शारीरिक अपंगता किसी के लिए भी जीवन की सबसे बड़ी चुनौती होती है।यदि उसका सामना धैर्य ,साहस और आगे बढ़ने के हौसले से किया जाए तो न वह चुनौती रह जाती है और न सफलता के मार्ग में बाधा बनती है। अन्यथा ज़िंदगी अर्थहीन और दिशाहीन हो जाती है।
देवांग अग्रवाल ने जीवन के इस सफलता मंत्र को सही सिद्ध कर दिया है।आज उनके लिए जीवन का सर्वाधिक सुखद दिन है।वह चार्टेड अकॉउंटेन्ट (सी.ए.) की परीक्षा में अनेक शारीरिक बाधाओं के बाद भी सफल हुए।अब वह एक सी.ए. हो गए हैं।उनकी व उनके माता पिता की आखों में खुशी के आसूं हैं ,उनकी गहराई स्वयं वह तीन ही समझ सकते हैं।वह जन्म से ही एक ऐसी बीमारी से पीड़ित है जिससे उनकी शारीरिक श्रम करने की क्षमता समाप्त हो गयी।
जब वह चार वर्ष के हुए ( मस्कुलर डिस्ट्रॉफी) नामक लाइलाज बीमारी के शिकार हो गए।माता पिता दोनों का चिकित्सा जगत में नाम है किंतु वह अपने ही पुत्र की बीमारी से उसे मुक्त नही कर पाए।इस बीमारी के चलते देवांग का चलना फिरना बन्द हो गया । खेलकूद से उसका नाता टूट गया। बस व्हीलचेयर ही उसका एक सहारा रह गया। किंतु उन्होंने हिम्मत नही हारी । माता पिता और उसका अपना हौसला ही उसके जीवन का संबल बना ,जिसके चलते उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की। इंटरमीडिएट की परीक्षा में उन्होंने शहर के छात्रों में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर अपनी क्षेणी में प्रथम व प्रदेश में तीसरे स्थान प्राप्त किया।
अपनी सफलता के सम्बन्ध में देवांग कहते हैं कि मंज़िल उन्ही को मिलती है,जिनके सपनों में जान होती है।देवांग के हौसले बुलंद हैं।वह प्रोफेशनल सी.ए. बनेगा।उनका विस्वास है कि वह अपने भावी सपनों को और भी साकार करेंगे।
देवांग अपने अन्य साथियों की भांति दौड़ भाग नही सकते क्रिकेट, फुटबॉल या ऐसे ही अन्य बाहर खेले जाने वाले खेलों में भाग नही ले सकते । इसीलिए उन्होंने शतरंज को अपना प्रिय खेल बनाया ।वह बचपन से उसमें खो गए। पढ़ने के बाद जो समय मिलता वह शतरंज खेलते । आज उनकी गिनती शतरंज के अच्छे खिलाड़ियों में होती है। अपने मन की बात कहने के लिए बड़ी कठिनाई से वह स्वयं या किसी की सहायता से अपना ब्लॉग लेखन द्वारा करते हैं। उनके मित्रों का विश्वास है कि जिस प्रकार उन्होंने सी.ए. परीक्षा के फाइनल ग्रुप वन और टू सभी एक प्रयास में पास कर लिये ,वह भविष्य में एक सफल प्रोफेशनल भी सिद्ध होंगे।