पूर्णमासी की उस रात को मैं कभी नहीं भूलना चाहूंगा, जब शीतल चांदनी में मेरा सामना दुनिया के उस बेख़ौफ़ विडालवंशी से हुआ था जिसे दुनिया बब्बर शेर बुलाती है। हम सब बस एक पलक उसे निहारते रह गए थे। क्या खूब पूरे एक घण्टे तक जंगल के बीच मार्ग पर हमारी जिप्सी को रोके रखा था उसने और उसके कुटुंब ने।
सासण गिर एशियाटिक बब्बर शेरों के विश्व प्रसिद्ध और एकमात्र अभ्यारण्य हैं। जिसके चारों ओर आज 650 से भी अधिक बब्बर शेर एक बड़े क्षेत्रफल में फैले हुए हैं। अपने गिर प्रवास में एशियाटिक शेरों के अध्ययन के दौरान वैसे तो कई बार शेरों से सामना हुआ। परन्तु रात के स्याह अंधेरे में इस निशाचर के साम्राज्य को देखने व समझने की ललक हम सबको बारम्बार लालायित कर रही थी। ऐसे में मानसून की उस चांदनी रात में जंगल से वनराज के दहाड़ने की आती आवाज़ ने हमें एक बार फिर वनों का रुख करने को आकर्षित कर दिया। हमने तत्काल अपने गाइड से जंगल चलने की जिज्ञासा प्रकट की। चूंकि हम शेरों के अध्ययन के लिए आए थे, अतः सुरक्षा उपायों के साथ हमने अपनी जिप्सी को जंगल की पगडंडी की ओर बढ़ा दिया। बरसात के बाद चारों ओर उग आए मौसमी पौधे, जंगल के रास्ते पर जगह-जगह भरा पानी और बरसाती कीड़ों के साथ सुर मिलाते मेंढकों की आवाज़ के बीच उस चांदनी रात में हमारी गाड़ी सागौन व शीशम के जंगल को चीरती हुई धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।
हमारा गाइड जो पिछले 20 दिनों से हमारे साथ था, अब काफी कुछ हमसे घुल मिल चुका था। उसने बताना शुरू किया कि कैसे एक समय यूरोप से लेकर पश्चिमी एशिया के एक पूरे भूभाग में इस शानदार विडालवंशी का एकछत्र साम्राज्य था। लगभग 100000 से 55000 वर्ष पूर्व यह अपने निकटतम साथी अफ्रीकन शेरों से अलग होकर 20000 वर्ष पूर्व भारत में प्रवेश कर गए। यहां इन्होंने उत्तर पूर्व में गंगा तो दक्षिण में नर्मदा तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था। लेकिन क्रूर मानव विशेषकर राजाओं व बरतानिया हुकूमत के तथाकथित बहादुर महामहिमों (So called ‘His excellency’) ने अपनी झूठी बहादुरी दिखाने के लिए इनका बेहिसाब शिकार किया। एक समय ऐसा आया कि वर्ष 1884 के आसपास इनकी संख्या मात्र 15 के आसपास रह गई। तत्कालीन जूनागढ़ नवाब के शिकार पर प्रतिबंध के बाद भी जब कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने शिकार करना जारी रखा, तो 1901 में जूनागढ़ नवाब को लॉर्ड कर्जन को शिकार रुकवाने हेतु पत्र लिखना पड़ा। परिणामस्वरूप वन विभाग के सहयोग से आज सौराष्ट्र क्षेत्र के लगभग 22000 वर्ग किलोमीटर में लगभग 650 बब्बर शेर घूम रहे हैं।
इस बीच मेरे साथी ने थर्मस से कॉफ़ी को प्याले में भरकर मेरी ओर बढाते हुए कहा “लो चांदनी रात में शेरों के साम्राज्य के बीच कॉफ़ी का आनन्द भी ले लो”। सचमुच मद्धिम सी चलती मानसूनी शीतल पवन और झींगुरों के प्राकृतिक संगीत के बीच कॉफ़ी का वो प्याला मैं आज भी नहीं भूल सका हूँ। मेरे साथी ने कॉफ़ी की चुस्की लेते हुए बात को जारी रखा, “1947 में भारत के बंटवारे के समय नवाब जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलवाना चाहते थे। पर जनता के भारी विरोध के कारण वह अपने पालतू कुत्तों के साथ अपने प्रधानमंत्री शाह नवाज़ भुट्टो (बेनज़ीर भुट्टो के दादा) के कहने पर पाकिस्तान चले गए। और इस प्रकार गिर व गिर के बब्बर शेर पाकिस्तान जाने से बचे व भारत का गौरव बन गए”।
तभी अचानक हमारी गाड़ी के एक झटके से रुकने से हम सबकी तन्द्रा टूटी। हमारे गाइड ने जिप्सी की लाइट बंद कर दी थी और उसने चांद की दूधिया रोशनी में सामने इशारा किया। क्या खूबसूरत नज़ारा था वह, चारों ओर ऊंचे पेड़ों से घिरे उस छोटे से मैदान व जंगल की पगडंडी के बीच शेरों का वह कुनबा जैसे हमारे आने का ही इंतज़ार कर रहा था। बड़े बेफिक्र से बैठे वे शेर अपने में ही मस्त थे। एक शेरनी आराम से लेटकर दो बच्चों को दूध पिला रही थी। एक अन्य बच्चा कुछ ज्यादा ही चंचल सा बार-बार जिप्सी की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहा था, परंतु उसे दूसरी शेरनी हौले से अपनी ओर खींच लेती थी। एक बार तो उस बच्चे को इंसानी बच्चों की तरह चपत भी पड़ी। इस बीच दूध पीने वाले बच्चे अपनी माँ को छोड़ दूसरी शेरनी का दूध पीने लगे। शेरों के कुनबे में सभी शेरनियां एक दूसरे के बच्चों का ख्याल रखती व दूध पिलाती हैं। दो अन्य युवा शेरनियां भी अपनी मस्ती में एक दूजे के गाल से गाल रगड़ कर आपसी प्रेम का इज़हार कर रही थीं। थोड़ी ही दूरी पर दो युवा शेर जिनके गले पर बाल आने प्रारंभ ही हुए थे अपनी ही मस्ती में थे। और जंगल का राजा पास के एक टीले पर बैठा अपने साम्राज्य पर नज़र रखे था। पूरे दस शेरों से सामना हम सबको उद्वेलित कर रहा था। हम शांत भाव से अपलक प्रकृति के उस अनमोल हार को निहारते रह गए। दोनों युवा शेरनियां अब हमारी गाड़ी के इतनी नजदीक आ चुकी थीं कि हम उनकी साँसों की आवाज़ तक सुन सकते थे। शेर एक सामाजिक प्राणी होते हैं व सदैव कुटुंब में रहते हैं। हालांकि जवान नर शेरों को प्रकृति के नियमानुसार अपना नया कुटुंब व साम्राज्य स्थापित करने के लिए परिवार छोड़ना पड़ता है। इस बीच शेरनियों को देख दोनों युवा शेर भी अब हमारी गाड़ी के चारों ओर मंडराने लगे। हमारी धड़कने बढ़ती जा रही थीं। हमारा रोमांच चरम पर था। आज समझ आया कि यूं ही गिर फॉरेस्ट को लाइव डिसकवरी चैनल नहीं कहा जाता है। तभी टीले पर बैठे वनराज की दिल को दहलाने वाली दहाड़ ने जंगल को गुंजायमान कर दिया। इस बीच शेरनियों ने भी दहाड़ कर उसका साथ देना शुरू कर दिया।
तभी हमारे गाइड ने कहीं दूर से दो अन्य शेरों की आती दहाड़ की ओर ध्यान आकर्षित किया। दोनों आवाज़ बड़ी तेजी से हमारी ओर बढ़ रही थीं। तभी शेरों के पूरे कुटुंब में अफरा-तफरी जैसा माहौल हो गया। इतने दिनों के हमारे शेरों के अध्ययन से हमें समझ आ गया कि अब हमें यहां से अविलम्ब वापस लौट लेना चाहिए। क्योंकि आज रात यहां वह घटित होने वाला था जो अब तक हम टीवी चैनलों पर देखते व किताबों में पढ़ते आये थे। जी हां, आपका सोचना बिल्कुल सही है, आज रात कुछ ही देर में यहां वर्चस्व की वो खूनी जंग होने वाली थी जिसके बारे में सोचकर ही इंसान कांप उठता है। लेकिन यही प्रकृति का नियम है। इस सम्बंध में अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क के मपोगो लायन ब्रदर्स की खूनी लड़ाइयों की रोमांचक सत्य कहानी रोंगटे खड़े कर देती है। इन छः शेर बागियों ने अपने साम्राज्य के चरम पर सौ से अधिक शेरों का संहार किया था। फिलहाल शेरों के इस रोमांचक संसार के बारे में हम श्रृंखला बद्ध फिर कभी बातें करेंगे।
आज रात की जंगल की कॉफ़ी और दस शेरों से सामना लगातार मेरे मन मस्तिष्क को रोमांचित कर रहा था। मेरे साथी के मुंह से महेंद्र कपूर के पुराने गाने की निकलती सीटी की धुन, “संसार की हर शै का इतना ही तो फसाना है, एक धुंध से आना है, एक धुंध से जाना है,” रात में जंगल की ड्राइविंग को और रोमांचक और यादगार बना रही थी। दूर क्षितिज में बादलों की ओट से झांकता चंद्रमा सासण गिर के शेरों के आज रात होने वाले एक और अंतहीन खूनी संघर्ष और बदलते साम्राज्य का गवाह बनने वाला था। हमारी जिप्सी एक बार फिर जंगल का सीना चीरती हुई आगे बढ़ रही थी। इस बार गाड़ी का ड्राइविंग हैंडल मेरे हाथ में था।
–डॉ राकेश कुमार सिंह,
वन्य जीव विशेषज्ञ व वेटेरिनेरियन