शाम के 6 बजे थे। मैं घर के सारे काम निपटा कर वाक पर जाने की सोच ही रही थी कि बाहर पड़ोसी के बच्चे की आवाज सुनाई दी, खोलो अले कोई है खोलो…खोलो की आवाज के साथ-साथ हल्की हल्की सुबकने की आवाज भी आ रही थी।पुकार धीरे -धीरे आर्तनाद में बदल रही थी अले खोलो……! कोई सुन रहा है।मुझे इस एक वाक्य ने झकझोर दिया।……कोई सुन रहा ….क्योंकि मैं तो इतनी देर से ये आवाजें सुन रही थी।मैं खुद को रोक नही सकी और बिना चप्पल पहने दरवाजा खोल कर बाहर भागी।
पड़ोसी के दोनों बच्चे एक 5 साल और एक मात्र 3 वर्ष का पीठ पर पिट्ठू बैग वाला बस्ता लादे और गले में वाटर बॉटल लटकाए खड़े थे।दरवाजा पीटने की जिम्मेदारी बड़े ने ले रखी थी वो रोता जा रहा था और आवाजें लगा रहा था,छोटा सहमा सा खड़ा उसे देख रहा था।दरअसल दिनों बच्चे इस समय किसी कोचिंग से पढ़कर लौटते थे और जिस वैन से वो जाते थे वैन वाला उन्हें सीढ़ियों तक छोड़ देता था ये मैंने आते जाते कई बार देखा था और अपनी स्वभावगत कमजोरी के कारण बच्चों से ही पूंछ लिया था कि इत्ती शाम को बैग लटका कर कहाँ जाते हो।मासूम बच्चों ने ही बताया था आंटी कोचिंग जाते हैं।
मुझे देखते ही जैसे बच्चों की हिम्मत वापस आ गयी ।मैंने प्यार से दोनों के सर् पर हाथ फेरा उन्हें ढांढस बंधा कर पूछा कि क्या घर में कोई नही है,बच्चा बोला पता नही,मैंने कॉल बेल दबाई कई बार दरवाजे पर जोर-जोर से थाप भी दी मगर भीतर से कोई उत्तर नही आया।तब तक उनके वैन का ड्राइवर ऊपर आ गया शायद बालकनी से पहुँच की सूचना नही मिलने पर आ गया।उसने भी दरवाजा पीटा मगर सन्नाटा।
यद्यपि मेरी उपस्थिति से बच्चे संभल गए थे ,मैंने दोनों का बैग पीठ पर से उतारा बॉटल ली और कहा घबराओ नहीं मेरे घर आकर बैठ जाओ साथ ही मैंने वैन वाले से कहा कि इनसे मम्मी पापा का नंबर ले तो पूछे घर मे कोई है या नही और वो कब आएंगे।उसने फ़ोन मिलाया पता चला किसी रिश्तेदार का लड़का घर मे है मगर सायद सो रहा है या कहीं गया है।पता नही क्यों कि ऑटोमैटिक लॉकिंग सिस्टम में बाहर से पता नही चल पाता भीतर कोई है ये नही।
मैंने वैन वाले से फ़ोन लेकर उनके पापा से पूछा कि क्या मैं इन्हें अपने घर पर बैठा लूँ। उनकी अनुमति मिलते ही मैं प्यार से दोनों को भीतर लायी बिठाया और पूछा कुछ खाओगे ।मुझे लगा कोचिंग से लौटे बच्चे घर में जरूर कुछ खाते होंगे। मगर मन का संसय कि किसी के बच्चे को कुछ नुकसान न कर जाए ,मैं मन मसोस कर रह गयी।मैंने यूं ही कह दिया बेटा मैगी होती तो बना देती।पर मेरे पास मैगी नही है।तभी बड़ा बच्चा बोला आंटी मेरे बैग में मैगी का पैकेट है वो जिज्ञासा का बर्थडे था ना तो सबको दिया था उसने।उसने एक गिफ्ट हैंपर निकाला जिसमें मैगी के साथ चॉकलेट ,पापिन्स ,चिप्स और बिस्किड्स थे।मैंने पूछा मैगी बना दूँ ,मेरा इतना पूछते ही छोटा उछल पड़ा ।हाँ आँटी मैगी बना दो।उसके उत्साह को देखकर मुझे हँसी आ गयी।
मैंने फ्राईपेन में मैगी डाल कर गैस पर रखी थी कि घंटी बजी ।दरवाजा खोला तो सामने बच्चों की माँ जीन्स टॉप वाली मॉर्डन मम्मा खड़ी थी जो मुझसे मुखातिब हुए बच्चों की ओर झपटी ,क्यो घर में सोनू था तो तुम लोग घंटी बजाते । बेटा सहम कर मासूमियत से बोला मम्मा आँटी ने बजायी थी मगर दरवाजा खुला ही नही।उसने झपट कर बच्चों का सामान उठाया बोली चलो ।मैं खड़ी उसकी हरकत देख रही थी।जो किसी बैंक में नौकरी करती थी और आस-पड़ोस किसी से बात करना पसंद नही करती थी न ही बच्चों को बात करने देती थी।अब मेरा धैर्य टूटा तो मैंने उसका हाथ पकड़ा खींच कर रसोई तक लायी और कहा ये बन जाये तो खिला कर ले जाओ वो मेरा हाथ झटक कर बोली मैं उन्हें मैगी वैगी नही देती।मैंने कहा इन्ही के बैग में थी।उसे फटा हुआ पैकेट भी दिखाई तो वो थोड़ा ढीली पड़ी।।।मुझे उसका तरीका अच्छा नही लगा सो बोल पड़ी,बच्चे रो रहे थे।इसलिए भीतर ले आयी ,तुम्हे बुरा लगा हो तो माफ करना।अब वो थोड़ा सहज होकर बोली नहीं ऐसी कोई बात नही ………..! घर में लड़का था फिर भी…….।मैंने कहा मैगी लेती जाओ और एक प्लेट में डाल कर उसे पकड़ा दी कि जाओ ….खाओ या नाली में फेंक दो मग़र ले जाओ।
मां की ममता का मिथ मुझे भ्रमित कर रहा था। मैंने तो सुन रखा था कि अपने बच्चों से प्यार करने वाले से तो हर मां प्यार करती हैं।फिर मुझे लगा कि महत्वाकांओं ने शायद ममता के स्वरूप को भी बदल दिया है।इसलिए किसी के बच्चे पर ममता लुटाने से पहले माँ को समझना बहुत जरूरी है।