मेरी कहानी – मेरी ज़बानी

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Pankaj Vajpayee
वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के संपादक डॉ. एम.फ़ीरोज़ खान व विकास प्रकाशन कानपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में थर्ड जेंडर व्याख्यानमाला के अंतर्गत’सात दिवसी वेबिनार आयोजित की गयी। वेबिनार में अनेक थर्ड जेण्डर ने भाग लिया व अपनी आप बीती व्यक्त की । इसी कड़ी में प्रस्तुत है ट्रांसजेंडर सिमरन सिंह की कहानी उन्ही की ज़बानी।

अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करने वाली ट्रांसजेंडर सिमरन सिंह ने जन्मदिन 6 जून 2020 के दिन अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों को वेबिनार द्वारा रूबरू कराया. किन्नरों के विषय में समाज में जो भ्रांतियां हैं उसकी सच्चाई क्या है इसका खुलासा किया ।
मृत्यु के उपरांत किन्नर शरीर को चप्पलों से मारना अथवा अंतिम विधी के लिए ले जाते समय खड़े रख कर ले जाना ऐसा कुछ भी समाज में नहीं होता है. यहां तक की मृत्यु के पश्चात किन्नर की अंतिम इच्छा को ध्यान में रखते हुए क्रिया कर्म किया जाता है. मिर्च मसाला लगाकर स्वार्थी लोग अपनी बातें पुस्तकों की लोकप्रियता अथवा समाचार बच्चों की शोभा बढ़ाने के लिए गलत भ्रांतियां फैला देते हैं .लेखक को सोच समझकर लेखन करना चाहिए क्योंकि लेखन स्थाई हो जाता है ।

लेखन के लिए हमारा ताली बजाना अथवा ताली पीटना आवश्यक नहीं है । आपकी बातों में वजन होना चाहिए. जिसे समाज सुन सके .आपने किन्नरों की दुर्दशा के लिए उस परिवार को जिम्मेदार बताया जिस परिवार में किन्नर बच्चे का जन्म होता है । सर्वप्रथम वह मां जो अपने बच्चे को अपने गर्भ में पालती है , वही मां अपने किन्नर बच्चे से अपनी पहचान को छुपाना चाहती है , जिस तरह से एक सामान्य बच्चे को विरासत में मां पिता की संपत्ति घर, नाम मिलता है किन्नरों को यह उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए । इस तरह का माहौल समाज ने बना दिया है । इसके बाद भी लोग उम्मीद करते हैं कि हम समाज के साथ अच्छा व्यवहार करें ।

मेरे माता-पिता ने मुझे घर से निकाल बाहर कर दिया । तीन बार आत्महत्या करने का प्रयास किया । परिवार के नजदीकी लोगों के द्वारा यौन शोषण की प्रताड़ना को सहा । किसी ने मेरे पक्ष में आवाज नहीं उठाई । दूर से देखने वालों ने सिर्फ बेचारा कहा , अपनाया नहीं । जब क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है तो समाज हमसे सभ्यता की उम्मीद रखता है । किन्नरों की दुआ का मतलब पैसे देकर दुआ खरीद लेना नहीं होता । आप उनसे सही रिश्ते बनाए । हम दया का पात्र नहीं बनना चाहती और नहीं किन्नर सहानुभूति से जीना चाहते हैं । उनके साथ गलत व्यवहार ना हो और उन्हें बदनाम नहीं किया जाए । हम सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए सक्षम बनना चाहते हैं । किंतु सर्वप्रथम समाज को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा । हर ट्रांसजेंडर का दैहिक शोषण अपने आप में शर्मनाक बात है. उनके जीवन की पीड़ा को और अधिक गहरा करने वाला कृत्य समाज उनके साथ करता है . उसके पश्चात उम्मीद रखी जाती है इस कृत्य को वह बयान न करें और चुपचाप सहते रहे ।

मैं समाज के साथ चलने वाली सिमरन डेरे में नहीं रहती, अकेले रहती हूँ । किंतु अपने एकाकी जीवन को समाज के साथ जोड़कर सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित हूँ । मैंने वैश्विक संकट के समय एनजीओ के माध्यम से अनाज वितरण का कार्य किया । लेकिन मैं दुखी तब हो जाती हु जब lockdown के समय घर के लोगों ने भी , खैरियत जानने की कोशिश तक नहीं की । समाज के समक्ष नहीं किंतु फोन पर बात करने से क्या घर की मर्यादा कम हो जाती है । परिवार के लोग समाज के डर से हमारा बहिष्कार करते हैं । हमारा ही परिवार जब हमें अलग मान चुका है तो समाज हमें कैसे नजदीक लाएगा । पैसों की जरूरत पड़ने पर पैसा लेने में हमारे परिवार के लोग नहीं कतराते ।

ट्रांसजेंडर को दोहरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर ना करें । परिवार के लोग जबरन उनकी शादी तो करवा देते हैं किंतु ऐसे व्यवहार से कई किन्नरों की जिंदगी और अधिक मुश्किलों से घिर जाती है । जो समाज स्वयं बदलने की स्थिति में नहीं है वह दूसरों में बदलाव कैसे लाएगा । बदलाव के क्रम में सबसे पहले व्यक्तिवादी मनोवृत्ति बाधक है अतः परिस्थितियों से भागो नहीं जागो और बदलो । मैं साहित्यकारों लेखकों और पत्रकारों से अपील करती हुँ कि सहानुभूति के साथ किताबों में हमें नहीं उकेरा जाए .लोकप्रियता के लिए किन्नरों का इस्तेमाल न हो. वे अपने किन्नर जीवन से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं।
आशा करती हूँ कि लेखकों व सामाजिक संस्थाओं के सामूहिक प्रयासों से किन्नरों की स्थिति समाज के सम्मुख स्पष्ट हो सकेगी।

  • प्रस्तुति – पंकज बाजपेई