अगर मन में कुछ नया करने की ललक हो तो गोबर भी किसी वरदान से कम नहीं। जालंधर से 7 किलोमीटर दूर बुलंदपुर रोड पर स्थित गौशाला इसका जीवंत प्रमाण है।इस गौशाला में गाय के गोबर से बने गमले, यज्ञ-हवन इत्यादि में इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी एवं अन्य सामग्रियाँ तैयार की जाती हैं। 7 एकड़ भूमि पर विस्तारित इस गौशाला में 575 गायें हैं जिनसे प्रतिदिन 5 हजार किलो गोबर निकलता है। इतनी अधिक मात्रा में प्रतिदिन गोबर का निस्तारण गौशाला-प्रबंधन के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था किंतु इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद अब यह समस्या हल हो गई है। प्रोजेक्ट की निगरानी करने वाले नगर निगम के सहायक हेल्थ अफसर राजकमल का कहना है कि गमलों के अतिरिक्त हवन में प्रयोग होने वाली सामग्रियों की माँग लगातार बढ़ती जा रही है।जबलपुर की एक कंपनी में इन्हें बनाने की मशीन तैयार की जा रही है जिसकी कीमत 80,000 रुपये है।
पंजाब के जालंधर में लगभग 280 डेयरियाँ हैं। इनमें 28,122 गाय हैं जिनसे रोजाना 2 लाख 80 हजार किलो गोबर निकलता है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक ग्राम गोबर में 300 जीवाणु होते हैं तथा गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो रेडियोधर्मिता को सोखता है। गोबर में मौजूद तत्व पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में अत्यंत उपयोगी हैं। गोबर से बने गमले कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर वातावरण में ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इन गमलों को पौधों सहित जमीन में लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन्हें अपनी इच्छानुसार रूप-रंग देकर घरों में भी सुरक्षित रखा जा सकता है। नर्सरियों में पॉलिथीन के स्थान पर गोबर से बने गमलों में पौधे लगाने के लिए नर्सरी के कर्मचारियों को जागरूक किया जा रहा है। इन गमलों को पॉलिथीन के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इन विशेषताओं के कारण लोग गोबर से बने गमले खूब पसंद कर रहे हैं। गोबरजनित लकड़ी एवं हवन सामग्रियाँ भी बाजार में धूम मचा रही हैं। समान्यतः आम लकड़ी से हवन करने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है जबकि गोबर से निर्मित लकड़ी का प्रयोग करने पर प्राणवायु ऑक्सीजन निकलती है। कोयले की जगह भी इस लकड़ी का प्रयोग किया जा सकता है। यह ईंधन का एक सुलभ, सस्ता एवं प्रदूषणरहित स्त्रोत है।
नगर निगम की ज्वाइंट कमिश्नर आशिका जैन कहती है कि मध्यप्रदेश के खजुराहो में इसतरह के प्रयोग हो रहे थे। वहाँ की गौशालाओं से प्रेरित होकर उन्होंने इस अनूठी पहल का शुभारंभ किया । गोबर से बने सभी उत्पाद आर्थिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समाज के लिए हितकर है। बुलंदपुर गौशाला के प्रधान रविंदर कक्कड़ कहते हैं कि जब ज्वाइंट कमिश्नर ने यह सुझाव दिया तो बहुत यूनिक लगा। इसके क्रियान्वयन से गोबर का इस्तेमाल एवं खपत दोनों बढ़ गई है। अब अन्य गौशालाओं को भी इसी तर्ज पर काम करने की नसीहत दे रहे हैं।
यूं तो ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर का प्रयोग वर्षों से ही कंडे या उपले बनाने, घरों की लिपाई-पुताई करने एवं खाद के रूप में होता आया है किंतु अब शहरी परिवेश में भी गोबर से बने उत्पादों के प्रति लोगों का रुझान दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।गाय, भैंस अथवा बैल का मल-मूत्र समझा जाने वाला गोबर आज वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक उन्नति के फलस्वरुप व्यापार का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। गोबर से पनपता व्यापार न केवल जरूरतमंदों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है अपितु पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी सक्रिय है। यह अत्यंत प्रेरणादायी एवं प्रशंसनीय प्रयास है।