क्रिया की प्रतिक्रिया करते हैं बच्चे

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Dr. Kamal Musaddi
एक चर्चित कहावत है ,बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाएं । इसके साथ ही एक बहुत चर्चित लोक कथा है कि माँ ने बेटे को एक टाट देते हुए कहा कि जा बरामदे में पड़ी दादी को दे आ, बिछा कर सो जाएगी तो बेटे ने टाट के दो टुकड़े कर दिए । मां ने पूछा ये क्या किया तूने ? बोला दादी को आधा दूंगा । मां ने फिर पूछा आधे का क्या करेगा तो बहुत मासूमियत से बोला ” आधा तुम्हे दूंगा जब तू बूढ़ी हो जाओगी ।

ये कथाएं, मुहावरे ,लोकोक्तियाँ अनुभवों की छलनी में चल कर निकलीं हैं क्यों कि तब न डार्विन को लोग जानते थे न फ्राइड जैसे मनोवैज्ञानिकों को । वो तो जो कहते थे अनुभवों की कसौटी पर कस कर व्यक्त करते थे । और इसी लिए परिवार में व्यवहार की एक श्रृंखला बनाई जाती थी, जिसमे सभही के दायित्वों का जीवन मूल्य और संस्कारों के साथ निर्धारण होता था। इस श्रृंखला का उद्देश्य था कि जीवन की गति आगे की ओर हो । ऐसा कोई कार्य न हो जो आगे बढ़ती पीढ़ी पीछे पलट कर दोहराए ।

किंतु बदलते परिवेश में मूल्यों दायित्वों और संस्कारों की वह श्रृंखला जैसे बिखरती जा रही है । इसी लिए एक पीढ़ी का दर्द दो गुना होकर दूसरी पीढ़ी को मिलता जा रहा है। कारण यही है कि हम अपने नौनिहालों को छोटी सी उम्र में इतना स्वार्थी आत्मकेंद्रित और निज के फायदे नुकसान की शिक्षा देने में विश्वास करने लगे हैं ताकि आने वाले कल में उन्हे कोई कष्ट न हो । अपनी इस कमजोरी को हम कई खूबसूरत नामों से सजा देते हैं। जैसे “आरे भावुकता फालतू चीज है ” व्यवहारिक बनो ।अंग्रेजी में बिप्रक्टिकल हर किसी की जुबान पर रहता है। और इस बिप्रक्टिकल ने समय को कुछ ऐसे रंग में रंग दिया जहां संस्कारों का बर्तन भी उलट कर रख दिया । और तो स्थिति ये होती जा रही कि अगर माता पिता का कलेजा हुलसता है,बच्चों को सीने से लगाने को ,उनके साथ बैठने को, दो मीठी बातें करने को तो बच्चे साफ कह देते हैं माँ पापा प्लीज ! अब ये सब चोचले बाजी हमें uncomfortable कर देती है । प्लीज बीप्रक्टिकल ।

आज सारे साधन हैं,घूमिये ,फिरिये दोस्त बनाइये हम कब तक आपसे चिपके रहेंगे। विज्ञापनों में मां के हाथ का खाना बहुत भावुक करता है मगर कितनी ही मायें हैं जो थाली सजा के बैठी रहती हैं, और बेटा दोस्तों के साथ पार्टी करके नसे में लौटता है ।

जवान बेटी मां की सहेली कहलाती है किंतु कितनी जवान बेटियां हैं जो थकी हारी मां का हाथ बटाती हैं । या की बिखर जानेे के भय से मुक्त होकर मां के बिखरे जीवन को समेटती है ।

दरअसल ये उसी क्रिया की प्रतिक्रिया है जब संयुक्त परिवारों में मायें दरवाजे के पीछे खड़ा करके लड्ड़ू फल या विशेष मिठाई खिलाया करती थीं ।इस भाव से कि दिखाकर ख़िलायउँगी तो देवरानी जेठानी के बच्चों में बट जाएगी। जो बच्चों को चुगली सुनने का माध्यम बनाती थी, जो खुद नही कह पाती थी मगर दादी का अपमान बच्चों से करवाती थी ।

अच्छी और बुरी आदतें क्रिया की प्रतिक्रिया ही होती है। हम जैसा बीज बोएँगे वैसा ही जिन्दगी हमें फल देगी और इस फल का स्वाद चखाते है, हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी कमजोरी हमारे बच्चे ।