बिधि,लाभ एवं सावधधानियाँ –
इस आसन का आकार वृक्ष के समान होने के कारण योगियों ने इसे वृक्षासन कहा है।
वृक्षासन की बिधि –
सबसे पहले किसी हवादार एवं शांत वातावरण में समतल जमीन पर योग मैट बिछाकर उस पर खड़े हो जाते हैं।अब बायें पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी को दाहिने पैर के जंघे(थाई) के सबसे ऊपरी भाग पर रखते हैं। तथा दोनों हाथों को सिर के ऊपर की तरफ ले जाकर हथेली को आपस में मिला लेते है। हाथों को दोनों कान से लगाकर रखते है एवं गर्दन सीधा
रखते हुए निगाहें सामने रखते हैं। एक पैर पर पूरा शरीर का वजन रोकते हुए साँस सामान्य यथासम्भव अथवा 1 से 2 मिनट रोक कर वापस आ जाते हैं। यही दूसरे पैर से भी करते है।
वृक्षासन के लाभ –
- भगवान शिव को इस आसन में जादा देखा गया है यह ऊर्जा स्रोत का सबसे अच्छा आसन है।
- इसके नियमित अभ्यास से पैर मजबूत होते है।
- यह आसन एकाग्रता बढ़ाने का बहुत ही अच्छा आसन बताया गया है।
- इसका नियमित अभ्यास शारीरिक संतुलन बढ़ाने में मदत करते हैं।
- वृक्षासन शारीरिक ऊर्जा को क्षय होने से रोकते हैं।
- सिर के ऊपर हाथ का पिरामिड़ बनने से मस्तिष्क ऊर्जावान हो जाता है।
- यह पोजीशन वायुमंडल में सूक्ष्म रूप में उपस्थित ऊर्जा को ग्रहण करने में मदत करती हैं।
- यह आसन वायु विकार को दूर करते हैं।
- यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाते है।
- इस आसन के नियमित अभ्यास से मानसिक विकार(तनाव,डिप्रेशन,चिंता) दूर हो जाते हैं।
- नस नाड़ियो को मजबूत बनाकर उसकी समस्या दूर करते है।
- बच्चों को लम्बाई बढ़ाने में मदत करते हैं।
- घुटनों को मजबूत बनाकर पैर दर्द की समस्या से निजात दिलाते है।
सावधानियाँ -घुटने में जादा दर्द होने पर एवं जिनको चक्कर (मिर्गी) आते हो उनको इसका अभ्यास
नहीं करना चाहिए।