पानी राखिए, बिनु पानी सब सून

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‘रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून,पानी बिना ऊबरै मोती, मानुष, चून’

Dr. Suresh Awasthi

दोहा रचते हुए महाकवि रहीमदास ने कभी नहीं सोचा होगा कि किसी दिन यह शहर पीने के एक एक बूंद पानी को तरसेगा। वैसे पानी एक समाजवादी स्वभाव की वस्तु है तो अमीर, गरीब,अभिजात्य व निम्न वर्ग सभी की प्यास को एक भाव व भावना के साथ बुझाता है। कपड़े किसी के भी हों, समभाव से धोता है परंतु उसकी पहुंच मार्ग में इतनी ज्यादा और गहरी खाईं खुद गयीं हैं कि अब अमीरों के बंगलों में पेड़ पौधों को सींचने, जानवरों को नहलाने व फर्स की धुलाई पर अधिक खर्च होता है, गरीबों की प्यास बुझाने पर कम। किसी फिल्म में के एक गाने में सवाल उठाया गया था कि ‘पानी रे पानी तेरा रंग कैसा’, जवाब आया था ‘जिसमें मिला दो उस जैसा’। सही भी है, जहां पानी है वहां के लोगों की रंगबाजी अलग तरह की है और जहां नहीं है, वहां के लोगों का पानी उतरा हुआ है।

पावन गंगा के तट पर हाथ जोड़ कर खड़े लोग भी अगर प्यासे रहें तो या तो गंगा की धार में पानी नहीं है या फिर प्यासों लोगों का भाग्य खराब है? जी हां, शहर का भाग्य ही खराब है कि यहां का जलकल हमेशा जल कल देने का वादा करता है और कल कभी आता नहीं। पानी टंकियां हैं परंतु उसमें पानी कम कीचड़ ज्यादा है। बड़े घरों के सबमर्सिबल पड़ोस की कालोनियों के हैंडपंप का पानी सोख गए हैं। कोठियों की नालियां भी कागज की नावें चलाने जितनी लबालब है पर कमजोरों के घड़ों के गले भी सूखे हुए हैं। न कोई योजना है न कोई भविष्य। न किसी को चिंता है और न किसी का वादा पर है तो हाय, हो हल्ला और अरण्य रुदन। किसी को पीने के लिए टिस्ट्रल वाटर मुहैया है तो किसी को घाव धोने के लिए भी साफ पानी नहीं मिलता। पानी की रंगबाजी भी अजब गजब है। आंख में हो तो क्या कहने? ‘आँख का पानी’ मर जाये तो फिर कुछ और ही होता है। किसी के चेहरे का पानी उतर जाए तो बेचारा उदास हो जाए। पानी सिर चढ़ कर बोले तो फिर आवाज गहरी हो जाती है।

किसी योजना पर पानी फिरे तो उसकी स्थिति शहर की जल व्यवस्था जैसी हो जाती है। कोई ज्यादा पानीदार हो तो मुसीबत, न पानीदार हो तो भी संकट। किसी के सामने कोई पानी पानी हो जाए तो बेचारे की प्रतिष्ठा पर संकट। किसी का

पानी उतार से तो दुश्मनी। किसी घर में पानी की किल्लत हो तो फिर समझिए उसकी स्थिति अपने शहर की तरह होती है। कुछ लोग पानी छान कर तो कुछ जानकर, कुछ पहचान कर पीते हैं पर हम तब पिएं जब हो। पानी के मामले में शहर की स्थिति उस गरीब की तरह है कि वह क्या धोए और क्या निचोड़े? लोग सही कहते हैं कि शहर में तमाम लोग पानी के बदले में तेजाब पी रहे हैं। प्यास है ही ऐसी चीज कि पानी के नाम पर जो मिल जाए पीना पड़ता है।

अशुद्ध पेयजल की बीमारियों से निकट का रिश्ता है। पानी की बदमिजाजी का ही प्रतिफल है कि शहर में किडनी हेल्थ की चिंता करने वाले कई सेंटर खुल गए हैं जो शरीर को इतना महंगा पानी दे रहे हैं कि तमाम बीमारों के घरों के चूल्हे ठंडे होते जा रहे हैं। कभी यहां का कड़ा पानी है कहते गर्व महसूस होता था पर अब शर्म आती है। काश, खुद को हम इस शर्मनाक संवाद से उबार कर गर्व करने वाले संवाद पानी से पानी तेरा रंग वैसा, हम बना दें तुझे बस वैसा से जोड़ सकें। काश ऐसा हो..?

ओस चाट सीचें अधर,
बोलें सागर बोल।
छप छैया बीमार है
कैसे करे किलोल।