प्रतिमाओं के प्रहरी- निन्ही पांडेय

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Prachi Dwivedi
जब हौसलों की बुलंदियां आसमान तक हो, कोशिशें भी अपने उफ़ान पर हो, तो सपनों को तो पंख मिलते ही हैं, इस बात को निन्ही पांडे ने यथार्थ कर दिखाया है।
बर्फीली हवाएं हों या आग उगलती लू लहर। इन सबसे बेखबर, वो अलमस्त अपने मिशन को पूरा करने में एकाग्रता से जुटे रहते हैं। ये मिशन उन्होंने स्वयं चुना है, इसे वह तन मन धन से पूरा करते हैं। उनका मिशन है शहीदों की प्रतिमाओं की देखभाल करना। उनकी सफाई करना।  उनके जन्म दिवस व निर्वाण दिवस पर प्रतिमाओं के पास ही एक छोटी सी सभा करके लोगों को उनके बलिदान के संबंध में बताना। ये अलमस्त कोई और नही सर्वेश पांडेय हैं, जिन्हें लोग निन्ही पांडेय के नाम से जानते है।
शहर में स्वतंत्रता सेनानियों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों की एक सौ से अधिक मूर्तियाँ हैं लेकिन वे सब धूल से लथपथ खराब स्थिति में हैं। उनकी सफाई और देखभाल का बीड़ा सिर्फ निन्ही पांडेय ने ही उठाया।
अपने इस अनोखे मिशन के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, “बचपन में मैं अपने पिताजी; प्रोफेसर रंगलाल पांडे से प्रेरित था जो स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियाँ सुनाया करते थे। पैंतीस साल पहले जब मैं मंदिर दर्शन के लिए इलाहाबाद जा रहा था तब ट्रेन में ही मुझे एक कागज़ का टुकड़ा मिला जिस पर चंद्र शेखर आज़ाद पर उनकी तस्वीर के साथ एक लेख छपा हुआ था। उस लेख को पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि उस महान स्वतंत्रता सेनानी की प्रतिमा इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में स्थित है। इलाहाबाद पहुँचते ही मैं आज़ाद की प्रतिमा देखने सीधे अल्फ्रेड पार्क पहुँच गया।
“उनकी प्रतिमा, मुझे उनके संघर्षों की याद दिला रही थी। मुझे जैसे एक प्रेरणा मिली। मैंने पास जाकर देखा तो प्रतिमा पर धूल और गंदगी जमा थी, जिन महापुरुषों ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत की आज़ादी के लिए न्योछावर कर दिया उनकी ऐसी स्थिति देखकर मेरा मन द्रवित हो उठा,  जैसे इन वीर सिपाहियों के त्याग और बलिदान की याद पर धूल जम गयी हो। मैंने रुमाल से उनकी प्रतिमा और मंच पर लगी धूल को साफ़ किया। उसी पल से मैंने अपना जीवन इन महान स्वतंत्रता सेनानियों के लिए समर्पित करने का निश्चय किया। इसीलिए उनकी प्रतिमाओं की देखभाल करना और लोगों में इन वीर महान सपूतों के त्याग और बलिदान के बारे में जागरूकता पैदा करना मेरा उद्देश्य बन गया।“
निन्ही सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद अपनी इस दृढ यात्रा पर निकल जाते है और मूर्तियों की सफाई शुरू कर देते हैं। सबसे पहले वह 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख केंद्रों में एक नानाराव पार्क, बिठूर जाते हैं। वहाँ पर स्थापित प्रमुख शहीद सेनानियों तात्या टोपे, झलकारी बाई, अजीजन बाई और लोकमान्य तिलक, मानीन्द्र नाथ बनर्जी, सालिग्राम शुक्ला और मंगल पांडे की मूर्तियों की सफाई करते हैं। फिर वह शहर के अन्य स्थानों पर लगी स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियों की सफाई के लिए जाते हैं।
निन्ही पांडेय को इस बात का दुःख है कि नाना राव पार्क का नाम ही जिस स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर रखा गया वहाँ उनकी कोई भी प्रतिमा नहीं है। उनकी याद में सिर्फ एक मंच बनाया गया था जिस पर स्थापित शिलालेख भी अब धुंधले होकर पत्थर के टुकड़े मात्र रह गए हैं। लेकिन अब वह उन शिलालेखों को ही पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।
शहीदों की प्रतिमाओं के प्रति उनकी दीवानगी इस कदर है कि वह दिन भर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पैदल यात्रा करके ही अपना संकल्प पूरा करते रहते हैं।
उन्होंने शहीदों की मूर्तियों के आस-पास फेंकी गई गंदगी को हटाने और मूर्तियों को लोहे की जाली से घेरने के लिए “शहीद स्मारक सुरक्षा अभियान” भी शुरू किया है ताकि लोग मूर्ति क्षेत्र को न ही मूत्रालय के रूप में इस्तेमाल कर सकें और न ही वहाँ गंदगी फैला सके।
वह अपने जुटाये हुए संसाधनों से ही मूर्तियों की सफाई का काम भी करते हैं। निन्ही पांडेय बताते हैं कि कानपुर में शहीदों की दो दर्जन से अधिक प्रतिमाओं की धुलाई और सफाई का काम करने के लिए उन्हें कहीं से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती है। इसके लिए 2500 से लेकर 3000 रुपये प्रति माह का खर्चा हो जाता है। उनके पास कमाई का कोई स्रोत नहीं है। बस कुछ नेक और परोपकारी लोग इस काम को करने के लिए उनकी मदद कर देते हैं।
उनके इन प्रयासों को देखने के बाद नगर निगम ने उनको सहयोग देने का मन बनाया है और उनकी मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं।

10 COMMENTS

  1. बहुत खूब ….👌……__प्राची जी का आभार__ ….जिन्होंने शहीदों की प्रतिमाओं की देखभाल करने जैसे साहसिक कार्य का बीड़ा उठाने वाले *निन्ही पांडेय जी * को व्यापक पटल के माध्यम से एक पहचान दिलाई है । संभवतः प्राची जी आपके लेख के माध्यम से शहीदों की प्रतिमाओं के प्रति सरकार एवं आम नागरिक की उदासीनता कम होगी ।

  2. बहुत खूब ….👌……__प्राची जी का आभार__ ….जिन्होंने शहीदों की प्रतिमाओं की देखभाल करने जैसे साहसिक कार्य का बीड़ा उठाने वाले *निन्ही पांडेय जी * को व्यापक पटल के माध्यम से एक पहचान दिलाई है । संभवतः प्राची जी आपके लेख के माध्यम से शहीदों की प्रतिमाओं के प्रति सरकार एवं आम नागरिक की उदासीनता कम होगी ।

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