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दो किलोमीटर-जंगल की ओर

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Dr. R.K.Singh

“टाइगर के पंजे के निशान” मेरे साथी वाइल्डलाइफ विशेषज्ञ ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। मैने तुरंत उस ओर देखा। बड़े बड़े स्पष्ट निशान इंगित कर रहे थे कि इस जगह से अभी अभी एक टाइगर गुजरा है। ध्यान से देखने पर पंजे का पैटर्न आयताकार था, जिससे स्पष्ट हो रहा था कि वह कोई बाघिन थी। क्योंकि वयस्क नर का पंजा चौकोर होता है। हमने दो कदम ही बढ़ाये थे कि मुझे छोटे छोटे पंजे के निशान भी मिले। अब हमारे सतर्क होने की बारी थी। परिस्थितियां इंगित कर रही थीं कि बाघिन के साथ उसका शावक भी था। वैसे तो जंगलों में घूमते हुए मेरा कई बार बाघ से सामना हुआ है। पर शावक के साथ बाघिन खतरनाक हो सकती थी। अतः हम अधिक सजग हो गए।

दरअसल, सरिस्का टाइगर रिजर्व में कई दिनों से खुली जिप्सी में वन्यजीवों का अध्य्यन करते हुए एक दिन यह तय हुआ कि आज जंगल की एक सूनी पगडंडी पर दो किलोमीटर चलके वन्यजीवों को देखा जाए। सुबह की सैर के साथ जंगल की हरी-भरी, शांत व पक्षियों के कलरव से भरपूर राह पर चलने में जो आनंद है वह धरती पर कहीं नहीं। आगे बढ़ने पर टाइगर के पंजे एक पेड़ की ओर मुड़ गए थे और पुनः राह पर दिख रहे थे। स्पष्ट था कि बाघिन ने पेड़ पर अपने क्षेत्र की मार्किंग के लिए अपनी यूरिन की गंध छोड़ी थी, वह सन्देश दे रही थी कि यह क्षेत्र उसका है। हम हल्के कदमों से धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे। आगे नीलगायों का गोबर का ढेर बता रहा था कि यह उनका आपसी कम्युनिकेशन बिंदु है। सभी एन्टीलोप की उतपत्ति मूलतः अफ्रीका में हुई थी अतः खुले सवाना मैदानों में आपसी सन्देश देने का यह एक बेहतरीन तरीका है। और आज भी इनके जीन्स में है। पास में ही छोटे से पंजे के निशान देख हम सब असमंजस में पड़ गए कि यहाँ से कौनसा जीव गुजरा होगा। तभी वहाँ झाड़ू लगाने जैसे निशान भी देख हम आश्वस्त हो गए कि यहाँ अवश्य एक साही आयी थी औऱ उसके कांटों से यह चिन्ह बने हैं। दूर किसी नर चीतल हिरण के बोलने की आवाज़ जंगल की शांति को भंग कर रही थी, कोई हिरण मादाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था। कुछ दूर ही राह को पार करते खुरों के निशान बता रहे थे कि किस तरह बाघिन को देखते ही यहाँ भगदड़ मच गई होगी। मुड़ती राह पर किसी मोरों के झुंड के पंजों के निशान मन को आनन्दित कर रहे थे कि तभी पपीहे की आवाज ने सन्नाटे को चीरते हुए हमारे कानों को भेदा। कैसा ग़ज़ब का आकर्षण था उस आवाज़ में। जंगलों में मोर की आवाज़ एक रोमांच उतपन्न करती है। हम जंगलों का पूर्ण आनन्द लेते हुए धीरे धीरे घने जंगलों में प्रवेश कर गए। एक साथी ने आवाज़ दी कि यहाँ तेंदुए का भी पंजा है, लेकिन पंजे के साथ में जमीन पर नाखूनों के भी चिन्ह बता रहे थे कि यह किसी लकड़बग्घे के पांव के निशान हैं। ऐसा लग रहा था कि शायद वह बाघिन का पीछा कर रहा था। ताकि उसके शिकार में से अपना हिस्सा लेके भाग सके। वहीं पेड़ों पर रहिस्स मकाक बंदरों के झुंड का अल्फा मेल अपना साम्राज्य दिखाने के लिए झुंड के अन्य नारों को अपने बड़े -बड़े दांत दिखा रहा था।

दूर एक तालाब में विभिन्न प्रकार के पक्षी अठखेलियाँ कर रहे थे। साम्बरों का झुंड पानी में मस्ती के मूड में था। और चीतल हिरन, जी हाँ रामायण के स्वर्ण-मृग, सूखी घास को चरते हुए माहौल को औऱ रोमांचमय कर रहे थे। हम सब जंगल की सुंदरता में इतने डूब गए कि पता ही नहीं चला कि कब जंगली सुअरों का झुंड वहां आ गया। हालाँकि ये जल्दी आक्रमण नहीं करते लेकिन एक नर जंगली सुअर के बड़े -बड़े दांत देख कर पसीने छूटना स्वाभाविक है।

घने होते जंगल व छोटी छोटी पहाडियों के बीच सर्पिलाकार कच्चे रास्ते एवं आगे रास्ते को पार करता नीलगायों का झुंड अविस्मरणीय था। तभी एक सांबर हिरण ने विचित्र सी आवाज़ निकाल कर पूंछ उपर उठा ली, हमें लगा कि वह हमें देख कर सबको सावधान कर रहा है। लेकिन आगे बढ़ने पर लंगूरों के झुंड ने पेड़ों पर कूद-फांद शुरू कर दी, पक्षियों ने पेड़ पर जोर से चहकना शुरू कर दिया। तब हमें एहसास हुआ कि सांबर हिरण आलार्मिंग कॉल दे रहा था कि बाघिन कहीं आसपास ही है। यह एक रोमांचित कर देने वाला एहसास था। लेकिन बाघिन के साथ शावक के भी होने की आशंका से हमने जंगल में विचरण करते बाघ को फिर कभी देखने का निर्णय लिया।हम जंगल की पगडंडियों पर वापस लौट रहे थे। जंगल में यदि कुछ ना दिखे तब भी वन्यजीवों द्वारा बनायी पगडंडियां ही अपने आप में बहुत कुछ बता जाती हैं। महानगरों के कोलाहल और तनाव से दूर प्रकृति की असीम सुंदरता को सुरक्षित रखे ये जंगल मात्र दो किलोमीटर की पैदल यात्रा में हमारे लिए इतना कुछ सँजोये हुए थे। यहाँ सुकून, शांति और रोमांच सब कुछ है बस देखने वाले का नज़रिया होना चाहिए।

सूर्यभेदी प्राणायाम (जोश वर्धक)

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Dr. S.L. YADAV

बिधि,लाभ एवं सावधानियाँ-

सूर्यभेदी प्राणायाम – प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ होता है प्राण (वायु )को आयाम (रोकना) देना अर्थात ऐसी प्रक्रिया जिसमे सांसो को सामान्य सांसों से ज्यादा देर तक रोका जाये प्रणायाम कहलाता हैं।

“श्वाँस प्रश्वांस योर्गति बिच्छेदः सः प्राणायाम”।
अर्थात दो श्वाँसों के बीच में अंतर कर देना ही प्राणायाम कहलाता है।
इसे जिस तरीके से रोकते हैं उससे उसका विशेष नामकरण होता हैं।
चूँकि इस प्रणायाम में दाहिने नासिका/सूर्य स्वर/गरम स्वर/पिंगला स्वर से साँस भरते हैं,इसलिए इसे
सूर्यभेदी एवं सांसों को बिधि पूर्बक रोकते (प्राणायाम)भी हैं इसलिए इसे सूर्यभेदी प्राणायाम कहते हैं।
सभी प्रकार के प्राणायाम के मुखयतया तीन (3) चरण ही होते हैं।

1 .पूरक ( श्वाँसों को भरना)
2. कुम्भक ( श्वाँसों को रोकना)
3.रेचक ( श्वाँसों को छोड़ना )

सूर्यभेदी प्राणायाम की बिधि –

सबसे पहले खाली पेट किसी हवादार(शुद्ध) एवं समतल जमीन पर योग मैट (चटाई) बिछाकर किसी ध्यानात्मक आसन पदमासन (चित्रानुसार) या सुखासन में (पालथी लगाकर) बैठते हैं। फिर अपनी बायें हाथ की हथेली को कप के आकर(अंजली मुद्रा) का बनाकर नाभि पर रखते हैं। दाहिने हाथ की तीन उगुलियों के सहारे (चित्रानुसार) नाक को पकड़ते हैं। सबसे पहले बाएं तरफ के नासिका को बंद करके मलद्वार/रेक्टम (मूलबन्ध) को ऊपर की तरफ खींचते हुए दाहिने नासिका से साँस भरकर दोनों नासिका बंद करके गर्दन आगे की तरफ झुकाकर (जालंधर बन्ध लगाकर) उसका 4 गुना समय तक रोककर फिर गर्दन सीधा करके बायें नासिका से 2 गुना समय लेते हुए साँस धीरे धीरे छोड़ते हैं पेट पीठ से चिपक जाय (उड्डयन बंध) यह 1 चक्र पूरा हुआ। इसका अनुपात 1:4:2 का होना चाहिए। लेकिन शुरुआत के आप अपनी क्षमतानुसार ही करें। 5 से 11 बार या इसे 5 मिनट से 10 मिनट तक किया जा सकता है।

सूर्यभेदी प्राणायाम के लाभ – यह प्राणायाम शरीर को गर्मी प्रदान करता है जिससे सर्दियों की सभी समस्याओं से बच जाते हैं।

निम्न रक्त चाप को सामान्य बनाने के लिए सबसे अच्छा प्राणायाम है।
अग्नाशय को सक्रिय बनाकर डायबिटीज (मधुमेह/शुगर) को समस्या को दूर करता है।
खाँसी,जुखाम,एलर्जी,अस्थमा/दमा ,जैसी तकलीफो से निजात दिलाता है।
श्वाँसों की बचत करके जीवन को लम्बा/दीर्घायु बनाता है।
सर्दियों में किया जाने वाला सबसे अच्छा प्राणायम है।
नस नाड़ियों को साफ,मजबूत एवं लचीला बनाता हैं।
शरीर को ऊर्जा देकर शरीर का जोश एवं उमंग बढ़ाता है।
फेफड़े को साफ,मजबूत करके आक्सीजन के सोखने की क्षमता को बढ़ा देता है।
प्रजनन क्षमता को बढ़ाकर प्रजनन संबंधी दोषों को दूर करता हैं।
पाचक अंगो को सक्रिय बनाकर अपच को समस्या को दूर करता है।
रक्त संचार बढ़ाकर जोड़ों की समस्या से निजात दिलाता है।
मन एवं शरीर को अपार ऊर्जा प्रदान करके आलस्य को दूर करता है।

सूर्यभेदी प्राणायाम की सावधानियाँ –

उच्च रक्तचाप वालों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
बिना आवाज के धीरे धीरे साँस भरना एवं छोड़ना चाहिए,झटका बिलकुल नहीं देना चाहिए।
पित्त प्रधान लोगों को भी इसे नहीं करना चाहिए।
रीढ़ की हड्डी सीधी रखना चाहिए एवं ध्यान श्वाँसों पर रखना चाहिए।
बुखार के समय भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए
विशेष -आसनो के बाद प्राणायाम करने से उसका लाभ 10 गुना बढ जाता है। किसी भी प्राणायाम का
अभ्यास किसी योग्य योग विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए। प्राणायाम हमेशा शौंच से निवृत्ति
होकर खाली पेट किसी स्वच्छ हवादार जगह पर ही चाहिए। प्राणायाम शांत मन से करना चाहिए।

Sensor Fitted Wrist Band for tremors’ watch

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G.P. Varma

Students and teachers of the department of Humanities and Social Sciences (HSS) at the Indian Institute of Technology (IIT-K) have developed a wrist band which could detect the tremors and can differentiate it with the tremors of Parkinson’s disease among its users at an early stage.

The wrist band fitted with highly sensitive sensors would be able to detect the symptoms of the Parkinson’s disease. The band would send the warning signals quite in advance on mobile through Bluetooth. This would give enough time to the patient to consult the neurologist.

In normal course the disease is detected in an advance stage. It starts with writing problem even facing difficulty in making signature due to tremor. Later it affects the lips, jaws and eyes, he said.

The sensor fitted digital wrist band would indicate the neurological disorder quite in advance and the patient could be checked with the help of early treatment.

The sensor fitted wrist band would be very different in four ways from the other such band available in the market said professor at the HSS department Professor Brij Bhushan the developer of the unique wrist band..

According to him tremors were of different kinds. The patient needed to be examined by the doctors to know if the tremors were due to Parkinson’s disease. The existing sensor fitted band or watches cannot differentiate among them, he claimed.

But the newly developed sensor fitted band would automatically differentiate between the pure tremor and the tremors due to Parkinson’s disease. It would help the doctor to start treatment without losing time.

Besides, the band could be connected with the mobile of the user and the details about the tremors would be displayed on the mobile. The tremors’ details would be restored in the mobile and would help the doctor during medical examination of the patient. The tremors could be recorded over the mobile phone if it was lying at a distance of one hundred meters from the user of the mobile.

The record of the tremors would also be available on the server and it could be transferred to the mobile of the doctor for the convenience of treating the patient.

A person living in remote area and using the band would be able to show the tremors data to the doctor even after several days as they would be recorded and restored in his mobile phone, according to professor Bhusahn.

मां,ममता और महत्वाकांक्षा

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Dr.Kamal Musaddi

शाम के 6 बजे थे। मैं घर के सारे काम निपटा कर वाक पर जाने की सोच ही रही थी कि बाहर पड़ोसी के बच्चे की आवाज सुनाई दी, खोलो अले कोई है खोलो…खोलो की आवाज के साथ-साथ हल्की हल्की सुबकने की आवाज भी आ रही थी।पुकार धीरे -धीरे आर्तनाद में बदल रही थी अले खोलो……! कोई सुन रहा है।मुझे इस एक वाक्य ने झकझोर दिया।……कोई सुन रहा ….क्योंकि मैं तो इतनी देर से ये आवाजें सुन रही थी।मैं खुद को रोक नही सकी और बिना चप्पल पहने दरवाजा खोल कर बाहर भागी।

पड़ोसी के दोनों बच्चे एक 5 साल और एक मात्र 3 वर्ष का पीठ पर पिट्ठू बैग वाला बस्ता लादे और गले में वाटर बॉटल लटकाए खड़े थे।दरवाजा पीटने की जिम्मेदारी बड़े ने ले रखी थी वो रोता जा रहा था और आवाजें लगा रहा था,छोटा सहमा सा खड़ा उसे देख रहा था।दरअसल दिनों बच्चे इस समय किसी कोचिंग से पढ़कर लौटते थे और जिस वैन से वो जाते थे वैन वाला उन्हें सीढ़ियों तक छोड़ देता था ये मैंने आते जाते कई बार देखा था और अपनी स्वभावगत कमजोरी के कारण बच्चों से ही पूंछ लिया था कि इत्ती शाम को बैग लटका कर कहाँ जाते हो।मासूम बच्चों ने ही बताया था आंटी कोचिंग जाते हैं।

मुझे देखते ही जैसे बच्चों की हिम्मत वापस आ गयी ।मैंने प्यार से दोनों के सर् पर हाथ फेरा उन्हें ढांढस बंधा कर पूछा कि क्या घर में कोई नही है,बच्चा बोला पता नही,मैंने कॉल बेल दबाई कई बार दरवाजे पर जोर-जोर से थाप भी दी मगर भीतर से कोई उत्तर नही आया।तब तक उनके वैन का ड्राइवर ऊपर आ गया शायद बालकनी से पहुँच की सूचना नही मिलने पर आ गया।उसने भी दरवाजा पीटा मगर सन्नाटा।

यद्यपि मेरी उपस्थिति से बच्चे संभल गए थे ,मैंने दोनों का बैग पीठ पर से उतारा बॉटल ली और कहा घबराओ नहीं मेरे घर आकर बैठ जाओ साथ ही मैंने वैन वाले से कहा कि इनसे मम्मी पापा का नंबर ले तो पूछे घर मे कोई है या नही और वो कब आएंगे।उसने फ़ोन मिलाया पता चला किसी रिश्तेदार का लड़का घर मे है मगर सायद सो रहा है या कहीं गया है।पता नही क्यों कि ऑटोमैटिक लॉकिंग सिस्टम में बाहर से पता नही चल पाता भीतर कोई है ये नही।

मैंने वैन वाले से फ़ोन लेकर उनके पापा से पूछा कि क्या मैं इन्हें अपने घर पर बैठा लूँ। उनकी अनुमति मिलते ही मैं प्यार से दोनों को भीतर लायी बिठाया और पूछा कुछ खाओगे ।मुझे लगा कोचिंग से लौटे बच्चे घर में जरूर कुछ खाते होंगे। मगर मन का संसय कि किसी के बच्चे को कुछ नुकसान न कर जाए ,मैं मन मसोस कर रह गयी।मैंने यूं ही कह दिया बेटा मैगी होती तो बना देती।पर मेरे पास मैगी नही है।तभी बड़ा बच्चा बोला आंटी मेरे बैग में मैगी का पैकेट है वो जिज्ञासा का बर्थडे था ना तो सबको दिया था उसने।उसने एक गिफ्ट हैंपर निकाला जिसमें मैगी के साथ चॉकलेट ,पापिन्स ,चिप्स और बिस्किड्स थे।मैंने पूछा मैगी बना दूँ ,मेरा इतना पूछते ही छोटा उछल पड़ा ।हाँ आँटी मैगी बना दो।उसके उत्साह को देखकर मुझे हँसी आ गयी।

मैंने फ्राईपेन में मैगी डाल कर गैस पर रखी थी कि घंटी बजी ।दरवाजा खोला तो सामने बच्चों की माँ जीन्स टॉप वाली मॉर्डन मम्मा खड़ी थी जो मुझसे मुखातिब हुए बच्चों की ओर झपटी ,क्यो घर में सोनू था तो तुम लोग घंटी बजाते । बेटा सहम कर मासूमियत से बोला मम्मा आँटी ने बजायी थी मगर दरवाजा खुला ही नही।उसने झपट कर बच्चों का सामान उठाया बोली चलो ।मैं खड़ी उसकी हरकत देख रही थी।जो किसी बैंक में नौकरी करती थी और आस-पड़ोस किसी से बात करना पसंद नही करती थी न ही बच्चों को बात करने देती थी।अब मेरा धैर्य टूटा तो मैंने उसका हाथ पकड़ा खींच कर रसोई तक लायी और कहा ये बन जाये तो खिला कर ले जाओ वो मेरा हाथ झटक कर बोली मैं उन्हें मैगी वैगी नही देती।मैंने कहा इन्ही के बैग में थी।उसे फटा हुआ पैकेट भी दिखाई तो वो थोड़ा ढीली पड़ी।।।मुझे उसका तरीका अच्छा नही लगा सो बोल पड़ी,बच्चे रो रहे थे।इसलिए भीतर ले आयी ,तुम्हे बुरा लगा हो तो माफ करना।अब वो थोड़ा सहज होकर बोली नहीं ऐसी कोई बात नही ………..! घर में लड़का था फिर भी…….।मैंने कहा मैगी लेती जाओ और एक प्लेट में डाल कर उसे पकड़ा दी कि जाओ ….खाओ या नाली में फेंक दो मग़र ले जाओ।

मां की ममता का मिथ मुझे भ्रमित कर रहा था। मैंने तो सुन रखा था कि अपने बच्चों से प्यार करने वाले से तो हर मां प्यार करती हैं।फिर मुझे लगा कि महत्वाकांओं ने शायद ममता के स्वरूप को भी बदल दिया है।इसलिए किसी के बच्चे पर ममता लुटाने से पहले माँ को समझना बहुत जरूरी है।

क्या करेगा चांद, क्या करेगी चांदनी?

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Dr. Suresh Awasthi

क्या करेगा चांद, क्या करेगी चांदनी? कविता की यह पंक्ति कई बार विशेष स्थितियों में याद आती है? उस दिन एक ठेकेदार साहब के संग बैठने का मौका मिला। सड़क बनाने के ठेके की डील हो रही थी। जिस व्यक्ति ने ठेका दिलाने का वादा किया था, वह एक साहब को लेकर आया था। साहब जी ने ठेकदार जी को बताया कि आनलाइन टेंडर पास कराने से पहले 15 प्रतिशत ऊपर जमा करना होगा? टेंडर पास होते ही 15 प्रतिशत और जमा करना होगा। इसके बाद पहली किश्त का चेक जारी होगा। 10 प्रतिशत मुख्य अभियंता को देना होगा। बाद में दस प्रतिशत और देने पर गुणवत्ता का प्रमाणपत्र मिल जायेगा तो दूसरी किश्त का सिलसिला शुरू होगा। ठेकेदार ने उंगलियों पर गणित लगाई। 40 प्रतिशत गया। फिर उसने उन साहब से पूछा कि आप की सेवा क्या होगी? उन्होंने जवाब दिया केवल पांच प्रतिशत। जिन सज्जन ने उन्हें उन साहब से मिलवाया था, उनका हिस्सा पूछा गया तो पूरे दांत निकाल कर बोले, अपना क्या अपना तो पांच प्रतिशत से भी काम चल जायेगा परंतु क्षेत्र के दादाओं को पांच प्रतिशत देना पड़ेगा नहीं तो वे सामान उठवा देंगे। पुलिस भी कुछ नहीं करेगी। ठेकेदार ने फिर जोड़ लगाया अर्थात 57 प्रतिशत की घूस खर्च कर दूं तो ठेका तय। दोनों ने उत्साह से कहा, बिलकुल पक्का। ठेकेदार ने कहा और यदि मैं इतनी मोटी रकम लगा कर 25 प्रतिशत भी कमा लूं तो 85 प्रतिशत खर्च अर्थात एक रुपये में 15 पैसे जनता की सेवा में? उनमें से एक चहक कर बोला, यह तो काफी है यहां तो 10 पैसे भी नहीं पहुंचते और सब कुछ धड़ल्ले से चल रहा है। मैं सोच रहा था कि जब व्यवस्था ऐसी हो तो सड़क पर तारकोल ही चुपड़ा जा सकता है। उसे जनता उखाड़े या कोई और? ऐसे में क्या करेगा चांद, क्या करेगी चांदनी?

भूख के कई रंग होते हैं। एक भूख वह जो गुदड़ी में पलने वाले बच्चों की होती है जो माँ की सूखी छाती से मुश्किल से बुझती है। यह भूख खाली पेट होने पर लगती है। दूसरी भूख वह होती है जो भरे पेट वालों को लगती है। पहली भूख्र भीख मांगने की हद तक चली जाती परंतु वह दूसरों का हिस्सा छीन कर नही खाती परंतु दूसरी भूख दूसरों के मुंह से इस स्टाइल से निवाला छीनती है कि सामने वाले को लुट जाने का पता ही नहीं चलता। देश के विकास में लगे तमाम लोगों की यह भूख बढ़ती जा रही है। ऐसे में हर शहर को एक अन्ना हजारे चाहिए? अब अन्ना तो एक ही है। तो फिर सवाल पैदा होता है-क्या करेगा चांद, क्या करेगी चांदनी? देश के पर शहर में कोई न कोई सड़क खुदती रहती है। किसी के लिए यह खुदाई मुसीबत बनती है तो कुछ के लिए वरदान। जितनी गहरी खुदाई होगी, कमाई का कद उतना ही ऊंचा होगा। अभी उस दिन एक रोड पर मिïट्टी ऐसी धसकी कि एक कार का भू प्रवेश हो गयी। पता चला कि वहां भरी जाने वाली मिïट्टी पड़ोस के एक प्लाट को भरने के लिए बेच दी गयी थी। अब किसी की मिïट्टी कुटे तो कुटे। कोई चलता फिरता व्यक्ति मिïट्टी में तब्दील हो जाये तो हो जाये उन्हें क्या? उनकी तो मिïट्टी सोने की हो रही है। जब व्यवस्था अव्यवस्था की पर्याय बन जाये तो फिर वही सवाल- क्या करेगा चांद, क्या करेगी चांदनी? हर रोज एक दो हत्याएं? आला अफसरों की नाक के नीचे हत्या? घर के भीतर घुस कर हत्या? भरी बाजार में हत्या? हमारी समझ में जब कोई हत्या होती है तो केवल एक व्यक्ति की नहीं होती। उसके साथ उसके घर परिवार, विश्वास,नि:श्चिंतता, सामाजिक संतुलन के साथ कानून की भी हत्या होती है। अब कानून अपने ही हत्यारों के प्रति गंभीर नहीं होता तो फिर वही सवाल- क्या करेगा चांद, क्या करेगी चांदनी? सच तो यह है-
न चांद सुरक्षित है
और न चांदनी
सब के सब बीमार
तबीयत अनमनी
मुंह बाये समस्याएं
जायें तो कहा जायें
किस किस से लड़ें
किस किस को समझाएं ?
मिल कर मातम मनाएं
या फिर एकजुट हो
देश को बचाएं।

Kumbha Mela- congregation of pilgrims

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G.P.Varma

Kumbh or Kumbha Mela is a pilgrimage of faith. It is one of the world’s largest congregations  of religious pilgrims held in India.

The Kumbha Mela has been inscribed on the list of “Intangible Cultural Heritage  of Humanity by the UNESCO in the year 2007.

Kumbha Mela is a symbol of peace, fraternity, harmony and participation in ritualistic traditions of the country.

The normal Kumbha mela is held every three years while the Ardh Kumbha Mela is held every six years at Haridwar and Prayag.

The Purna Kumbha  Mela takes place every twelve years at four places  Prayagraj, Hardwar  Nashik-Trimbakeshwar Simhastha and Ujjain Simhastha.  based on Planetary movement.

However, the Maha Kumbha Mela is celebrated at Prayagraj (Uttar Pradesh, India) after 144 years or after 12 Purna (Complete) Kumbhs.

The Mela in Prayagraj (Uttar Pradesh, India) is held at the confluence (Sangam) of three holy rivers Ganga, Yamuna and invisible Sarswati.

A large number of devotees from all over the country (India) come to take a holy dip. It has high spiritual sanctity. It is believed that by bathing  in these rivers on the auspicious occasion of Mela “cleanse a person of all their sins.”

The Kumbh Mela at Prayagraj has started from January 15, 2019 and would conclude on March 4, 2019.

 

राजू सच में बन गया जेंटलमैन

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Dr. R.K.Singh

जनवरी 2018, सुबह 5:30 बजे

मेरे फोन की घण्टी ने मेरी तन्द्रा तोड़ी। बड़े अनमने मन से मैंने फोन उठाया। “सर रानी कुछ हरकत नहीं कर रही” उधर से बेहद घबराया स्वर आया। आनन फानन में मैं तुरन्त रानी भालू के बाड़े में पहुंचा। रानी शांत लेटी थी एवम उसका एक हाथ अपने दुलारे पुत्र के ऊपर था, और नवजात शावक अपनी माँ के सीने से लिपटा दूध पी रहा था। काफी प्रयास के बाद भी जब रानी नहीं उठी तो मैंने हिम्मत करके स्वयं बाड़े में जाने का निर्णय लिया। एक नवजात भालू के बच्चे की मां के पास जाना साक्षात मौत का बुलावा होता है, परन्तु इसके अतिरिक्त कोई रास्ता न देख मैं हिम्मत कर अंदर पहुंचा। अंदर के मार्मिक दृश्य ने मुझे ज़िंदगी भर न भूलने वाला एक ऐसा आघात दिया जो मैं शायद ताउम्र न भुला पाऊंगा। नन्हे से शावक को पता ही नहीं था कि उसकी प्यारी माँ उससे बहुत दूर जा चुकी थी। और अब उसके नसीब में माँ का दूध नहीं था। वह एक बेजान लाश का दूध पीने का प्रयास कर रहा था। उसे अब उम्र भर अकेले ही जीवन बिताना था। इसे देख वहाँ उपस्थित सभी लोगो की आंखे भर आईं।

शावक को जितना भी मां से अलग करने का प्रयास किया जाता वह मां से उतना ही लिपटता जाता। कई प्रयासों के बाद किसी तरह शावक को मां से अलग किया जा सका। अब हमारे सामने एक नवजात शावक था जिसका अब तक नामकरण भी नहीं हुआ था। तभी कानपुर चिड़ियाघर के अस्पताल के कीपर ने उसे राजू कहकर पुकारा। राजू के पिता गब्बर को लिवर का कैंसर था। लम्बी बीमारी और इलाज के बाद अभी कुछ दिन पहले ही उसकी मृत्यु हुई थी।

रानी जब मात्र कुछ दिन की थी तभी उसे जंगल में अनाथ पाए जाने पर प्राणिउद्यान लाया गया था। तभी से रानी हम सबकी प्रिय बन गयी थी। उसे बड़ी मेहनत से पाल पोस के बड़ा किया गया था। राजू का पिता गब्बर भी प्राणिउद्यान में ही पला बढ़ा था। और आज एक बार फिर होनी अपने आप को दोहरा रही थी।

पहले कुछ दिन राजू ने कुछ नहीं खाया। उसकी सूनी आंखें सदा मां को ढूढ़ती रहती थीं। वह हमेशा जैसे कहीं खोया रहता था। एक दिशा में निहारती उसकी आँखें स्पष्ट सन्देश देती थीं कि वह अपनी मां का अब भी इंतज़ार कर रहा है। भालू का प्राणिउद्यान में प्रजनन एक दुर्लभ प्रक्रिया है। कानपुर प्राणिउद्यान में पहली बार देशी भालू ने बच्चे को जन्म दिया था। कुछ दिन पहले की समस्त खुशियां अब धूमिल हो रही थीं। दिन प्रतिदिन कमज़ोर हो रहे राजू को बचाना एक चुनौती बनता जा रहा था। कोई रास्ता न देख प्राणिउद्यान के सभी चिकित्सकों ने उसे पेट में नली डाल कर दूध व टॉनिक देने प्रारंभ किये। कई दिनों बाद भी जब उसने स्वयं नहीं खाया तो एक भालू के सॉफ्ट टॉय में राजू की ही शरीर की गंध लगाके उसके सामने डाल दिया गया। आश्चर्य जनक रूप से राजू उससे खेलने लगा। और उसने स्वयम दूध पीना प्रारम्भ कर दिया। उसे अपना साथी बहुत पसंद था। यहां तक कि जब उसे बाहर निकाला जाता तो वह उसे हाथ में पकड़कर ही बाहर आता। नन्हा राजू पिंजरे में कम और अस्पताल परिसर में स्वछंद ज्यादा घूमता था। दिन प्रतिदिन उसकी शैतानियां बढ़ने लगीं। जरा सी डांट पर वह किसी कोने में तब तक छुपा रहता जब तक उसे स्वयं जाकर न बुलाओ। कुछ ही दिनों में वो हमारा ही नहीं मीडिया में व्यापक कवरेज़ के कारण पूरे कानपुर का दुलारा बन गया।

राजू अब एक साल से अधिक का हो गया है। परंतु अब भी अस्पताल के अपने बाड़े में सुबह से हम सबके इंतज़ार में आँखें बिछाए रहता है। वह प्रतिदिन उन सबसे हाथ मिलाने के लिए हाथ बाहर निकालता है जो उसके साथ खेलते थे। वो अब भी प्रयास करता है कि हम बाड़े के अंदर आ जाएं। शाम को लौटते समय वो बाड़े की जाली पर चढ़कर तब तक हमें देखता रहता है जब तक हम सब उसकी आँखों से ओझल नहीं हो जाते। राजू जीवों के उस संसार का प्रतिनिधित्व करता है, जहां दगा-फरेब का स्थान नहीं है औऱ एहसान की कीमत सर्वोपरि है।

How to develop speech and language in your child: today’s context

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Priyanka Mishra

A young mother sought an appointment with me. Her son, Atharv aged 4 years was not able to speak or express his demands verbally till now. Thorough case history and assessment revealed that Atharv had delayed speech and language development with behavioral issues. Many such cases are encountered in my practice as paediatric speech language pathologist. To exactly pinpoint the reason of speech and language disorders in children is not possible but certainly such problems seem to be on a rise.

With the increase in double income nuclear families, parents are not able to spend as much quality time with their children as they should. Children are deprived of the rich language exposure during their early ages which comes with the stories of grandparents. The early years are spent in crèches or in the hands of maids who though fulfil their basic needs but cannot provide the same nourishing environment full of love and warmth. Research has shown that the early 0-3 years are the critical years in a child’s life and lack of exposure to speech and language has far reaching effects. In fact, in a study done in university of Ohio, it was found that those children performed better in their college whose mother used varied and rich language patterns while talking or reading to them when they were under 3 years of age than those whose mother talked less or never read to them.

Another factor that is adding to the woes is the menace of screens. With the digital age and tech savvy parents, more and more children are being exposed to screens at very young ages. I pads and mobiles have taken the role of soother and story teller. Babies as young as 6-8 months of age are given mobiles to calm them or feed them. The long term screen exposure hampers children’s ability to regulate their emotions and leads to irritability and inability to focus. Screen exposure has also been found to make children hyperactive and reduce their attention span. Digitalisation has without doubt made our life easier but for the proper development of children in all spheres there is no shortcut and nothing can replace the human touch. No amount of YouTube rhymes and apps can replace the effectiveness and emotional bonding of lullabies sung by the generations of mothers or the animated stories told by grandparents.

Now what can you do as a new age parent?

It may not be possible to prevent all kinds of language and speech delay or disorders. Hearing impairment and learning disability is not always preventable. However, there are few things that you as a parent can do to boost speech and language of your child.

  • Read to your child: the importance of reading books to the child can’t be emphasized enough. Start reading to your child even when they are baby. You can start with board books with colourful pictures and few words, describing the pictures as you point. Gradually you will notice how the child starts recognizing the pictures and naming them when you point at them. Then you can move on to nursery rhymes.  Books that allow the child to predict what happens next. Use lots of variations and intonations while reading. Try to make it a fun time as that will foster a stronger bond between you and your child.
  • Respond to your child: acknowledge whenever your child talks to you, even when they babble as a baby. Come to your child’s eye level so that they know they have all the attention. Eye contact is very important aspect of a child’s development and needs to be encouraged since the early months.
  • Use everyday situations: talk to your child describing everyday situations like when you went to the grocery store, things you did during the day etc. Meals are important time for communication. Use language appropriate to the child’s age but avoid baby talk.
  • Be patient: your child will stumble and may falter while speaking during the early years. But try to avoid giving in to the temptation to finish off her sentences. Wait for her to finish and reinforce her newly acquired skills by praising the efforts. Listen to the content and ask for repetition in case it is not clear what she said by modelling the correct response. Saying

“great” when she asked for chocolate won’t be exactly flattering!

  • Limit screen time: in today’s time, screen has become a great impediment to child’s development. Excessive exposure to TV, mobiles or ipads leads to the child missing out real life conversations or sounds and negatively impacts a child’s speech and language.

चोर चोर मौसेरे भाई…

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Dr. Suresh Awasthi

शिक्षक ने
छात्र से पूछा,
‘चोर चोर मौसेरे भाई’
मुहावरे का अर्थ बताइये
छात्र बोला
सर ताजा ताजा उदाहरण है
गौर फरमाइए

अभी अभी हाल में
टैगोर व मुखर्जी के बंगाल में
एक चोर को बचाने के लिए
रास्ट्रीय दीदी
सिंहासन छोड़ कर
संविधान की टांग तोड़ कर
मैदान में उतर आई
घोटालों में फंसे
देश भर के भाइयों ने
नैतिकता से नाता तोड़ कर
लोकतंत्र की गर्दन मरोड़ कर
उनके समर्थन में
जिंदाबाद की आवाज लगाई
सर, इसे ही कहते हैं,
चोर चोर मौसरे भाई।

ये लोग
इससे भी आगे बढ़ कर
देश को अपनी जेबों में
धर सकते हैं
मुहावरा बदल कर
चोर ‘चोर सगे भाई बहन’ भी
कर सकते हैं।

एक किन्नर की पाती

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Pankaj Bajapi

‘किन्नर’ l सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ‘थर्ड जेंडर’ ।सृष्टि की मूल चूक का प्रतीक है या फिर अमानवीय कृत्य का साक्षी । वैसे किन्नरों के कल्याण कार्य को समर्पित व्यक्तियों का मानना है कि प्राकृतिक रूप से किन्नर न के बराबर है। अधिकांश किन्नरों के इतिहास उनको जबरन किन्नर बनाये जाने का गवाह है।एक ऐसे ही जबरन बनाये गए किन्नर की पाती उसकी पीड़ा व्यक्त करती है।यह पाती उसने एक कल्याण सभा के पदाधिकारी को भेजी थी–

“महोदय,

मेरा नाम राम उर्फ रामा है।मैं हरिद्वार का रहने वाला हुँ।मुझे बचपन से डांस व स्टेज प्रोग्रामों का शौक रहा है जिसका फायदा हरिद्वार के हिजड़ों ने उठाया।वे मुझे यह कहकर दिल्ली ले आये कि वहां हमारा स्टेज शो है।यहां लाकर उन्होंने मुझे रंजीता के पास बेच दिया। रंजीता मजनू के टीले में रहती है।

जब मुझे पता चला कि मुझे हिजड़ों में बेच दिया गया है तो एक दिन मैं मौका पाकर वहां से हरिद्वार भाग गया।लेकिन कुछ दिनों बाद हरिद्वार के हिजड़ों ने मुझे गुंडों के जरिये घर से उठवा लिया और अपने घर ले आये।मुझ पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी ।मैं किसी तरह वहां से जान बचाकर भागा।

मेरी माँ ने हरिद्वार के अस्पताल में मेरा इलाज करवाया ।दो महीने बाद ही डरा -धमका कर हिजड़े मुझे फिर दिल्ली ले गए और रंजीता के यहां छोड़ आये। रंजीता और गब्बर ने मुझे बहुत मारा-पीटा ।मेरे बाल काट दिए गए और मुझसे धंधा करवाने लगे।उन्होंने धीरे -धीरे मुझे नशे का आदी बना दिया।

एक दिन ज्यादा नशा करवा कर वे मुझे नंदनगरी के डॉक्टर के पास ले गए और मेरा लिंग कटवा दिया।फिर पांच दिन बाद मुझे घर ले आये।अगले दिन मेरी छठी मनायी गयी और सवा महीने बाद मेरी गोद भरी गयी ।इसके बाद मेरी जिंदगी हिजड़ों के साथ बीतने लगी।

मैं मन ही मन रोता और अपने शौक को कोसता।मेरे जैसे कितने ही बालकों को ये लोग हिजड़े बनाकर उनसे कुकृत्य कराते है।पुलिस हमारी कोई मदद नही करती।”

अब यह किन्नर अपने अलग समाज में अन्य किन्नरों के साथ रहता है।सभी के सुख में शामिल होता है।नाच गा व ढोल बजाकर उनके सुख को दूना कर देता है।दूसरों के सुख को दूना करने वाला यह किन्नर आज भी अथाह वेदना सागर में डूबता है।वेदना लहरों में उतराता है वेदना से किंतु उबर नही पाता है।

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