एक धमाका पुलवामा में हुआ और पूरा देश थर्रा गया।रोटी बिलखती चीत्कार करती खबरें और आक्रोशित जनमानस ।हर देश भक्त की भृकुटियों में बल और मुट्ठी में कसाव।चारों तरफ नारे जुलूस ,कैंडिल मार्च और श्रद्धांजलि सभाओं का सिलसिला शुरू ।युवा सड़कों पर उतर आए प्रौढ़ पान की दुकानों ,बाजारों और मित्र मण्डली में अपने अपने तर्क रखने लगे ।हर व्यक्ति सरकार का मार्गदर्शक बनने की योग्यता का प्रदर्शन करता स्वयं के सुझाव को सर्वोपरि मानकर संतोष का अनुभव करता हुआ।बुजुर्ग बुद्धू बक्से के सामने बैठ कर कभी शहीदों के विलाप करते करते परिवार को देखकर चश्मा उतार कर आसूं पोछते। कभी इस बात से बेपरवाह कि उन्हें कोई सुन भी रहा है या नही बड़बड़ाहट की मुद्रा में स्वयं से बात करते ।उनकी बड़बड़ाहट का सिरा 1947 की आजादी ,देश के बंटवारे और धारा 370 पर टिकी होती।
एक अजीब दर्द आकोश और संभावनाओं का वातावरण चारों ओर बन गया ।मैं स्वयं भी दिन में कई-कई बार रोती ,कभी ताबूत चूमती पत्नी को देखकर कभी छाती पीटती माँ देखकर ,कभी दाँत पीसते भाई को देखकर और कभी झुके कंधे और होटों में दबी सिसकी को छुपा कर बहादुर और देश भक्त होने का विश्वास दिलाते पिता को देखकर ।
मन उद्धिग्न से हो गया तो सोचा थोड़ा घर से बाहर निकलू कुछ कदम चली तो देखा नहर किनारे बसी मलिन बस्ती के बच्चे युवा युवतियां सब हाथों में देश का ध्वज लेकर भारत माता की जय ,वंदे मातरम और पाकिस्तान मुर्दाबाद कब नारे लगाते आगे बढ़ रहे हैं।अपनी देश भक्क्ति के के जोश में उन्होंने पूरा रोड जाम कर रखा था।
चारों तरफ संवेदनाओं के उबाल को देखकर कोई भी संवेदनशील बुद्धिजीवी यह सोचने को विवश हो सकता था कि ये भक्क्ति है या जुनून या फिर मात्र प्रदर्शन ।बहरहाल जो भी है मगर घटना से देश का बच्चा -बच्चा जुड़ गया था।अमीर -गरीब गाव – शहर ,शिक्षित-अशिक्षित सब।हर तरफ से पाकिस्तान मुर्दाबाद की आवाजें और देश के प्रति जुनूनी आवाज “वंदेमातरम”,भारत माता की जय का उदघोष।
मेरी संवेदना और सोच रहा-रह कर सरकार के फैसलों पर जाती । प्रतीक्षा थी कि आखिर अव क्या फ़ैसले होते हैं ।सेना पर कायराना हमला क्या देश की अस्मिता पर हमला नही ।सवाल ये भी था कि जब तक कोई अपना सम्मिलित नही हो तब तक ऐसी घटनाएं नही हो सकती। सोच निराधार नही इतिहास गवाह है।घर के भेदियों ने राष्ट्रों की तकदीर बदल है।मगर मजबूत ईक्षाशक्ति ने ऐसे जयचंदों को पराजित भी किया है।
बहरहाल एक माँ अपबे कलेजे के टुकड़े को जब शियाचीन और 0 point तक कलेजे पर पत्थर रख कर भेजती है ,तो उनकी धमनियों में खून जम जाता होगा ।जो मां अपने लाडले को पल भर के लिए भी गीले में न लेटने देती हो रात -रात भर उसके शरीर स्वास्थ्य का ध्यान रख कर उसे पालती है।इस शरीर के इतने विभत्स अंत पर उसे मात्र दुख ही नही होगा वो इस बलिदान की उपादेयता भी तलाशेगी और अगर उसे ये लगेगा कि ये बलिदान मात्र हल्ला गुल्ला और सुविधाजनक प्रदर्शन तक सीमित रह गया ,तो विश्वास मानिए कोई भी मां अपने कलेजे को टुकड़ो को राष्ट्र रक्षा के लिए कठिनाईयों से जूझने का हौसला देने से पहले हजार बार सीचेगी।
आज हर उस माँ को सलाम जो सिर्फ एक देह नही एक जज्बे को जन्म देती है,और इस जज्बे की सुरक्षा और सम्मान देश के हर नागरिक और सरकार का दायित्व है।
Very nice!
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