एक हल्की सी आवाज़ और बेहोशी की दवा से भरी पांच एम एल की डार्ट मेरे कंधे में अंदर तक धँसती चली गयी। अब तो ये मेरे गुस्से की पराकाष्ठा थी, मैंने आवाज़ की दिशा में देखते हुए उस शख़्स की ओर देखा जो अब भी हाथ में गन लिए मेरी ओर देख रहा था। मैंने ईश्वर से क्षमा मांगते हुए एक बार फिर अपने नौवें मानव शिकार की ओर कदम बढ़ाने चाहे। लेकिन ये क्या, चाह के भी मैं आगे नहीं बढ़ सका। मैंने पुनः प्रयास किया पर धीरे धीरे मेरी आँखें बोझल होने लगीं। जब होश आया तो मैंने अपने आप को लोहे के एक मज़बूत पिंजरे में पाया। ये सब मेरे लिए नया था, मैंने पिंजरे से बाहर निकलने की भरपूर असफल कोशिश की। मुझे समझ आ गया अब मेरा यही भविष्य है, मैं दुखी था और मेरे अंतर्मन की आवाज मुझे कचोट रही थी कि मैंने ऐसा क्यों किया? धीरे धीरे मेरे सामने समस्त घटनाएं एक चलचित्र की भांति घूमने लगीं।
वर्ष 2005 की वो शानदार सुबह जब अपने जन्म के लगभग 10 दिन बाद मैंने आंखें खोली तो जंगल का उन्मुक्त वातावरण व अपनी प्यारी मां और भाई बहनों को देख मैं अत्यंत प्रसन्न था। मेरी माँ एक शानदार शिकारी एवम बच्चों के प्रति समर्पित बाघिन थी। हम सब भाई बहन मां को शिकार करते देखते पर प्रतिदिन शिकार मिलना कठिन था। जंगल के नियम अत्यंत कठोर होते हैं। कभी कभी हमें भूखे पेट भी सोना पड़ता था। शिकार छोटा होने पर हम बच्चे कभी कभी झगड़ा भी करते थे पर माँ की फटकार हमें शांत कर देती थी। एक दिन हम बच्चोँ ने भी शिकार करने का प्रयास किया, लेकिन हिरन की एक जोरदार लात ने मुझे बता दिया कि हमको अभी और चपलता की आवश्यकता है।
मैं भी एक शानदार शिकारी बनने के साथ एक दिन उस जंगल पर राज करना चाहता था। मुझे याद है किस प्रकार हम सब एक विशाल बाघ के डर से मांद या घास में छुप जाते थे। इन्ही उधेड़ बुन में मेरी जिन्दगी आगे बढ़ रही थी। मेरी कल्पनायें उड़ान भरना चाहती थीं। इतने के बाद भी मुझे जंगल मे आने वाले दो पैर के मनुष्यों से डर लगता था। उनके हाव भाव मुझे पसंद नहीं थे। मैं उनसे दूर ही रहता था। कभी कभी कुछ लोग चोरी छुपे हमारे घर को उजाड़ने आ जाते थे। वो पेड़ जिनकी छांव में मेरा बचपन बीता था, कुछ क्रूर हाथों की भेंट चढ़ गया था। मुझे धीरे धीरे लगने लगा कि हमारे सबसे बड़े दुश्मन यही हैं। इस कारण गर्मियों में खाने की कमी होने पर मैंने भी जंगल के बाहर का रुख़ किया। कई प्रयास के बाद मुझे एक दिन आसान शिकार मिला। पर चरवाहे के शोर मचाने से मुझे एक दिन फिर भूखे जंगल में लौटना पड़ा।
भूख से व्याकुल मैं जंगल में भटकते हुए दूसरे क्षेत्र में पहुंच गया। बस यही एक भयानक गलती मुझसे हो गयी। वहाँ के युवा बाघ की ललकार को मैंने स्वीकार कर लिया औऱ उस दिन लड़ाई में मेरा एक दाँत जाता रहा। मेरे सपने धाराशायी हो चुके थे, भूख से मैं निढाल था, मेरा लहूलुहान शरीर थक चुके था। मेरी माँ अब मेरे साथ नहीं थी। एक दिन जंगल से लगे गन्ने के खेत, जिनमे हम सपरिवार आराम करते थे, काटने वालों ने हमें चारों तरफ से इस कदर दौड़ाया था कि उस अफरा तफरी में मैं अपने परिवार से ही बिछड़ गया।
अपने परिवार व भाई बहनों को याद कर मैं बहुत दुःखी था। उस दिन के बाद वो मुझसे सदा के लिए बिछड़ गए। इस बीच दूर जंगल के नज़दीक से आती जानवरों की आवाज़ ने मेरा ध्यान बरबस उस ओर खींचा। हिम्मत करके मैं एक बार फिर जंगल के बाहर निकला, और शिकार की खोज में छुपके बैठ गया। सुबह एक शिकार खेतों में हिलता देख मैं उसपे टूट पड़ा। मुझे याद है कई दिनों बाद मैंने भरपेट खाया। लेकिन यह कैसा शिकार था जो ज्यादा विरोध भी न कर सका, शायद गलती से खेत में बैठे एक आदमी को मैं हिरन समझ बैठा था।
मैं कुछ दिनों बाद फिर टूटे दांत व शिकार की कमी के कारण आसान शिकार ढूंढने जंगल से बाहर आया। इससे पहले कि मैं उस बकरी पर हमला करता मैंने पाया कि मैं चारों तरफ से घिर गया हूँ। लोग अनेक हथियार लेकर मेरी ओर बढ़ रहे थे। इस दिन मैंने न चाहते हुए भी अपने बचाव में उनपे हमला कर दिया और गुस्से में एक को अपने साथ ले आया। इसके बाद मानव के प्रति मेरी नफरत चरम पर पहुंच गई। मेरी दहशत से पूरा तराई क्षेत्र थर्राने लगा। लोगों ने घर से निकलना बंद कर दिया। दिन प्रतिदिन लोग गन लेकर मुझे ढूंढने लगे, मैं एक अपराधी की तरह इधर उधर पनाह लेने लगा। वो प्यारा सा मेरा घर परिवार सब मुझसे दूर हो गया। मनुष्य, जिन्होंने मुझे मजबूर किया था अपना घर परिवार छोड़ने को, अब उनके कारण मुझे जंगलों से भाग कर दर दर की ठोकर खानी पड़ रही थी।
न चाहते हुए भी अब मैं आदमखोर बन चुका था। मेरा सब कुछ छीन चुका था, मेरे सपने बिखर चुके थे। मेरे और मनुष्यों के बीच की आंख मिचौली आज समाप्त हो चुकी थी औऱ अब मुझे फर्रूखाबाद के पास एक गांव से कुछ अराजक तत्वों से बचाकर मेरे नए घर ‘चिड़ियाघर’, जिसे मैं सुधार गृह भी कह सकता हूँ, ले जाया जा रहा था। हालांकि मैं जानता हूँ, मेरी कोई गलती नहीं थी। मुझे परिस्थितियों ने आदमखोर बनाया था। लेकिन क्यों मैंने भी प्रकृति का नियम तोड़ते हुए जंगल से बाहर कदम रखा था औऱ उस प्रजाति पर हमला किया जो आज के संदर्भ में मेरा भोजन नहीं है? मैं जानता हूँ कि अब मेरी दहाड़ से जंगल कभी नहीं थर्राएगा। मेरी जगह कोई और जंगल को अपनी आवाज़ से गुंजायमान करेगा। लेकिन मेरी तरह कोई दूसरा प्रशांत तब तक उस क्षेत्र को आतंकित करता रहेगा, जब तक इस वर्षों की लड़ाई का अंत नहीं हो जाता। जी हाँ, मैं प्रशांत टाइगर हूँ। हालांकि आज मेरे पास सब कुछ है जो एक जंगल के राजा के पास होता है। पर मैं आज भी इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ रहा हूँ कि मैं आदमखोर क्यों बना?
Excellent sir, very touching…
Many thanks dear sir
बहुत ख़ूब।
धन्यवाद
I was able to fiind good info from your content.
Hello, the whole thing is going fine here and ofcourse every
one is sharing data, that’s actually excellent, keep up writing.
I am really thankful to the holder of this web site who has
shared this wonderful piece of writing at here.
Hello, you used to write great, but the last several posts have been kinda boring?
I miss your tremendous writings. Past several posts are just a little bit out of track!
come on!
I have visited your website many times, and found it to be very informative
Very nice sir , Your writing skills are awesome.
Many many thanks
Regards
शानदार लेख सर्
बहुत ही सरल शब्दों में आप हमें वन और वन्यजीव से रूबरू कर रहे है।
ऐसे ही आप अपना अनुभव share करते रहे ।
ईश्वर आपको स्वस्थ रखे 🙏🙏🙏
आपका छात्र
Many many thanks
Wish you happiness and success in life
Regards
Very interesting story
हालत किसी को कुछ भी बना सकते है श्रीमान
शानदार लेख , कलम के आप तो जादूगर है श्रीमान
आपका शिष्य डा. आलोक
Comments are closed.