एक आफिस में
दो कर्मचारी आपस में लड़ गए
आफिस के बाकी लोग दो गुटों में बंटे और लड़ाई से जुड़ गए
उन्होंने एक दूसरे को नीच, चोर, महाचोर, खानदानी चोर बताया
आफिस को फेंकू, जुमलेबाज, साम्प्रदायिक, भ्र्ष्टाचारी जैसे अपशब्दों से सजाया
तो उन्हें वरिष्ठ अधिकारी ने समझाया
आप लोग अपनी तहजीब में आइए
ये संस्कारी कर्मचारियों का आफिस है
यहां लोक सभा का चुनावी माहौल मत बनाइये
उनमें से एक कर्मचारी बोला
आप हमें गलत तरह से समझा रहे हैं
हमें नेता बता कर हमारा
स्टैंडर्ड गिरा रहे हैं
हम अपनी लड़ाई
जनता के बीच नहीं ले जाते हैं
जबकि नेता, लड़ाई को लेकर जनता में भी बंटवारा कराते हैं
हम घटिया भाषा बोलें तो
केवल एक आफिस चक्कर खाता है
जबकि नेताओं की अमर्यादित भाषा से पूरा लोकतंत्र
बीमार पड़ जाता है। ।