जरूरतों की जमीन पर
स्वार्थ की खाद और
छल प्रपंच के पानी से
आज कल
ये संस्क्रति तेजी से
कर रही है ग्रो
नाम है:
यूज एंड थ्रो
अर्थात :
रिश्तों की सेहत
प्रेम और विस्वास की
आंच पर मत सेंको
जब, जैसी जरूरत हो
यूज करो, कूड़े में फेंको।
शब्द सामर्थ्य…
ये जो शब्द है न
वो चिंरजीवी, अक्षुण्य
अपराजेय होता है
किसी से नहीं डरता है
कितनी ही बार प्रयोग कर लो
किसी सिक्के की तरह
घिसता भी नहीं, न ही मरता है।
अपनी पूरी पूरी
कीमत अदा करता है
हम हर रोज कितनों को
भाई साहब, बहिन जी कहते हैं
ये संवोधन फिर भी हमेशा
तरोताज़ा रहते हैं
अपने पर उतर आएं तो शब्द
एक गाली में ढल कर
एक साथ
कितनों को निपटा सकते हैं
बाबू, जानू, जान, जानम
जैसे शब्द कितनों को एक साथ
पटा सकते हैं
जो लोग भी
शब्दों को सही तरीके से
संभाल पाते हैं
वो ही शब्द सामर्थ्य से
अपने काम निकाल पाते हैं
शब्द फिर भी
थकते नहीं
दूसरों का जी पका देते
पर खुद हैं कि
पकते नहीं।
Salute to your creativity
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