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यूज एंड थ्रो

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Dr. Suresh Awasthi

जरूरतों की जमीन पर
स्वार्थ की खाद और
छल प्रपंच के पानी से
आज कल
ये संस्क्रति तेजी से
कर रही है ग्रो
नाम है:
यूज एंड थ्रो
अर्थात :
रिश्तों की सेहत
प्रेम और विस्वास की
आंच पर मत सेंको
जब, जैसी जरूरत हो
यूज करो, कूड़े में फेंको।

शब्द सामर्थ्य…

ये जो शब्द है न
वो चिंरजीवी, अक्षुण्य
अपराजेय होता है
किसी से नहीं डरता है
कितनी ही बार प्रयोग कर लो
किसी सिक्के की तरह
घिसता भी नहीं, न ही मरता है।
अपनी पूरी पूरी
कीमत अदा करता है
हम हर रोज कितनों को
भाई साहब, बहिन जी कहते हैं
ये संवोधन फिर भी हमेशा
तरोताज़ा रहते हैं
अपने पर उतर आएं तो शब्द
एक गाली में ढल कर
एक साथ
कितनों को निपटा सकते हैं
बाबू, जानू, जान, जानम
जैसे शब्द कितनों को एक साथ
पटा सकते हैं
जो लोग भी
शब्दों को सही तरीके से
संभाल पाते हैं
वो ही शब्द सामर्थ्य से
अपने काम निकाल पाते हैं
शब्द फिर भी
थकते नहीं
दूसरों का जी पका देते
पर खुद हैं कि
पकते नहीं।

सोच बदलें,जीवन बदलें

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Pankaj Bajpai

व्यक्ति यदि अपने विकास में स्वयं के महत्त्व को मूल रूप से अंगीकृत कर ले तो वह जीवन मे सफलता की सीढ़ियां आसानी से चढ़ वसक्ता है। मनुष्य में असीम ,अनन्त शक्ति है,जिसका सही सोच से,सही दिशा में,जिसने उपयोग किया है,वह ” जो चाहा वह पाया”जैसी उक्ति को चरितार्थ कर अपने लक्ष्य पर विजय प्राप्त कर सकता है।

मैं बहुत पढ़ने के बाद कम अंक लाता और निराश हो जाता था,किसी प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान पर आता और निराश हो जाता था,तो मेरी माँ सदैव मुझमें ऊर्जा का संचार करने के लिए ,मुझे उत्साहितवकर फिर प्रयास करने की प्रेरणा देने के लिए कहा करती थीं,” मन के हारे हार है,मन के जीते जीत” अर्थात जो अपने मन से हार मान लेता है,वह हमेशा हार का मुंह देखेगा,किंतु जिसने अपने मन में ठान लिया कि जीतना है,वह विजय प्राप्त करके ही रहता है।

लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी ऊर्जा को केंद्रित करें।सारी ऊर्जा जब एक जगह एकत्र हो जाती है,तब किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने की पूरी शक्ति मिल जाती है।यह आपके अंदर उत्साह,जोश और जुनून का संचार करती है। इनके द्वारा आप किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकते है।आप अपनी ऊर्जा को इस तरह केंद्रित करें ,जैसे कोई स्टूडेंड काँटेक्स लेंस के फोकस को दूर रखें कागज के टुकड़े पर करता है और कागज बिना आग के भी जलने लगता है।

अधिकांश लोगों में ये कमी पाई जाती है कि वह लक्ष्य निश्चित करने के बाद भी अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं।कुछ लोग अपने अंदर उत्त्पन्न डर की वजह से ऐसा करते हैं।मन मे उत्तपन्न डर उन्हे लक्ष्य से से ध्यान भटका देती है,जो लक्ष्य तय करते हैं,उस तक नही पहुँच पाते हैं,मन में डर को स्थान न दें।

कुछ लोग दूसरों की बातों के बहकावे में आकर अपबे लक्ष्य से भटक जाते हैं।आने द्वारा निर्धारित लक्ष्य तक नही पहुच पाते हैं।लक्ष्य निश्चित करने के बाद भी भटक जाते है।जिनके जीवन का हर छोटा-बढ़ा फैसला कोई दूसरा करता है,वे दूसरे लोगों के बहकावे में आकर अपबे लक्ष्य से भटक जाते हैं।

ऐसे लोग कभी सफल नही हो सकते ,क्योंकि जब कभी भी वे नए लक्ष्य को लेकर अपना काम शुरू करेंगे,फिर से कोई दूसरा उन्हे दिग्भ्रमित कर देगा और वे फिर शून्य से शुरु होकर शून्य पर ही समाप्त हो जाते हैं।

पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में नौकरी के प्रति द्रष्टिकोण बहुत बदला है।जहां ,पहले बेहतरीन अंक अच्छी नौकरी और सुनहरे भविष्य का आधार माने जाते थे।वहीं अब कम अंक वाले युवाओं को भी अपना भविष्य संवारने में दिक्कत नही हो रही ,बल्कि यह समझ लें-हुनर ,अच्छे व्यवहार और अपबे काम के प्रति समर्पण रखने वाले उनसे कहीं आगे निकल जाते हैं।

कम अंक आने पर घोर निराशा की बजाय उसे सामान्य तौर पर लेना चाहिए।आजकल काम के ऐसे अनेक रास्ते खुल गए हैं,जिसमें भविष्य में आगे बढ़ने के बहुत से अवसर हैं।नौकरी के लिए आजकल बड़ी-बड़ी डिग्री से ज्यादा नयी-नयी सोच की अधिक आवश्यकता है।

मनुष्य में सृजन की ईस्वर -प्रदत्ता शक्ति है,जिसके द्वारा वह जीवन में अनेक नए आयामों को सृजित कर सकता है,पर जिंदगी भर ,किंतु परंतु और अदृश्य भय उसे नवाचार के प्रति कदम-दर-कदम भयाक्रांत करते हुए उसकी सोच को कुंठित कर निराशा और हताशा से भर देती हैं।जीवन सुंदर और सरल है,व्यर्थ की भ्रांतियां हमारे प्रयासों में व्यवधान बन हमें सफलता से दूर ले जाती हैं।हमारी सोच को गलत दिशा में ले जाकर असफलता के गर्त में धकेल देती हैं।

जीवन में सफल होने का सबसे सरल मंत्र है,”अपनी सोच को बदल दें।आपका जीवन बदल जाएगा”।

देह नहीं जज्बे को जनती है-सैनिक की माँ

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Dr. Kamal Musaddi

एक धमाका पुलवामा में हुआ और पूरा देश थर्रा गया।रोटी बिलखती चीत्कार करती खबरें और आक्रोशित जनमानस ।हर देश भक्त की भृकुटियों में बल और मुट्ठी में कसाव।चारों तरफ नारे जुलूस ,कैंडिल मार्च और श्रद्धांजलि सभाओं का सिलसिला शुरू ।युवा सड़कों पर उतर आए प्रौढ़ पान की दुकानों ,बाजारों और मित्र मण्डली में अपने अपने तर्क रखने लगे ।हर व्यक्ति सरकार का मार्गदर्शक बनने की योग्यता का प्रदर्शन करता स्वयं के सुझाव को सर्वोपरि मानकर संतोष का अनुभव करता हुआ।बुजुर्ग बुद्धू बक्से के सामने बैठ कर कभी शहीदों के विलाप करते करते परिवार को देखकर चश्मा उतार कर आसूं पोछते। कभी इस बात से बेपरवाह कि उन्हें कोई सुन भी रहा है या नही बड़बड़ाहट की मुद्रा में स्वयं से बात करते ।उनकी बड़बड़ाहट का सिरा 1947 की आजादी ,देश के बंटवारे और धारा 370 पर टिकी होती।

एक अजीब दर्द आकोश और संभावनाओं का वातावरण चारों ओर बन गया ।मैं स्वयं भी दिन में कई-कई बार रोती ,कभी ताबूत चूमती पत्नी को देखकर कभी छाती पीटती माँ देखकर ,कभी दाँत पीसते भाई को देखकर और कभी झुके कंधे और होटों में दबी सिसकी को छुपा कर बहादुर और देश भक्त होने का विश्वास दिलाते पिता को देखकर ।

मन उद्धिग्न से हो गया तो सोचा थोड़ा घर से बाहर निकलू कुछ कदम चली तो देखा नहर किनारे बसी मलिन बस्ती के बच्चे युवा युवतियां सब हाथों में देश का ध्वज लेकर भारत माता की जय ,वंदे मातरम और पाकिस्तान मुर्दाबाद कब नारे लगाते आगे बढ़ रहे हैं।अपनी देश भक्क्ति के के जोश में उन्होंने पूरा रोड जाम कर रखा था।

चारों तरफ संवेदनाओं के उबाल को देखकर कोई भी संवेदनशील बुद्धिजीवी यह सोचने को विवश हो सकता था कि ये भक्क्ति है या जुनून या फिर मात्र प्रदर्शन ।बहरहाल जो भी है मगर घटना से देश का बच्चा -बच्चा जुड़ गया था।अमीर -गरीब गाव – शहर ,शिक्षित-अशिक्षित सब।हर तरफ से पाकिस्तान मुर्दाबाद की आवाजें और देश के प्रति जुनूनी आवाज “वंदेमातरम”,भारत माता की जय का उदघोष।

मेरी संवेदना और सोच रहा-रह कर सरकार के फैसलों पर जाती । प्रतीक्षा थी कि आखिर अव क्या फ़ैसले होते हैं ।सेना पर कायराना हमला क्या देश की अस्मिता पर हमला नही ।सवाल ये भी था कि जब तक कोई अपना सम्मिलित नही हो तब तक ऐसी घटनाएं नही हो सकती। सोच निराधार नही इतिहास गवाह है।घर के भेदियों ने राष्ट्रों की तकदीर बदल है।मगर मजबूत ईक्षाशक्ति ने ऐसे जयचंदों को पराजित भी किया है।

बहरहाल एक माँ अपबे कलेजे के टुकड़े को जब शियाचीन और 0 point तक कलेजे पर पत्थर रख कर भेजती है ,तो उनकी धमनियों में खून जम जाता होगा ।जो मां अपने लाडले को पल भर के लिए भी गीले में न लेटने देती हो रात -रात भर उसके शरीर स्वास्थ्य का ध्यान रख कर उसे पालती है।इस शरीर के इतने विभत्स अंत पर उसे मात्र दुख ही नही होगा वो इस बलिदान की उपादेयता भी तलाशेगी और अगर उसे ये लगेगा कि ये बलिदान मात्र हल्ला गुल्ला और सुविधाजनक प्रदर्शन तक सीमित रह गया ,तो विश्वास मानिए कोई भी मां अपने कलेजे को टुकड़ो को राष्ट्र रक्षा के लिए कठिनाईयों से जूझने का हौसला देने से पहले हजार बार सीचेगी।

आज हर उस माँ को सलाम जो सिर्फ एक देह नही एक जज्बे को जन्म देती है,और इस जज्बे की सुरक्षा और सम्मान देश के हर नागरिक और सरकार का दायित्व है।

lungs turning black….

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G.P.Varma

Air pollution has been affecting the lungs of the people including the children. The lungs are losing their natural pink colour and getting black.

The startling revelation was made by president of the Association of Surgeons of India Dr Arvind Kumar.

People up to thirty years of age were found with black lungs. The change of the colour of lungs indicated the lungs were not healthy enough to sustain any infection.

According to him the black coloured lungs are generally found in smokers but at present the lungs of those who have no history of smoking were also turning black. The change in the colour of the lungs was due to inhalation of highly polluted air which contained deadly gases.

The problem has been on an increase for the past five years and it has also gripped the tender aged school going children. The number of asthmatic children has also witnessed a sharp increase during the period, said Dr Kumar.

Children were falling prey to the disease because of two main reasons. Firstly, a large number of auto vehicles including cars come to schools for dropping and collecting the children every-day. The smoke emitted by these vehicles polluted the campus environment. Children breathe in the polluted air and their lungs get affected, Doctor Kumar said.

Secondly, the garbage heaps and dust all along the roadsides pollutes the air which they inhaled and get the lungs infected, he added.

Incense sticks from waste flowers

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Kailash Agarwal
Kailash Agarwal

A technocrat-turned-entrepreneur has discovered a unique method to utilize the petals of flowers thrown at the worship places or near the river-side and to make eco-friendly charcoal free incense sticks from the waste flower petals. His unique idea received global acclamation.

The incense sticks produced with the waste flower petals are on sale at Amazon to cater to the needs of the people lived abroad..

Ankit Agarwal a resident of Kanpur inUttar Pradesh, is the brain behind developing the unique idea. He has succeeded constituting a company under the name and style “Help Us Green”.

To one’s surprise the company had the largest sale of charcoal free incense sticks made from waste flowers on Amazon during past few months. Ankit started his business with Amazon in 2018 as he was eager to grab the opportunity of selling online on

According to Ankit the idea to re-use the waste flowers thrown in the river came to his mind on the occasion of Makar Sankranti in the year 2015. He and his friend Karan went to the Ghats of the river in Kanpur where devotees took holy bath in river Ganga amidst the severe cold.

They sat by the Ghats and watched people performing Suryanamaskaras. They were surprised to see devotees were drinking and bottling up the river water despite the muck. They also noticed that the colourful flowers were being dumped in the holy river after performing prayers and worship.

Here, an idea clicked to his mind. “Why should the waste flowers not be collected and reused instead of letting them to go soiled and to pollute river water.” With this idea he started his journey in 2017 with just 80 kilograms of dried flowers and determination to help clean the Ganges.

The idea of further using wasted flowers seemed ludicrous to them. They had to toil hard to convey their idea of recycling the waste flowers because no one was willing to take it seriously or give up the flowers offered by him to the deities in the temple.

Ankit and Karan spent several hours in experimenting, meeting various stakeholders and pitching the idea of collecting waste flowers from temples of the country. After an year long exercise the idea of flowercycled® incense and vermin-compost was conceived and crafted. The mission to preserve the river Ganges and empower vernacular people by providing a means to earn their livelihood became a reality.

According to Ankit “HelpUsGreen® was constituted. It was started with a spirit of adventure. “Phool” their FMCG brand, has been launched.

“We are also constantly trying to enhance our impact on empowering the women who are employed with us. It has been our earnest effort to turn this pious waste collection into a full blown social enterprise. With time, the orders have multiplied –from literally nil in the first few days to an order every minute”, he said..

माजुली-संसार का सबसे बड़ा नद द्वीप

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Maya das
Maya das

यदि पर्वत-देवता की कल्पनाओं पर आज भी विश्वास किया जाए तो यह कहना अतिसयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि वह पर्वत -देवता बड़ा रूमानी और हरफन मौला रहा होगा,जिसने घनी ,हरियाली,सागर सी विशाल ब्रह्मपुत्र नदी,मलजयी सुबहों और रेशमी शामों से घिरे असम और माजुली नद -द्वीप को अपने अंक में सजाया।

किसी भी पर्यटक की असम-यात्रा वहाँ की प्राकृतिक छटा के दर्पण माजुली नद-द्वीप के बिना अधूरी ही रहेगी। मुझे जब भी असम जाने का अवसर मिलता है मैं अपने मित्र उज्ज्वल राजकुँवर के घर मेलंग टी इस्टेट जोरहट जरूर जाती हूँ।

इस बार मुझे अपने पुत्र तनव के साथ पंद्रह दिन के लिए असम जाने का अवसर मिला।चेन्नई से असम हम वाया कोलकाता हवाई यात्रा कर पहुँचे।गुवाहाटी में एक दिन विश्राम करने के पश्चात जोरहट अपने मित्र उज्जवल के चाय बागान टी-इस्टेट पहुँचे।वहाँ भी दो दिन रुकने के पश्चात हमने माजुली नद-द्वीप जाने का विचार किया।क्योंकि हमें मालूम था माजुली तक पहुचने का रास्ता बहुत आरामदायक नही है।इस द्वीप तक पहुचने के लिए परिवहन व्यवस्था पूरी तरह विकसित नही है। सम्पूर्ण सड़क टूटी – फूटी और कच्ची-पक्की है।संभवतः प्रति वर्ष यहाँ आने वाली बाढ़ और भीषण वर्षा सड़कों को भला चंगा नहीं रहने देती।सरकारी और प्रशासनिक स्तर पर बाढ़ के बाद सड़कों का पुनर्निर्माण किया जाता है लेकिन अगली बाढ़ आते वह अपनी कुरूपता की कहानी कहने लगती है।

हम लोग ड्राइवर के साथ सुबह नौ बजे माजुली द्वीप जाने के लिए निमाति घाट पहुँच गए।जो मेलंग टी-इस्टेट से लगभग 23 km की दूरी पर है। माजुली नद-द्वीप तक पहुँचने के लिए पर्यटकों को नियमित घाट से बड़ी नावों (फेरी) का सहारा लेना पड़ता है। हमने भी बड़ी नाव किराए पर प्राप्त की ।खुद उसमें बैठने के साथ अपनी कार को भी उसमें लाद लिया।क्योंकि माजुली में भी समुचित परिवहन का आभाव है।

फैरी बढ़ रही थी। एक ओर दूर – दूर तक फैली पर्वत श्रृंखलाएं ,दूसरी ओर ‘पुरुषत्व’ का प्रतिनिधि करती ब्रह्मपुत्र नदी।इसे पुरुषत्व का प्रतिनिधि इसलिए माना जाता है क्योंकि सम्पूर्ण देश में यह इकलौती नदी है जो पुर्लिंग है। अन्य सभी नदियाँ स्त्रीलिंग की श्रेणी में आती हैं।

विस्तृत मौदानी और पहाड़ी इलाकों में बनी झोपड़ी जो लगभग उजड़ी सी लगती हैं,मनमोह लेती हैं।लोग बताते हैं कि वर्ष 1950 के विनाशकारी भूकंप के बाद इस द्वीप के किनारों पर लगातार कटाव के कारण अनेक गाँव जलमग्न हो गए थे और वहाँ के बाशिंदे अपने घरों को छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।तब से अब तक यह द्वीप आबाद नहीं हो सका।

नाव से उतर कर हम नद-द्वीप के अंदर दाखिल हुए।सड़क के दोनों ओर सरसों के खेतों के पीले -पीले फूल मन को लुभा रहे थे।ऐसा लग रहा था कि धरती पर बसंत लहरा रहा हो। हम अब गाड़ी में घूम रहे थे हमारी गाड़ी 30 से 40 km की रफ्तार से चल रही थी। हमारे दाहिने ओर लोइत नदी थी जिसके किनारे स्वछंद रूप से सुंदर पक्षियों का झुंड विचरण कर रहा था।यहाँ अनेक प्रजातियों के दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रवासी पक्षियों का डेरा होता है।यहां विभिन्न जनजाति के लोग निवास करते हैं जैसे-देवरी,सोनोवाल,कचरी और मिलिंग जो बहुत ही मिलनसार होते हैं।इन्हें टूटी-फूटी अंग्रेजी और थोड़ी बहुत हिंदी आती है।कोई भी उनकी सहायता से पूरा नद-द्वीप बड़ी आसानी से घूम सकता है यहाँ किसी भी गाइड की आवश्यकता नहीं होती।

प्रकृति के अद्भुत अद्वितीय और मनोहारी दृश्य के अलावा 21 सत्रों (वैष्णव नामघर ) है जो वैष्णव संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। साथ ही साथ यह भारतीय संस्कृति की भी पहचान है।इसमें पारंपरिक कला और संस्कृति आज तक सुरक्षित है।यहाँ हर उम्र के भक्तों को देख सकते हैं जिन्होंने इस सत्र की मान- मर्यादा ,कला,संस्कृति,साहित्य,और शास्त्रीय अध्ययन के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया ,लेकिन हम केवल श्री श्री उत्तर कमलाबाड़ी जिसकी स्थापना से वर्ष 1673 में हुई थी,ही देख सके।

वापसी के लिए दोपहर तीन बजे की फैरी से निमाति घात की ओर चल पड़े।ऊंचे -नीचे ,छोटे-बड़े रेत के टीलों को छोड़ती हुई फेरी आगे बढ़ रही थी।मेरा मन पीछे छूट रहा था सारी सुनहरी यादों को समेटते हुये मैं माजुली से विदा हो रही थी।प्रकृति की गोद से लौटते समय मन भारी था लेकिन विवशता थी वहां रुक तो नही सकते थे।

नौकासन (बुद्धिवर्धक आसन )

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Dr. S.L.Yadav

नौकासन -इस आसन का आकर नाव के समान होने के कारण इसे नौकासन के नाम से जाना जाता है। जैसे नदी या समुंद्र को यदि समस्या मान लिया जाय तो जिसको पार करने के लिए नाव का सहारा लेते हैं ठीक उसी प्रकार सांसारिक भौसागर से सफलता पूर्बक पार पाने के लिये नौकासन का सहारा लेते हैं। यह आसन पूरे शरीर को एक यूनिट में लाने का काम करता है जिससे मानसिक समस्यायें (तनाव,चिंता,अवसाद) निश्चित रूप से दूर करने में मदत मिलती है।

नौकासन की बिधि -सबसे पहले किसी समतल जमींन पर योग मैट (चटाई ) बिछाकर पेट के बल लेटते हैं। दोनों पैरों को आपस में मिलाकर दोनों हाथों को सामने लेजाकर हाथ की हथेलियों को आपस में मिला लेते हैं। ठोड़ी(चिन) को जमींन पर रखते हुए दोनों हाथ को कान से लगा लेते हैं। अब साँस भरते हुए आगे से सिर,कंधे,चेस्ट एवं दोनों हाथ तथा पीछे से दोनों पैरों को ऊपर की तरफ सीधा रखते हुए अधिकतम ऊंचाई पर उठाते है। दोनों हाथों के अँगूठे को देखते हुए साँस सामान्य रखते हैं। यथासम्भव रोककर फिर धीरे से वापस आ जाते है। 1 से 3 मिनट रोक सकते हैं। शुरुआत में इसे २ बार कर सकते है।

नौकासन के लाभ-

    • इस आसन के अभ्यास से सभी मानसिक समस्यायें (तनाव,चिंता,अवसाद) निश्चित रूप से ठीक होती हैं।
    • स्नायु मंडल (नर्वस सिस्टम) को मजबूत बनाता है,जिससे याददास्त तेज होती है।
    • कम उम्र में लम्बाई बढ़ाने में मदत करता है।
    • कमर तथा पेट की चर्वी कम करके शरीर को सुडौल बनाता है।
    • वजन को कम करने का काफी अच्छा आसन है।
    • नाभि संस्थान को मजबूत करता है एवं टली हुई नाभि को अपनी जगह पर वापस लेने में मदत करता है।
    • रक्त संचार चेहरे की तरफ बढ़ाकर चेहरे की सुंदरता बढ़ाता है।
    • पाचक अंगो को मजबूत बनाकर पाचन को सुचाऊ बनता है।
    • पीठ की माँशपेशियों को मजबूत बनाता है जिससे कमर दर्द की सभी सम्भावनायें ख़तम हो जाती हैं।
    • किडनी को मजबूत बनाता है जिससे उसकी कार्य क्षमता में बृद्धि होती है।
    • पूरे शरीर का आलस्य दूर कर शरीर को ऊर्जावान बनाता है।
    • गैस,कब्ज एवं एसिडिटी (अति अम्लता) को दूर करता हैं।
    • फेफड़े को मजबूत बनाता है जिससे साँस की समस्याऐं दूर होती है।

नौकासन करते समय सावधानियाँ-

  • कमर दर्द ,गर्दन दर्द ,सिर दर्द एवम उच्च रक्तचाप में इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  • पेट का 6 माह का आपरेशन हुआ हो तो भी इसे नहीं करना चाहिए।
  • अपेंडिस्क एवं हार्नियां में भी इस आसन को नहीं किया जाता।

विशेष – ध्यान को सांसो पर रखते है।आसनों को हमेशा आराम से करना चाहिए।

कॉमिक्स पढ़ने का शौक बना ‘करियर’

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    Pooja Parashar

बचपन में टॉफी -चॉकलेट के लिए पैसे मांगना, किराए पर दुकानों से कॉमिक्स लाना और जल्दी -जल्दी पढ़कर चुपचाप वापस कर आना, इस डर से कि मम्मी ने देख लिया  तो फिर वही सुनना पड़ेगा….. पढ़ाई करो! कॉमिक्स  में समय बर्बाद मत करो, यह कुछ काम नहीं आने वाली। शायद यह, सभी के जीवन की अनोखी घटना रही होगी। चाचा चौधरी, चंपक, नंदन, पिंकी

आदि कॉमिक्स पढ़ने का शौक आगे चलकर ‘करियर’ भी निर्धारित कर सकता है, ऐसी कल्पना किसने की होगी?
ऐसा ही शौक रखने वाली, चुपके -चुपके कॉमिक्स पढ़ने वाली, दिल्ली की ‘पल्लवी सिंह’ हिंदी अध्यापिका के रूप में न सिर्फ देश में, यहाँ तक की  विदेशों में भी अपना परचम लहरा रही हैं। आज मुंबई में रहकर सामान्य जनों के साथ -साथ मशहूर हस्तियों को भी हिंदी सिखा रही हैं।
पल्लवी की ‘हिंदी अध्यापिका’ बनने की राह इतनी आसान नहीं थी। 12वीं पास करने के बाद सभी  पूछते थे कि आगे क्या करोगी? पल्लवी स्वयं  अपना रास्ता बनाना चाहती थी इसलिए बी॰टेक॰ करने के साथ-साथ विदेशियों को हिंदी पढ़ाने का भी कार्य करने लगी। यह कार्य, ‘करियर’ के रूप में तब प्रत्यक्ष हुआ जब दिल्ली में ही एक ऑस्ट्रेलिया के छात्र ने उनसे हिंदी पढ़ने की इच्छा रखी और यहीं से पल्लवी को अपनी मंजिल तक पहुंचने की राह मिल गई।
पल्लवी, ‘कॉमिक्स’  द्वारा, प्रेमचंद की कहानियां सुनाकर और हिन्दी फिल्में दिखाकर देश में आए विदेशियों को हिंदी सिखाती हैं। वह स्वयं  मॉड्यूल तैयार करती हैं और समय के साथ संशोधन करते हुए तीन महीने के अंदर हिंदी बोलना सिखाती हैं। आज पल्लवी के विद्यार्थियों की सूची में जाने-माने लेखक विलियम डेलरिंपल, बॉलीवुड अभिनेत्री जैकलीन फर्नाडीज, लिसा रे,  नटालिया डि लुसिओ, लुसिंडा निकोलस आदि हैं। पल्लवी का कहना है कि उन्हें पढ़ाने का बोरिंग स्टाइल पसंद नहीं इसीलिए स्टूडेंट को किसी कैफे में चाय का आनंद लेते हुए भी हिंदी  सिखाती हैं। पल्लवी द्वारा अपने शौक को करियर बनाना, सबके लिए प्रेरणा ही नहीं बल्कि इस भागम –भाग की दुनिया में एक नए दृष्टिकोण को भी पैदा करता है।

साहस से मिलती नयी मंज़िलें

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Prachi Dwivedi

जहीराबाद एक व्यावसायिक शहर है। हैदराबाद से 114 कि मी दूर, यहाँ तक कार का सफर दो घंटों में पूरा होता है। इस पूरे सफर में अनेक गाँव और वहाँ के लहलहाते खेत देखने को मिलते हैं। इन खेतों में पुरुष नहीं महिलाएं काम करती दिखाई देती हैं। कड़ी मेहनत के बाद भी उनके चेहरों पर खुशी और ताजगी दिखाई देती है।
यहीं रास्ते में एक गाँव है पस्तापुर। यहां का नजारा कुछ और ही है। यहाँ भी महिलाएं खेतों में काम करती दिखेंगी। लेकिन उनके हाथों में हल और कुदाल नहीं दिखायी देंगे। हल और कुदाल की जगह उनके हाथों में दिखेंगे- “बड़े कैमरे”। ट्राइपॉडस। कारण यह कि महिलाएं फिल्मकार हैं। यहाँ अधिकतर किसान महिलाएं कृषि आधारित डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी की सदस्या हैं। वह पढ़ी-लिखी अवश्य नही हैं किन्तु अब तक वह लगभग छः सौ से अधिक लघु फिल्म बना चुकी हैं। यह सभी फिल्में लोगों में खाद्य श्रेष्ठता के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाली हैं। इन फिल्मों का प्रसारण दूरदर्शन, माँ टीवी व ई टीवी पर हो चुका है।
नायक प्रधान भारतीय सिनेमा में महिलाओं की भूमिका अब सिर्फ नाचने, गाने तक ही सीमित नहीं रही। सिनेमा के सफर के शुरूआती दौर में काम करने वाली महिलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता था, फिर समय के साथ हुए बदलाव में आज हिंदुस्तानी सिनेमा के हर पक्ष ने नायिका की भी प्रधानता को स्वीकार करते हुए समाज में नारी की विभिन्न भूमिकाओं का अंकन किया है। दक्षिण भारत में बसे एक गाँव पस्तापुर में इसका जीवंत उदहारण देखने को मिलता है। यहाँ दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए खेतों में काम करने वाली महिलाओं ने एक अनूठी पहल का आगाज़ किया है।
यह महिलाएं तो छोटी फिल्में बनाकर ही संतुष्ट थी। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके जीवन में ऐसा भी अवसर आएगा कि उन्हें पूरी फीचर फिल्म बनाने का मौका मिलेगा। लेकिन उनकी मेहनत और हिम्मत ने उनके लिए ऐसा द्वार खोल दिया कि वह पूरी फिल्मकार के रूप में अब समाज के समक्ष अपनी प्रतिभा को दिखा सकेंगी।
हैदराबाद की फिल्म निर्माता अपूर्वा मसर ने अपनी पहली फीचर फिल्म “आल अबाउट मिशेल” के निर्माण के लिए इन महिलाओं को अनुबंधित किया है। यह एक जासूसी रोमांच (जासूसी थ्रिलर) फिल्म होगी। फिल्म की पटकथा स्वयं अपूर्वा ने लिखी है। इस फिल्म का निर्माण करके यह अनपढ़ ग्रामीण किसान महिलाएं लोगों की इस धारणा को बदल देंगी कि वह सिर्फ खेतों में काम करने वाली अनपढ़ और अशक्त महिलाएं ही नहीं हैं, बल्कि वह भी शहरों में काम करने वाली सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाओं के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार हैं। उनकी जिस मेहनत से वीराने पड़े खेत हरे भरे हो जाते हैं, अब वही मेहनत अपने प्रदर्शन से फिल्मों में भी रंग बिखेरेगी।
इन किसान फिल्मकारों से वायदा किया गया है कि उन्हें वही मेहनताना दिया जाएगा जितना मुम्बई में किसी प्रोफेशनल को मिलता है।
यह फिल्म crowded funded है। फिल्म निर्माण के लिए पचास फीसदी से अधिक धन इकट्ठा किया जा चुका है। तीस सदस्यीय टीम में सभी महिलाएं हैं। केवल साउंड इंजीनियर महिलाएं नहीं हैं।
असल मायनों में नारी तो अब सशक्त हो रही है। अब तक तो नारी शब्दों और नारों में ही सशक्त होती रही है, क्योंकि उसने स्वयं को पूरी तरह पहचाना ही नहीं था। नारी को उसका “स्वयं” ही सशक्त कर सकता है, जरूरी यह है कि वह खुद पर विश्वास करे। इसमें दोराय नहीं है कि महिलाओं के लिए लोगों की सोच बदल रही है, समाज अब बदल रहा है। बस उसे खुद को पहचानने की जरुरत है।

Nominal exports growth in January

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The country witnessed nominal growth in exports due to tough global condition and some constraints on the domestic front during January this year as exports data, exhibited exports of USD 27 billion with a growth 3.74 percent,

According to the president of Federation of  Indian Export Organization (FIEO) Ganesh Kumar Gupta the global trade growth was slowing down and global economies including China and South East Asian nations were also facing contraction in manufacturing worsening the fragile global situation.

Almost all the sectors during the month have shown nominal growth. However Petroleum was one of the sectors which showed higher negative growth further pulling down the overall exports for the month by about 3 percent opined Mr Gupta. 22 out of 30 major product groups were in positive territory, though many with marginal growth during January, 2019.

On the imports front, January, 2019 saw meager growth of just 0.01 percent that too due to increase in gold import. Spin off effect due to global tariff war has continuously been impacting the country’s trade both imports and exports.

FIEO Chief reiterated his demand for urgent and immediate support including augmenting the flow of credit, higher tax deduction for Research and Development and better fiscal support including augmenting the budgetary support for marketing and exports related infrastructure.

He said that India can gain a lot from ongoing tariff war by creating production capacities so as to meet the demand of major economies.

G.P. VARMA

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