बेटे की विदाई

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Dr. Kamal Musaddi
शिप्रा सारी पैकिंग करती जा रही थी मगर बार -बार उसे लग रहा था कि कुछ छूट रहा है। पैंट शर्ट ,टी-शर्ट,नाईट शूट ,दर्जनों अंडरगारमेंट के साथ ,सिर दर्द ,बुखार,दस्त,उल्टी की दवाएं ,मल्टीविटामिन ,सूखे मेवे,मठरी,लड्डू के साथ-साथ छोटी सी मिक्सी ,छोटा सा प्रेस,इंडेक्सन ,फ्राइंगपेन,छोटी कढ़ाई,कुछ जरूरी बर्तन ।ओढ़ने बिछाने के कपडों के साथ -साथ मौसम परिवर्तन को देखते हुए कुछ गरम कपड़े भी रखना नहीं भूली।आखों से आंसू बह रहे थे हर एक सामान पर उसके आँसुओं के छीटे न पड़े हों ऐसा नही हुआ।

बिट्टू से आँसू छुपाकर वह उसे निर्देश भी देती जा रही थी कि समय पर सोना ,समय पर खाना।परदेश में किसी के बहकावे में न आना टाइम पर कॉलेज जाना आस -पास कोई डॉक्टर ढूढ लेना।कुक के ना आने पर मैंगी बना लेना या मठरी लड्डू खा लेना।भूखे ना रहना ।कोई तकलीफ हो तुरंत फ़ोन करना।

उसने आपातकाल अर्थात कुक के ना आने पर कैसे पेट भरा जाय के लिए उसे मैगी, दलिया, खिचड़ी भी इंडेक्सशन पर बनाना सिखा दिया था।

सब कुछ करने के बाद भी मन में भावनाओं की सुनामी आ रही थी।बिट्टू के सामान की अलमारी जैसे -जैसे खाली हो रही थी उसका मब भारी होता जा रहा था।

यद्यपि शिप्रा जानती थी कि बिट्टू अपना बी.टेक करने घर से दूर जा रहा है।मगर उसने अपने आस-पास तमाम ऐसे दंपति देखे थे जिनके बेटे पढ़ाई करने घर से दूर गए फिर किसी कंपनी में नौकरी मिल गयी तो दूसरे शहर चले गए।कुछ तो विदेश में नौकरी करने लगे और इतना ही नही जिन्दगी की गति में अधिकांशत: ने अपनी जीवन साथी पसंद कर ली फिर माता-पिता से दूर ओबी गृहस्थी के साथ गतिशील हो गए।

पीछे रह गए माता -पिता अपनी जड़ों से जुड़े फ़ोन पर फेस टाइम त व्हटाप्प एप पर बच्चों की कुशलता जानने और उनके दिन प्रतिदिन के हालात से जुड़ते।

शिप्रा जानती थी बिटटू भी बंगलौर बी.टेक करने जा रहा है।पढ़ाई में प्रखर बिटटू निश्चित ही नौकरी  भई पा जायेगा वो दिल से चाहती भी है कि बिट्टू अच्छी पढ़ाई करे और जीवन में बड़ी उचाईयां पाए।मगर ममता को क्या करे जो बेटे को विदा करते समय बर्फ सी पिघल रही है।उसे लग रहा था सीने में कोई लावा जल रहा है। जो उसके सम्पूर्ण अस्तित्व को पिघला रहा है।

शिप्रा अपने मन को टटोल रही थी, और सोच रही थी जब बिट्टू की बड़ी बहन नीती को विदा किया था, तो भी मन यूं ही पिघला था।किंतु मन में एक भरे -परिवार और पति की देखरेख में घर से जा रही है। मगर उन्नीस वर्ष जा बिट्टू जिसने कभी दूध भी खुद गरम करके नहीं पिया उसे अकेले एक अनजान शहर में भेजना मां बाप के लिए कितना कठिन होता है। कितना कठिन होता है इस तरह बेटे को विदा करना।मगर आधुनिक जीवन शैली में ये भी कितना जरूरी हो गया है कि बच्चों को दूर भेजना भी एक बड़ी विवशता है। शिप्रा और उसके पति बिट्टू को ट्रेन में बैठा कर आये और घर में प्रवेश करते ही बिट्टू का खाली कमरा देख कर शिप्रा का  धैर्य टूट गया और वह हूक  मार कर रो पड़ी,उसके पति की आँखें भी भीगी थी,मगर वो उसे ढाढस बंधा कर बोले बेटी हो या बेटा विदाई तो दुःखद होती ही है, पर ये तो आज हर माता -पिता के हिस्से में है,हम उनसे अलग तो नही।यही जिंदगी है।