अब जब गालियां औरत को लेकर दी जाती हैं । माँ, बहन, बेटी को दी जाती हैं तो फिर किसी औरत के गाली देने पर इतना कोहराम क्यों ?
मैं ये नहीं कह रही कि पुरुष प्रतिस्पर्धा में स्त्रियां अपनी वाणी की कोमलता, सुन्दरता या मर्यादा छोड़ दे ।मगर ये भी कहूंगी की पुरुष अपनी जुबान से औरत को जलील करते हैं तो फिर कोई नाराज, आक्रोशित शोषित, पीड़ित या बदजुबान औरत अगर यही गालियां देने लगती है तो उसका सामाजिक बहिष्कार या उस पर हजार लांछन क्यों ?
मैं बॉलीवुड की एक नायिका का विडियो देख रही थी,जिसकी जुबान से वो सारे शब्द धारा प्रवाह निकल रहे थे जिन्हें पुरुष वर्ग प्रेम में ,क्रोध में,मजाक में या नसे में अक्कसर देने की आदत पाले रहते हैं । अगर उसके मुंह से गालियां निकलने पर लोग उसे असभ्य और असम्मान, गिरी हुई,नीच, चरित्रहीन जैसे संबोधन की टिप्पणी दे रहे थे। यद्यपि उसकी बदजुबानी मुझे भी खराब लग रही थी, मगर मुझे नजे ही उसपर क्रोध आ रहा था, न वितृष्णा हो रही थी। मुझे उस पर तरस आ रहा था और मैं सोच रही थी कि इस स्त्री ने आप के आस पास के रिश्तों से कितना शोषण, कितना अपमान ,कितनी कुंठा सही होगी कि अपने सही साबित करने के लिए वो इस भाषा का सहारा ले रही थी।
बरहाल इतना जरूर कहूंगी की समाज मे बच्चे हो या स्त्रियों को कैसी भाषा बोल रहे हैं,इसकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी उन पुरुषों की है जो बिना ये देखे की उनकी अभद्र शब्द किसी भी को अपमानित करके आक्रोशित कर रहे हैं । गाली देते रहते है।
हाँ जिस तरह प्रेम, प्रसंशा, आशीष जीवन को प्रभावित करते हैं, गालियां भी जीवन को प्रभावित करती हैं। अब ये हमें आपको देखना है कि कहीं गाली देकर, गाली सुनकर हम जिंदगी को तो गली नहीं बना ले रहे हैं।