तेंदुए से खतरनाक मुठभेड़
अप्रैल 2016 की बात है, प्रभारी पशु चिकित्साधिकारी आर के सिंह ने बताया कि मेरठ जिले के कैंट एरिया में एक तेंदुआ आ गया है और उसे पकड़ने के लिए जाना है। तुम भी उस टीम में चयनित किये गए हो। उस वक़्त प्राणी उद्यान में होने के कारण मेरा पास इतना वक़्त नही था कि घर जा कर अपनी कुछ तैयारी कर पाता। तेन्दुए को पकड़ना अपने आप मे एक बहुत बड़ी चुनौती थी। वक़्त कम था, तुरन्त मेरठ निकलना था।रेस्क्यू से जुड़े सभी तकनीकी समान को जांच- परख के रख कर हम लोग मेरठ के लिए रवाना हुए। टीम में सिंह साहब , मैं और कीपर विनोद थे।कानपुर से करीब पांच सौ किलोमीटर की दूरी होने की वजह से यथास्थान पर पहुँचने के लिए वक़्त ज्यादा लग रहा था। मन मे कई तरह के सवाल थे कि वहाँ पर क्या स्थिति होगी ? मोबाइल के माध्यम से हम मेरठ के वन अधिकारियों से जुड़े थे और पल पल की जानकारी ले रहे थे ।उस वक़्त ये पता था कि तेंदुआ छुपा हुआ है और लोग भी बहुत बड़ी संख्या में वहाँ हैं। रास्ते मे सिंह साहब ने हम लोगो को बताया की कैसे क्या करना होगा। वहाँ पर किन किन चीजो को हमें ध्यान में रखना है। उन्हें कई वर्षों का तजरुबा था, और बहुत से रेस्क़ुय ऑपरेशन का अनुभव था। उनकी एक एक बात अपने जहन में उतार ली।काफी दूरी होने की वजह से हम लोग सुबह के वक़्त उस क्षेत्र में पहुँचे जहाँ पर तेंदुआ था। उस जगह को आर्मी वालो ने घेर रखा था और कुछ दूरी पर भीड़ से लोगों की आवाज़ें आ रही थी। ‘बस पकड़ लीजिए तेंदुए को जल्दी से। मेरठ के वन अधिकारियो ने बताया कि तेंदुआ किस जगह पे छुपा हुआ है, बहुत सतर्कता हमने उस जगह को जांचा और परखा। सामने की तरफ़ जाल और अंदर बहुत सा सामान किन्तु अंधेरा होने कि वजह से तेंदुए का पता नही चल पा रहा था, पर डॉ साहब की हिम्मत से हमे भी हौसला मिल रहा था। दोबारा हम लोगो ने अंदर का कुछ सामान बाहर निकलवाना शुरू किया। विनोद, लोहे के एक गोलनुमा जाल के सहारे अंदर गए। वो भी सतर्कता से देख रहे थे और हम दोनों दूसरी तरफ से टार्च जला के देख रहे थे। जमीन में लेट के जैसे ही हमने टार्च जलाई तो रोशनी से; छुपे हुए तेंदुए की पूंछ नजर आयी। उसी वक़्त शुरू हो गया ‘ऑपरेशन तेंदुआ’। तुंरन्त विनोद को बाहर निकाला। जैसे ही सामान को इधर उधर किया, एक भयानक आवाज और बिजली की रफ्तार से एक शातिर शिकारी जाल की ओर लपका और दिखा दिया की हाँ, मैं हूँ तेन्दुआ। लोगों की भीड़, पुलिस प्रशासन, आर्मी, सब अपने अपने कार्य में मुस्तैद थे। मीडिया भी एक एक नजारा कवर करने में लगा था। सिंह साहब और मैं बस तेंदुए पर नजर रखे हुए थे, डॉ साहब तेंदुए पे ‘डॉट’ मार ही रहे थे कि अचानक तेंदुआ आया और जोर से पंजा मारा। हम तो पीछे हट गए पर डॉ साहब के हाथ से खून बहना शुरू हो गया। कुछ देर के लिए ऑपरेशन रोक दिया गया। डॉ साहब के हाथों में पट्टी बांध दी गयी। कुछ देर बाद हम लोगो ने फिर से तेंदुए को निशाना लगाया। तेंदुए की भागदौड़ में हम लोग कई बार गिरे भी, पर हिम्मत न हार कर आखिरकार उसे बेहोश कर ही दिया और सुरक्षित पकड़ लिया। …उसी दिन देर रात तक हम लोग उस तेंदुए को कानपुर प्राणी उद्यान ले आये। जब भी अवसर मिलता उसे देख लेते। उस तेंदुए की गुर्राहट आज भी वही पल याद दिला देती। तेंदुएं बहुत शानदार वन्यजीव है, अक़्सर गांव व शहर में तेंदुए आ जाते है। उस से दूरी बनाएँ तथा वन विभाग को सूचित कर दे। उसे स्वयं पकड़ने या मारने का प्रयास न करें।
(लेखक, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर व वन्यजीव एक्टिविस्ट हैं।)
very good
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