन के दाग को न देख कर दूसरे के दामन को गंदा बताने में पूरी योग्यता रखता हो। सभी विशेष योग्यता रखने वाले नेतागण पार्टी के द्वारा दिये गए दिशा निर्देशों को बड़ी ही श्रद्धा के साथ निर्वहन करते रहे हैं।  अपने  विरोधी दल प्रत्याशियों को निम्न से भी निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग कर उनको अपने से नीचा दिखाने का काम करने लगे हैं।
टीवी न्यूज चैनल पर लाइव बहस में मंजर ही कुछ निराला होता हैकिंतु ।हर नेता अपनी मधुर आवाज में इतनी तेज अपने अपूर्ण ज्ञान के भंडार को सही साबित करने में लग जाते हैं। वो भूल ही जाते हैं कि समाज में उनके इस आचरण का क्या असर होगा।उसकी निगाह में समाज कुछ नही,सब कुछ उनकी पार्टी है।
लाइव बहस को देखते हुए लगता है कि यह  नेता अपनी पार्टी के लिए कितने  समर्पित हैं। कितनी मेहनत से गलत को सही और सही को गलत साबित करने में लगे हैं । मगर अगले दिन ही पता चलता है कि वो नेता जी ने पार्टी बदल ली ।और उसी पार्टी के सदस्य हो गए  जिसकी कुछ दिन पहले वह अपशब्द कह रहे थे। जब पत्रकार ने पूछा नेता जी आप आपका गमछा बदल गया। नेता जी बोले गमछे की क्या बात करते हो मैन पार्टी बदल ली। पत्रकार ने पूछा मगर क्यों ,नेता जी बोले मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है। आज से मैं इस पार्टी का एक जिम्मेदार सेवक हु। फिर क्या जो कल जिस पार्टी के लिए उस पार्टी को गाली दे रहे थे ,जिसमें आने के बाद वह पुरानी पार्टी को वही गली देने लगे।
पार्टियों के प्रचार शुरू हो चुके हैं। प्रत्येक दल जनता को ये भरोसा दिलाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि,इस बार उनकी पार्टी को वोट दो । समस्याओं को हल कर देंगे। ऐसे सपने दिखाए जाने लगे जो कभी पूरे नहीं होने वाले । बेचारा वोटर भी क्या करे जो ज्यादा सफाई से झूठे सपने दिखा देता है उसी को वोट दे देती है।
चुनाव के परिणाम के बाद एक बहुत बड़ा परिवर्तन आता है।जीवन स्तर में एक बड़ा बदलाव दिखता है,मगर जनता के नहीं ,नेता जी के जीवन स्तर में जो नेता पहले एक पुरानी कार से आते थे वोट मांगने वो एक बड़ी मंहगी कार में चलने  लगते है।साथ में उनके समर्थकों  का एक बड़ा हुजूम नेता जी की जयकार करता घूमता है। वो नेता जो हाथ जोड़ के वोट मांगते थे।  दर दर भटकटे दिखते थे जीतने के बाद अपने क्षेत्र में भी जाना  जरूरी नही समझते। जनता दरबार सजाते है। लोगों के पास न जाकर उसको आपने दरबार में बुलाते है। लेकिन लोग जिन्होंने उनको चुना उनसे पूछ नही पाते हैं कि यह बदलाव क्यों।

याद आता है बचपन का चुनावी माहौल

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Dr. Kamal Musaddi

प्रचार कर रही गाडियों के पीछे भागती बच्चों की टोलियाँ। एक एक बिल्ला पोस्टर के लिये बडी मशक्कत और चलती गाडी से फेंके गये पोस्टरों परचो का अगले दिन स्कूल मे प्रदर्शन। किस पार्टी का बिल्ला है इससे किसी बच्चे को कोई मतलब नही था हा जिसके पास जितनी अधिक सामग्री होती थी वही विजयी होता था।

समय बदला देश वही संविधान वही चुनाव वही। मगर तौर तरीके नायाब होते चले गये। व्यस्कता और मतदान का अधिकार 21वर्ष से घटा कर 18की उम्र कर दिया गया । बैलेट पेपर की जगह ई वी एम आ गयी। सब कुछ बदल गया आधुनिकता और ऊंचाइयों की ओर। फिर बदला क्या। नीति नही नियत और भाषा बदली। बचपन मेमाता पिता समझाते थे कि मिल जुल कर रहो पर मुझे याद है जिससे नहीं बनी वे कभी 36 के आंकड़े से निकल कर 63 नहीं हो पाए। थोड़ा बड़ी हुई तो शिक्षिकाओं ने समझाया पूरी कक्षा एक रहे फिर भी जब भी किसी बात को लेकर मुट्ठी बांधने की जरूरत पड़ी किसी न किसी उंगली का स्वाभिमान आड़े आ गया तो वो नहीं झुकी तो नहीं झुकी। नौकरी पर नजदीक से देखा कि सामूहिक चाय पर इकट्ठे तो सब हुए पर सभी की चाय की मिठास एक जैसी नहीं हुई। पर अब जब कि देश मे चुनाव हैं तो एकता के कई चमत्कार जीवन सूत्र बनाने की दीक्षा देरहे हैं। इस चुनाव ने गठबंधन की जो सीख दी है बेमिसाल है। ‘बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया’ कहावत ‘बाप बड़ा न चच्चा , कुर्सी का रिश्ता सबसे सच्चा ‘ हो गयी। काश ये उदाहरण बचपन मे भी देखने को मिले होते तो एक कम्पट के पीछे बिजुरी बहिनी से दोस्ती का रिश्ता न टूटा होता।
वैसे ये तो सच है ही कि जनता हर घटना को जल्दी भूलती है पर जो जनता की भीड़ से बाहर निकल कर नेता- नेती बन जाते हैं, वे छोटी छोटी बातें भी जी मे बसा कर रखते हैं। औरचुनाव में कुर्सी मिलती दिखे तो (बद) दुआ भी मुस्करा कर दुश्मन परिवार के काम के दूसरे तो छोड़िए (भ) तीजे को गले लगा कर खुद के लिए जिंदाबाद बोलने लगती है। काश की लोगों का निजी जीवन भी इतना ही सहिष्णु हो जाये तो हर कोईहाथी को केला खिला कर साइकिल से चारो धाम की परिक्रमा करने लगे। सोचिये तब शहर , प्रदेश और देश का वातावरण कितना शालीन, सहिष्नु माहौल हो जाएगा। लोग गलत कहते हैं कि ये चुनावी हथकंडे हैं, मेरी दृष्टि में तो ये सांस्कृतिक उदाहरण हैं जिसे समाज में अगरबत्ती के धुवें के साथ फैलाना चाहिए।

हमारी भाषा के मुहावरे और लोकोक्तियाँ सदा से एक जैसे चले आ रहे हैं। भाषाविद भी उन्हें नहीं बदल पाए पर चुनावी समीकरणों ने बहुत कुछ बदल दिया है। अब तो भाषा ही बदल रही है, मुहावरा है ‘एक पर एक’, इस चुनाव में ‘एक पर इक्कीस ‘ ही गया। कहावत है ‘सो जाओ, चौकीदार जाग रगा है’,इसे चुनाव में चौकीदार चोर है ‘ बनाने की कोशिश हो रही है। भाषा से ‘नामुमकिन ” शब्द गायब होता दिख रहा है। बुआ, बबुआ, बहिन जी, पप्पू, टीपू जैसे शब्दों के मायने ही बदल गए। असंख्य की सीमा से भी अधिक सर्व व्यापी ये शब्द “इकाई’ में सिमट रहे हैं। और उधर कोर्ट कचहरी और थानों तक सिमटा शब्द ‘ ‘सबूत ‘ सर्वव्यापी हो रहा है। ‘ गठबंधन’ तो बार बधू की शादी के मंडप से निकल कर आती लघु, लघु, क्षेत्रीय, रास्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों की झोपड़ियों से लेकर महलों के चक्कर लगा लगा कर हांफ रहा है।
ये चुनाव हमारी भाषा का इसी तरह नया व्याकरण गढ़ता रहा तो भाषा की शस्त्रीय व्याकरण ही बदलनी होगी।
काश लोकतंत्र के वाहक ये सोच सकते कि आज भी उनके प्रचार की गाडियों के पीछे बच्चों की टोली नीति नियत और संस्कार के बिल्ले बटोरती दौड़ रही है।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन

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Dr S. L. Yadav
अर्ध मत्स्येन्द्रासन –योगी मत्स्येन्द्रनाथ जी इसी पोजीशन में बैठा करते थे। उन्ही के नाम से इस आसन का नाम मत्स्येन्द्रासन रखा गया।  चूकि मत्स्येन्द्रासन करना मुश्किल हैं,इसलिए सरल करके इसे अर्ध मत्स्येन्द्रासन बनाया गया,जिससे मत्स्येन्द्रासन के लगभग समान लाभ अर्ध मत्स्येन्द्रासन से मिल सके।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन की बिधि –सबसे पहले किसी समतल जमीन पर योग मैट (चटाई ) बिछाकर बायें पैर को घुटने से पीछे मोड़कर गुदा द्वार की तरफ ले जाते हैं। उसके बाद दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर बायीं घुटने के बगल में पैर के पंजे रखते हैं। फिर पूरे बायें हाथ को सीने के पास लाकर काँख के हिस्से को दाहिने पाँव के घुटने के नीचे पैर के पंजे या टखने को पकड़ते है। दाहिने हाथ को पीठ के पीछे से लाकर नाभि छूने का प्रयास करते हैं या कमर के पीछे जमीन पर भी रख सकते हैं। चेहरे को भी दाहिने हाथ की तरफ घुमाकर गाल को कंधे से लगा देते हैं। सांसें सामान्य रखते हैं। यही दूसरी तरफ भी करना चाहिए। 1 -1 मिनट दोनों तरफ रोकने का प्रयास करते हैं।
 
अर्ध मत्स्येन्द्रासन  के लाभ –
  •  अर्ध मत्स्येन्द्रासन अत्यंत लाभकारी एवं सब प्रकार से अति उत्तम आसन है।
  • रोगों को दूर करने में यह आसन अत्यंत लाभकारी है।
  • समाधि के लिए कुण्डलिनी जागरण का काम करती हैं।
  • अर्ध मत्स्येन्द्रासन कूल्हे एवं रीढ़ की हड्डी को लचीला एवं मजबूत बनाता है।
  • यह आसन पेट के कीड़े को भी मार देते हैं।
  • डायबिटीज के लिए बहुत लाभकारी आसन है।
  • अर्ध मत्स्येन्द्रासन पेन्क्रियाज को सक्रिय  बनाते है।
  • घुटने की मांशपेशियों को लचीला बनाकर उन्हे मजबूत बनाते हैं।
  • पाचन क्रिया को मजबूत बनाकर कब्ज एवं गैस जैसी समस्याओ को दूर करते है।

सावधानियाँ  –मासिक धर्म एवं गर्भावस्था में इसे नहीं करना चाहिए। रीढ़ की हड्डी का आपरेशन हुआ हो तो 6 माह तक नहीं करना चाहिए। घुटने में जादा तकलीफ हो तो भी नहीं करना चाहिए। आसनो का अभ्यास किसी योग विशेषज्ञ की देख-रेख ही करना चाहिए।

Country suffered in its exports and imports

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Spin off effect due to global tariff war and the recent rise in crude oil- prices due to supply cuts have impacted country’s imports and exports. Besides, recently revoked GSP benefits by US on Indian products will further add to the woes of the Indian exporters in the coming months, observed by the President ofFederation of Indian Export Organisations (FIEO) Ganesh Kumar Gupta.

He however said that it was encouraging that the exporters managed to do well despite increasing protectionism, tough global conditions and constraints on the domestic front and had a nominal growth of 2.44 percent with exports of USD 26.67 billion during February.

He said the economies across Asia specially China and South East Asian nations have been showing signs of sluggishness with contraction in manufacturing due to slowdown in the global trade and fragile world economy.

Almost all labour-intensive sectors of exports during the month have moved into the negative territory including gems and jewellery, leather and leather products, plantation, handicrafts, carpets, jute manufacturing including floor covering, marine products etc. besides Petroleum, which also showed negative growth further pulling down the overall exports for the month, said Gupta.

He said 18 out of 30 major product groups were in positive territory, with most of them with marginal growth during the month. “However with this trend, we will be able to achieve merchandise exports of about USD 330 billion, the highest ever exports for a fiscal,” he claimed.

Imports during February, 2019 declined by 5.41 percent mainly due to decrease in imports of petroleum products, precious and semi precious stones, gold and silver, which further led down to the decline of exports from gems and jewellery and petroleum sectors. Besides imports of transport equipment and electronic goods were also down. All these sector of imports have also pulled down trade deficit to a low of about one and half years, said Gupta.

FIEO President reiterated the demand for urgent and immediate support including the issue of augmenting the flow of credit, higher tax deduction for R and D, outright exemption from GST, Online ITC refund, interest equalization support to agricultural exports, benefits on sales to foreign tourists and exemption from IGST under Advance Authorization Scheme with retrospective effect.

Besides these, budgetary support for marketing and exports related infrastructure are some of the other key issues, which needs to be looked into immediately, he added.

Get fresh vegetables through Tunnel Farming

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G.P.Varma

If you love to have fresh and fertilizer free vegetables every day go for Tunnel Farming at your house. This is the simplest method of growing vegetables even in homes without land, soil and use of fertilizer.

The tunnel farming is based on the idea of growing vegetables using hydroponics (A method of growing  plants without soil by using mineral nutrient solutions in a water solvents) as opposed to growing in soil.

According to an eminent scientist at the Indian Institute of Vegetable Research (IIVR) Hare Krishna the tunnel farming neither needed soil nor the fertilizer and it could be done in all seasons to grow fresh vegetables.

The tunnel framing is a viable solution to the scarcity of land. It would also ensure the supply of fresh and fertilizer free vegetables. The nutrient mixture contains all necessary ingredients needed for vegetables. There is no need of adding fertilizer for growing them. More so, anyone can use this system for growing vegetables at ones house.

Under this system of farming one would have to buy a mixture of more than eighteen nutrients is used which is available on line. The mineral mixed with water would be required to be put in pipes. The pipes could easily be placed either at the roof tops or in the balconies of the house.

The farming is a boon for the cities where green and fresh vegetables were not easily available and one has to pay higher price for buying only the stored vegetables and not for the fresh vegetables.

वीरासन (हनुमान आसन)

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Dr. S.L. YADAV
इस आसन का आकार वीर योद्धाओं के समान होने के कारण इसे वीरासन के नाम से जाना जाता है।  वीरासन बिभिन्न तरह से किया जाता है। चूँकि जादातर हनुमान जी को इसी मुद्रा में देखा गया है,इसलिए इसे “हनुमान आसन” भी कहा जाता है। 
बिधि –सबसे पहले किसी समतल जमीन पर योग मैट (चटाई ) बिछाकर दोनों पैरों को मिलाकर खड़े होकर दायें पैर को सामने फैलाकर उसे 90अंस पर मोड़कर बायें  पैर के पंजे को चित्रानुसार पीछे की तरफ खींचकर रखते है और घुटने सीधा रखते हैं। अब जो पैर आगे वही हाथ मुट्ठी बंद करके कन्धे के सीध में रखते हैं। और दूसरे हाथ की मुट्ठी बन्द करके सीने के सामने रखते है। निगाहें सामने मुट्ठी की तरफ हो साँसे सामान्य हो चेहरे पर मुस्कुराहट बनाये रखे। यथासंभव या 1 से 2 मिनट रोककर वापस आ जाते हैं। इसे दूसरे पैर के साथ भी करते है। वीरासन  एक पैर से दो बार कर सकते हैं। इसे लक्ष्मण आसन के नाम से भी जाना जाता है।
 
लाभ –
  • वीरासन साहस ,धैर्य और शक्ति प्रदान करता है।
  • यह आसन शरीर को असीम बल प्रदान करता है।
  • आलस्य को दूर करने का सबसे अच्छा आसन है।
  • अतिनिद्रा (नींद जादा आना) वालो को यह आसन जरूर करना चाहिए।
  • जोड़ो को मजबूत बनाकर उन्हें दर्द से बचाते है।
  • वीरासन वीर्य बिकार को दूर करता है।
  • इसके अभ्यास से कमर पतली एवं सीना चौड़ा होता है।
  • हाथो ,पैरों  एवं जंघाओं को अतयन्त बलवान बनाता है।
  • यह आसन धनुर्विद्या (निशाने बाज) सीखने वालो को जरूर करना चाहिए।
  • मन एकाग्र करके शरीर को स्थिरता प्रदान करते है।
  • वीरासन का रोजाना अभ्यास निर्भीकता प्रदान करता है।
  • साइटिका की समस्या में आराम मिलता है।

सावधानियाँ  – घुटने की जादा तकलीफ हो तो इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

आसनो का पूरा लाभ पाने लिए किसी योग्य योग चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए।

They are not dacoits now!

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Those who were known as dreaded dacoit kings and queens are now in the social stream. They are regarded as the most simple and helping people in the areas they live.

They say that they were simple people. They never liked to live in ravines and to lead a life under terror in ravines. But their circumstance forced them to take up guns to take avenge.

Renu Yadav a resident of Jamalipur village in Auryyia district of Uttar Pradesh (India) had to take up guns at the age of fourteen years. She remembers she had passed class ninth and was promoted to class tenth. But she could not pursue her studies. Due to enmity in the village and threats to her by the musclemen she stopped going to school and later she joined ravines in 2002 to take avenge from the musclemen.

She was arrested in 2005 and was sentenced for eight years. After her release in the year 2013, she got married and is living with her husband in her in-laws house Raja janmeyjay Nagar. She is now a successful house wife in a happy family.

A thirteen year old girl of Ayana village of Aurrayia Seema Parihar turned into a dreaded dacoit after her kidnapping by the members of the Dacoit Lalaram gang. Seema’s father had a small village shop. She had three sisters.

The village head Gambhir Singh used to force her father to get his wife and his three daughters married to one of the members of a Thakur family. Her father refused to accept his proposal. This annoyed the village head and he got her kidnapped by the members of the dreaded dacoit gang of Lala Ram.in the night.

Her father approached police and the district authorities for action against the kidnappers and to get here released but he was rebuked and was forced to keep silent, said Seema.

Lalaram threatened her of dire consequences if she ever ventured to escape. He had made it clear that she would be murdered if she refused to stay in the ravines. After eighteen months she came to know that her parents were sentenced to imprisonment in a fabricated case against them and her parental house was also auctioned.

Meanwhile she was forcibly married to dacoit Nirbhay Gujar whom she expelled from the gang on the complaints against him. Later. Lalaram himself married her. As she came to know that she was pregnant she was sent to city for delivery. In 2000 when Lalaram was killed in a police encounter, she surrendered.

Deepak Patel of Chitrakoot joined the ravines. According to him his elder brother Ambika Prasad Patel alias Thekiya was a dacoit and in order to get information about him often the police raided the house and harassed the family members.

His father Ram Swroop Patel sent him to one of his relatives in Rai Bareli while he was only seven years old. He was admitted to a school there. While he was just thirteen years the police rrested aand kept me under its custody for about six months.

Somehow he escaped from the police custody. The Government declared him as a dreaded dacoit and announced an award of rupees seventy thousand for his arrest. He kept on moving from one place to another due to police action.

In the year 2008 when his brother was killed in an encounter, he surrendered in 2009. “Since then I am doing farming and leading a normal life,” he said.

सोशल मीडिया : कितना सच कितना झूठ

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Pankaj Bajpai

विश्व आज संचार क्रांति के शिखर को छूने को आतुर है। विज्ञान में नित नए प्रयोग कर हमारे संचार तंत्र को तेज और सरल बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

विश्व के अन्य देशों के जैसे सूचना को गति प्रदान करने के लिए तेज इंटरनेट और उच्च कोटि की संचार व्यवस्था को प्राथमिकता के साथ स्थापित किया गया व भविष्य में सुधार के नित नए संसाधनों का उपयोग किया जाएगा।

सूचना संचार आज आपने नए प्रारूप में सोशल मीडिया के नाम से जाना जाता है।इसकी विभिन्न शाखाएं है जैसे -फेसबुक,व्हटाप्प,मैसेंजर, ट्वीटर व न्यूज़ एप्प। इन सभी माध्यमों से सूचना का आदान प्रदान बहुत आसानी से किया जा रहा है।किसी भी सूचना को एक साथ बहुत से लोगों तक भेजा जा सकता है।

इतनी उत्तम व्यवस्था को आज कुछ लोगो ने इसके द्वारा भेजी जा रही सूचना को उसकी प्रमाणिकता को ही खतरे में डाल दिया है। किसी भी घटना को किसी भी घटना से जोड़ कर समाज की समरसता को भी बिगाड़ दिया जा रहा है।

फेसबुक पर कुछ लोग देश के महापुरषों ,वैज्ञानिकों ,प्रधानमंती व राष्ट्रपति जैसे सम्मानित लोगो पर अभद्र टिप्णी करने से फेसबुक को आजादी की अभिव्यक्ति का साधन मां लिया है। अगर फेस बुक का सही से उपयोग किया जाए तो यह सबसे अच्छा साधन है सूचना तंत्र का।

Whatapp आप युवा वर्ग में खासा पैठ रखता है। इसका उपयोग अपने नोट्स को आदान प्रदान करने के बजाय वो इसके माध्यम से अश्लील चित्र और वीडियो व फेक न्यूज़ का आदान प्रदान कर रहे है। इसी तरह की फेक न्यूज़ को इस प्रकार से edit कर दिया जाता है कि कई बार साम्प्रदायिक माहौल ही खराब हो जाता है।

सरकार को सोशल मीडिया पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है।कुछ ऐसा निगरानी तंत्र बनाया जाए जिससे कोई भी इसका दुरुपयोग करने पर आसानी के पकड़ा जाये।और अफवाह फैलाने से रोकी जा सके। अगर सही समय पर कोई कोई उचित कदम नही लिया गया तो ,सोशल मीडिया अपनी विश्वनीयता को खो देगा।जो कि आने वाली पीढ़ी के लिए सही नही।।

पानी राखिए, बिनु पानी सब सून

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‘रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून,पानी बिना ऊबरै मोती, मानुष, चून’

Dr. Suresh Awasthi

दोहा रचते हुए महाकवि रहीमदास ने कभी नहीं सोचा होगा कि किसी दिन यह शहर पीने के एक एक बूंद पानी को तरसेगा। वैसे पानी एक समाजवादी स्वभाव की वस्तु है तो अमीर, गरीब,अभिजात्य व निम्न वर्ग सभी की प्यास को एक भाव व भावना के साथ बुझाता है। कपड़े किसी के भी हों, समभाव से धोता है परंतु उसकी पहुंच मार्ग में इतनी ज्यादा और गहरी खाईं खुद गयीं हैं कि अब अमीरों के बंगलों में पेड़ पौधों को सींचने, जानवरों को नहलाने व फर्स की धुलाई पर अधिक खर्च होता है, गरीबों की प्यास बुझाने पर कम। किसी फिल्म में के एक गाने में सवाल उठाया गया था कि ‘पानी रे पानी तेरा रंग कैसा’, जवाब आया था ‘जिसमें मिला दो उस जैसा’। सही भी है, जहां पानी है वहां के लोगों की रंगबाजी अलग तरह की है और जहां नहीं है, वहां के लोगों का पानी उतरा हुआ है।

पावन गंगा के तट पर हाथ जोड़ कर खड़े लोग भी अगर प्यासे रहें तो या तो गंगा की धार में पानी नहीं है या फिर प्यासों लोगों का भाग्य खराब है? जी हां, शहर का भाग्य ही खराब है कि यहां का जलकल हमेशा जल कल देने का वादा करता है और कल कभी आता नहीं। पानी टंकियां हैं परंतु उसमें पानी कम कीचड़ ज्यादा है। बड़े घरों के सबमर्सिबल पड़ोस की कालोनियों के हैंडपंप का पानी सोख गए हैं। कोठियों की नालियां भी कागज की नावें चलाने जितनी लबालब है पर कमजोरों के घड़ों के गले भी सूखे हुए हैं। न कोई योजना है न कोई भविष्य। न किसी को चिंता है और न किसी का वादा पर है तो हाय, हो हल्ला और अरण्य रुदन। किसी को पीने के लिए टिस्ट्रल वाटर मुहैया है तो किसी को घाव धोने के लिए भी साफ पानी नहीं मिलता। पानी की रंगबाजी भी अजब गजब है। आंख में हो तो क्या कहने? ‘आँख का पानी’ मर जाये तो फिर कुछ और ही होता है। किसी के चेहरे का पानी उतर जाए तो बेचारा उदास हो जाए। पानी सिर चढ़ कर बोले तो फिर आवाज गहरी हो जाती है।

किसी योजना पर पानी फिरे तो उसकी स्थिति शहर की जल व्यवस्था जैसी हो जाती है। कोई ज्यादा पानीदार हो तो मुसीबत, न पानीदार हो तो भी संकट। किसी के सामने कोई पानी पानी हो जाए तो बेचारे की प्रतिष्ठा पर संकट। किसी का

पानी उतार से तो दुश्मनी। किसी घर में पानी की किल्लत हो तो फिर समझिए उसकी स्थिति अपने शहर की तरह होती है। कुछ लोग पानी छान कर तो कुछ जानकर, कुछ पहचान कर पीते हैं पर हम तब पिएं जब हो। पानी के मामले में शहर की स्थिति उस गरीब की तरह है कि वह क्या धोए और क्या निचोड़े? लोग सही कहते हैं कि शहर में तमाम लोग पानी के बदले में तेजाब पी रहे हैं। प्यास है ही ऐसी चीज कि पानी के नाम पर जो मिल जाए पीना पड़ता है।

अशुद्ध पेयजल की बीमारियों से निकट का रिश्ता है। पानी की बदमिजाजी का ही प्रतिफल है कि शहर में किडनी हेल्थ की चिंता करने वाले कई सेंटर खुल गए हैं जो शरीर को इतना महंगा पानी दे रहे हैं कि तमाम बीमारों के घरों के चूल्हे ठंडे होते जा रहे हैं। कभी यहां का कड़ा पानी है कहते गर्व महसूस होता था पर अब शर्म आती है। काश, खुद को हम इस शर्मनाक संवाद से उबार कर गर्व करने वाले संवाद पानी से पानी तेरा रंग वैसा, हम बना दें तुझे बस वैसा से जोड़ सकें। काश ऐसा हो..?

ओस चाट सीचें अधर,
बोलें सागर बोल।
छप छैया बीमार है
कैसे करे किलोल।

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