न वै ताडनाद् ताडनाद् वहिर्मध्ये
न वै विक्रयात क्लिश्यमानो अहम्अस्मि
सुवर्णस्य मे मेकदुखम तदेकम
यतो मा जना गुंञ्जया तोलयन्ती।
सत्य है जीवन में मूल्यांकन बहुत अहमियत रखता है। क्योकि परिवार, समाज या राष्ट्र में व्यक्ति का सही मूल्यांकन उसकी दिशा निर्धारित करता है। चाणक्य ने चंद्रगुप्त का सही मूल्यांकन किया तभी वो उसे अखंड भारत का सम्राट बना सका। ये मूल्यांकन प्रक्रिया उस समय तो और अहमियत रखती है जब तक बालक स्वयं अपनी क्षमताओं को जानने और समझने लायक नहीं हो जाता।
ये बातें इसलिए मन में आ रही हैं कि हाल ही में देश और प्रदेश के दसवीं और बारहवीं कक्षा के नतीजे घोषित हुए । परीक्षा परिणाम बेहद संतोष जनक अच्छा प्रतिशत उत्तीर्ण छात्रों का इससे पता चलता है कि देश मे शिक्षा का स्तर सुधरा है ,किंतु एक बात नितांत आश्चर्य से भरने वाली है कि दर्जनों छात्रों को 500 में से 499 अंक प्राप्त हुए।
5 में से 4 विषय में उन्हें शत प्रतिशत व एक विषय मे मात्र 1 अंक कम मिला ।इसके अतिरिक्त हजारों छात्र 90 से ऊपर के प्रतिशत से उत्तीर्ण हुए। मैने लगभग बत्तीस वर्ष बच्चों को शिक्षित किया।10वी और 12 वीं के छात्रों को कई बच्चों को मैरिट में भी स्थान मिला जिन्हें मैने पढ़ाया था। मगर 32 वर्षों के अनुभवों में 1 भी छात्र ऐसा नही मिला जहां मूल्यांकन करते समय कलम से शतप्रतिशत अंक देने की जिज्ञासा अथवा आवश्यकता रही हो। किसी न किसी बिंदु पर बच्चों से चूक होती ही है फिर जहां भाषा और साहित्य अथवा इतिहास जैसे विषय भी होते है और वो भी विवेचात्मक और विश्लेषणात्मक प्रश्न होते हों वहां ये निर्धारित कैसे हो सकता है कि ये अंतिम व्याख्या स्तर है इससे आगे कुछ नही। गणित एक ऐसा विषय अथवा विज्ञान विषयों में जहां सिद्धान्तों और नियमों को बदला नही जा सकता । शतप्रतिशत अंक मिल सकते है मगर भाषा साहित्य व अन्य विषयों में ।
खैर मुझे इस बात से भी कोई एतराज नही मूल्यांकन करता का अपना दृश्टिकोण है। मगर इस मूल्यांकन का इसी पीढ़ी के मन मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ रहा है। उसे नज़र अंदाज़ किया गया तो समाज एल बहुत बड़े नुकशान को झेल सकता है।क्यों कि जब आपने उन साथियों का जिनके साथ बच्चे शिक्षा पाते हैं ,उनके 97 प्रतिशत, 99 प्रतिशत या 94 प्रतिशत देखते है तो उंन्हे अपने 90 प्रतिशत भी उंन्हे कुंठाग्रस्त कर देते हैं और तब तो और जब वो क्लास में उसके स्तर को जानते हैं। मूल्यांकन में इस तरह अंकों की वर्षा जहां अधिकाधिक अंक पाने वाले छात्रों को अति आत्मविस्वास ,अहंकार और स्वयं बनने की प्रेणना दे कर दिशा भटका रहे हैं । वही 80, 90 प्रतिशत अच्छा छात्र होने के बावजूद कुंठाग्रस्त कर रहे है।
मैंने 90 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्र और उनके माता पिता को रोते देखा तो मन वितृष्णा से भर गया कि आखिर इस मूल्यांकन का मतलब क्या है जहां बच्चों से उनकी खुसी और सहजता छीन ली जाये।इसलिए बच्चों का सही मूल्यांकन उनकी जिंदगी के लिए बेहद अहम है।