अर्ध मत्स्येन्द्रासन

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1896
Dr S. L. Yadav
अर्ध मत्स्येन्द्रासन –योगी मत्स्येन्द्रनाथ जी इसी पोजीशन में बैठा करते थे। उन्ही के नाम से इस आसन का नाम मत्स्येन्द्रासन रखा गया।  चूकि मत्स्येन्द्रासन करना मुश्किल हैं,इसलिए सरल करके इसे अर्ध मत्स्येन्द्रासन बनाया गया,जिससे मत्स्येन्द्रासन के लगभग समान लाभ अर्ध मत्स्येन्द्रासन से मिल सके।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन की बिधि –सबसे पहले किसी समतल जमीन पर योग मैट (चटाई ) बिछाकर बायें पैर को घुटने से पीछे मोड़कर गुदा द्वार की तरफ ले जाते हैं। उसके बाद दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर बायीं घुटने के बगल में पैर के पंजे रखते हैं। फिर पूरे बायें हाथ को सीने के पास लाकर काँख के हिस्से को दाहिने पाँव के घुटने के नीचे पैर के पंजे या टखने को पकड़ते है। दाहिने हाथ को पीठ के पीछे से लाकर नाभि छूने का प्रयास करते हैं या कमर के पीछे जमीन पर भी रख सकते हैं। चेहरे को भी दाहिने हाथ की तरफ घुमाकर गाल को कंधे से लगा देते हैं। सांसें सामान्य रखते हैं। यही दूसरी तरफ भी करना चाहिए। 1 -1 मिनट दोनों तरफ रोकने का प्रयास करते हैं।
 
अर्ध मत्स्येन्द्रासन  के लाभ –
  •  अर्ध मत्स्येन्द्रासन अत्यंत लाभकारी एवं सब प्रकार से अति उत्तम आसन है।
  • रोगों को दूर करने में यह आसन अत्यंत लाभकारी है।
  • समाधि के लिए कुण्डलिनी जागरण का काम करती हैं।
  • अर्ध मत्स्येन्द्रासन कूल्हे एवं रीढ़ की हड्डी को लचीला एवं मजबूत बनाता है।
  • यह आसन पेट के कीड़े को भी मार देते हैं।
  • डायबिटीज के लिए बहुत लाभकारी आसन है।
  • अर्ध मत्स्येन्द्रासन पेन्क्रियाज को सक्रिय  बनाते है।
  • घुटने की मांशपेशियों को लचीला बनाकर उन्हे मजबूत बनाते हैं।
  • पाचन क्रिया को मजबूत बनाकर कब्ज एवं गैस जैसी समस्याओ को दूर करते है।

सावधानियाँ  –मासिक धर्म एवं गर्भावस्था में इसे नहीं करना चाहिए। रीढ़ की हड्डी का आपरेशन हुआ हो तो 6 माह तक नहीं करना चाहिए। घुटने में जादा तकलीफ हो तो भी नहीं करना चाहिए। आसनो का अभ्यास किसी योग विशेषज्ञ की देख-रेख ही करना चाहिए।

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