सर्दियों के लिए कुम्भक प्राणायाम किसी वरदान से कम नही है। ऋषियों मुनियों द्वारा इस प्राणायाम का उपयोग ठण्ड को दूर करने के लिए किया करते थे।कुम्भ का मतलब घड़ा (मटका) होता है।जो आकर घड़े का होता है ठीक उसी तरह से फेफड़े में हवा भरकर उसे घड़े के आकर का बनाने का प्रयास किया जाता है।इसलिए इसे कुम्भक प्राणायाम के नाम से जाना जाता है। कुम्भक प्राणायाम दो तरह का होता है-अंतः कुम्भक एवं वाह्य कुम्भक। जब साँस फेफ़ड़े में भरकर रोकतें हैं तो अंतः कुम्भक और जब साँस बाहर छोडकर रोकते हैं तो वाह्य कुम्भक कहा जाता है। कुम्भक को प्राणायाम का दिल कहा जाता है।यह मन की चंचलता को कम करके मन को एकाग्र करने का सबसे अच्छा साधन है।वैसे आप ने सुना ही होगा ‘दमा'(अस्थमा )दम के साथ जाता है,लेकिन कुम्भक प्राणायाम का अभ्यास अस्थमा जैसी कठिन बीमारी को भी ठीक करता है।
कुम्भक प्राणायाम करने की विधि-
सबसे पहले सुखासन या पदमासन में किसी समतल जमीन पर स्वच्छ हवादार जगह पर चटाई (योग मैट) बिछाकर बैठते हैं। उसके बाद दोनों हाथ की सारी उगुलियों को आपस में मिलाकर दोनों अँगूठे नाक को पकड़ने के लिए खाली रखते हैं।
अब मुँह को बंद रखते हुए दोनों नासारंध्रों (नाक) से साँस को बाहर निकाल कर दोनों हाथ के अँगूठे से नाक को बंद करके मुँह को चोंच के आकर का बनाकर साँस को मुँह से खींचकर फेफड़े में यथासम्भव भर लेते हैं। अब गर्दन को आगे झुकाकर ठुड्ढी (चिन) को सीने के ऊपरी भाग से लगाने का प्रयास करते हैं और दोनों हाथ की सबसे छोटी उंगुलियों को भी सीने से लगा लेते हैं। दोनों गाल को भी फुलाकर रखते हैं जितनी देर साँस को केफ़डे में रोक पाएं उतनी देर रोकतें हैं जब न रोक सके तब गर्दन को सीधा करके नाक से साँस को छोड़ देते हैं।
कुम्भक प्राणायाम की समय सीमा-
कुम्भक प्राणायाम का समयानुपात 1:4:2 (1 भरना, 4 रोकना, 2 छोड़ना) का होना चाहिए । वैसे तो सारे प्राणायाम की समयानुपात यही होती है लेकिन इसे अपनी क्षमतानुसार कम कर सकते हैं। इसे 5 से शुरु करके 10 बार तक कर सकतें हैं। इस प्राणायाम में पूरा ध्यान साँस को जादा से जादा क्षमतानुसार रोकनें पर होना चाहिए। सुबह,दोपहर,शाम खाली पेट किया जा सकता है।
कुम्भक प्राणायाम के लाभ-
1-उम्र को लम्बा बनाने का सबसे अच्छा प्राणायाम माना जाता है।
2 -कुम्भक प्राणायाम शरीर को गर्मी प्रदान करके सर्दी से बचाता है।
3-अस्थमा (दमा) जैसी समस्याएं होने से बचता है एवं दमा की शुरूआत
को कुम्भक प्राणायाम ठीक भी करता है।
4-एकाग्रता को बढ़ाता है एवं मानसिक समस्याओं को दूर करता है।
5-फेफड़े को मजबूत बनाता है एवं बंद छिद्रों को खोलता भी है।
6-आक्सीजन के लेने (सोखने ) की क्षमता बढ़ जाती है जिससे रक्त को शुद्ध करने में मदत मिलती है।
7-संयम एवं संकल्पशक्ति को विकसित करता है।
8-भय,चिंता एवं नकारात्मक विचारो को दूर करता है।
9-याददास्त को बढ़ाता है। बच्चों के फेफड़ों को विकसित करने का सबसे अच्छा प्राणायाम है।
10-चेहरे की चमक को बढ़ाता है एवं चेहरे की झुर्रियों को दूर करता है।
11-दाँतों में गरम ठंडा पानी लगने जैसी समस्या को ठीक करता है।
12 – पायरिया की समस्या को दूर करता है।
कुम्भक प्राणायाममें सावधानियाँ –
उच्च रक्तचाप एवं ह्रदय रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
जिनके कान के पर्दे फ़टे हों उन्हें नहीं करना चाहिए।
क्षय रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
पुराने दमा के रोगी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।
जींर्ण-क्षींण (कमजोर ) रोगी को कुम्भक नहीं करना चाहिए।
विशेष- कुम्भक में ध्यान रुकी हुई साँसो पर रखना चाहिए। संभव हो तो बंधों (मूलबंध ,उड्डयन बंध,जालंधर बंध ) का भी प्रयोग करना चाहिए,कुम्भक का लाभ बढ़ जायेगा। रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए। गर्दन दर्द में गर्दन सीधा रखना चाहिए।
Doctor Sahab apki website ka niyaamit pathak hun. Apke dwara batai gai yog ki vidhiyan aisi saral hoti hain ki ek naya vyakti bhi asani se yog sikh sakta hai. apka bahut-bahut abhar. apke prayason se logon ko jiwan jine ki nai vidha sikhane ko milti hai. apka bahut bahut dhanyawad.
आप को हृदय से धन्यबाद पढ़ने और इतना अच्छा प्रोत्साहन करने वाले शव्द के लिए।
आपके आर्टिकल अत्यंत उपयोगी होते हैं
Millions thanks
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