वीरासन (हनुमान आसन)

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Dr. S.L. YADAV
इस आसन का आकार वीर योद्धाओं के समान होने के कारण इसे वीरासन के नाम से जाना जाता है।  वीरासन बिभिन्न तरह से किया जाता है। चूँकि जादातर हनुमान जी को इसी मुद्रा में देखा गया है,इसलिए इसे “हनुमान आसन” भी कहा जाता है। 
बिधि –सबसे पहले किसी समतल जमीन पर योग मैट (चटाई ) बिछाकर दोनों पैरों को मिलाकर खड़े होकर दायें पैर को सामने फैलाकर उसे 90अंस पर मोड़कर बायें  पैर के पंजे को चित्रानुसार पीछे की तरफ खींचकर रखते है और घुटने सीधा रखते हैं। अब जो पैर आगे वही हाथ मुट्ठी बंद करके कन्धे के सीध में रखते हैं। और दूसरे हाथ की मुट्ठी बन्द करके सीने के सामने रखते है। निगाहें सामने मुट्ठी की तरफ हो साँसे सामान्य हो चेहरे पर मुस्कुराहट बनाये रखे। यथासंभव या 1 से 2 मिनट रोककर वापस आ जाते हैं। इसे दूसरे पैर के साथ भी करते है। वीरासन  एक पैर से दो बार कर सकते हैं। इसे लक्ष्मण आसन के नाम से भी जाना जाता है।
 
लाभ –
  • वीरासन साहस ,धैर्य और शक्ति प्रदान करता है।
  • यह आसन शरीर को असीम बल प्रदान करता है।
  • आलस्य को दूर करने का सबसे अच्छा आसन है।
  • अतिनिद्रा (नींद जादा आना) वालो को यह आसन जरूर करना चाहिए।
  • जोड़ो को मजबूत बनाकर उन्हें दर्द से बचाते है।
  • वीरासन वीर्य बिकार को दूर करता है।
  • इसके अभ्यास से कमर पतली एवं सीना चौड़ा होता है।
  • हाथो ,पैरों  एवं जंघाओं को अतयन्त बलवान बनाता है।
  • यह आसन धनुर्विद्या (निशाने बाज) सीखने वालो को जरूर करना चाहिए।
  • मन एकाग्र करके शरीर को स्थिरता प्रदान करते है।
  • वीरासन का रोजाना अभ्यास निर्भीकता प्रदान करता है।
  • साइटिका की समस्या में आराम मिलता है।

सावधानियाँ  – घुटने की जादा तकलीफ हो तो इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

आसनो का पूरा लाभ पाने लिए किसी योग्य योग चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए।

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