राजनेताओं ने एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के लिए जिस तरह से कुछ शब्दों का घटिया प्रयोग किया, तमाम शब्दों को अपने ऊपर अस्तित्व संकट नज़र आने लगा। अंततः इन शब्दों ने भाषा संघ से गुहार लगाई तो भाषा संघ ने हिंदी की अध्यक्षता में उनका एक सम्मेलन बुलाया। हिंदी की अध्यक्षता में शुरू हुये शब्द सम्मेलन में पहले कहा गया कि देश में लोक सभा के चुनाव नजदीक हैं इसलिए तय है कि भाषा की आचार संहिता को अचार संहिता मानने वाले नेता हम शब्दों का मनमाना प्रयोग करके न केवल हमें बल्कि हमारी जननी भाषा को अपमानित करेंगे। इसलिए हमें संगठित हो जाना चाहिए। सम्मेलन में अब बारी थी शब्दों को अपनी व्यथा व्यक्त करने की। सबसे पहले ‘चौकीदार’ शब्द बोला, ‘वैसे तो मानव समाज में मुझे हमेशा एक जिम्मेदार व्यक्तित्व के रूप में देखा गया किन्तु जब भी मुझे क्रिया रूप में अर्थात चौकीदारी बनाया तो हर किसी ने हिकारत की नज़र से देखा। यही कारण है कि मेरा कभी प्रमोशन नहीं हो पाया। पिछले सालों देश की एक खास शख्सियत ने जब मुझे अपनाते हुए खुद को ‘चौकीदार’ कहा तो मेरा सम्मान बढ़ा। तब से मैं बेहद खुश था पर इधर जब से मेरे साथ चोर विशेषण जोड़ कर एक शख्सियत ने सरेआम ‘चौकीदार चोर है’ कहना शुरू किया तबसे मन बहुत दुखी है।
‘बात चाहे सरकार की हो या मंत्रालय की, बात चाहे किसी व्यक्ति की हो या पद की उसके आगे कोई चोर लगाये कोई बात नहीं पर मेरे आगे ‘चोर’ शब्द लगा मेरी साख पर कालिख क्यों पोती जा रही है? देश में इतने मंत्रियों, नेताओं, जमाखोरों, दलालों ने चोरी की और कर रहे हैं। उनके साथ ‘चोर’ लगाया जाए। मुझे खुशी होगी।पर हम ईमानदारों के साथ ‘चोर’ लगाना, गाली देने से कम नहीं है। मुझे इनसे बचाओ।‘ ‘चोर’ शब्द का दर्द छलका तो ‘नीच’ शब्द भी उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘पिछले दिनों जिस तरह से मुझे अपमानित किया गया, मैं आज तक रो रहा हूं। कुछ बड़बोले राजनेता तो जैसे मेरा अर्थ ही नहीं जानते। जिसके साथ मन करता, बिना सोचे समझे जोड़ देते हैं। खल, दुष्ट, लूटपाट करने वाला, बलात्कारी, हत्यारा जैसों के साथ मुझे जोड़ा जाए तो पीड़ा नहीं होती परंतु जनता ने जिसे नायक, महानायक या लायक चुना हो उसके साथ जोड़ दिया जाए तो मेरे सामने अस्तित्व संकट पैदा हो जाता है। मेरी रक्षा की जाए मातश्री !’
बेहद उदास ‘नीच’ शब्द गरदन झुका कर बैठ गया तो ‘साम्प्रदायिक’ शब्द उठ कर खड़ा हो गया, बोला, ‘ माताश्री जब से देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई है मुझे बहुत ही सताया जा रहा है। चुनाव में कभी मुझे साम्प्रदायिकता का स्वरूप देकर तो कभी किसी और रूप में बार बार प्रयोग किया गया है। मुझे इतना घिसा गया कि मेरा अर्थ ही बदल गया। मुझे धर्म से इस कदर जोड़ा कि लोग व समाज तो छोडिए पशु, रंग व महापुरुषों तक का बंटवारा हो गया। तब से मेरे आंसू हैं कि सूखने का नाम ही नहीं ले रहे। मेरी रक्षा कीजिए माँ !’
इसी तरह से ‘कमीना’, ‘पप्पू’, ‘छोड़ू’, ‘लफ्फाज’, ‘हत्यारा’, ‘दंगा’, ‘गौरक्षक’, ‘घोटाला’, ‘बड़बोला’, ‘धोखेबाज’, ‘दलित’ जैसे तमाम शब्दों ने भी अपनी अपनी पीड़ा व्यक्त की।
इसी बीच कहीं से ढेंचू ढेंचू की आवाज़ सुनाई पड़ी। सभी शब्दों के कान खड़े हो गये। एक गधा बेहद गुस्से में अंदर घुसा और बोला, ‘शब्द भाइयों पिछले चुनाव में मुझे यूपी से लेकर गुजरात तक जिस तरह से बदनाम किया गया है मैं अभी तक दुखी हूं। डरा हुआ हूं कि कहीं मुझे फिर से न घिसा जाये?’
अचानक भौं भौं करते हुए श्वानश्री ने प्रवेश किया और चीख कर बोला, ‘मेरी तो पूरी कौम की ही इज्जत, उतारी गयी। इतना क्रोध आता है कि मन करता है कि कुछ को भभोड़ खाऊँ।’
सम्मेलन की अध्यक्ष हिंदी मां श्री ने सभी को ध्यान से सुना और अंत में सबको संबोधित करते हुए कहा, ‘मेरी प्यारी संतानों शब्द जनों आप सभी की पीड़ा जायज़ है किंतु इन दिनों लोकतंत्र की जीवनदायिनी सांस ‘राजनीति’ के जिस वातावरण में हमें जीना पड़ रहा है, उसमें सभी को ‘संयम’ शब्द के साथ रहना होगा।
लोकसभा चुनाव निकट हैं, तमाम राजनेता वाणी संयम खो रहे हैं। आप में से किसी भी शब्द को किसी पर झोंक सकते हैं। इसे मैं रोक पाने में समर्थ नहीं हूं क्योंकि आजादी के 70 साल बाद भी मुझे अभी राजभाषा का संबोधन दिया जा रहा है जबकि राष्ट्रभाषा का संबोधन मिलना चाहिए था। जब मैं अपना ही सम्मान नहीं बचा पा रही हूं तो आप शब्दों की कितनी और कैसे मदद कर सकती हूं। जनता जिनके बीच आप सभी हर रोज़ रहते हो, सब समझती है। समय आएगा जब आप सभी को आधिकारिक मान सम्मान मिलेगा। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं। सहो और खामोश रहो और ‘गिरावट’ शब्द की ओर देखो कि उसे ये राजनेता कितना और नीचे ले जाते हैं।
-डॉ सुरेश अवस्थी
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