एक आदर्शवादी साध्वी ने
एक सिद्धांतवादी सन्त को
किसी बात को लेकर
सरेआम गरियाया
एक दूसरे को नीच, कमीना, कुत्ता और चरित्रहीन बताया।
घटना के
कुछ दिनों बाद
जैसे ही चुनावी माहौल आया
लोगों ने उन्हें
एक ही मंच पर गाते बजाते पाया
तो मेरा दिमाग चकराया
मैने भक्तों से पूछा यार
यह कैसा चमत्कार
वे बोले इनके आदर्श व सिद्धांत
राजनीति के बाज़ारवाद में
कहीं खो गए हैं
अब ये साध्वी और सन्त नहीं रहे
‘बसपा’ और ‘सपा’ हो गए हैं।