कुछ वर्ष पूर्व की ही बात है,1 जुलाई को सिटी बस से घर आ रही थी । बगल की सीट पर एक तीस पैंतीस वर्ष की स्त्री 2 बच्चों के साथ बैठी थी।सर पर साड़ी का आँचल और सिर के पास कुछ भरे भरे हुए थैले रखे थे । बच्चों की उम्र सात से नौ वर्ष रही होगी । मैने भरे थैले और सर् पर आँचल देख कर पूछ लिया ,मायके से आ रही हो ? उसने जबाब में सिर हिला कर हाँ कहा,फिर अपने आप बोली बच्चों के स्कूल खुल गए हैं ।इसलिए आना पड़ा । अम्मा बीमार थीं,मन नहीं था आने का ।कहकर वह उदास हो गयी ,मगर यह कहकर उसके चेहरे पर सुकून भी था जैसे किसी ,अपरिचित से ही सही अपने दिल की बात कह तो दी।
मुझे याद है वो दौर और बहुत कम और हल्के लगेज लेकर बच्चों के साथ सफर कर रही स्त्री बिना कहे बयान कर देती थी कि वह मां के घर जा रही है । उसके हाव भाव में व्याप्त खुसी और उन्मुक्तता बता देती थी ,कि वह मायके जा रही है । इस मायके यात्रा की योजनाएं वो साल भर मन ही मन बनाती थी और जब उसे विस्वास होता था कि ससुराल पक्ष का कोई आस पास सुनने वाला नही वो बच्चों में नाना नानी ,मामा मौसी के रिश्ते को जिंदा रखने के उनके प्रति बच्चों के लगाव को बढ़ाने के लिये किस्से गढ़ती थी । लालच देती थी कि अबकी नानी घर चलना उनसे तुम्हें ये दिलवाऊंगी । मामा के साथ फलानी जगह घूमने भेजूंगी और तो और नानी के हाथ से बने पकवानों का लालच देकर यह सिद्ध करना भी नही भूलती थी कि जो कुछ तुम्हें यह खाने पीने को मिल रहा है वह साधारण है।विशेष तो उस नानी के घर मे मिलता है।
मां की उत्कंठा ,सीख ,सूचनाएं और सफर की जिज्ञासा में बच्चे प्रतीक्षा करते रहते थे। कि कब छुटियाँ आएं और वो नानी के घर जाएं ।एक कारण और था नानी के घर जाने की प्रबल खुसी का की बस्ता ,किताबें,कॉपियां सब दादी के घर मे ही पड़ी रहती थी। निश्चिन्तता इतनी थी कि न मां को याद रहता था कि डेढ़ महीने की छुट्टी के बाद बच्चों को फिर स्कूल जाना है।और न बच्चों को कहने का मतलब ये है कि बच्चे किताबों और पढाई बोझ लादकर छुट्टिया नही मानते थे । न ही सूचना तंत्र के साधन न होने के कारण मां ससुराल का हस्तक्षेप और टोका टाकी से जूझती थी।
रक्षा बंधन के जैसा भावनात्मक त्योहार अक्सर जुलाई अगस्त में पड़ने के कारण मां आग्रह पूर्वक बेटी को रोकती थी कि राखी बांध कर ही जाना ,क्योंकि तब के विद्यालयों में उपस्थिति अनुपस्थिति के इतने गंभीर मामले नही थे। मगर अब नौकरी पेशा बिटियां ,भाई ,मामी की व्यस्तता बच्चों के होमवर्क और हॉबीज ने जैसे मायके और ननिहाल का यह चलन ही समाप्त कर दिया।अब गर्मी की छुट्टियां बच्चों को होबिक्लासेस कोचिंग आदि जॉइन कराकर माता पिता बिताते हैं या फिर कोई छोटी मोटी यात्रा जिसमे होते है माँ ,बाप ,बच्चे मगर गर्मी में नानी का घर बस स्मृतियों में रह गया।