सोशल मीडिया ने हमारा क्या फायदा किया और क्या नुकसान किया नहीं जानती मगर इतना जरूर कह सकती हूं कि सूचनाओं अनुभवों और अभिव्यक्ति की शैलियों ने लोगों में एक ऐसी वैचारिक भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी है जहां व्यक्ति की सोच स्थिर नहीं रह पाते वह किसी एक विचार को पकड़ता है तभी दूसरा उसके विरोध में आकर खड़ा हो जाता है उदाहरण के लिए एक कहता है आलू खाने से शुगर और मोटापा बढ़ता है तो दूसरा आलू को शरीर के लिए जरूरी बताता है दोनों के पास तर्क होते हैं और दोनों के पास उदाहरण होते हैं बिल्कुल ऐसी स्थिति वैचारिक और मना स्थिति की होती है। बचपन से सुनती आईं हू की इतिहास से प्रेरणा लेकर मनुष्य वर्तमान की नीतियां तय करता है और भविष्य को सुंदर और सहज बनाने का प्रयास करता है मगर आजकल लोग जीने की कला जीने के तरीके तनाव से मुक्ति आदि के लिए बहुत सरलता से कह देते हैं कि दिमाग में जितनी ज्यादा फाइल रखोगे उतना ही हैक होने का डर रहेगा सब डिलीट कर दो मेमोरी बॉक्स को जितना खाली रखोगे जीवन जीने में नवीनता आएगी न सोचो अतीत ना सोचो भविष्य ।
मुझे एक गीत की पंक्ति याद आ रही है आगे भी जाने ना तू पीछे भी जाने न तू जो भी है बस यही इक पल है ।मगर क्या वास्तविक जीवन में यह संभव है यह एक स्लोगन की तरह बोला और उछाला जा सकता है किंतु क्या व्यवहार में लाया जा सकता है ।हमारा अतीत हमारे जन्म और जीवन विकास का लेखा-जोखा होता है जिसमें हमारे पूर्वज हमारे माता-पिता दोस्त और उनसे जुड़े अनुभवों का दस्तावेज होता है । हम इन अनुभवों को नजरअंदाज करके अपने कर्तव्य उद्देश्य और जीवन जीने के स्वरूप का निर्धारण नहीं कर सकते हैं और ना ही भावनात्मक रूप से एक शून्य जी सकते हैं हमारी यही अनुभव हमारे भविष्य के स्वरूप को निर्धारित करते हैं हमें स्वप्न देते हैं जिन्हें पूर्ण करने के प्रयास ही हमारे वर्तमान के कर्म का निर्धारण करते हैं फिर कैसे कोई सिर्फ वर्तमान में जी सकता है । दरअसल अतीत की यादें और भविष्य की संभावनाओं का नाम ही तो है जिंदगी।