चुनावी होली हुल्लड़

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Pankaj Bajpai
मार्च माह में मौसम ने अपना मिज़ाज तो बदला ही,मगर माहौल तब गर्म हो गया जब चुनाव आयोग ने लोक सभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी। देश के राजनैतिक दल अपनी पुरानी परंपरा को कैसे भूल सकते थे। सभी दलों ने जैसे एक दूसरे को नीचा दिखाने की परंपरा को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाने का बीड़ा ही उठा लिया।
सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी पार्टी के उन चुनिंदा नेताओं को मोर्चे पर लगा दिया जो अपने दामन के दाग को न देख कर दूसरे के दामन को गंदा बताने में पूरी योग्यता रखता हो। सभी विशेष योग्यता रखने वाले नेतागण पार्टी के द्वारा दिये गए दिशा निर्देशों को बड़ी ही श्रद्धा के साथ निर्वहन करते रहे हैं।  अपने  विरोधी दल प्रत्याशियों को निम्न से भी निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग कर उनको अपने से नीचा दिखाने का काम करने लगे हैं।
टीवी न्यूज चैनल पर लाइव बहस में मंजर ही कुछ निराला होता हैकिंतु ।हर नेता अपनी मधुर आवाज में इतनी तेज अपने अपूर्ण ज्ञान के भंडार को सही साबित करने में लग जाते हैं। वो भूल ही जाते हैं कि समाज में उनके इस आचरण का क्या असर होगा।उसकी निगाह में समाज कुछ नही,सब कुछ उनकी पार्टी है।
लाइव बहस को देखते हुए लगता है कि यह  नेता अपनी पार्टी के लिए कितने  समर्पित हैं। कितनी मेहनत से गलत को सही और सही को गलत साबित करने में लगे हैं । मगर अगले दिन ही पता चलता है कि वो नेता जी ने पार्टी बदल ली ।और उसी पार्टी के सदस्य हो गए  जिसकी कुछ दिन पहले वह अपशब्द कह रहे थे। जब पत्रकार ने पूछा नेता जी आप आपका गमछा बदल गया। नेता जी बोले गमछे की क्या बात करते हो मैन पार्टी बदल ली। पत्रकार ने पूछा मगर क्यों ,नेता जी बोले मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है। आज से मैं इस पार्टी का एक जिम्मेदार सेवक हु। फिर क्या जो कल जिस पार्टी के लिए उस पार्टी को गाली दे रहे थे ,जिसमें आने के बाद वह पुरानी पार्टी को वही गली देने लगे।
पार्टियों के प्रचार शुरू हो चुके हैं। प्रत्येक दल जनता को ये भरोसा दिलाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि,इस बार उनकी पार्टी को वोट दो । समस्याओं को हल कर देंगे। ऐसे सपने दिखाए जाने लगे जो कभी पूरे नहीं होने वाले । बेचारा वोटर भी क्या करे जो ज्यादा सफाई से झूठे सपने दिखा देता है उसी को वोट दे देती है।
चुनाव के परिणाम के बाद एक बहुत बड़ा परिवर्तन आता है।जीवन स्तर में एक बड़ा बदलाव दिखता है,मगर जनता के नहीं ,नेता जी के जीवन स्तर में जो नेता पहले एक पुरानी कार से आते थे वोट मांगने वो एक बड़ी मंहगी कार में चलने  लगते है।साथ में उनके समर्थकों  का एक बड़ा हुजूम नेता जी की जयकार करता घूमता है। वो नेता जो हाथ जोड़ के वोट मांगते थे।  दर दर भटकटे दिखते थे जीतने के बाद अपने क्षेत्र में भी जाना  जरूरी नही समझते। जनता दरबार सजाते है। लोगों के पास न जाकर उसको आपने दरबार में बुलाते है। लेकिन लोग जिन्होंने उनको चुना उनसे पूछ नही पाते हैं कि यह बदलाव क्यों।