नत्थू-एक प्रेरक पिता

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Pankaj Bajapi
नत्थू का संघर्ष चंद दिनों का नहीं बल्कि 40 वर्षों का है । महोबा, उत्तर प्रदेश ग्राम पसवारा निवासी नत्थू के पिता धर्मदास रैकवार स्वास्थ्य विभाग में चौकीदार थे । इसीलिए नत्थू भी हमीरपुर में ही बस गए। पढ़ -लिख नहीं पाए तो घर की आर्थिक तंगी से निपटने के लिए 15-16 साल की उम्र में 90 रुपये महीने की पगार पर एक पंचर की दुकान में काम करने लगे । दो साल बाद उन्होंने कानपुर -सागर हाइवे किनारे टिन टप्पर लगाकर पंचर जोड़ने की दुकान खोली । पहला पंचर बनाने पर तीन रुपये मिले थे । तभी से सोच लिया था कि बच्चों को पढ़ा-लिखाकर उंन्हे बेहतर ज़िंदगी दूंगा । उनकी यह मेहनत रंग लायी।

उनके तीनों बच्चे आज सुखद  जीवन की राह पर चल पड़े हैं ।उनके तीनों बच्चे काबिल बन गए । एक देश सेवा में लगा है । दो बेटियों में एक देश के भविष्य को पढ़ा रही है तो दूसरी जनता की सुरक्षा में लगी है। कहते हैं,कोई भी काम का प्रतिफल क्या होगा, यह व्यक्ति की मेहनत और नियत पर निर्भर करता है । चाहे वह पंचर की दुकान ही क्यों न हो ।
हमीरपुर उत्तर प्रदेश निवासी नत्थू इसी का उदाहरण हैं । उन्होंने अपनी सोच, नेक नीयत और मेहनत के बल पर पंचर की दुकान से अपने बच्चों को काबिल बना दिया । नत्थू की मेहनत का फल मिला ।बड़ा बेटा मिथुन कुमार एयरफोर्स में तैनात है।कम आय के बाद भी नत्थू ने बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं किया । एक बेटी कोमल बलरामपुर जिले में शिक्षिका तो दूसरी बेटी स्वाति चित्रकूट में उत्तर प्रदेश पुलिस में तैनात है ।
तीनों बच्चों की नौकरी लग जाने के बाद आज भी नत्थू टीन-टप्पर वाली अपनी वही पंचर की दुकान चलाते हैं ।बच्चे मना करते हैं लेकिन उन्होंने अपना काम जारी रखा ।कहते हैं, जिस काम ने मुकाम दिया, उसे कैसे छोड़ दें । इसी दुकान के बूते तो बच्चों का भविष्य बना पाया हु। जब तक शरीर में ताकत है ,अपने और पत्नी लक्ष्मी के भरण- पोषण का खर्च इसी दुकान से उठाएंगे ।
बेटी स्वाति कहती है कि पिता जी अब आप आराम करें,लेकिन वह नहीं मानते हैं।मेरे पिता सभी के लिए मिशाल हैं।वह मेरे आदर्श हैं।

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