योग एक दिनचर्या है, नियम है, अनुशासन है। ये हमे सकारात्मक जीवन जीने की कला सिखाता है। गणित में योग का जो मतलब होता है, जीवन पद्धति में भी योग का वही अर्थ है। योग, मतलब ‘जोड़’। जोड़; आत्मा का परमात्मा से। जोड़; ‘मुझे’ (ME) का ‘मै’ (I) से। जोड़; ‘मनुष्य का प्रकृति से’। जोड़; हमारे विचारों का, संवेगों का। यह एकरूपता ही साध्य है और साधन है ‘जोड़ विद्या अर्थात योग विद्या’।
योग हमारे समाज के लिए अत्यंत उपयोगी एवम आवश्यक है क्योंकि योग एक ऐसी विद्या हैं जिसको अपनाकर कोई भी व्यक्ति शारीरिक, मानसिक,एवम् आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकता है। योग मानव जीवन के लिए किसी वरदान से कम नही। ऋषियों, मुनियों ने हमे योग के रूप में ऐसी चाभी (ताली, कुँजी) दी है,जिसको अपनाकर अपनी सभी समस्याओ को दूर किया जा सकता है।
योग को अपनाकर हम बिभिन्न बीमारियों- मानसिक रोग (तनाव, चिड़चिड़ापन, क्रोध, चिंता, अवसाद) पेट रोगों (गैस, कब्ज, एसिडिटी), मोटापा, जोड़ो का दर्द ,स्त्री जनित रोग, मूत्र जनित रोग, कमजोरी, आलस्य, दुबलापन, प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं, डायबिटीज, ह्रदय आदि रोगों को दूर तो करते ही है और इन बीमारियो को होने से भी बचाते हैं।
योग जीवन विज्ञान है जिसे दैनिक जीवन में अपनाकर जीवन का वास्तविक आनन्द लिया जा सकता है।
जिस तरह से विभिन्न प्रकार के प्रबंधन (मैनेजमेंट) जैसे-व्यापार प्रबंधन, उद्योग प्रबंधन होते हैं ठीक उसी तरह से योग “जीवन प्रबंधन” है, जो यह सिखाता है कि कैसे इसके विभिन्न आयामों (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) को अपनाकर मनुष्य जीवन के वास्तविक आनन्द की प्राप्ति कर सकता है।
1- योगस्य चित्त वृत्ति निरोधः।
महर्षि पतंजलि ने योग को मन की चंचलता को रोकने (नियंत्रित)का सबसे अच्छा साधन बताया है।
2- योगः कर्मषु कौशलम्।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बताया है कि योग कार्यो में कुशलता प्रदान करता है।
3- अथ योगः अनुशासनम्।
योग हमे अनुशासित जीवन जीने की कला सिखाता है।
अतः इस जीवन प्रबंधन (योग) का किसी योग विशेषज्ञ की देखरेख में सीखकर शत प्रतिशत लाभ उठाया जा सकता है। योग को कुशल प्रशिक्षक के निर्देशन में ही करना चाहिए।
(लेखक : प्राकृतिक चिकित्सा एवम् योग केन्द्र, आईआईटी कानपुर )