“आशा ये पल हमें याद आएंगे” रूपा ने अपने बैग की ज़िप बन्द करते हुए मुझसे कहा। “हाँ रूपा, न मालूम कब इतने वर्ष निकल गए, हॉस्टल लाइफ का पता ही नहीं चला और देखो अब आज रात के बाद हम सब हमेशा के लिए एक दूजे से दूर हो जाएंगे।” कहते हुए मेरे सामने पंतनगर में बिताये वर्ष किताब के पन्नों की तरह पलटने लगे।
आगरा फोर्ट एक्सप्रेस से पंतनगर स्टेशन पर उतरने के बाद जब पहली बार विश्वविद्यालय में प्रवेश किया तो मालूम ही नहीं था कि यहाँ से इतनी यादें जुड़ जाएंगी। वो रैगिंग पीरियड में अलग-अलग रंग के कपड़े पहनना और बालों में खूब सारा तेल डालकर औऱ बाल चिपका कर कंघी करना, सीनियर को झुक कर सलाम करना और सिर झुका कर चलना, तब भले ही अच्छा नहीं लगता था लेकिन अब उसकी यादें सचमुच मन को आह्लादित कर रहीं थीं।
“आगे तुमने क्या सोचा है?” तभी चंद्रलेखा ने उदास मन से पूछा। “कोई खास नहीं, कोई जॉब देखेंगे, और तुम”। सुलेखा ने खिड़की से बाहर देखते हुए जवाब दिया। “करना तो बहुत कुछ चाहती हूं पर तुम तो जानती हो घर वालों ने तो मेरी शादी भी पक्की कर रखी है”। चंद्रलेखा उदास हो गयी। “मैं कार्ड भेजूंगी तुम लोग आना जरूर” उसने दोहराया। “कोशिश तो पूरी करेंगे चंद्रलेखा पर तुम तो जानती हो भले ही हमारी शादी तय ना हो पर भारत में लड़की डिग्री लेकर घर पहुंची नहीं कि वर चाहिए विज्ञापन की भेंट चढ़ जाती है और फिर कहाँ मिलना हो पाता है” उसकी वर्षों की रूममेट सुनीता ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
सबकी बातों के बीच मुझे विश्वविद्यालय की अपनी पहली क्लास याद आ गयी। उस समय लगता था ये सब कितना बकवास है। रात को 2 बजे तक नींद में झूमते हुए पढ़ो और सुबह रटा रटाया एग्जाम में उतार आओ। पर आज लग रहा था कि बस एक बार फिर ओवर्ली एग्जाम हो और वैसे ही पढ़ें। वही नोट्स व किताबें जो सेमेस्टर पूरा होते ही फेंक देते थे आज उसके एक-एक पन्ने कीमती लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि अपने जीवन के इस इतिहास को कितना संजो लूं।
मन को बहलाने के लिए बगल के कमरे में गयी तो शिप्रा अपने हाथ में एक कागज पकड़े शून्य में निहार रही थी। उसके एक फ्रेंड का कोई पुराना पत्र था। मेरे पूछने पर वो फफक के रो पड़ी, पर बोली कुछ नहीं। “अब हम कभी नहीं मिल पाएंगे” बस इतना ही निकला था उसके मुंह से। ज़िंदगी भी कितनी विडंबनाओं से भरी होती है, पल भर में ही सारे सपने बनते या बिगड़ जाते हैं। कभी कभी हम किसीसे इतना प्रेम कर बैठते हैं कि बिछड़ने का दुःख जीवन भर कचोटता रहता है।
टहलते हुए छत पर पहुंचने पर देखा कि सायरा भी वहां खड़ी अपलक दूर जलते लैंप पोस्ट को निहार रही थी। पंतनगर की सड़कें, मार्केट, होस्टल औऱ हाँ कतारबद्ध अशोक के पेड़, अब सब छूट जाने वाले थे। वो सहपाठियों से नोंकझोंक, चुपचाप ब्लैक बोर्ड पर अगली क्लास की प्रोफेसर का सहपाठियों में प्रचलित निक नेम लिख देना, मास बंक और मस्ती में एग्जाम पोस्टपोन कराना अब ज़िंदगी में कभी नहीं दोहराया जाने वाला था। “यार आशा कभी सोचा ही न था कि एक दिन होस्टल की सब साथी बिछड़ जाएंगी, अब देखो ना आज पूनम का चांद भी अच्छा नहीं लग रहा, याद है ऐसी ही एक चांदनी रात को तुम्हारा बर्थडे यहीं छत पे बनाया था तो यही चाँद कितना मनमोहक लग रहा था”। सायरा ने याद दिलाया। मेरा वो होस्टल लाइफ का पहला बर्थडे था। हम सबने आधी रात तक छत पर मस्ती की थी औऱ नेक्स्ट डे फुल बंक।
मेरी प्रिय मित्र वर्षा की बस रात में ही थी। उसने जब जाने के लिए बैग उठाया तो मन हुआ कि बस एक दिन और सब बैचमेट्स रुक जाएं और वैसे ही मौज मस्ती करें, लेकिन वक़्त कभी नहीं रुकता। वर्षा आंखों में आंसू भरकर मुझसे लिपट पढ़ी। मैं उसे जाते हुए नहीं देख सकती थी। मैंने मुंह मोड़ लिया। वो अनमने मन से अपना बैग उठा के बाहर निकल गयी। मैं भागते हुए बाहर पहुंची। वर्षा रिक्शे पर बैठी दरवाज़े की ओर देख रही थी। “मुझे देखते ही बोली मुझे पता था तू ज़रूर आएगी”। उस चांदनी रात में मैं आंखों से ओझल हो जाने तक वर्षा के रिक्शे को देखती रही। मेरी प्रिय साथी अपने नए जीवन की तरफ बढ़ चुकी थी। मैं भरे मन से होस्टल लाइफ की यादों को समेटे अपने छात्रावास की सीढ़ियां चढ़ रही थी। किसी कमरे से लता जी के एक पुराने गाने की हल्की सी धुन आ रही थी, – ‘किसी का प्यार लेके तुम, नया जहां बसाओगे, ये शाम जब भी आएगी, तुम हमको याद आओगे’।
Wow …collage life ki yaadyen taaza ho gai …
True picturization of last moments
Ek bar phir se sabhi yade taza ho gayi
A very touching story.
Very beautiful description
True moment of the college life.
Very good nice 💓 touching.
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