सासण गिर के जंगल में चांद अपना आधा साफर पूरा कर चुका था। कभी कभी बादलों के झुंड उसे ढंकने की असफल कोशिश कर रहे थे। उस रात जंगल में गजब की खामोशी थी। बस कुछ सुनाई पड़ रहा था तो वो था सूखे पत्तों का खड़खड़ाना और बरसाती कीड़ों का शोर। इस बीच दो खानाबदोश युवा शेर बड़ी तेजी से जंगल को नापते हुए आगे बढ़ रहे थे। हवा में अजब सा आकर्षण था जो उन्हें अपनी नई मन्ज़िल की ओर खींच रहा था। युवा खून का उबाल अब दहाड़ के रूप में स्पष्ट सुनाई दे रहा था।
इस बीच कहीं दूर एक टीले पर बैठे वनराज की दिल को दहलाने वाली दहाड़ ने जंगल को गुंजायमान कर दिया। उसके कुनबे की शेरनियों ने भी दहाड़ कर उसका साथ देना शुरू कर दिया। कहीं दूर से उन दो युवा शेरों की दहाड़ बड़ी तेजी से इसी कुटुंब की ओर बढ़ रही थीं। शेरों के पूरे कुटुंब में अफरा-तफरी जैसा माहौल हो गया। आज रात कुछ ही देर में यहां वर्चस्व की वो खूनी जंग होने वाली थी जिसके बारे में सोचकर ही इंसान कांप उठता है। लेकिन यही प्रकृति का नियम है।
वनराज की सत्ता को चुनौती मिल चुकी थी। वो यूँ ही सत्ता के शीर्ष पर नहीं पहुंचा था। संघर्ष भरी जिंदगी ने उसे कुछ सबक भी सिखाये थे। और आज उसके अनुभव व बेहिसाब ताक़त दोनों की परीक्षा होनी थी। क्योंकि वह उम्र की ढलान पर था और उसके सामने थे नए खून के साथ जोश से भरे दो युवा शेर। उसने पांच साल इस कुनबे पर ही नहीं गिर के सबसे बड़े कुनबे और बड़े भूभाग पर राज किया था। लेकिन एक बार फिर उसने अपने अनुभव और पैंतरों से आज के खूनी संघर्ष में दोनों युवाओं को मैदान छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। उसके शरीर पर घाव और उनसे रिसता लहू शेरों के लगातार संघर्षरत जीवन की गवाही दे रहे थे। एक बार फिर वह अपने कुनबे को बचाते हुए अपनी सत्ता पर काबिज था। शेरनियों ने उसके गाल और गले के बालों पर अपने गाल रगड़ कर उसका धन्यवाद देते हुए प्रेम प्रकट किया। इस दौरान एक शेरनी, जो कि शावकों को लेकर कुछ दूरी पर घास में छुप गई थी, पुनः कुटुंब में वापस आ गई।
अभी तीन माह पहले तक आज पराजित दोनों युवा शेर सासण गिर के दूसरे छोर पर एक दूसरे कुटुंब के सदस्य थे। लेकिन जवानी की दहलीज पर उन्होंने वो गलती कर दी थी कि जिसकी सजा उन्हें उन्हीं के पिता ने कुटुम्ब से निकाल कर दी थी। वही पिता जो कुछ ही दिन पूर्व उन्हें बचाने के लिए एक दूसरे बब्बर शेर से लड़ गया था, उसीने उन दोनों को सदा-सदा के लिए त्याग दिया था। लेकिन अगर उन्हें गिर के जंगलों की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना था तो उन्हें अपने कुटुम्ब को छोड़ कर स्वयं अपना साम्राज्य स्थापित करना था। एक ऐसा साम्राज्य जिसमें आने वाली सन्तानों में बेहतरीन डीएनए हों, जिससे आने वाली जनरेशन एक शेर की संघर्षपूर्ण ज़िन्दगी सफलतापूर्वक जी सकें। आज भले ही वे सफल न हो सके हों। परन्तु उनका ये संघर्ष एक दिन अवश्य रंग लाने वाला था। ऐसे खानाबदोश युवा शेर किसी न किसी शेरों के कुटुम्ब की शेरनियों पर कब्जा कर अपना वंश आगे बढ़ाने के लिए लगातार हमले करते रहते हैं।
फिलहाल अभी लौटते हैं विजयी कुनबे की तरफ। कई दिन से शिकार न मिलने से सभी शेरों व शावकों के पेट खाली थे। भोर होते ही सबसे अनुभवी शेरनी ने सांकेतिक भाषा में एक आवाज़ निकाली बाकी की शेरनियों ने भी उसका साथ दिया। शिकार की तलाश में वे जंगलों की तरफ बढ़ने लगीं। आज उनके साथ दोनों युवा शेरनियां भी थीं। जो आज पहली बार सक्रिय रूप से शिकार करने में भाग लेने वाली थीं। शेरनियां शिकार की तलाश में घास के मैदान तक पहुंच गईं। परन्तु उन्हें कहीं भी माकूल शिकार न मिल सका। अनुभवी शेरनी ने अचानक नज़दीक के तालाब की तरफ बढ़ना प्रारंभ कर दिया। बाकी की शेरनियां भी उसका अनुकरण करने लगीं। तालाब पर कुछ चीतल पानी पी रहे थे। शेरनियों ने अपना चक्रव्यूह बनाना प्रारंभ कर दिया। सभी के एक निश्चित स्थान ग्रहण कर लेने पर सबसे पहले अनुभवी शेरनी को आक्रमण करना था। और चीतलों के झुंड में अफरा तफरी मचा कर उनके झुंड को कई भागों में बांट देना था। जिससे कि दूसरी दिशा में घात लगाए बैठी शेरनियां झुंड से अलग हुए चीतल को अचानक आक्रमण कर अचम्भित कर दें। अनुभवी शेरनी ने आगे बढ़ना शुरू किया। लेकिन तभी एक युवा शेरनी ने जोश में अनायास ही पानी पीते चीतलों की तरफ दौड़ लगा दी। नतीजतन सभी चीतल एक ही दिशा में भाग निकले और शेरनियों को खाली हाथ लौटना पड़ा। लेकिन आज का यह सबक युवा शेरनी को ज़िन्दगी भर शिकार के समय धैर्य रखने का पाठ पढ़ा गया। अनुभवी शेरनी ने गुर्राहट के साथ नाराज़गी भी प्रकट की। जरा सी गलती से आज फिर पूरे कुनबे के साथ शावकों को भी भूखा रहना पड़ा।
दो दिन पश्चात एक बार फिर शेरनियां शिकार करने निकली थीं। इस बार शेरनियों के सटीक फॉर्मेशन ओर अचूक टाइमिंग ने एक साम्बर को गिरफ्त में ले लिया। पहली युवा शेरनी ने पीछे से आक्रमण कर अपने भार से साम्बर को सम्भलने का मौका ही नहीं दिया और दूसरी युवा शेरनी ने एक ही झटके में अपने पैंतरे दिखाते हुए उसकी गर्दन में अपने दांत गड़ा कर उसकी श्वास नली को अवरुद्ध कर दिया। अनुभवी मादा ने अपने गाल युवा मादाओं के गाल से रगड़ कर भविष्य की दोनों रानियों का स्वागत किया।
अंग्रेजी भाषा में एक कहावत है ‘लॉयन्स शेयर’। इसी को चरितार्थ करते हुए वनराज वहां पहुंच गया और सभी शेरनियां दूर हट गयीं। मगर युवा शेरनी ने हटने से इंकार कर दिया। लेकिन वनराज की नाराजगी भरी गुर्राहट ने उसे भी हटने को मजबूर कर दिया। शिकार बड़ा था इसलिए आज सबने छक कर खाया। दो माह के शावकों ने भी पहली बार गोश्त का स्वाद चखा। दोपहर तक आराम करने के बाद पूरे कुनबे ने पानी का रुख किया। एक साथ इतने अधिक शेरों को पानी पीते देखना गज़ब का रोमांच पैदा करता है।
कुछ ही दिनों पश्चात कुटुम्ब की एक शेरनी के मासिक चक्र में आने पर वनराज व शेरनी कुटुम्ब से अलग हो गए और इस दौरान दिन में कुछ-कुछ अंतराल पर उनमें कई बार सहवास होता रहा। तीन दिन पश्चात वे कुटुम्ब में वापस आ गए।
तीन माह पश्चात गर्भवती शेरनी कुटुम्ब से दूर एक एकांत में चली गई। शेरों के कुनबे पर नए खानाबदोश नर अक्सर कब्ज़ा करने के लिए आक्रमण किया करते हैं। ऐसे में गर्भवती शेरनियां अधिकतर स्वयम को कुनबे से अलग कर बच्चों का अकेले ही कुछ दिनों तक लालन पालन करती हैं। इसका एक कारण और होता है कि शावक मां के शिकार पर जाने के दौरान अकेले ही स्वयं की रक्षा करने, छुपने आदि के गुर सिख सकें। शेरनी ने निर्धारित 105 दिन की गर्भावस्था के बाद एक साथ चार शावकों को जन्म दिया। नन्हें शावकों की आंखें नौवें दिन से खुलना प्रारम्भ हुईं। इस दौरान शेरनी ने बखूबी उनका ध्यान रखा। यहां तक कि दूसरे शिकारियों विशेषकर तेंदुए व लकड़बग्घे तक शावकों की गन्ध न पहुंचे इसलिए मां ने अपने आपको वहीं रखते हुए आसपास मूत्र व मल आदि त्याग किया। कुछ दिनों से बिना खाये मां का दूध अब सूखने लगे था। इसलिए आज शिकार करना आवश्यक था। मां ने सभी शावकों को यथास्थान रखा। परन्तु एक शावक चंचलता वश बार-बार बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। शेरनी ने उसे हौले से मुंह में पकड़ कर अंदर किया। शाम तक शेरनी एक छोटा सा जंगली सुअर पकड़ लाई। और उसे शावकों से दूर एक झाड़ी में छुपा दिया।
शावक अब बड़े हो रहे थे। उन्होंने मां के लाये गोश्त को अब चाटना प्रारंभ कर दिया था। ऐसे ही एक दिन मां के शिकार से लौटने पर चंचल शावक वहां नहीं मिला। मां ने इधऱ-उधर जाकर कर बार-बार आवाज़ दी। मगर कोई उत्तर नहीं मिलने से उसने सभी शावकों को मुंह में दबा कर सुरक्षित स्थान पर रखा। काफी देर ढूंढने पर भी जब शावक नहीं मिला तो मां अन्य शावकों की चिंता में वापस आ गई। एक शावक को बाहर देख उसने उसे फिर मुंह में पकड़ कर छुपा कर रख दिया। और एक बार पुनः गायब हुए शावक को आवाज़ देकर ढूंढने लगी। थोड़ी ही दूरी पर शावक की गंध पा कर वह तेज कदमों से बढ़ी। लेकिन वहां शावक का मृत शरीर ही था। वह उसे काफी देर तक मुंह से हिलाती रही। लेकिन जब उसके मृत शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो वह उसे जीभ से चाटने लगी। बड़ा हृदयविदारक दृश्य था वह। सम्भवतः किसी तेंदुए ने अपने शत्रु शेरों के चंचल शावक को बाहर देखकर उसे मार डाला था। क्योंकि शावक को सिर्फ मारा गया था खाया नहीं गया था। यही जंगल का नियम है जो नियम तोड़ेगा वह जंगल में नहीं बचेगा।
इस घटना से मां शेरनी को एहसास हुआ कि अब बड़े हो रहे शावकों को कुनबे से मिलाने का समय आ गया है। जिससे कि वह शेरों के सामाजिक ताने-बाने को समझ कर अपने आपको जंगल के अनुसार ढाल सकें। और उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा भी मिल सके। माँ शेरनी ने कुनबे का रुख किया।
शावक मां के पीछे चलने लगे। कुटुम्ब से कुछ दूरी पर शेरनी ने गर्दन ऊंची कर अपने कुटुम्ब के सदस्यों को देखा और यह सुनिश्चित किया कि इस दौरान कुछ ऐसा तो नहीं हो गया जो उसके शावकों के लिए नुकसानदेह हो। इसी बीच कुनबे की एक शेरनी ने उसे देख दहाड़ना प्रारंभ किया। सभी सदस्य उस ओर देखने लगे और मां शेरनी के स्वागत में दहाड़ने लगे। मां शेरनी भी दहाड़ते हुए अपने शावकों के साथ कुनबे की तरफ बढ़ी।
प्रारंभ में शावकों को यह सब अजीब सा लगा। परन्तु जब अन्य सदस्यों ने भी उनमें दिलचस्पी दिखाई तो वे भी घुलमिल गए। वनराज भी अपनी सन्तानों को देख खुशी से लगातार दहाड़ने लगा। बच्चे डरकर मां के पीछे छुप गए। मगर माँ शेरनी सावधानी से उन्हें पिता शेर के पास ले गई। वही वनराज जो जरा सी गलती पर भड़क जाता था वो नए शावकों की हर हरकत बर्दाश्त कर ले रहा था।
पांच माह बाद एक अलसाई सी सुबह दूर क्षितिज में कुछ हलचल सी थी। मग़र इन सबसे बेखबर पूरा कुनबा धूप में आराम कर रहा था। तभी हवा में एक विशेष गन्ध ने कुनबे को सावधान कर दिया। सभी सदस्यों में हलचल मच गई। पूरे कुनबे ने दहाड़ना प्रारंभ कर दिया। उसी समय दूर से भी दहाड़ने की आवाज़ें आने लगीं। एक बार फिर वनराज की सत्ता को चुनौती मिली थी। वनराज ने जमकर मुक़ाबला किया लेकिन युवा हमलावरों के पास इस बार ताक़त के साथ ही कई लड़ाइयों का अनुभव भी था। वनराज का ढलता शरीर लड़ाई में शेरनियों के द्वारा साथ देने बावजूद इस हमले को नहीं झेल सका। और उसे अपने कुटुम्ब को उसी प्रकार छोड़ना पड़ा, जैसा उसने पांच वर्ष पूर्व इस कुटुम्ब के सरदार को बेदखल कर किया था। इस बीच एक शेरनी एक शावक को लेकर कहीं छुप गई थी। लेकिन दुर्भाग्यवश दो शावक युवा शेरों की नज़र से न बच सके। जंगल में पराजित शेर की संतान को जीने का हक़ नहीं होता है। क्योंकि तभी युवा शेर अपने नए खून को नए कुटुम्ब की शेरनियों के जरिये आने वाली सन्तानों में पहुंचा सकेंगे। और ताकतवर और स्वस्थ परम्परा को आगे बढ़ा सकेंगे। शेरनियों ने न चाहते हुए भी अपने नए वनराजों का स्वागत किया। वे जानती थीं कि अब उन्हें आने वाली ज़िन्दगी उनके शावकों के हत्यारे इन्हीं नरों के साथ गुजारनी थी।
दूर कहीं पराजित घायल वनराज थक कर चूर बैठा अपने घावों को चाट रहा था। उसकी आने वाली ज़िन्दगी और दूभर होने वाली थी, जो उसे और घाव देने वाली थी। अपने साम्राज्य के चरम पर वह गिर के सबसे बड़े कुनबे और भूभाग पर काबिज रहा था। उसके साम्राज्य का सूरज अस्त हो रहा था। प्रकृति अपना खेल खेल रही थी। सासण गिर में आज का सत्ता परिवर्तन आने वाली शेर की पीढ़ियों के लिए बहुत कुछ लेकर आया था। यह एक आवश्यक और अंतहीन सिलसिला है। जिसकी गवाह शेरों के संघर्ष से लाल हुई गिर की धरती एक बार फिर बनी थी। सासण गिर के गगन में सूरज आसमान की उचाइयां छूने के बाद एक बार फिर क्षितिज में अस्त हो रहा था।
-डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्यजीव विशेषज्ञ एवं साहित्यकार
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