शौक सभी करते है, मगर कुछ शौक किसी शख्सियत की पहचान भी बन जाते हैं।एक अनोखा शौक आलोक मेहरोत्रा ने भी किया और उस शौक ने आज उनको इस भीड़ से अलग खड़ा कर दिया है।
आलोक मेहरोत्रा ने माचिस की डिब्बियों का संग्रह किया है, इस संग्रह की विशेषता यह है कि जब देश आजाद हुआ तब सभी चुनावी दल अपने-अपने चुनाव चिंह माचिस की डिब्बियों पर छपा कर आम जनता में वितरण करते थे। प्रचार का प्रचार और माचिस का सद्पयोग।
इनके पास 1500 से अधिक राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह वाली करीब 1.5 लाख माचिस की डिब्बियां है।
वर्ष 1952 से लेकर 1957 तक कांग्रेस दो बैलों को जोड़ी वाले चुनाव चिंह पर चुनाव लड़ा करती थी। उस समय घर -घर चुनाव चिन्ह पहुचाने के लिए पार्टी की तरफ से दो बैलों की जोड़ी के चित्र वाली माचिस बनवाई गई और बाटी गयी। 1967 तक समता पार्टी मशाल चिंह पर चुनाव लड़ा करती थी।वो मशाल छपी माचिस लोगों में वितरण करती थीं।
अक्सर लोग माचिस इस्तमाल करने के बाद डिब्बी फेंक देते है । मगर इन्होंने उनका संकलन किया। आज इनके पास तरह -तरह के चित्रों, आकार ,प्रकार वाला डेढ़ लाख से अधिक माचिस की डिब्बियों का संग्रह है।दो इंच से लेकर ढेड़ फ़ीट लंबी ,पांच से लेकर 500 डॉलर कीमत वाली डिब्बी भी उनके संग्रह में हैं। चित्रों की बात करें तो देश के प्रमुख दार्शनिक स्थलों, देश -दुनियां के स्थानों, प्रसिद्ध व्यक्तियों देश-दुनिया के स्थानों, प्रसिद्ध व्यक्तियों, देश-विदेश में जारी तरह-तरह के प्रतीक चिंन्ह वाली माचिस हैं।
पिता की कपड़े की दुकान पर बाहर से आने वाले खरीदारों के द्वारा लायी गयी माचिस को खेलते-खेलते उसको अपना शौक बना लिए आलोक मेहरोत्रा अब अपने इस संग्रह को गिनीज़बूक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में भेजने की तैयारी कर रहे हैं।
शानदार प्रकाशन। जीवन के कई क्षेत्रों से जुड़े जकरिपूर्ण मनोरंजक आलेख। बधाई
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