गर्मी के दिन

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Dr. Kamal Musaddi
सूरज के घर मे हो रहा है हवन
उठ रही लपटें फैल रहा गर्म गर्म लावा
तेज बुखार मे तप रहा पवन
पेड़ मांग रहे भगवान के डाकिया से बादलों की टोपियां
कुंओ के गले सूख गये इतने कि
जोर जोर उठने लगी
सन्नाटो की खांसियां
तालाबों के चेहरों पर पड़ी
गहरी गहरी झुर्रियों
सेहत छंट गयी अचानक कि जैसे
डायटिंग कर रही हों नदियां
रसिया ने धूप मे रख हंडिया में
उबालें आलू
आंगन मे आग पसरी
जलती है टिन
आ गये फिर गर्मी के दिन।

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