Home Blog Page 3

अमानगढ़ टाइगर रिजर्व -उत्तर प्रदेश का मिनी कॉर्बेट

0
Dr. Rakesh Kumar Singh

साल, खैर और सागौन के विशाल वृक्षों के बीच बह रही फीका और बनेली नदियों के संगम में अठखेलियां करते हाथियों का झुंड और उन्हें दूर से निहारता ग्रासलैंड में चर रहे चीतलों का समूह और दूर क्षितिज पर नीले आकाश को छूने को तत्पर पर्वतमाला और बाघ की दिल दहलाती गर्जना। अमानगढ़ टाइगर रिजर्व भारत के कुछ उन रिजर्व्स में से एक है जहां ग्रासलैंड, वेटलैंड और सघन वन का अद्भुत समन्वय बरबस ही किसी भी प्रकृति प्रेमी को मंत्र मुग्ध कर सकता है। एक ओर जहां अधिकतर टाइगर रिजर्व में पर्यटकों की गहमा-गहमी और सफारी बुकिंग के लिए जद्दोजहद रहती है, वहीं अमानगढ़ में आपको परिवार के साथ बहुत सुकून से यादों भरे सुनहरे शांत पल बिताने का मौका मिल सकता है। हरिद्वार पीलीभीत राष्ट्रीय राजमार्ग पर बिजनौर जनपद के धामपुर से थोड़ा आगे बढ़ने पर बादीगढ़ चौराहे से एक रास्ता आपको केहरिपुर के जंगलों तक लेकर जाता है। केहरिपुर ही वह स्थान है जहां 15 नवंबर से 15 जून तक अमानगढ़ टाइगर रिज़र्व के लिए सफारी की बुकिंग होती है। यह बुकिंग सुबह और शाम में से किसी भी ट्रिप के लिए की जा सकती है। बाकी समय अत्यधिक वर्षा के कारण बाघ अभयारण्य दर्शकों हेतु बंद रहता है।

केहरिपुर से जंगलों में प्रवेश करते ही झींगुरों की आवाज और चीतलों के झुंड आपको तुरंत ही सुकून देते हैं। जिप्सी के जंगल में आगे बढ़ते ही रास्ते में बने हाथियों के फुट प्रिंट मन में रोमांच पैदा करते हैं। धीर-धीरे जिप्सी सघन जंगलों में प्रवेश कर जाती है। यहां एक शांत और स्थिर वतावरण आपको समस्त चिंताओं से निश्चित ही मैं मुक्त कर देता है। मन को आनंदित करती विभिन्न पक्षियों की चहचहाहट और झींगुरो का शोर क्षण भर के लिए आपको आंखें बंद कर प्रकृति का संगीत सुनने को मजबूर कर देता है। अंग्रेजों के समय का सन 1931 में बना वन विश्राम भवन ब्रिटिश और भारतीय वास्तुकला का मिश्रण है। जिसे देखकर आप निश्चित ही पल भर को उस ज़माने में पहुंच जाते हैं। यहां से वन और अधिक सघन होते जाते हैं। इस स्थान से आगे चलने पर रास्ते में कभी-कभी बाघ के पगमार्क मिलने प्रारंभ हो जाते हैं। जो यह प्रदर्शित करता है की अभी कुछ देर पूर्व ही यहां से बाघ अपने क्षेत्र की गश्त पर निकला होगा। कहीं-कहीं हाथियों के भी पांव के निशान साथ में ही दिखना अमानगढ़ में एक सामान्य प्रक्रिया है। परंतु दर्शकों को यह अत्यधिक रोमांचित करता है। बीच बीच में जंगल के रास्ते के बगल वाटर होल और बरसाती झीलों में आराम से बैठे बाघ को देखते ही पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

आपकी जिप्सी सघन वन में छोटे छोटे बरसाती नदी नालों को भी पार करती हुई आगे बढ़ जाती है। कॉर्बेट नेशनल पार्क के नजदीक होने से यहां हाथियों के समूह भी जंगल में विचरण करते दिखने की संभावना रहती है। वन के इस सोलह किलोमीटर के आनंद भरे सफर में कब आपकी जिप्सी झिरना पहुंच जाती है इसका अहसास आपको तभी होता है जब आपको दूर क्षितिज पर उत्तराखंड स्थित कॉर्बेट नेशनल पार्क की पहाड़ियों के ऊपर और बीच घाटी में फैले जंगलों के दर्शन होते हैं। यहीं पर पर्यटकों के लिए विशाल पेड़ों के बीच सुरम्य वातावरण में बनी झोंपड़ी में कुछ पल बैठने का मौका मिलता है। टाइगर रिजर्व के बीच में यहां दर्शको की सुविधा के लिए छोटी सी कैंटीन की भी व्यवस्था की गई है। यह स्थान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य की सीमा रेखा है। अपने परिवार और मित्रों के साथ प्रकृति की सुंदरता को निहारते हुए आपके हाथ में काफी या चाय का प्याला अमानगढ़ टाइगर रिजर्व का कभी न भूलने वाला सबसे यादगार पल बन जाता है।
अमानगढ़ की बाहरी सीमा पर स्थित विशाल पीली बांध जलाशय बर्ड वाचर्स के लिए अदभुत है। अस्सी वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फ़ैला अमानगढ़ टाइगर रिजर्व बाघ, हाथी, तेंदुओं और अन्य वन्य जीवों के लिए आदर्श स्थान है। क्षेत्रफल के अनुसार यहां बाघों का घनत्व बहुत ही अधिक है। अमानगढ़ में मौसमी नदियों बनेली, कोठरी, पीली और फिक्का के आंचल में गगन चूमते साल एवं सागौन के घने वन के बीच बाघ की दहाड़ एक कभी न भूलने वाला अनुभव है।

-डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्य जीव विशेषज्ञ, स्तंभकार, कवि

इटावा सफारी -बीहड़ों में गूंजती वनराज की गर्जना

0
Dr. Rakesh Kumar Singh

“उन्नीसवीं शताब्दी का उत्तरार्ध”

भारत के रजवाड़े अंतिम सांसे गिन रहे थे और बरतानिया हुक़ूमत अपनी जड़ें जमा चुकी थी। इसी दौरान एक टीले पर अकेला बैठा वनराज दूर तक दृष्टिगोचर होते यमुना के बीहड़ों में अपने सिकुड़ते साम्राज्य के अस्त होते सूरज को देख रहा था। कभी उसने और उसके पूर्वजों ने अपने पूरे प्राइड यानी बब्बर शेरों के कुनबे के साथ इन बीहड़ों पर शान से अपने विशाल साम्राज्य का परचम लहराया था। आज भी उसके गले पर लहराते अयाल के बाल इस बब्बर शेर के गौरवशाली अतीत के गवाह थे। तभी अचानक ब्रिटिश एनफील्ड राइफलों की गोलियों ने वनराज के विशाल शरीर को छलनी कर दिया। और उस दिन यमुना के बीहड़ अंतिम बार वनराज की दिल को दहला देने वाली एक जोरदार दहाड़ के गवाह बने। इसके साथ ही इन बीहड़ों में सिंह की गर्जना सदा-सदा के लिए शांत हो गई। बरतानिया हुक़ूमत के गोरों और उनके चाटुकार राजाओं ने शान से उस वनराज के बेजान शरीर पर पैर रखकर अपनी तस्वीरें बनवाईं।

“सन दो हजार चौदह”

उक्त घटना के लगभग डेढ़ सौ वर्षों बाद इतिहास अपने आप को दोहरा रहा था, यमुना के ये बीहड़ एक बार फिर बब्बर शेरों की बुलंद आवाज के साक्षी बन रहे थे। जी हां, हम बात कर रहे हैं “लायन सफारी इटावा” की। इन बीहड़ों में गूंजती वनराज की आवाज किसीको भी रोमांचित कर सकती है।
प्रवेश द्वार पर खड़े दो विशाल बब्बर शेरों की प्रतिमाएं इटावा-ग्वालियर मार्ग से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बरबस रुकने को मजबूर कर देती हैं। अंदर प्राचीन काल की इमारतों सदृश्य संरचनाएं और खूबसूरत पेड़-पौधे जैसे आपका ही स्वागत कर रहे होते हैं।

यहां भारतीय सेना के गौरव विजयंत टैंक और पचास के दशक का भाप का रेल इंजन दर्शकों को सेल्फी खींचने पर मजबूर कर देते हैं। फोर-डी थिएटर और इंटरप्रिटेशन सेंटर भी वन्यजीवों के बारे में अदभुत जानकारी प्रदान करते हैं। थोड़ा ही आगे प्राचीन स्थापत्य शैली में निर्मित एक पुल सभी को अचंभित कर देता है। इस पुल को पार करते ही दर्शकों को जीप या बस में बैठाकर सफारी की सैर कराई जाती है। डियर सफारी में कुलांचे भरते चीतल और एंटीलॉप सफारी में सींग लड़ाते कृष्ण मृग किसी विशाल वन क्षेत्र में होने जैसा एहसास कराते हैं। बीयर सफारी में दीमक ढूंढ़ते भालू को देखना एक रोमांच पैदा करता है।

इसी बीच सफारी के सुंदर लैंड-स्केप और हरियाली का आनंद लेते हुए दर्शक कब बब्बर शेरों की सफारी में प्रवेश कर जाते हैं कि पता ही नहीं चलता। गिर और गिरनार के बाहर यही एक स्थान है जहां एशियाई शेरों को जंगल की पगडंडियों पर अपने साम्राज्य की गश्त करते हुए देखा जा सकता है। इटावा सफारी कई प्रकार के अदभुत पक्षियों का भी निवास है। यहां का शांत और मनोरम वातावरण कुछ पल के लिए दर्शकों को जिंदगी की दौड़ भाग से दूर तरोताजा महसूस कराने में पूरी तरह से सक्षम है।
ग्वालियर और आगरा के नजदीक होने से वहां आने वाले पर्यटक भी एक दिन का टूर बनाकर वन्य जीवों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और यहां के मनोरम दृश्यों का आनंद लेकर कभी न भूलने वाली यादों के साथ शाम तक आसानी से वापस लौट सकते हैं।

यमुना नदी के किनारे 350 हेक्टेयर में स्थित लायन सफारी बब्बर शेरों के संरक्षण का एक अनूठा प्रयास है। जो अपने आप में अनोखी, अद्भुत और अतुलनीय होने के साथ ही साथ बब्बर शेरों के संसार की एक जीवंत और अविस्मरणीय प्रस्तुति है।

-डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्य जीव विशेषज्ञ, साहित्यकार एवम कवि

चीफ साब और चीफ साब का कुत्ता

0
डा राकेश कुमार सिंह, साहित्यकार एवम कवि

कई वर्षों बाद एक सप्ताह के लिए अपने पुराने शहर जाने का सौभाग्य मिला। वहीं हॉटल के पास एक कब्र थी जिसपर प्रतिदिन एक व्यक्ति फूल चढ़ाता था।

उत्सुकतावश मैं पूछ बैठा कि “यह किसकी कब्र है”। उसने बताया कि “एक चीफ साब थे, यह उनके कुत्ते की कब्र है, यहां से ट्रांसफर होने पर वही कुछ पैसे दे गए थे कि प्रतिदिन इस कब्र पर फूल चढ़ाते रहना”।
सहसा कई वर्षों पहले घटी एक साधारण सी घटना मेरे आँखों के सामने घूमने लगी।
जब मैं भी इसी शहर का बाशिन्दा था। एक दिन मेरे फोन पर घबराहट भरी आवाज़ आई थी।

“डॉ साब, आप कुत्तों वाले डॉक्टर हैं न, आप जल्दी से आ जाइये चीफ साब का कुत्ता बहुत बीमार है।” मैंने पूछा, “कौन चीफ साब”। “अरे आप चीफ साब को नहीं जानते, उन्हें कौन अधिकारी नहीं जानता। बस आप तैयार हो जाइये गाड़ी भिजवा दी जा रही है आपको लेने।” मैं भी सोच में पड़ गया आखिर “कौन चीफ साब हैं ये”?
खैर जल्दी ही एक नीली बत्ती लगी गाड़ी में एक वर्दीधारी अर्दली और एक गार्ड मेरे दरवाजे पर सलूट मार रहे थे। मेरी समझ में आ गया कि किसी बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति या यूँ कहें चीफ साब का कुत्ता देखना है।
अब चीफ साब कौन हैं यह रहस्य अभी भी बना हुआ था। मेरा कौतूहल बढ़ता जा रहा था। अब चीफ तो बहुत से होते हैं। चीफ इंजीनियर, चीफ मेडिकल ऑफिसर, चीफ कन्जरवेटर, चीफ वेटरनरी ऑफिसर और चीफ विजीलेंस ऑफिसर और सबसे बड़े चीफ तो सीएम साब होते हैं। चुंकि मेरे उस पुराने शहर में सीएम साब तो रहते नहीं थे। इसलिए यह तो तय था कि किसी बड़े अधिकारी से ही आज परिचय होने वाला था। फिलहाल, जो भी हो मेरे लिए तो चीफ साब का कुत्ता देखना ज़रूरी या यूँ कह दो मजबूरी था और वो भी बिना फीस के। अब चीफ साब जैसे बड़े अधिकारी से फीस तो मैं नहीं मांग सकता था। तभी गाड़ी एक बँगलेनुमा घर के सामने रुकी। वहाँ मौजूद तमाम वर्दी धारीयों ने भी जब सैलूट मारा तो मुझे लगा कि फीस भले न मिले कुछ देर के लिए वीआईपी तो बन ही गए। अब कुत्ता ठीक हो जाए तो वक़्त आने पर चीफ साब से फीस की जगह फीस से चार गुना का काम ही निकलवा लिया जाएगा। यह सोच कर ही मैंने अपने को दिलासा दिया।

फिलहाल एक स्थूल काय से कुत्ते या यूँ कहें कुकुर को घेरे पूरी वर्दी धारियों कि फौज़ वहाँ मौजूद थी। सभी एक स्वर में बोल उठे “आइये डॉ साब, देखिये बेटे को क्या हो गया है”। मैं भी एक पल को कन्फ्यूजिया गया और अपने आने का प्रयोजन बताया कि “भाई देखिये मैं एक वेटेरिनेरियन यानी पशु चिकित्सक हूँ, मुझे तो कहा गया था कि कुत्ता बीमार है।” फिर सब एक स्वर में बोल उठे “साब ये पैंथर हम सब के बेटे के ही समान है।” मैं फिर कन्फ्यूज हो गया कि “मैं तो कुत्ता देखने आया था ये सब तेंदुआ मतलब पैंथर के इलाज की बात कर रहे हैं वो भी घर में पाल रखा है।” मैने पुनः अपने आने का प्रयोजन बताया कि मैं कुत्ता देखने आया हूँ न् कि तेंदुआ। और आप सब से निवेदन है कि आप सब एक साथ में न बोलें कोई एक बताए कि वह कुत्ता कहाँ है जो बीमार है?
तब जाकर पता चला कि उस कुकुर का नाम ही पैंथर है जिसे वे सब बेटे के समान प्रेम करते हैं। पता चला कि चीफ साब भी उस कुकुर को बेटा ही मानते हैं। मुझे भी उन कर्मचारियों के पशु प्रेम व चीफ भक्ति यानी स्वामी भक्ति पर गर्व हुआ। हालांकि मेरा यह भ्रम बाद में टूट गया। मैंने पूछा “अब ये बताइए इसे हुआ क्या है”?

“बीमार है”! एक उत्तर आया।
“पर हुआ क्या है”?
इसका उत्तर किसीके पास नहीं था।

मैंने कहा अभी तक सब एक स्वर में कह रहे थे कि बेटा बीमार है और अब किसीको पता नहीं कि बेटे यानी कुकुर को हुआ क्या है। बड़ी विचित्र स्थिती थी। सबके अनुसार कुत्ता बीमार था पर हुआ क्या यह पता नहीं। बस चीफ साब ने कहा कुकुर बीमार है तो है। तभी घर के अंदर से आदेश आया कि “डॉ साब को अंदर भेज दो”।
शानदार से बैठक में चीफ साब ने सम्मान से बैठाया। घर के बने देशी घी के लड्डू व नाना प्रकार की मिठाईयों से स्वागत हुआ। मेरा दिल भी बाग़ बाग हो गया, मैंने भी बिना ना नुकुर् किये दो लड्डू उदरस्थ् कर लिए। उसी समय पैंथर यानी चीफ साब के कुत्ते का बैठक में आगमन हुआ। चीफ साब ने पैंथर के लार गिराते मुहं पर हाथ फिराया और अंग्रेजी फिल्मों वाला जोरदार चुम्बन् अपने डॉगी यानी पैंथर को किया। यहाँ तक तो फिर भी ठीक था। लेकिन तभी मेरा सारा खाया पिया मुंह से बाहर आने को उतावला हो गया, जब उन्हीं लार से सने हाथों से चीफ साब ने एक और लड्डू मेरी तरफ बढ़ा दिया और कहने लगे “एक और खाइये”। फिलहाल किसी तरह उन्हें मना कर सका। फिलहाल मुझे तो कुकुर पूरा स्वस्थ दिख रहा था। पर चीफ साब ने कहा कल व आज सुबह इसने कम खाया। मैं आश्चर्य चकित था कि ये तो बैठा लड्डू खा रहा है फिर बीमारी कैसी। तब चीफ साब ने बताया कि बस लड्डू खा लेता है पर मलाई रोटी नहीं खा रहा दो दिन से। मैंने कहा ठंडा बहुत है थोड़ा अंदर बाँधा करिए। चीफ साब ने बताया कि “ठण्ड की कोई चिंता ना करें डॉ साब, मेरा पैंथर तो मेरे साथ मेरी रजाई में ही सोता है”।

मुझे समझ आ गया कि कुकुर को कम और चीफ साब को इलाज की अधिक आवश्यकता थी। वैसे भी एक पशु चिकित्सक का अनुभव अमूमन यही होता है कि कभी कभी रोगी के साथ रोगी के मालिक का भी इलाज ज़रूरी होता है।
मगर यहाँ तो केवल मालिक का ही इलाज करना जरुरी दिख रहा था। उनकी बात ना मानने का मतलब था कि उनकी दृष्टि में कुत्ता कभी ठीक न होता। और मेरे लिए भी यह ठीक ही था क्योंकि चीफ साब से फीस तो ले नहीं सकता था ऊपर से दवा के पैसे मांगने की हिम्मत भी नहीं थी। कुछ टॉनिक लिख कर पीछा छुड़ाना ही उचित था। हालांकि चीफ साब भले आदमी निकले और फीस भी पूछी पर उनके मेरे प्रति प्रदर्शित विश्वास व उनके श्वान प्रेम के कारण मैंने भी कभी फीस नहीं ली और मेरे कई कार्य भी उन्होंने आसानी से करवाए। फिलहाल मुझे बाहर तक छोड़ने कई वर्दीधारी आए तो मैंने पूछा कि “आप सबको यह कुत्ता यानी बेटा क्यूँ बीमार लग रहा था”?

चीफ साब का अर्द्ली बोला “साब ये तो हम भी जानते थे कि इसे कुछ नहीं हुआ। पर अगर चीफ साब ने कह दिया कि बीमार है तो हमारे लिए भी बीमार ही है। और चीफ साब इसे बेटे की तरह मानते हैं तो हमारे लिए भी बेटा ही है”। मुझे याद आया अंग्रेजी में एक कहावत है “बॉस इज़् ऑलवेज राइट”। अब परिचय हो ही गया था तो चीफ साब के कुकुर का नियमित चेकअप भी मुझे ही करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी वहन करनी ही थी। लेकिन चीफ साब के लड्डू खाने की हिम्मत फिर कभी ना हुई। अब जब भी चीफ साब लड्डू पेश करते तो मैं व्रत का ही बहाना बनाने लगा। मगर चीफ साब का व उनके तथाकथित पैंथर का एक दूजे के प्रति प्रेम गज़ब का था।

फिलहाल पता चला कि मेरे शहर से जाने के बाद चीफ साब भी अब यहाँ से स्थानान्तरित हो चुके हैं, जिस दिन उनके प्यारे कुत्ते पैंथर ने अंतिम साँस ली वे बहुत रोये थे। और उन्होंने उस वफादार दोस्त की याद में यह अपने श्वान प्रेम की अमर निशानी इस शहर को दी थी। और अपने एक सेवक को पैसे दे गए थे कि प्रतिदिन वह उनके प्रिय पैंथर यानी कुकुर की निशानी पर पुष्प अवश्य अर्पित करता रहे। और ये सच है कि यह कब्र चीफ साब के श्वान प्रेम यानी कुत्ता प्रेम की अमर दास्तां को वर्षों तक संजोये रखेगी।

डॉ आर के सिंह, साहित्यकार एवं कवि

मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ

0
डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्य जीव विशेषज्ञ

दुनिया जब सोती है,
मैं गश्त पर निकल जाता हूँ;
दोपहर की धूप में खड़ा,
तो कभी बारिश में भीगता नजर आता हूँ;
जी हाँ, मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ।।

ना बहना संग राखी,
ना परिवार संग गुलाल उड़ा पाता हूँ;
जब दुनिया आतिशबाज़ी करती है,
मैं अन्धेरी सड़कों पर दिवाली मनाता हूँ;
जी हाँ, मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ।।

कभी अपराधियों से मोर्चा,
कभी उन्मादी भीड़ से भिड़ जाता हूँ;
कभी कहीं निहत्था ही,
तो कभी अकेला क़ानून का रखवाला बन जाता हूँ;
जी हाँ, मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ।।

न जाने कब सुबह होती है,
कब सांझ ढल जाती है;
ना खाने की सुध,
ना स्वास्थ्य की चिंता
रात के सन्नाटे में भी घर से निकल जाता हूँ;
जी हाँ, मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ।।

मेरा भी घर-परिवार है,
मेरे भी बच्चों का त्यौहार है;
मेरे भी माता-पिता को मेरा इंतजार है,
ना रविवार की छुट्टी, ना दोस्तों संग मस्ती कर पाता हूं;
जी हाँ, मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ।।

कभी कर्तव्य की खातिर,
कभी जनता की रक्षा में,
कभी देश के सम्मान में;
कभी वर्दी के मान में,
सीने पर गोलियां खाता हूं;
जी हाँ, मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ।।

ना झुका हूं ना झुकूंगा,
वर्दी तेरा मान रखूंगा,
अपराधियों का काल बनूंगा;
कानून का मैं रक्षक हूं,
सौगंध देश की खाता हूं;
जी हाँ, मैं पुलिस वाला कहलाता हूँ।।

डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्य जीव विशेषज्ञ

बदलता मौसम

0
Landscape of Trees With the changing environment, Concept of climate change.

सफ़ेद होते बालों में अब खिज़ाब नजर आ रहा है,
नजरों पर चश्मा भी चढ़ता जा रहा है,
उमंगों का सागर अब और हिलोरे खा रहा है,
जी हाँ, बदलता मौसम मुस्कुरा रहा है।।

जवानी का सूरज ढलता जा रहा है,
जिम्मेदारियों का बोझ भले ही बढ़ता जा रहा है,
यारों का संग अब और गुद्गुदा रहा है,
जी हाँ, बदलता मौसम मुस्कुरा रहा है।।

ज़िंदगी की जंग में अब मज़ा आ रहा है,
यादों की बगिया में फूल खिलता जा रहा है,
सफर ज़िन्दगी का मंज़िल की ओर बढ़ता जा रहा है,
जी हाँ,बदलता मौसम मुस्कुरा रहा है।।

  • डॉ आर के सिंह

नैसर्गिक सौंदर्य और प्रकृति की छांव में सुकुन के दो पल

0
Dr. Rakesh Kumar Singh

हमारे चारों ओर नेपाल से लेकर तिब्बत तक फैला महान हिमालय दृष्टिगोचर हो रहा था। पास के अन्य शिखरों ल्होत्से, नुप्तसे और मकालू को देखने के लिये अब नीचे देखना पड़ रहा था। पृथ्वी की यह महान पर्वतश्रेणी फैले हुए आकाश के नीचे छोटे छोटे उभार जैसी प्रतीत हो रही थी। यह वह दृश्य था जैसा मैंने न कभी देखा था और न कभी देखूंगा- “असाधारण, आश्चर्य जनक, भयावह”। ‘मैन ऑफ एवरेस्ट- द ऑटोबायोग्राफी ऑफ तेनज़िंग’ में लिखे यह शब्द एक पल को पाठकों को एवरेस्ट के उसी शिखर पर खड़ा कर देते हैं जहां कभी महान पर्वतारोही व शेर्पा तेनज़िंग के कदम पड़े थे। यह प्रसिद्ध वर्णन तब तक सम्भव नहीं था जब तक तेनज़िंग स्वयम एवरेस्ट तक न पहुंचे होते।

प्रकृति चित्रण पत्रकारिता की वह विधा है जो पाठकों को प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य का न केवल बोध कराती है अपितु पाठक को शब्दों के माध्यम से समस्त घटनाक्रम का एक चरित्र बना देती है। पाठक को एहसास होता है कि वह स्वयं वहां पहुंच गया है। इस सम्बन्ध में सन उन्नीस सौ चौरासी का एक दिलचस्प संदर्भ स्मरण हो आया। मैं पिताजी के साथ ट्रेन, पांड्यन एक्सप्रेस, से एक छोटे से स्टेशन कोडाई रोड पर उतरा। तब वह तत्कालीन मद्रास से मदुरै की छोटी रेलवे लाइन का एक छोटा सा रेलवे स्टेशन था, जहां अक्सर दक्षिण भारत के प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल कोडाइकनाल जाने वाले सैलानियों का तांता लगा रहता था। फिलहाल हमारी बस जैसे ही पलनी पर्वतों की सर्पिलाकार सड़कों पर आगे बढ़ने लगी तो मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जैसे ये ऊंचे-ऊंचे साईप्रस, एकेसिया के दरख़्त और नीली-नीली पर्वतमाला कुछ जानी पहचानी सी हैं। रास्ते में पर्वत को चीरता हुआ सिल्वर कास्केड झरने का पानी और उससे उठती धुंध को देख कर तो ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे में कई बार यहां आ चुका हूँ। धुंध के आगोश में सिमटी कोडाई लेक और पक्षियों का कलरव मन को बरबस किसी पुरानी स्मृति की ओर खींच रहा था। मैं चाह के भी यह नहीं समझ सका कि यह सब इतना पहचाना क्यों लग रहा है, आखिर इससे पहले तो मैं कभी यहां आया ही नहीं। इसका उत्तर मुझे इस घटना के लगभग ग्यारह वर्ष बाद एक पुरानी सन्दूक के अंदर रखे पत्रों में उस समय मिला जब हम नए घर में सामान शिफ्ट कर रहे थे। यह पत्र पिताजी द्वारा हमें कोडाइकनाल से लिखे गए थे। उनके प्रत्येक पत्र में गणित के सवाल, विज्ञान के प्रयोग या फिर अंग्रेजी व्याकरण के टेंस के विवरण के साथ पलनी हिल्स या प्रकृति का वर्णन अवश्य होता था। यह वर्णन इतनी खूबसूरती से शब्दों में पिरोया होता था कि पढ़ने वाले को एहसास होता था कि वह स्वयं प्रकृति की इन सुंदर घाटियों में विचरण कर रहा है। एक पत्र में वर्णन कुछ इस प्रकार था “हमारी बस अब गगन चूमते पलनी पर्वतों की खूबसूरत घाटियों और विशाल दरख्तों के बीच से दूर तक दृष्टिगोचर होती सर्पिलाकार सड़क पर मद्धिम गति से दक्षिण भारत के मनमोहक हिल स्टेशन कोडाइकनाल की ओर बढ़ रही है। बस की खिड़की से आता शीतल पवन का मद्धिम सा झौंका चित्त को एक अद्भुत शांति प्रदान कर रहा है”।

समस्त फोटो क्रेडिट: क्षितिज सिंगरौर

घुमक्कड़ी के शौकीन तमाम लेखकों ने प्रकृति की असीम सुंदरता को अपने शब्दों में पिरोया है। परन्तु प्रकृति का यह सजीव चित्रण बंद कमरे में सम्भव नहीं है। घुमक्कड़ी के शौकीन दुनिया के हर कोने में मिल जाएंगे परन्तु यायावरी को शब्दों में वयक्त करने की कला विरले ही लेखकों में मिलती है। हिंदुस्तान टाइम्स के एक जाने माने जर्नलिस्ट बताते हैं कि “किसी भी विषय पर लेखन के लिए पहली आवश्यकता विषय का ज्ञान होना है। किसी भी फीचर को लिखने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि आप क्या लिखना चाहते हैं। प्रकृति के अतिरिक्त कोई भी अन्य फीचर कुछ पुस्तकों एवम समाचार पत्रों में छपे लेखों को पढ़कर लिखा जा सकता है। लेकिन प्रकृति लेखन में प्राकृतिक रंग आप तभी भर सकते हैं जब तक आप स्वयम प्रकृति के मध्य न हों। एक अच्छे प्राकृतिक फीचर के लिए कुछ लेखकों को कई-कई दिन एक ही स्थान पर बिताने पड़े हैं”।

आधुनिक विशेषकर ऑनलाइन साहित्य में प्रकृति लेखन के साथ एक या अधिक प्राकृतिक फ़ोटो को स्थान दिया जाना चलन में है। ऐसे में यह आवश्यक है कि जो भी छायांकन किया जाए वह समकालीन होने के साथ शब्दों के विन्यास के अनुरूप हो। मात्र एक समरूप फ़ोटो लेखक के शब्दों को और अधिक महत्वपूर्ण बनाने की क्षमता रखती है। उदाहरण स्वरूप मैं स्वयम विषय से हटकर एक छोटी सी कविता ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ के साथ छपे एक श्वेत श्याम छाया चित्र का उल्लेख करना चाहूंगा। सचमुच लेखक ने गुजरती रेल गाड़ियों के बीच एक जगह स्थिर प्लेटफॉर्म की स्थिति का सजीव चित्रण करने के लिए जिस प्रकार एक श्वेत श्याम फ़ोटो का सहारा लिया वह एक छोटी सी कविता को जीवंत करते हुए एक क्षण को पाठक को भी रेलवे प्लेटफॉर्म पर पहुंच देता है। मेरे एक मित्र जो कि पेशे से वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के शौकीन हैं, एक बार एक गोह की मुंह से निकलती जिह्वा का फोटो लेने के लिए कीचड़ में दो घण्टे से अधिक कैमरा लेकर लेटे रहे। और जो दृश्य उन्होंने उस दिन कैमरे में कैद किया। वह अपने आप में एक मिसाल है। प्रकृति लेखन हो या छायांकन अपने आप में तब तक सम्भव नहीं है जब तक आपमें संयम के साथ थोड़ी प्रकृति के प्रति आवारगी न हो। अन्यथा सज संवर के घर से निकलने के बाद कीचड़ में लेट कर एक गोह की जिह्वा की फ़ोटो खींचना आवारगी नहीं तो क्या है।
एक बार एक समारोह में एक जाने माने नेचर फोटोग्राफी के शौकीन महोदय से मैंने पूछा “आपके फ़ोटो इतने अलग क्यों होते हैं, क्या आप कोई विशेष तकनीक या कैमरे का प्रयोग करते हैं”। मेरी कल्पना के विरुद्ध जब उन्होंने एक साधारण सा कैमरा मेरे सामने रख दिया तो मेरे मुंह से बरबस निकल पड़ा कि इस कैमरे से यह तस्वीरें तो सम्भव नहीं हैं। उत्तर में वे मुस्कुरा उठे, “तस्वीर कैमरा नहीं खींचता, आपका फ़ोटो खींची जाने वाली वस्तु के प्रति दृष्टिकोण फ़ोटो खींचता है, वरना कैमरे का बटन तो हर कोई दबा सकता है”। वे बताते हैं कि वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी में आवश्यक है कि आप जंगल के राजा की फ़ोटो खींच रहे हैं तो इस प्रकार खींचें कि वह जंगल के राजा सा रोबदार दिखे। इसके साथ ही आवश्यक है कि शेर के साथ जंगल का बैकग्राउंड अथवा फोरग्राउंड यदि नहीं है तो आपकी एक शानदार फ़ोटो को कोई भी देखने वाला नहीं मिलेगा। गैर पेशेवर फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए उनका नजरिया बिल्कुल अलग था, उनके शब्दों में, “यदि आप कम समय में अपनी फोटोग्राफी के माध्यम से पहचान बनाना चाहते हैं तो किसी भी वन्यजीव के किसी एक अंग विशेष पर ध्यान केंद्रित करें, जैसे केवल आंख, पूंछ के छोर के बाल, फूलते पिचकते नथुने, खुला मुंह या फिर नर हिरन के सींगों का पैटर्न। लेकिन यह सब आपके संयम की परीक्षा लिए बिना सम्भव नहीं होगा। उदाहरणस्वरूप यदि आप नैनीताल की फ़ोटो बस स्टैंड अथवा नैना पीक, जिसे चाइना पीक या चिन्ना पीक भी कहते हैं, से लेते हैं तो हजारों फ़ोटो मिल जाएंगी और शायद ही कोई उनपर नज़र डाले। वहीं यदि आप ठंडी सड़क की ऊपर की पहाड़ियों से नैनीताल की खूबसूरती पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो कुछ नयापन का एहसास अवश्य होगा”।

भारतीय वन सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो कि पक्षियों की फोटोग्राफी में महारत रखते हैं, बताते हैं कि, “पक्षियों की फ़ोटो तो सभी खींचते हैं लेकिन पक्षियों के कुछ क्रिया-कलाप करते हुए फ़ोटो खींचना आपकी फ़ोटो को अलग पहचान देता है। निःसंदेह एक अच्छा व महंगा कैमरा फ़ोटो की बारीकियां पकड़ रखने की क्षमता रखता है। परंतु एक साधारण कैमरे से भी विभिन्न कोणों से अच्छे फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि किसी भी प्रकृतिक फोटोग्राफी के पहले उसकी विभिन्न उपलब्ध फ़ोटो का बारीकी से अध्ययन कर लिया जाए। और यह सुनिश्चित कर लें कि किन बारीकियों या कोणों से फ़ोटो उपलब्ध नहीं हैं”। आकर्षक प्राकृतिक फोटोग्राफी के लिए उनका मन्तव्य है कि “प्रथम तो इसमें फोटोग्राफी का कोण व समय का ध्यान रखना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। और दूसरा संयम, यदि आप में संयम नहीं है तो प्रकृति छायांकन छोड़ आपको पेशेवर फोटोग्राफी प्रारम्भ कर देनी चाहिए”।

मेरे कई लेखक मित्र बताते हैं कि वे प्रकृति पर तब तक नहीं लिख पाते जब तक वे स्वयं प्रकृति के बीच न हों। मेरे एक बार माउंट आबू प्रवास के दौरान हमारे होटल में ही रुके एक दक्षिण भारत के लेखक महोदय से मुलाकात हुई। वे सात दिन से वहां थे लेकिन वे इन सात दिनों में केवल होटल के सामने नक्की झील के किनारे एक शांत जगह पर ही प्रतिदिन बैठते थे और अपना उपन्यास, जो एक दक्षिण भारतीय मध्यम वर्गीय लड़के व माउंट आबू की उसकी प्रेयसी की प्रेम कथा पर आधारित था, ही लिखने में व्यस्त रहते थे। उनका कहना था कि इसके पहले वे पांच दिन तंजावुर भी रुके थे क्योंकि कथा का नायक का पारिवारिक परिवेश इसी शहर के आस-पास का था। हांलांकि वह उपन्यास मैं नहीं पढ़ सका लेकिन निःसंदेह उनका जज्बा स्वागत योग्य था।

जर्मनी की प्रसिद्ध मैगज़ीन के लिए लिखने वाले यायावरी के शौकीन एक लेखक एक बार मुझसे मिलने कानपुर आये। वे सुदूर जर्मनी से गंगा पर लिखने के लिए लगभग एक माह के प्रवास पर भारत आये थे। उन्होंने गंगा के सम्बंध में घूम-घूम कर वह छोटी-छोटी परन्तु रोचक जानकारियां एकत्र कर ली थीं जो जल्दी आम भारतीय को भी ज्ञात नहीं होतीं। उनका कहना था कि मैं चाहता तो यह सब जर्मनी में बैठ कर भी लिख सकता था। लेकिन मेरा उद्देश्य था कि यूरोप के लोग मेरे शब्दों के माध्यम से गंगा की महानता को महसूस करते हुए स्वयम को इस पवित्र पावनी गंगा में स्नान करता पाएं। वे कहां तक सफल हुए यह तो मैं नहीं जानता पर यह अवश्य है कि प्रकृति लेखन व पत्रकारिता एक जगह बैठ कर प्रभावी रूप से सम्भव नहीं है। यदि आपके शब्दों के माध्यम से पाठक अपने आप को उस स्थान पर महसूस करे तो प्रकृति चित्रण पूर्ण माना जा सकता है। मनोरम दृश्यों के रेखांकन की कोई सीमा नहीं हो सकती क्योंकि प्रकृति को जितना अधिक शब्दगत किया जाए उतना अधिक प्रकृति जीवंत हो उठती है।

प्रकृति लेखन की विधा असीमित है। लेखक शब्दों के माध्यम से पाठक को प्रकृति में होने का ही नहीं, प्रकृति के संगीत, पक्षियों के कलरव और सिंह की दहाड़ तक का सजीव अनुभव कराने का सामर्थ्य रखते हैं। शब्दों का ऐसा तिलिस्म बुना जा सकता है कि पाठक चाह कर भी उस इंद्रजाल से बाहर न आ सके। इसकी एक बानगी ऑनलाइन “वीक्सपोस्ट.कॉम” में दो वर्ष पूर्व प्रकाशित एक यात्रा संस्मरण में देखने को मिलती है “एक तरफ फैला हुआ विशाल नीला समंदर और दूसरी तरफ दूर-दूर तक फैली हुई वृक्ष की कतारें तथा मिट्टी से बाहर निकलती हुई मैन्ग्रोव वृक्षों की छोटी-छोटी हवाई जड़ें। जंगल को चीरते हुए अंदर तक बहती समंदर की लहरें औऱ लहरों से जूझते केंकड़े व कलरव करते हुए पक्षियों का हुजूम बरबस एक अद्भुत रोमांच पैदा कर रहा था”। शब्दों का क्षितिज प्रकृति की भांति असीम है। प्रकृति चित्रण के साथ ही साथ यदि नेचर म्यूजिक यानी प्रकृति संगीत यथा पक्षियों का कलरव, कोयल की कूक या पपीहे की पीहू पीहू का वर्णन न हो तो प्रकृति लेखन अपूर्ण ही रह जाता है।

उत्तर भारत के प्रसिद्ध कानपुर प्राणी उद्यान के प्रवेश द्वार पर एक विशाल बोर्ड दर्शकों का स्वागत कुछ ऐसे शब्दों से करता है कि दर्शक का चित्त वहीं से प्राणी उद्यान को देखने के लिए व्याकुल हो उठे। “प्राणी उद्यान का यह परिसर आपका स्वागत करता है। यह प्रकृति की अलौकिक शांति की अनुभूति देता है। यह वन्यजीवों के भूत, वर्तमान व भविष्य की जीवंत प्रस्तुति है। जो अपने आप में मनमोहक व आश्चर्यजनक है। आइए वन्यजीवों के इस अद्भुत संसार की यात्रा प्रारंभ करें”। निःसन्देह इस सन्देश को पढ़ते ही दर्शकों का मन व दृष्टिकोण प्राणिउद्यान के प्रति एक धनात्मक ऊर्जा से भर उठता है। प्रकृति लेखन पाठकों में उत्सुकता पैदा करने के साथ ग़ज़ब की आकर्षक शैली की भी मांग करता है।
हिंदी की प्रसिद्ध कहानी ‘नीम का पेड़’ में कहानी की नायिका का पूरा जीवन एक नीम के पेड़ के इर्द-गिर्द इतनी खूबसूरती से बुना गया है कि कहीं-कहीं लगता है कि पाठक स्वयम कहानी का पात्र होकर उस पेड़ की छांव में पहुंच गया है। प्रकृति चित्रण में प्रकृति के रंगों और परिवेश का सजीव विवरण ही पाठकों की आंखों में एक कल्पना की उड़ान भर देता है। आखिर उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की लोकप्रिय कहानी ‘पूस की रात’ का नायक हल्कू पूस की उस रात में अपने साथ पाठकों को भी ठंड से यूं ही नहीं कंपा देता है। ‘रात ने शीत को हवा से धधकाना शुरू किया। हल्कू उठ बैठा और दोनोँ घुटनों को छाती से मिलाकर, सिर को उसमें छिपा लिया। फिर भी ठंड कम न हुई। ऐसा जान पड़ता था, कि रक्त जम गया है, धमनियों में रक्त की जगह हिम बह रहा है’। यह तो प्रेमचंद की लेखनी का जादू ही है जो आपको जेठ की दोपहर में पूस की रात का अहसास करा देता है।

प्राकृतिक फीचर लेखक के जज्बे की परीक्षा भी लेता है। आपको अत्यंत दुर्गम स्थल की बारीकियों को जानने के लिए ऐसे स्थानों पर जाना होता है जहां अन्य लेखक या पाठक न पहुंचे हों, यह कार्य जोखिम भरा भी हो सकता है। क्योंकि किसी भी नई जगह जैसे कि किसी घाटी या पहाड़ी के मार्ग व टोपोग्राफी का लेखक को ज्ञान नहीं होता। अतः आवश्यक है कि किसी जानकार स्थानीय व्यक्ति को साथ रख कर ही उक्त स्थान की बारिकियों व अनछुए पहलुओं का अध्ययन किया जाए। किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए यह भी आवश्यक होता है कि प्रतिबंधित स्थलों के सम्बंध में पूर्व में ही सम्बंधित विभाग से अनुमति ले ली जाए।

प्रकृति के सम्बंध में यह निर्विवाद सत्य है कि प्रकृति को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता परन्तु शब्दों में पिरोया अवश्य जा सकता है। प्रकृति लेखन जितना विवरणात्मक हो उतना ही अधिक रोमांचक व सजीव हो उठता है। इसके अतिरिक्त लेखन की शैली पाठकों को अपने शब्दों के जादू में बांधने वाली होना अनिवार्य है।
विशाल देवदार के दरख्तों से होकर मन-मस्तिष्क को उद्वेलित करती पवन, जंगल की पगडंडियों पर बिखरे पेड़ों के सूखे पत्ते, पंख फड़फड़ाते परिंदों के कलरव, दूर तक दृष्टिगोचर होते हिमालय पर्वत और इन सबके के बीच लेखक के द्वारा लिखा गया यह प्रकृति का प्रस्तुतिकरण कोई परिकथा या किसी चित्रकार की कल्पना नहीं बल्कि प्रकृति की जीवंत प्रस्तुति करने का एक प्रयास है। फिलहाल इस ढलती शाम, दूर क्षितिज पर डूबते सूरज, अपने नीड़ को लौटते परिंदों के कलरव और मंद-मंद बहती कार्तिक माह की शीतल पवन के बीच अपना यह लेख सम्मानित पाठकों को समर्पित करते हुए इस प्रकृति लेखन में मैं कहाँ तक सफल हुआ इसका निर्णय मैं पाठकों पर छोड़ता हूँ।

-डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्यजीव विशेषज्ञ एवम साहित्यकार

IIT Kanpur researchers revisit 70-year-old plasma relaxation problem in outer space

0
G.P. VARMA

Kanpur, May 12, 2023:A team of researchers from the Indian Institute of Technology Kanpur has proposed a universal mechanism for turbulent relaxation, which can be applied to a wide range of fluids, including plasmas and complex fluids. This principle, called the principle of vanishing nonlinear transfer (PVNLT), explains how a turbulent system attains a steady, stable state of relaxation when the driving force is switched off.

The study “Universal turbulent relaxation of fluids and plasmas by the principle of vanishing nonlinear transfers” was published in Physical Review E (Letters) journal. The team comprises Prof. Supratik Banerjee, researchers Arijit Halder, and Nandita Pan, from the Department of Physics, IIT Kanpur.

To illustrate this concept, the researchers use the example of mixing milk in a cup of coffee. “When we stir the coffee, we create eddies and turbulence that cause the milk to mix quickly. However, when we stop stirring, the system organizes itself via “turbulent relaxation” before it finally ceases to flow.

According to PVNLT, this happens when the system gets rid of its nonlinear transfers, terminating the turbulent cascade. In this state, stability is ascertained as a scale-dependent entropy function is maximized when the correlation between different parts of the fluid tends to vanish, said Prof. Supratik Banerjee.

The PVNLT principle has been shown to give the correct pressure-balanced relaxed states for both two and three-dimensional fluids and plasmas, as previously obtained in numerical simulations. This means the current principle can correctly predict the way the turbulent relaxation happens in reality. This technique is fundamental and can easily be applied to complex fluids, including compressible fluids, plasmas, binary fluids.

“Through the principle of vanishing nonlinear transfer, we have been able to uncover a universal mechanism for understanding how turbulent systems reach a relaxed and stable state. Our research has important implications not only for the study of fluids, but also for plasmas and other complex fluids. We are excited about the potential for future applications of this principle in a wide range of fields,” added Prof. Banerjee.

This research has important implications for our understanding of cosmological plasmas. Cosmological plasmas are plasmas that exist in outer space, such as in stellar envelopes, gaseous nebulae, and interstellar space. Plasmas are a state of matter that consists of charged particles, such as ions and electrons that interact with electromagnetic fields.

These plasmas are often dilute, meaning they are not very dense, but they are still important because they play a crucial role in shaping the universe.

One of the interesting features of these cosmological plasmas is that they often exhibit regular patterns, such as “force-free” magnetic fields with a clear alignment between the magnetic field lines and the current. This alignment, popularly called a Beltrami-Taylor alignment, is important because it helps to explain the behavior of these plasmas in outer space. For example, it can explain why some regions of space appear brighter than others in certain wavelengths of light.

However, until now, the mechanism of plasmas obtaining a relaxed state has been a matter of long-standing debate. The research on PVNLT has important implications for our understanding of the cosmological plasmas because it provides a new way of thinking about how turbulent systems, such as plasmas, reach a stable, relaxed state. By understanding how these systems relax, we can better understand their behavior and the patterns they exhibit.

The PVNLT principle provides a unified framework for understanding how turbulent systems reach a stable, relaxed state, from a cup of coffee to the cosmological plasmas. The research has the potential to open up new avenues of study and discovery in both laboratory and astrophysical plasmas.

सोनी सब का फैमिली ड्रामा

0
          Vibha Pathak

इंदौर – सोनी सब का आगामी फैमिली ड्रामा, वंशज एक अमीर कारोबारी साम्राज्य की पेचीदा डायनेमिक्स को दर्शाता है सोनी सब का आगामी शो वंशज दर्शकों को महाजन परिवार की आकर्षक दुनिया में ले जाने के लिए तैयार है, जो एक लेगसी बिज़नेस चलाने वाला एक धनी और समृद्ध परिवार है। यह शो एक शक्तिशाली बिज़नेस परिवार के भीतरी पारिवारिक डायनेमिक्स, राजनीतिक साज़िश और ड्रामा का सही मिश्रण पेश करने का वादा करता है। महाजन परिवार की तीन पीढ़ियों के जीवन और डायनेमिक्स के इर्द-गिर्द घूमती कहानी के साथ, वंशज ऐसे परिवार की समस्याओं और क्लेशों को दिखाने के लिए तैयार है, जो सफल होने के साथ ही परेशानियों से घिरे भी है।

हाल ही में लॉन्च किया गया पहला लुक शो की खास झलक पेश करता है, जिसमें ऐसे परिवार की कहानी है जो पितृसत्ता में गहराई से जुड़ा हुआ है, जहां शासन अक्सर एक बेटे से दूसरे बेटे को दिया जाता है। प्रसिद्ध कलाकार अंजलि तत्रारी (मुख्य भूमिका युविका के रूप में), पुनीत इस्सर (परिवार के पुरुषवादी मुखिया भानुप्रताप के रूप में), माहिर पांधी (दिग्विजय के रूप में) और गिरीश सहदेव (धनराज के रूप में) को शो के लिए चुना गया है। दर्शक महाजन परिवार की एक और झलक का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं और यह देखना रोमांचक होगा कि सोनी सब इस भव्य शो के लिए और किसे चुनता है।

सोनी सब के वंशज के बारे में और जानने के लिए साथ बने रहें, जो इस जून में आपकी टेलीविज़न स्क्रीन पर आएगा!

 

Chemineers Society, IIT Kanpur brings pan-India community together at Chemical Engineering Fest EXERGY’23

0
Participants from IITs, NITs, and other colleges across India attended the chemical engineering fest EXERGY'23 at IIT Kanpur
G P VARMA

Kanpur, April 3– The Chemineers Society at IIT Kanpur hosted the inaugural pan-India Chemical Engineering Fest, EXERGY’23, from March 31st to April 2nd, 2023. The event was a resounding success attracting participants from IITs, NITs, and other colleges across India.

The three-day event featured a diverse range of activities, including industrial and entrepreneurial talks, research-based poster presentations, software workshops, optimization competitions, sponsor attractions, and more. Kanopy Techno Solutions Pvt. Ltd was the title sponsor for the event, and was powered by Medetronix Labs.

The three-day event featured a diverse range of activities, including industrial and entrepreneurial talks

Participants from IITs, NITs, and other colleges across India came together to attend technical workshops hosted by international industry experts in software critical to chemical engineering, such as MATLAB, Python, Aspen, and Mathematica.

Along with the workshops, there were a variety of talks delivered by senior industrial experts and academicians on topics spanning entrepreneurship, data science, sustainability, biochemical advancements, process safety, and research.

L-R – Prof. Ashutosh Sharma, Prof. Siddhartha Panda, and Prof. Jayant Kumar Singh, lighting the lamp in the inaugural EXERGY’23

EXERGY’23 also hosted several competitions centred around real-world challenges, including optimization, research poster presentation, and cipher. The competitions drew a significant turnout, with over 2000 students from across India participating.

The inaugural edition of EXERGY’23 proved to be an enriching showcase of the latest trends and innovations in chemical engineering and a meaningful platform for the participants to engage and learn.

Day 2 of Techkriti’23 at IIT Kanpur hosted various insightful talks and events

0
Prof. Abhay Karandikar, Director IIT Kanpur, presented mementos to the dance group at the inauguration of Techkriti'23

Kanpur, March 24 : The Day 2 of Techkriti’23, one of Asia’s largest annual technical and entrepreneurial festivals, was packed with a plethora of exciting events and workshops. The proceedings kicked off with an inaugural address by Dr. Anil K Rajvanshi, Founder and Director of the Nimbkar Agricultural Research Institute, and a notable IIT Kanpur alumni. Dr. Rajvanshi, in his speech on “How IITians can help India become a Vishwaguru,” emphasized the importance of utilizing technology to develop rural India. He proposed a new paradigm of development that combines technology and spirituality to lead to happy and sustainable living. Dr. Rajvanshi is establishing a centre of excellence in IIT Kanpur for research and development of high technology for rural development. He had also signed a MoU earlier with the SIIC, IIT Kanpur for agricultural development. He also reminded the audience of IIT Kanpur’s role in policy formation regarding the use of agricultural waste to generate energy in 1990.

Sand Artist Sarvam Patel being felicitated with a memento by Prof. Amitabha Bandyopadhyay, at the inaugural day of Techkriti’23

Sand Artist Sarvam Patel made sand art featuring Dr. APJ Abdul Kalam and the Techkriti logo, at the inaugural day of Techkriti’23
Glimpse from the dance performance at the inauguration of Techkriti’23

Prof. Mahip Singh, Head of Innovation Hub at Dr. APJ Abdul Kalam Technical University, was among the ones who announced the establishment of a dedicated UP startup fund worth 1400 Cr. during the GIS 2023. He addressed the lack of incubation centres in Uttar Pradesh and highlighted his efforts towards promoting entrepreneurship and technology by organizing Hackathons in 5 districts of the state. Prof. Singh also shared his extensive experience in Techkriti, having participated 8 times and spending a year at IIT Kanpur for his projects.
Techkriti’23 featured Tech Talks by Padma Shri and Padma Vibhushan awardee Dr. Rajagopala Chidambaram, former principal scientific advisor to the Government of India, who coordinated the test preparations for Pokhran I and Pokhran II. Dr. R. Chidambaram discussed the significance of emerging technologies such as energy, nuclear, network, and space technologies, along with the importance of technological foresight. He emphasized India’s leadership in the development of nuclear technology and how its success in the peaceful nuclear sector serves as an inspiration for other nations.
Air Chief Marshal Birender Singh Dhanoa, the former Chief of Air Staff of the Indian Air Force, was the second speaker for Tech Talks. He, as a former fighter pilot and Chief Commanding Officer, shared his insights on the procedures, methods, and challenges of flying, along with his experiences from the 1965, 1971 wars and the Kargil conflict. He highlighted the use of the MIG 25 in Kargil, which proved beneficial due to its altitude and speed, enabling coverage of the entire Line of Control. Furthermore, he discussed techniques for solving technical issues in real-time.

In addition to the tech talks, the event also featured an E-Conclave Talk by Mr. Pankaj Agarwal, the Founder and CEO of TagHive, a magician and an entrepreneur. Pankaj Agarwal began his talk by recounting his experiences at IIT Kanpur and sharing his professional journey, from academia to employment and entrepreneurship. He then proceeded to elucidate the connection between business and three pivotal keywords: Evolution, Connection, and Imagination. In order to effectively convey his message, he demonstrated a magic trick for each of these concepts, making the session engaging and interactive.

A special EC Talk on “Entering the World of Investment” was held in the evening with a panel comprising Shobana Prakash, Investment Associate at 100X.Vc, Vikas Sarda, CFO of Unitus Capital and Advisory Board Member at World Association of SME, and Professor Shankar Prawesh, Associate Professor at IME, IITK. The discussion covered various aspects of startup investments, including fundraising, partner selection, dealing with VCs, pitching strategies, and common obstacles.

The day also involved the continuation of workshops from Day 1, including Stock Investment, Java Programming, Web Development, and Digital Marketing. These workshops provided the participants with an opportunity to learn and enhance their skills further in various domains, thereby expanding their knowledge base.

In addition to the ongoing workshops, Techkriti’23 also introduced new workshops that catered to diverse fields, such as Product management and consulting, Drone, Robotics, App Development, and Machine Learning. These workshops, conducted by experts, provided valuable insights and hands-on experience to the participants, thereby helping them to gain a deeper understanding of the respective domains.

Towards the end of the day, Techkriti’23 hosted several fun-filled and entertaining events, including Beat Boxing, Fire Show, Magic Show, Groovy Guys and Comedy Night, to give the participants and audience a scope to unwind.

The Beat Boxing event featured Sunil Suresh, where his skills left the audience spellbound. The Fire Show was a spectacular display of fire dance and performance by Rohan Abraham Jacob and Sarena Beriwala, enthralling the audience with their impressive skills and daring acts. World-renowned magician Kabir Sharma took the stage at Techkriti’23. He dazzled the audience across with his unique blend of skill and showmanship. Groovy Guys presented a scintillating show that promised a night of electrifying music, pulsating rhythms, and non-stop dancing. Finally, the Comedy Night event featured Sundeep Sharma, whose hilarious bits left the audience in splits.

Recent Posts