‘जिंदगी कब किस मोड़ पर अपना रुख बदल ले’ कोई नहीं कह सकता। चण्डीगढ़ निवासी हरमन सिद्धू , एक सभ्य-समृद्ध परिवार का होनहार बेटा, 23 की उम्र में उत्साह और उमंग से सराबोर, भविष्य की कल्पनाओं में डूबा, जीवन पथ पर कुछ कर गुजरने को आतुर था। किंतु 24 अक्टूबर 1996 की वह दर्दनाक घटना, जिसने ह्रदय को झकझोर कर रख दिया तथा जीवन की दिशा ही पलट गई।
हरमन अपने दोस्तों के साथ हिमाचल से चंडीगढ़ आ रहे थे। अचानक हाईवे किनारे कार का संतुलन बिगड़ने से कार खाई में जा गिरी। किसीतरह हरमन की जान तो बच गई, पर रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगने के कारण शरीर का निचला हिस्सा बेजान हो गया। 25 वर्ष की किशोरावस्था में उनकी जिंदगी व्हीलचेयर के पहियों से बंधकर रह गई। मन निराशा से भर उठा।भविष्य के सारे स्वपन चकनाचूर हो गए। किंतु अस्पताल के अनुभवों ने उन्हें अभिभूत कर दिया। अन्य मरीजों का हाल जानकर उन्हें एहसास हुआ की वे अकेले नहीं हैं यह कष्ट झेलने वाले, हजारों जिंदगियाँ सड़क हादसों का शिकार हो चुकी हैं। क्या इन हादसों को रोका नहीं जा सकता? यह विचार जीवन का ‘टर्निंग पॉइंट’ बन गया।
अस्पताल से छुट्टी मिलते ही हरमन ने ‘अराइव सेफ'(सुरक्षित पहुँचे) नामक संस्था का गठन किया। जिसका उद्देश्य जनसाधारण को यातायात के नियमों से अवगत कराना तथा बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था में व्याप्त खामियों को उजागर कर प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सुरक्षा के प्रति जागरूक करना था। इसके साथ ही, हरमन ने हाईवे किनारे शराब की बिक्री को बंद कराने की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की। ड्रिंक एंड ड्राइव के विरोध में उन्होंने कई प्रदर्शन और आंदोलन किए। 23 वर्षों के इस कठिन संघर्ष में हरमन को कई बार धमकियाँ और लालच दिए गए, पर उनके कदम पीछे नहीं हटे। हरमन ने अपनी जान की परवाह किए बिना सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।लंबे अंतराल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाईवेज पर खुले शराब के ठेकों को बंद करने का आदेश पारित किया।अंततः निर्णय उनके पक्ष में रहा। अपने दोनों पैर गंवा चुके हरमन आज समाज के लिए मसीहा बनकर सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
- मोहिनी तिवारी